तेजा जी का जन्म माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन राजस्थान के नागौर जिले के खड़नाल में 1074 ई. में जाट परिवार में हुआ था। खरनाल (नागौर) में तेजाजी का एक भव्य मंदिर बनाया गया है। तेजाजी राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं और तेजा जी को शिव के ग्यारह अवतारों में से एक माना जाता है।
- तेजाजी के पिता का नाम ताहड़ जी और माता का नाम रामकुंवरी था।
- तेजाजी की पत्नी का नाम पेमल था। पेमल, पनेर के सरदार रायमल की पुत्री थीं।
- तेजाजी की घोड़ी का नाम लीलण (सिंगारी) था।
- तेजाजी को नागों के देवता, गौरक्षक, कृषि कार्यों के उपकारक, काला – बाला के देवता आदि नामो से जाना जाता है।
- तेजाजी के जन्म दिवस पर 7 सितंबर 2011 को स्थान खड़नाल में 5 रुपय की डाक टिकट जारी की थी।
- परबतर नागौर में भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा जी का प्रत्येक वर्ष मेला लगता है। परबतर तेजा जी मेले से राज्य सरकार को सबसे अधिक आय होती है।
- तेजाजी, लाछा गूजरी की गायों को मीनाओं के चंगुल से छुड़ाते हुए अपने प्राण त्याग दिए। अजमेर के सुरसुरा गांव में तेजाजी मृत्यु हो गई।
वीर तेजाजी एक बार खरनाल से अपने ससुराल पनेर गए थे, वहां उनकी सास दुआरी (गाय का दूध निकाल रही थी) कर रही थी और तेजा जी की घोड़ी को देखकर गाय वहां से भाग गई, तब बिना देखे तेजाजी की सास ने श्राप दे दिया कि तुझे काल नाग डसे, ऐसा सुनकर तेजाजी वहां से लौटने लगे, तब उनकी पत्नी पेमल ने उन्हें रोका, पत्नी के कहने पर तेजाजी मान गए और सुसराल पहुंचकर आराम करने लगे। कुछ देर बाद ही गांव में एक गुर्जर जाति की महिला लाछा गूजरी मदद मांगने के लिए तेजाजी के पास आई, महिला ने बताया कि उसकी गायों को मीना चोर ले गए। चोरों से गायों को छुड़ावा कर लाएं, तेजाजी ने कहा कि गांव वालों को भेजो, तब महिला ने कहा कि आप तलवार-भाला रखते हैं, इसलिए यह काम आप ही कर सकते हैं। तेजाजी ने गायों को चोरों से छुड़ाने का वचन दिया, वचन पूरा करने के लिए तेजाजी घोड़ी पर सवार होकर किशनगढ़ के समीप पहुंचे। यहां चोरों से युद्ध कर वह गायों को छुड़ाकर ले आए, लेकिन एक गाय का बछड़ा चोरों के पास ही रह गया। लाछा गूजरी ने कहा कि पूरी गायों का मोल वह बछड़ा ही था, जिसे आप लेकर नहीं आए। तेजाजी वापस बछड़ा छुड़ाने के लिए रवाना हुए, यहीं खेजड़ी के पास पहुंचे जहां सर्प की बाम्बी थी. बाम्बी के समीप आग की लपटें देख तेजाजी ने सर्प को जलने से बचा लिया. इस पर सर्प खुश होने की जगह दुखी होकर बोला कि तुमने रुकावट डाला है, इसलिए मैं तुम्हे डसुंगा, तेजाजी ने सर्प को वचन दिया कि वो बछड़े को चोरों से छुड़ाकर लाएंगे, उसके बाद वो उन्हें डस सकते हैं। चोरों से भयानक युद्ध करने के बाद तेजाजी ने बछड़ा छुड़ा लिया और उसे लाछा गूजरी को सौंप दिया। वचन निभाने के लिए सांप के पास पहुंचे तो पूरे शरीर पर जख्म देखकर सांप ने डसने से मना कर दिया। तेजाजी ने वचन पूरा करने के लिए अपनी जीभ निकालकर कहा कि यहां घाव नहीं है और मेरी जीभ अभी सुरक्षित है, तब सर्प ने तेजाजी की जीभ पर डसा। सर्प ने वचनबद्ध रहने से प्रसन्न होकर तेजाजी को वरदान दिया कि वह सर्पों के देवता बनेंगे. सर्प से डसे हर व्यक्ति का विष तेजाजी के थान पर आने पर खत्म हो जाएगा.
पेमल का विवाह तेजाजी से बाल्यकाल में ही 1074 ईस्वी में पुष्कर में हुआ था, जब तेजाजी 9 महीने के और पेमल 6 महीने की थीं। जब तेजाजी गायों की रक्षा करते हुए शहीद हो गए, तब पेमल ने सती प्रथा का पालन किया और पेमल सती हो गई थी।
- सैदरिया – यहां पर तेजाजी को नाग देवता से डसा था।
- सुरसुरा – यहां पर तेजाजी ने प्राण त्याग दिए थे।
- खरनाल – यहां पर तेजाजी का जन्म हुआ था।
- पनेर – यहां पर तेजाजी का ससुराल था।
- सुरसुरा तेजाजी का मुख्य निर्वाण स्थली (समाधि स्थल) है, जबकि खरनाल उनकी जन्मस्थली है।
वीर तेजाजी के अन्य पूजा स्थल –
- भांवता, नागौर में
- ब्यावर, अजमेर में
- बांसी दुगारी, बूंदी में
- परबतसर, नागौर में
- सुरसुरा, किशनगढ़ ( अजमेर ) में
- माड़वालिया, अजमेर में
- भांवता, नागौर में
- पनेर, अजमेर में
- खड़नाल, नागौर में
- तेजाजी का एक मंदिर चेन्नई (तमिलनाडु)के पुझल शक्तिवेल नगर में एक भव्य मंदिर है, जहाँ लीलण पर सवार तेजाजी की 51 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है।