बेगूँ किसान आंदोलन चित्तौड़गढ़ में सन 1921 में आरम्भ हुआ था। बिजोलिया किसान आंदोलन से प्रोत्साहित होकर बेगू के किसानों ने भी अत्याधिक लाग,बाग, बैठ बेगार एवं लगान के विरोध में आंदोलन करने का निर्णय लिया। बेगूँ भी बिजोलिया की तरह मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था। वर्तमान में बेगू चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है बेगू के किसानों ने अपने जागीरदार अनूप सिंह के द्वारा लगान में वृद्धि ओर बेकार प्रथा के विरोध में ये आंदोलन को शुरू किया था।
बेगू किसान आंदोलन के प्रमुख कारण –
- 53 प्रकार के कर
- भू- राजस्व अधिक लिया जाता था
- लाता – कुंता
- बेगार प्रथा – बिना पेसो के काम करवाना
बेगूँ किसान आंदोलन की शुरुआत 1921 में मेनाल , भेरु कुंड नामक स्थान से हुई थी। बेगू किसान आंदोलन धाकड़ जाति के किसानों द्वारा किया गया था। इस आंदोलन की शुरूआत बेगार प्रथा के विरोध के रूप में हुई थी। आंदोलन का नेतृत्व शुरूआत में रामनारायण चौधरी ने किया था, बाद में इसकी बागड़ोर विजयसिंह पथिक ने सम्भाली थी। इस समय बेगूँ के ठाकुर अनुपसिंह थे।
रामनारायण चौधरी ने किसानो की समस्याओं को लेकर मेवाड़ के दीवान दामोदर लाल से मिले। लेकिन किसानो की समस्याओं का कोई समाधान नही निकला। किसानों ने रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में निर्णय किया कि फसल का कूँता नहीं कराया जाएगा, सरकारी कार्यालयों और अदालतो का बहिष्कार किया जाएगा, बेगार बन्द की जाये ओर किसान पंचायत स्थापित की जाये। किसान पंचायत में आपसी झगड़ो का निवारण होता था।
इन सब घटनाओं को देख कर ब्रिटिश सरकार ने मेवाड़ महाराणा फतेह सिंह से सारे अधिकार छिनकर महाराज कुमार भूपाल सिंह को दे दिया। चाँदखेड़ी (1921) ओर मंड़ावरी (1922) में बेग़ु किसान आंदोलन को कुचलने की कोशिश की गयी।
1922 ,अजमेर में विजय सिंह पथिक की मध्यस्थता में बेगू के किसानों और ठाकुर अनूप सिंह के मध्य समझोता हो गया।लेकिन मेवाड़ के महाराणा ने इस समझौते को बोल्शेविक समझौते की संज्ञा देकर ,समझौते को मानने से मना कर दीया।ओर महाराणा ने अमृतलाल को बेगुं का प्रशासक नियुक्त कर दिया।13 जून 1923 आंदोलन की जाँच लिए ट्रेंच आयोग का गठन किया गया था लेकिन ट्रेंच ने बिना जांच के ही रिपोर्ट पेश कर दी थी। इस ट्रेच आयोग का किसानो ने बहिष्कार किया था।
13 जुलाई,1923 को गोविन्दपुरा गांव में किसानों का एक सम्मेलन हो रहा था, ट्रेंच के आदेश पर सेना के द्वारा किसानों पर गोलियाँ चलाई गयी। जिसमें रूपाजी धाकड़ और कृपाजी धाकड़ दो किसान शहीद हो गये।ओर इस घटना का चारों तरफ़ से विरोध हुआ।
इस घटना के बाद प्रताप, नवीन राजस्थान/तरुण राजस्थान, राजस्थान केसरी समाचार पत्रों ओर मेवाड़ रियासत में प्रतिबंध लगा दिया गया था।
10 सितंबर 1923 विजय सिंह पथिक को गिरफ्तार किया गया 5 वर्ष के कारावास में भेज दिया गया। पथिक जी की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन धीरे धीरे समाप्त हो गया।
1925 में 53 में से 34 कर को ओर बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया ओर आंदोलन समाप्त हो गया।