राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां – राजस्थान में अनेक देवियों की पूजा की जाती है। करणी माता, जीण माता, शीतला माता, और चामुंडा माता आदि देवियों की पूजा राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है. नागणेची माता (राठौड़ों की), जीण माता (चौहानों की), करणी माता (बीकानेर के राठौड़ों की), और आशापुरा माता (जालौर के चौहानों की) आदि विभिन्न राजवंशों की कुलदेवी हैं
करणी माता:- राजस्थान में करणी माता का मुख्य मंदिर बीकानेर जिले के देशनोक शहर में स्थित है।
- करणी माता ‘‘चूहों की देवी’’ के नाम से भी जानी जाती हैं।
- करणी माता मंदिर में सफेद चूहों को “काबा” कहा जाता है.
- करणी माता का मेला साल में दो बार लगता है, चैत्र नवरात्रि और अश्विन नवरात्रि के दौरान लगता है
- मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव करणी माता ने रखी थी।
- 1488 ई.में राव बीका ने बीकानेर के राठौड़ वंश की नींव करणी माता के आशीर्वाद से रखी गई थी।
- बीकानेर के राठौड़ वंश की आराध्य देवी करणी माता हैं।
- करणी माता को भी चारणों की कुलदेवी माना जाता है
तनोट माता – तनोट माता का मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले के तनोट गाँव में स्थित है।
- थार की वैष्णो देवी तनोट माता को कहा जाता है
- तनोट माता को हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है
- तनोट माता को रक्षा की देवी, सैनिकों की देवी और रुमाल वाली देवी के रूप में जाना जाता है।
- तनोट माता के मंदिर में पुजारी का काम सीमा सुरक्षा बल(BSF) व सेना के जवान करते है ।
- तनोट माता मंदिर का निर्माण भाटी राजपूत राजा तनु राव (या तन्नू राव) ने करवाया था
अर्बुदा देवी – अर्बुदा देवी का मंदिर सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है। अर्बुदा माता को देवी पार्वती का ही एक रूप माना जाता है और उनका मंदिर “अधर देवी” के नाम से भी जाना जाता है । राजस्थान की वैष्णो देवी अर्बुदा माता मंदिर को कहा जाता है
शाकम्भरी माता/सकराय माता – शाकम्भरी माता ने अकाल से पीडित जनता को बचाने के लिए साग-सब्जियां, फल और अन्य वनस्पतियां उत्पन्न कीं उत्पन किये, इस शक्ति के कारण ये शाकम्भरी कहलाई (पोषण और प्रचुरता की देवी)।
- सकराय माता खण्डेलवालों की कूल देवी के रूप में प्रसिद्ध है
- शाकम्भरी माता अजमेर के चौहानों की कुलदेवी है ।
- शाकम्भरी माता का मंदिर सांभर (जयपुर) में है तथा एक मंदिर सहारनपुर (उत्तरप्रदेश) में स्थित है । सीकर जिले में उदयपुरवाटी कस्बे के पास भी शाकंभरी माता का एक प्राचीन मंदिर है।
शीतला माता – शीतला माता का मंदिर शील की डूंगरी, चाकसू (जयपुर) में है ।
शीतला माता एक ऐसी माता है, जिसकी खण्डित मूर्ति की पूजा होती है। शीतला माता का पुजारी कुम्हार होता है । चाकसू में प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी (चैत्र कृष्ण अष्टमी) के दिन मेले का आयोजन होता है । शीतला माता को बासी भोजन का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस दिन, भक्त एक दिन पहले बनाए गए भोजन को माता को अर्पित करते हैं, जिसे “बासोड़ा” या “बसोड़ा” भी कहा जाता है।
- शीतला माता का वाहन गधा होता है ।
- शीतला माता के मंदिर का निर्माण सवाईं माधो सिंह ने चाकसू में शील की डूंगरी पर करवाया था।
- चेचक की देवी के रूप में शीतला माता प्रसिद्ध है ।
जीणमाता :- राजस्थान के लोक साहित्य में जीण माता का गीत सबसे लंबा है। जीण माता का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले रेवासा गांव में स्थित है।
- पृथ्वीराज चौहान के सामंत हट्टड़ चौहान जीण माता के मंदिर का निर्माण करवाया था।
- सीकर के चौहानों की कुलदेवी जीण माता हैं।
- जीण माता के भाई हर्ष का मंदिर (हर्षनाथ मंदिर) राजस्थान के सीकर जिले में हर्ष पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर जीण माता मंदिर के पास ही स्थित है
- जीण माता मंदिर में हर साल चैत्र और आश्विन नवरात्रि के दौरान बड़े मेले लगते हैं.
- जीण माता के मंदिर में 12 महीने अखंड दीप जलता रहता है.
आवड़ माता:- आवड़ माता का मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित है। आवड़ माता को स्वांगिया माता के नाम से भी जाना जाता है
- आवड़ माता / स्वांगिया माता जैसलमेर के भाटी शासको की कुलदेवी हैं।
- राजस्थान में ‘‘सुगनंचिड़ी’’ को आवड़ माता का रूप माना जाता हैं।
सुगाली माता – सुगाली माता को राजस्थान में 1857 की क्रांति की देवी के नाम से जाना जाता है । 10 सिर और 54 हाथ वाली देवी सुगाली माता को कहा जता हैं।
सुगाली माता का मंदिर राजस्थान के पाली जिले के आऊवा गांव में स्थित है। सुगाली माता आऊवा के ठाकुरों (चंपावतों) की कुल देवी है।
कैलादेवी :- कैलादेवी का मुख्य मन्दिर करौली में त्रिकूट पर्वत पर हैें।
- कैलादेवी का मेला चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भरता हैं। कैला देवी मेला में लांगुरिया नृत्य किया जाता है।
- कैलादेवी, करौली के यदुवंषियों की कुलदेवी हैं।
- कैला देवी के इस मंदिर के सामने बोहरा भक्त की छतरी स्थित है।
- कैलादेवी मंदिर का निर्माण कार्य 1723 में करौली रियासत के शासक महाराजा गोपाल सिंह ने प्रारंभ करवाया और 1730 में पूर्ण हुआ।
- कैलादेवी मंदिर परिसर में भैरव और हनुमान जी के मंदिर भी स्थित हैं, हनुमान जी को स्थानीय भाषा में ‘लंगूरिया’ कहा जाता है।
घेवर माता – घेवर माता मंदिर राजसमंद झील की पाल (किनारे) पर स्थित है घेवर माता को बिना पति के सती होने वाली देवी के रूप में जाना जाता है.
- घेवर माता के मंदिर का निर्माण महाराणा राजसिंह ने करवाया था। राजसमंद झील के निर्माण के समय महाराणा राजसिंह द्वारा बनवाई पाल दिन में बनाते और रात में टूट जाती थी। राजपुरोहित के कहने पर एक धर्मपरायण पतिव्रता महिला घेवर बाई से झील की पाल की नींव रखवाई गयी।
- घेवर माता अपने हाथों में होम की अग्नि प्रज्जवलित कर अकेली सती हुई थी।
शिला माता – राजस्थान में शिला माता मंदिर आमेर (जयपुर) में पहले नरबलि दी जाती थी, लेकिन अब यह प्रथा बंद हो चुकी है। शिला माता मंदिर में नरबलि की जगह पशुबलि दी जाती है।
- शिला माता, जयुपर के कच्छावा राजवंष की कुलदेवी हैं।
- शिला माता की मूर्ति आमरे शासक मानसिंह प्रथम पूर्वी बंगाल के विजय के दौरान महाराजा केदारनाथ से लाए थे।
ज्वाला माता :- ज्वाला माता का मंदिर जोबनेर, जयपुर में स्थित है ज्वाला माता खंगारोतो राजवंश की कुल देवी हैं।
छींक माता – राजस्थान में छींक माता का मंदिर जयपुर (गोपाल जी के रास्ते में) में स्थित है।
कुशाल माता – राणा कुम्भा ने बदनोर (भीलवाडा) के युद्ध में महमूद खिलजी को पराजित कर, इस विजय की याद में विक्रम संवत् 1490 ईं ० में कुशाल माता का मंदिर बदनोर (भीलवाडा) में बनवाया था । यहाँ प्रतिवर्ष भाद्र कृष्ण ग्यारस से भाद्र अमावस्या को मेला भरता है।
राणी सती लोक देवी – रानी सती मंदिर (रानी सती दादी मंदिर) राजस्थान के झुंझुनू जिले में स्थित है राजस्थान के झुंझुनू में स्थित रानी सती मंदिर, एक राजस्थानी महिला रानी को समर्पित सबसे बड़ा मंदिर है और मंदिर में कोई भी भगवान और देवी की मूर्ति नहीं है
- झुंझुनू जिले की राणी सती का नाम नारायण बाई था ।
- राणी सती का विवाह हिसार के तनधनदास के साथ हुआ ।
- हिसार के नवाब की रक्षा करते हुए धनदास की मृत्यु हो गई तब नारायणी बाईं सन् 1652 में मार्गशीर्ष कृष्णा नवमीं को अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सती हुई ।
- लोक भाषा में राणी सती दादीजी के नाम से भी प्रसिद्ध है
- सती माता को अग्रवाल जाति की कुलदेवी माना जाता है ।
बड़ली माता – बड़ली माता का मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले के आकोला में स्थित है। यह मंदिर बेड़च नदी के किनारे स्थित है
बाकल माता/ विरात्रा माता – विरात्रा वांकल माता मंदिर राजस्थान के बाड़मेर जिले, चौहटन में विरात्रा नामक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है.
लटियाल माता – लटियाल माता मंदिर राजस्थान के फलोदी शहर में स्थित है।
दधिमती माता – दधिमती माता का मंदिर राजस्थान के नागौर जिले में जायल तहसील के गोठ मांगलोद गांव में स्थित है
आवरी माता – आवरी माता का मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के भदेसर तहसील के आसावरा गांव में स्थित है।
भदाणा माता – भदाणा माता का मंदिर राजस्थान के कोटा जिले के भदाणा गांव में स्थित है।
राजेश्वरी माता – राजेश्वरी माता को भरतपुर के जाट वंश की भी कुलदेवी मानी जाती हैं राजराजेश्वरी माता का मंदिर भरतपुर में स्थित है।
जिलानी माता – जिलानी माता मंदिर कोटपुतली-बहरोड़ जिला में स्थित है। जिलाणी माता को गुर्जर समाज की कुलदेवी माना जाता है
चौथ माता – चौथ माता का मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा में स्थित है।
- चौथ माता बूंदी राजघराने और कंजर जनजाति की कुलदेवी हैं। इसके अतिरिक्त, मीणा जनजातियों में भी चौथ माता को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
- सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा के लिए करवा चौथ (कार्तिक कृष्ण चतुर्थी) पर चौथ माता का व्रत करती है ।
भद्रकाली माता – राजस्थान में भद्रकाली माता के दो प्रसिद्ध मंदिर हैं, एक हनुमानगढ़ जिले में और दूसरा सिरोही जिले के आबू रोड के उमरानी क्षेत्र में स्थित है
मनसा माता – मनसा माता का मंदिर चूरू में स्थित है।
रानी भटियानी सा/ भुआ सा – रानी भटियानी सा का मंदिर राजस्थान के बालोतरा जिले के जसोल गाँव में स्थित है। जिसे माजीसा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है यह मंदिर रानी भटियानी (स्वरूप कंवर) को समर्पित है
भवाल माता – भंवाल माता का मंदिर नागौर जिले की मेड़ता तहसील में भवाल गाँव में स्थित है। भंवाल माता को ढाई प्याला शराब चढ़ाई जाती है ।
कैवाय माता – कैवाय माता मंदिर राजस्थान के डिंडवाना – कुचामन जिले के किनसरिया गाँव में स्थित है
धोलागढ देवी – धोलागढ़ देवी का मंदिर राजस्थान के अलवर जिले के कठूमर क्षेत्र में बहतूकला गाँव के धोलगिरी पर्वत पर स्थित है।
हर्षत माता – हर्षत माता मंदिर राजस्थान के दौसा जिले के आबानेरी गाँव में ‘चाँद बावड़ी’ के ठीक सामने स्थित है। अबानेरी में हर्षत माता मंदिर मूल रूप से भगवान विष्णु को समर्पित था।
पिपलाज माता – पिपलाज माता का मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले के ओसियां में स्थित है।
पपलाज माता – पपलाज माता का मंदिर राजस्थान के दौसा जिले के लालसोट में स्थित है।
पीपलाद माता – पीपलाद माता का मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले में खमनोर के पास देवल उनवास में स्थित है
आमजा माता – आमजा माता का मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले के रिछेड़ गाँव में स्थित है.
मगरमंडी माता – मगरमंडी माता का मंदिर राजस्थान के ब्यावर जिले के निमाज कस्बे में स्थित है.
रक्तदंती माता – रक्तदंती माता का मंदिर राजस्थान के बूंदी जिले में स्थित है।
कंठेश्वरी माता – कंठेश्वरी माता आदिवासियों की कुल देवी है। कंठेसरी माता का मंदिर जालौर जिले के पंचोटा गाँव में पंचमुखी पहाड़ी पर स्थित है