मारवाड़ किसान आंदोलन मुख्यतः जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मारवाड़ हितकारी सभा द्वारा चलाया गया था।
मारवाड़ किसान आंदोलन के मुख्य कारण –
- किसानो पर तिहरा नियंत्रण ( राजा, अंग्रेज़, जागीरदार )
- 136 प्रकार के कर लिया जाता था।
- 1929 की आर्थिक मंदी
- 1931 के अकाल के बाद भी लगान में कोई छूट नही।
- बेगार प्रथा
- बिगोडी ( लगान नक़दी में लिया जाता ) बहुत ज़्यादा थी।
मारवाड़ के किसान आंदोलन का सूत्रपात सन् 1922 में हो गया जब बाली व गोडबाड़ के भील-गरासियों ने मोतीलाल तेजावत के एकी आंदोलन से प्रभावित होकर जोधपुर राज्य को लगान देने से इंकार कर दिया।
मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मादा पशुओं के राज्य से बाहर भेजने के मुद्दे पर आंदोलन किया था आंदोलन के फलस्वरुप मादा पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
किसानों ओर जनता का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से सभा ने दो पुस्तिकाएं – पोपाबाई की पोल एवं मारवाड़ की अवस्था प्रकाशित की थी। ये दोनो किताबें जयनारायण व्यास ने लिखी थी।
1929 में मारवाड़ देसी राज्य लोकपरिषद की स्थापना की गयी। लेकिन इस पर राजा ने प्रतिबंध लगा दिया। ओर इसका पहला अधिवेशन 1931 में पुष्कर में चाँदकरण शारदा के नेतृत्व में हुई। बिगोड़ी समाप्त की जाये, जागीरदारो के न्यायिक अधिकार समाप्त किये जाये, पंचायत की स्थापना की जाये, भूमि पर स्वामित्व दिया जाये, बेग़ार समाप्त की जाये आदि माँगे राजा के सामने रखने का निर्णय लिया गया।
सन 1929 को मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जागीरों से किसानों को लाग-बाग तथा शोषण से मुक्ति दिलवाने के लिए पुनः आंदोलन चलाया।
जोधपुर राज्य ने तरूण राजस्थान पर प्रतिबंध लगाते हुए 20 जनवरी 1930 को जयनारायण व्यास, आन्नदराज सुराणा तथा भंवर लाल सर्राफ को बंदी बना लिया। किसानो की कुच माँगे मान ली जाती है।
1938 में मारवाड़ लोक परिषद की स्थापना हुई ओर इसका विरोध में मारवाड़ के राजा ने बलदेव राम मिर्धा के नेतृत्व में मारवाड़ किसान सभा की स्थापना की।दोनो संगठन एक दूसरे की नीतियो का विरोध कर रहे थे।
ठिकाने के खिलाफ 7 सितम्बर 1939 को लोक परिषद के नेतृत्व में किसानो ने लाग-बाग की समाप्ति के लिए आंदोलन किया और लाग-बाग देना बंद कर दिया।
28 मार्च 1942 को चंढावल(पाली) में उत्तरदायी शासन दिवस मनाने के लिए आये लोक परिषद कार्यकताओं पर लाठियों और भालों से हमला हुआ। महात्मा गांधी सहित कई नेताओं ने घटना की चारो तरफ निंदा की।
लोक परिषद तथा किसान सभा के नेता 3 मार्च 1947 में आयोजित किसान सम्मेलन में भाग लेने के लिए डीडवाना स्थित डाबडा(नागौर) पहुंचे। इनमें मथुरादास माथुर, द्वारका प्रसाद राजपुरोहित, राधाकृष्ण बोहरा ‘तात’ नृसिंह कच्छावा के नेतृत्व में पांच-छह सौ जाट किसान सम्मिलित थे।सम्मेलन पर हमला हुआ और दोनों तरफ से हिंसा का प्रयोग किया गया। जागीरदार की ओर से महताब सिंह और आंदोलनकारियों की ओर से जग्गू जाट तथा चुन्नीलाल मारे गए।डाबडा काण्ड में पनाराम चौधरी और उनके पुत्र मोतीराम को लोक परिषद नेताओं को शरण देने के कारण मारा गया। 6 किसान शहीद हो जाते डाबडा(नागौर) काण्ड में।
इस हिंसा की पूरे देश के अखबारों सहित राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने आलोचना की।
जून 1948 में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में आजाद भारत में राजस्थान के मंत्रीमण्डल में नाथूराम मिर्धा कृषि मंत्री बने और 6 अप्रेल 1949 को मारवाड़ टेनेन्सी एक्ट 1949 से किसानों को खातेदारी अधिकार प्राप्त हो गए।