Categories
Uncategorized

बिजोलिया किसान आन्दोलन Bijolia Kisan andolan 

बिजोलिया किसान आन्दोलन मेवाड़ राज्य के किसानों द्वारा 1897 ई शुरू किया गया था और ये आन्दोलन भारत का सर्वाधिक समय (44 साल) तक चलने वाला एकमात्र अहिंसक आंदोलन था। यह आन्दोलन किसानों पर अत्यधिक लगान/कर लगाने  के विरुद्ध किया गया था। यह आन्दोलन बिजोलिया जागीर से आरम्भ होकर आसपास के जागीरों में भी फैल गया।इस समय में बिजोलिया( प्राचीन नाम विजयावल्ली), राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है। बिजोलिया ठिकाना उपरमाल की जांगिर के अंतर्गत आता है | ये ठिकाना राणा सांगा ने अशोक परमार क़ो उपहार में दिया था क्योंकि अशोक परमार ने राणा सांगा की खानवा की युद्ध में मदद की थी | 

आंदोलन के मुख्य कारण थे

1. 84 प्रकार के लाग बाग़ – कर

2. लाटा कूंता कर – खेत में खड़ी फसल के आधार पर कर

3. चवरी कर – किसान की बेटी की शादी पर कर

4. तलवार बंधाई कर – नए जागीरदार बनने पर लिया जाने वाला कर

5. बेगार – – बिना वेतन के काम

ये आंदोलन 3 चरणो में हुआ ओर इस आन्दोलन में धाकड़ जाति के किशनो का प्रमुख योगदान था |

प्रथम चरण (1897-1916) – नेतृत्व – साधु सीताराम दास

इस आंदोलन की शुरुआत 1897 में गिरधारीपुरा गांव में हुई थी 1897 में गिरधारीपुरा नामक गांव में गंगाराम धाकड़ के पिता के मृत्यु भोज के अवसर पर किसानों ने एक सभा रखी जिसमें कर बढ़ोतरी की शिकायत मेवाड़ के महाराजा से करने का प्रस्ताव रखा गया। इस हेतु नानजी पटेल एवं ठाकरी पटेलको उदयपुर भेजा गया लेकिन वे महाराणा से मिलने में सफल न हो सके।शिकायत पर मेवाड़ महाराणा फतेहसिंह ने अपना जाँच अधिकारी हामिद हुसेनको नियुक्त किया और जाँच के बाद कोई भी करवाईं नहीं हुई | बिजोलिया के ठिकानेदार राव कृष्णसिंह ने शिकायत करता नानज़ी पटेल एवं ठाकरी पटेल को मेवाड़ से निष्कासित कर दिया | 

राव कृष्णसिंह ने 1903  ईस्वी में चंवरी कर लगा दिया। जो भी व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह करता उसे ठिकाने में कर के रूप में ₹5 जमा कराने होते थे।1906 में राव कृष्णसिंह का निधन हो गया ओर राव पृथ्वीसिंह नया ठिकानेदार बना |

1906 ईस्वी में राव पृथ्वीसिंह द्वारा तलवार बंधाई नामक नया कर लगा दिया। यह नए जागीरदार के उत्तराधिकार के रूप में राज्य द्वारा लिया जानेवाला उत्तराधिकार शुल्क था।तलवार बंधाई कर के विरोध में साधु सीतारामदास, फतेहकरण चारण व ब्रह्मदेव के नेतृत्व में किसानों ने 1913 ई. में आंदोलन करते हुए भूमिकर नहीं दिया।

पहले चरण में साधु सीताराम दास ,नानजी पटेल, ठाकरी पटेल, फतेहकरण चारण, ब्रह्मदेव आदि ने आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।

द्वितीय चरण (1915 -1927 ) – नेतृत्व – विजय सिंह पथिक

1916 ईस्वी में विजय सिंह पथिक ने साधु सीताराम दास के आग्रह पर बिजौलिया किसान आंदोलन की बागडोर संभाली।विजय सिंह पथिक का वास्तविक नाम भूपसिंह था। बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश ) के रहने वाले थे।विजय सिंह पथिक ने  1916 में किसान पंच बोर्ड (अध्यक्ष साधु सीताराम दास) की स्थापना की ओर फिर 1917 में ऊपरमाल पंच बोर्ड (13 सदस्य) की स्थापना की साथ ही श्री मन्ना पटेल को इसका सरपंच बनाया। उपरमाल का डंका नामक पर्चा लोगो को आंदोलन से जोड़ने के लिए बाटा गाया |

1918 में पथिक जी गाँधी जी से मिले ओर इस आन्दोलन के बारे में बताया | गाँधी जी अपने महासचिव महादेव देसाई को जाँच के लिए भेजा | गाँधी जी की इस आंदोलन में रुचि लेने के कारण अंग्रेज़ सरकार ने किसानों की मांगों के औचित्य की जांच करने के लिए अप्रैल 1919 में न्यायमूर्ति बिंदु लाल भट्टाचार्य जांच आयोग गठित हुआ लेकिन मेवाड़ राज्य ने कोई निर्णय नहीं लिया | 1922 में AGG हॉलेंड के प्रयासों से किसानों व रियासत के बीच एक समझौता हुआ लेकिन ठिकाने ने इसे भी लागू नहीं किया।ओर किसानों ने लगान एवं करों का भुगतान बंद कर दिया। विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन के मुद्दे को नागपुर कांग्रेस के अधिवेशन में उठाया।

नारायण पटेल कर देने से मन के देता है ओर जब इने जेल में डालने की कोशिश की जाती है तो 2000 से 3000 किसान इनके साथ खड़े हो जाते है | 

गणेश शंकर विद्यार्थी (संपादक थ) ने कानपुर से प्रकाशित अपने प्रताप नामक समाचार पत्र के माध्यम से इस आंदोलन को पूरे भारत में लोकप्रिय बना दिया। 1920 में विजय सिंहपथिक ने पहले वर्धा और फिर अजमेर से राजस्थान केसरी नामक पत्र का प्रकाशन किया। बिजोलिया किसान आंदोलन के बारे में मराठा(पूना), अभ्युदय(प्रयाग), भारतमित्र(कोलकाता), नवीन राजस्थान(अजमेर) समाचार पत्रों में लिखा गया |

1927 में विजय सिंह पथिक नेताओ के बीच आपसी मतभेद की वजह से इस आंदोलन से अलग हो जाते है |

तृतीय चरण (1927-1941 ) – नेतृत्व – माणिक्यलाल वर्मा

विजय सिंह पथिक जाने के बाद इस आंदोलन को माणिक्यलाल वर्मा, जमना लाल बजाज, हरिभाऊँ उपाध्याय, रामनारायण चौधरी, हरिभाई किंकर, रमा बाई, जानकी देवी आदि ने आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। 

1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर राघवाचारी एवं किसानों के बीच समझौता हो गया जिसमें सभी बाते मान ली गयी ओर आंदोलन का समाप्त हो गया। 

माणिक्यलाल वर्मा ने अपने ‘पंछीड़ा‘ गीत से किसानों में जोश भर दिया करते थे इस आंदोलन में।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *