Categories
राजस्थान के लोक देवता और देवियाँ - Rajasthan ke lok Devta and Deviya

राजस्थान के लोक देवता – Rajasthan ke lok Devta

राजस्थान के लोक देवता – राजस्थान में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। रामदेवजी, गोगाजी, पाबूजी, हड़बूजी, मेहाजी, हड़बूजी, तेजाजी, कल्लाजी, तल्लीनाथजी,भोमियाजी आदि ने समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना, हिंदू धर्म की रक्षा, सांस्कृतिक उत्थान, समाज सुधार और जनहित में अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया।

रामदेवजी, पाबूजी, गोगाजी, हड़बूजी और मेहाजी को राजस्थान के पंच पीर कहा जाता है. ये पांच संत या पीर अपने धार्मिक और सामाजिक योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। राजस्थान के पांच पीरों में तेजाजी शामिल नहीं हैं। तेजाजी राजस्थान एक लोकप्रिय लोक देवता हैं, लेकिन उन्हें पंच पीरों में नहीं गिना जाता है.

रामदेव जी (पीर) – रामदेवजी के पास नीले रंग का घोड़ा था। जिसका नाम लीला था।

  • जन्म – उडुकासमेर, शिव तहसील (बाड़मेर)
  • पिता – अजमल तंवर
  • माता – मेणादे
  • पत्नी – नेतलदे/निहालदे
  • गुरु – बालिनाथ जी ( इनकी समाधि मसूरिया (जोधपुर) में स्थित है)
  • रामदेवजी के उपनाम – पीरो के पीर, रामसापीर, कृष्ण का अवतार, रुणिचा रा धणी ठाकुर जी, सांप्रदायिक सदभाव के देवता आदि नामो से जाना जाता है।
  • रामदेव जी की फड़ का वाचन कामडभोपा रावण हत्था वाद्य यंत्र से करते है। रामदेवजी के फड़ का वाचन कमाडिया पंथ के लोगो के द्वारा किया जाता है।
  • रामदेवजी ने जातिगत छुआछूत व भेद भाव मिटने के लिए “जम्मा जागरण” अभियान चलाया।
  • भाद्रपद शक्ल एकादशी, विक्रम संवत 1515 को रामदेव जी ने रुणिचा के रामसरोवर तालाब के किनारे जीवित समाधि ली। रामदेवजी का मेला भद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक रूणेचा में भरता है। जिसको माड़वाड़ का कुम्भ कहा जाता है। रामदेवजी के प्रतीक चिन्ह “ पगल्ये “ है।
  • रामदेवजी की धर्म बहिन – डाली बाई ने रामदेवजी एक दिन पहले समाधि ली थी।
  • कामड़िया पंथ की स्थापना रामदेव ने की थी। तेहरताली नृत्य कामड संप्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है । मांगी बाई तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यगना थी।
  • “चोबीस वाणिया” नामक पुस्तक बाबा रामदेव जी से संबंधित है।
  • जैसलमेर,पोखरण (रूणेचा) के मंदिर का निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया।रामदेव जी का मुख्य मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले में पोखरण के पास रामदेवरा में स्थित है। मसूरिया पहाड़ी, जोधपुर में भी रामदेव जी का मंदिर है.
  • रामदेव जी के अजमेर (खुंडियास) मंदिर को राजस्थान का छोटा रामदेवरा भी कहते है।

गोगाजी – महमूद गजनवी ने गोगाजी को जाहरपीर कहा था। गोगाजी के लिए “गांव गांव खेजड़ी गांव-गांव गोगा ” की कहावत का प्रसिद्ध है। गोगाजी का मन्दिर खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है गोगाजी के जागरण में डेरू व माठ वादे यंत्र का प्रयोग किया जाता है।

  • जन्म – ददरेवा, चुरू
  • पिता – जेवरसिंह
  • माता – बाछल दे
  • पत्नी – गोगाजी का विवाह कोलूमण्ड की राजकुमारी केलमदे के साथ हुआ था।
  • मेला – भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी ) को गोगामेड़ी गांव में मेला भरता है।
  • गोगाजी के उपनाम – गोगाजी को सांपो के देवता, गौ रक्षक देवता, गोगापीर, जहरपीर, जिंदा पीर कहते है।
  • मन्दिर – गोगामेड़ी ,नोहर (हनुमानगढ़) गोगाजी की ओल्डी – किलौरोयो की ढाणी (सांचौर) में स्थित है।
  • गोगाजी की मेड़ी मकबर नुमा है जिसका निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया था। गोगाजी के मन्दिर के मुख्य दरवाजे पर ( प्रवेश द्वार ) पर बिस्मिल्ला व मेड़ी पर ॐ शब्द लिखा हुआ है।

पाबूजी – जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित फलौदी के पास कोलू नामक गांव में 1239 ई. में हुआ था। वे धदल राठौर (राव सीहा के वंशज) के पुत्र थे। राजस्थान में सबसे पहले ऊट लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है। रायका/रेबारी जाति के आराध्य देव पाबूजी है। मेहर जाति के मुसलमान पाबूजी की पूजा करते है।

  • पिता -धंधाल जी राठौड़
  • माता – कमलदे
  • पत्नी -सुप्यारदे
  • घोड़ी – केसर कालमी (देवल चारणी की घोड़ी )
  • मुख्य मंदिर – कोलुमंड, जोधपुर
  • समाधि स्थल – देचू गांव, जोधपुर
  • उपनाम – गौरक्षक / ऊटो के देवता / प्लेक रक्षक देवता / हाड़- फाड़ के देवता
  • राजस्थान के लोक देवता पाबूजी को लक्ष्मण जी का अवतार माना जाता है। 
  • पाबूजी के मेला चैत्र अमावस्या को लगता है।
  • राजस्थान में ऊट के बीमार होने पर पाबूजी की फड़ का वचन किया जाता है।
  • पाबूजी की फड़ का वाचन नायक/धोरी जाति के भोपे करते है।
  • पाबूजी की फड़ का वाचन करते समय रावणहत्था वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है।
  • राजस्थान में सबसे लोकप्रिय फड़ पाबूजी की मानी जाती है।
  • मोरजी आशिया ने पाबू जी पर पाबू प्रकाश नामक पुस्तक लिखी।

हड़बूजी सांखला – हड़बुजी सांखला रामदेव जी मौसेरे भाई थे, उनकी प्रेरणा से ही हड़बुजी ने अस्त्र शस्त्र त्याग कर योगी बालीनाथ से दीक्षा ली थी।

  • हड़बूजी का मुख्य मंदिर बेंगटी गांव, फलौदी में स्थित है. वहां, उनकी बैलगाड़ी की पूजा की जाती है
  • वाहन – सियार
  • हड़बूजी ने रामदेवजी के समाधि लेने के 8 दिन बाद समाधि ली थी।
  • हड़बुजी के मन्दिर का निर्माण जोधपुर के शासक अजीत सिंह के द्वारा 1721 में करवाया गया।

मेहाजी मांगलिया – इनकी मृत्यु जैसलमेर शासक रांणगदेव भाटी से युद्ध में पाना गुजरी की गायों की रक्षा करते हुवे हुई थी। मेहजी के पुजारी की सन्तान नहीं होती है वह पुत्र गोद लेकर अपना वंश बढ़ाते है। मांगलिया वंश के भोपे पुत्र गोद लेकर वंश बढ़ाते है

  • जन्म – मारवाड़ में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी ( जन्माष्टमी) के दिन हुआ ।
  • घोड़ा – किरड़ काबरा
  • मन्दिर – बापणी गांव, जोधपुर
  • मेला – भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को भरता है।

तेजा जी – उनका जन्म माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन राजस्थान के नागौर जिले के खड़नाल में 1074 ई. में हुआ था। उन्होंने लाछा गूजरी की गायों को मीनाओं के चंगुल से छुड़ाते हुए अपने प्राण त्याग दिए। अजमेर के सुरसुरा गांव में तेजाजी मृत्यु हो गई।

  • पिता – ताहडजी
  • माता – राजकंवारी
  • पत्नी – पेमलदे
  • तेजाजी की घोड़ी का नाम लीलण (सिंगारी) था
  • तेजाजी को नागों के देवता, गौरक्षक, कृषि कार्यों के उपकारक, काला – बाला के देवता आदि नामो से जाना जाता है।
  • तेजाजी के जन्म दिवस पर 7 सितंबर 2011 को स्थान खड़नाल में 5 रुपय की डाक टिकट जारी की थी।
  • परबतर नागौर में भाद्रपद शुक्ल दशमी को इनका मेला लगता है। तेजाजी के इस मेले से राज्य सरकार को सबसे अधिक आय होती है।
  • सैदरिया – यहां पर तेजाजी को नाग देवता से डसा था।

मल्लिनाथ जी – रावल मल्लिनाथ राजस्थान के महानतम शासकों में से एक हैं। वे राव सलखाजी के पुत्र थे, जो बाड़मेर में मेहवानगर के शासक थे।

  • जन्म – तिलवाड़ा ( बाड़मेर ) में राठौड़ वंश में हुआ।
  • गुरु – उगमसी भाटी
  • मल्लीनाथ मेला चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक लूणी नदी के किनारे तिलवाड़ा नामक स्थान पर भरता है।
  • राजस्थान का सबसे प्राचीन मेला मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा है।
  • इनकी पत्नी रूपादे का मन्दिर मालाजाल गांव बाड़मेर में बना हुआ है।
  • बाड़मेर का गुड़ामलानी का नामकरण मल्लीनाथ जी के नाम पर हुआ है।
  • बाड़मेर के मालानी क्षेत्र का नाम इन्ही के नाम पर घोड़े प्रसिद्ध है।

देवनारायण जी – देवनारायण जी की फड़ राजस्थान के सभी लोक देवताओं में सबसे बड़ी फड़ है। देवनारायण जी फड़ का वाचन जन्तर वाद्य से गुर्जर भोपा के द्वारा किया जाता है।देवनारायण जी गुर्जर जाती के आराध्य देव है।

  • जन्म – इनका जन्म आसीन्द ( भीलवाड़ा ) में हुआ।
  • पिता – सवाई भोज
  • माता – सेढू खटाणी
  • इनकी शादी धार ( मध्यप्रदेश ) के शासक जयसिंह की पुत्री पीपलदे से इनका विवाह हुआ।
  • इनके घोड़े का नाम लीलागर था।
  • इनका मुख्य मेला भाद्रपद शुक्ल सप्तमी और माघ शुक्ल सप्तमी में भरता है।
  • देवनारायण जी आयुर्वेद के देवता, गौरक्षक का देवता, विष्णु का अवतार कहा जाता है।
  • देवनारायण जी के मंदिरों में एक ईट की पूजा की जाती है।
  • 3 सितम्बर 2011 को भरता सरकार के द्वारा 5 रुपय की डाक टिकट जारी की गई ।
  • मन्दिर – देवडूंगरी (चित्तौड़गढ़), देवधाम (जोधापुरिया, निवाई, टोंक), देवमाली (ब्यावर), आसींद (भीलवाड़ा)

वीर कल्लाजी – 1568 ई. में अकबर द्वारा चितौड़ दुर्ग पर आक्रमण किया तो महाराणा उदयसिंह ने दुर्ग की रक्षा का भार जयमल व कल्ला जी को सौंपा था और स्वयं सुरक्षित स्थान पर चले गए। युद्ध के समय जयमल को पैर में अकबर द्वारा गोली मार दी गयी तब कल्ला जी ने जयमल को अपने कंधो पर बैठाकर युद्ध लड़ा है और चार हाथों से तलवारें चलने लगी तो लोग आश्चर्य चकित हो गये इसलिये कल्ला जी को चार हाथों वाला देवता कहा जाता है।

  • जन्म – इनका जन्म मेड़ता ( नागौर ) हुआ।
  • गुरु – योगी भैरवनाथ
  • पिता – आससिंह
  • माता – श्वेतकंवर
  • इनका मेला अश्विन शुक्ल नवमी को लगता है।
  • इनको शेषनाग का अवतार, चार भुजा वाले देवता, योगी, दो सिर वाले देवता, कल्याण, बाल – ब्रह्मचारी आदि नामो से जाना जाता है।
  • मीरा बाई इनकी बुआ तथा जयमल इनके चाचा थे।
  • महाराणा उदयसिंह द्वारा कल्ला जी को रूण्डेला तथा रुणढालपुर की जागीरें प्रदान की गई थी।
  • कल्ला जी राठौड की छतरी चितौड़गढ़ दुर्ग में भैरवपोल नामक स्थान पर बनी हुई है
  • कल्ला जी का मंदिर सामलिया डूंगरपुर तथा मुख्य पीठ रनेला चितौड़गढ में स्थित है। कल्लाजी के मंदिर में अफीम चढ़ाई जाती है

डूंगर जी – जवाहर जी – डूंगर जी और जवाहर जी, शेखावाटी क्षेत्र के पाटोदा गाँव (सीकर) के निवासी थे यह दोनों रिश्तों में चाचा और भतीजा थे

  • उन्हें “धाड़वी” या “लोक देवता” के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि वे अमीरों को लूटकर गरीबों में धन बांटते थे। इन्होंने नसीराबाद ( अजमेर ) छावनी को भी लूटा था।
  • लोठिया जाट, करणा भील, सावंत मीणा, डूंगरजी और जवाहरजी के सहयोगी थे

इलोजी – राजस्थान में ईलोजी महराज को छेड़छाड़ का देवता कहते है राजस्थान के एक मात्र ऐसे लोकदेवता हैं जिन्होंने अपनी पत्नी की याद में अपने प्राण त्याग दिए. इनकी शादी से एक दिन पहले इनकी होने वाली पत्नी होलिका (हिरण्यकश्यप की बहन) ने प्राण त्याग दिए थे जालौर में इलोजी की बारात निकाली जाती है और होली के दौरान विशेष पूजा होती है.

भूरिया बाबा/ गौतमेश्वर – भूरिया बाबा को मीणा लोग अपना आराध्य मानते हैं और उनकी झूठी कसम नहीं खाते हैं

  • गौतमेश्वर महादेव का मेला वैशाखी पूर्णिमा पर अरनोद प्रतापगढ़ में आयोजित होता है
  • भूरिया बाबा का मुख्य मंदिर राजस्थान के सिरोही जिले के पोसालिया गाँव में स्थित है, जो अरावली की पहाड़ियों और सुकड़ी नदी के किनारे बसा है।
  • गौतमेश्वर के मेले में वर्दी पहने हुवे पुलिस का जाना वंचित है।

आलमजी –आलम जी का थान (मंदिर) ढांगी नामक टीले पर है, जिसे आलम जी का धोरा कहा जाता है. यहां भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को मेला लगता है. आलम जी का मंदिर धोरीमन्ना (बाड़मेर) में स्थित है।

तल्लीनाथजी – पंचोटा गांव (जालौर) में ही उनका मुख्य उपासना स्थल व समाधि है। जालोर की पंचमुखी पहाड़ी पर उनका मन्दिर व समाधि बनी हुई है। राव तल्लीनाथजी राठौड़ का मूल नाम गांगदेव राठौड़ था। इनके पिता विरमादेव राठौड़ शेरगढ ठिकाने (जोधपुर) के जागीरदार थे

  • गुरु – जालंधर नाथ ( इनके द्वारा ही गागदेव को तल्लीनाथ का नाम दिया था। )
  • इनको प्रकृति प्रेमी लोकदेवता कहा जाता है। ओरण के देवता के रूप में तल्लीनाथ जी को जाना जाता है।

भोमिया जी /क्षेत्रपाल–भोमिया जी भूमि रक्षक देवता कहते है। भोमिया जी मन्दिर गांव – गांव में होता है।

मामादेव – मामा देव को बरसात का देवता कहा जाता है। मामादेव की पूजा मंदिर या घर के अंदर नहीं की जाती है, बल्कि गांव के बाहर मुख्य सड़क पर लकड़ी के तोरण के रूप में की जाती है। मामा देव का मन्दिर स्यालोदडा ( सीकर ) में है। राजस्थान में मामादेव लोक देवता को प्रसन्न करने के लिए भैंस की बलि दी जाती है।

देवबाबा – देवबाबा को गुर्जरों आराध्य देव और ग्वालों का पालनहार देवता माना जाता है देवबाबा को पशु चिकित्सक कहते है। देवबाबा का नगला जहाज ( भरतपुर ) में इनका मुख्य मन्दिर है इनका मेला भाद्रपद शुक्ल पंचमी को भरता है। इनका वाहन भैसा है।

वीर फता जी – इनका जन्म सांथू गांव (जालौर) में हुआ। इनका मेला भाद्रपद शुक्ल नवमी को भरता है। वीर फताजी लुटेरों से गांव की रक्षा करते हुवे शाहिद हो गए थे।

पनराज जी – पनराज जी का मन्दिर पनराजसर (जैसलमेर) में बना हुआ है। पनराज जी जैसलमेर के आराध्य देव है और इनका जन्म नगा गांव (जैसलमेर) में हुआ।

हरिराम जी –हरिराम जी मंदिर में मूर्ति के स्थान पर सांप की बांबी या चरण चिन्ह की पूजा की जाती है। इनका जन्म झोरड़ा ( नागौर ) में हुआ । झोरड़ा ( नागौर ) में इनका मन्दिर बना हुआ है। इनका मेला चैत्र शुक्ल चतुर्थी व भाद्रपद शुक्ल पंचमी को भरता है।

झुंझार जी –झुंझार जी का मुख्य मंदिर स्यालोदडा, सीकर में स्थित है,जहाँ प्रतिवर्ष रामनवमी को मेला लगता है।

पंचवीर जी –पंचवीर जी का मन्दिर अजीतगढ़ (सीकर) में बना हुआ है। पंचवीर जी शेखावत समाज के कुल देवता है।

रूपानाथ जी (झरड़ा जी) –रूपानाथ जी ने जींदराव खींची का वध कर अपने चाचा पाबूजी की मौत का बदला लिया था। यह पाबूजी के भाई बुढ़ो के पुत्र थे। इन्हे हिमाचल प्रदेश मे बालकनाथ के नाम से पूजा जाता है। इनका मंदिर शिम्भूदडा गाँव (नोखा मण्डी, बीकानेर) व कोलुमण्ड (फलौदी) में स्थित है।

बीग्गा जी – वीर बिग्गामलजी या झुंझार जी का जन्म जाट जाति के जाखड़ गोत्र मैं हुआ। झुंझार जी गायों की रक्षा करते वीर गति को प्राप्त हुऐ। बिग्गाजी जाखड़ गौत्र समाज के कुल देवता के रूप मे पूजे जाते हैं। बीग्गा जी का मुख्य मन्दिर रीडी, डूंगरगढ़ ( बीकानेर ) में बना हुआ है।

वीर बावसी –वीर बावसी, देवासी समाज के एक पूजनीय देवता हैं राजस्थान के सिरोही जिले के जोयला शिवगंज में वीर बावसी का मंदिर स्थित है।

By Rohit

My name is Rohit and I am from Rajasthan. I have done B.Tech from National Institute of Technology Hamirpur. I am selected in Rajasthan JE, SSS JE, DFCCIL, Coal India, HPCL etc.

I am also manage instagram id – Rajasthan1GK4 and Twitter account (X account) – rajasthan1gk4

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *