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राजस्थान की प्रमुख छतरियां (Rajasthan ki chhatriya)

राजस्थान अपने महलों, किले और छतरियों के लिए भारत ही नहीं दुनिया में प्रसीद है गेटोर की छतरियां, 32 खंभो की छतरी, 80 खंभो की छतरी (मूसी महारानी), 80 खंभो की छतरी, क्षारबाग की छतरियाँ, केसरबाग की छतरियाँ, बङा बाग की छतरियाँ, देवीकुंड सागर छतरियाँ आदि प्रमुख छतरियां हैं।

गैटोर की छतरियां – नाहरगढ़ दुर्ग की तलहटी में बनी गैटोर की छतरियां जयपुर कछवाहा शासकों का निजी श्मशान घाट है। जिसमें सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर महाराजा सवाई माधोसिंह तक के राजाओं की छतरियां है।

ईश्वरी सिंह की छतरी यहा पर स्थित नहीं है। इनकी छतरी सिटी पैलेस (जयपुर) में स्थित है। सवाई ईश्वरी सिंह की छतरी का निर्माण सवाई माधोसिंह के शासन काल में किया गया था आमेर के राजा मानसिंह प्रथम की छतरी आमेर के पास हाड़ीपुरी गांव में है। जिसकी स्थापत्य कला कोलायत में साधु गिरिधापति की छतरी के समान है।

गुसाईयों की छतरियां विराटनगर ( जयपुर ) में स्थित है।

84 खंभों की छतरी –इस छतरी का निर्माण 1683 ईस्वी में महाराव अनिरुद्ध सिंह ने धाबाई देवा गुर्जर की स्मृति में देवपुरा गांव (बूंदी) में करवाया था। इस छतरी में कामसूत्र के 84 आसनों को दर्शाया गया है।

80 खंभों की छतरी – अलवर दुर्ग के पास बनी 80 खंभों की मूसी महारानी की छतरी है। जिसका निर्माण 1815 में महाराजा विनयसिंह ने करवाया था। जो महाराणा बख्तावर सिंह की पासवान रानी थी। यह रानी बख्तावर सिंह की मत्यु पर सती हुवी थी। यह छतरी दो मंजिला है जिस पर महाभारत और रामायण के भित्ति चित्र है। छतरी का नीचला भाग लाल बालू पत्थर से बना है। जिसकी संरचना हाथी के समान है।

बड़ा बाग की छतरियां – बड़ा बाग की छतरियां राजस्थान के जैसलमेर में स्तिथ हैं, जो की जैसलमेर के राज परिवार का शाही शमशान घाट है बड़ा बाग का निर्माण महाराजा जय सिंह द्वितीय के उत्तराधिकारी लूणकरन ने किया था. छतरियां बनाने का अधिकार शाही परिवार के देहवासी राजा के पोते का होता है। जवाहर सिंह और गिरधर सिंह महाराज की छतरियां अभी पूर्ण नही हो पाई, भारतीय स्वतंत्रता के बाद पूरी नहीं हो पायी।

क्षारबाग की छतरियां कोटा में स्थित है। क्षारबाग मैं कोटा के हाड़ा शासकों की छतरियां स्थित है।

देवकुण्ड की छतरियां देवीकुंड सागर, बीकानेर में स्थित है। देवकुण्ड की छतरियां बीकानेर राजघराने का श्मशान घाट हैं. यहां पर राव बीका व रायसिंह की छतरियां प्रसिद्ध है।

जोधपुर की रानियों की छतरियां पंचकुंड (मंडोर, जोधपुर) में स्थित है। यहाँ पर कुल 49 छतरियां, जिनमें रानी सूर्यकंवरी की छत्री 32 स्तंभों पर स्थित सबसे बड़ी छतरी है।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 8 खम्भों की छतरी, बाण्डोली (चावंड, उदयपुर) में बनी है। इसका निर्माण अमरसिंह प्रथम ने करवाया था।

छात्र विलास की छतरी कोटा में स्थित है।

केसर बाग की छतरी बूंदी में स्थित है।

जसवंत थड़ा-  यह छतरी जोधपुर में स्थित है। इसका निर्माण सरदार सिंह ने करवाया था।

संत रैदास (रविदास) की छतरी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में है यह आठ खंभों पर बनी है

गोपाल सिंह यादव की छतरी करौली में स्थित है।

मांडल गढ (भीलवाड़ा) में स्थित 32 खम्भों की छतरी का संबंध जगन्नाथ कच्छवाहा की छतरी है।

रणथम्भौर (सवाई माधोपुर) में स्थित 32 खम्भों की छतरी हम्मीर देव चैहान की छतरी है

नागौर दुर्ग में अमरसिंह राठौड़ की 16 खम्भों की छतरी बनी हुई है यह छतरी, नागौर के शूरवीर राजा अमर सिंह राठौड़ और उनके वंशजों की है

मामा भांजा की छतरी मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) में स्थित है ये धन्ना गहलोत और भीयां चौहान नामक वीरों की छतरी है, जो आपस में मामा-भान्जा थे। महाराजा अजीतसिंह ने इस 10 खम्भों की छतरी का निर्माण मेहरानगढ़ दुर्ग में लोहापोल के पास करवाया था।

पृथ्वीराज सिसोदिया की 12 खंबो की छतरी कुंभलगढ़ किले में स्थित है। पृथ्वीराज सिसोदिया को उड़ना राजकुमार भी कहा जाता है इसे न्याय की छतरी के नाम से भी जाना जाता है

टंहला की छतरीयां अलवर में स्थित हैं।

आहड़ की छतरियां उदयपुर में स्थित हैं इन्हे महासतियां भी कहते है। सिसोदिया राणाओं की छतरियाँ आहड़ , उदयपुर में स्थित है।

राजा जोधसिंह की छतरी बदनौर (भीलवाडा) में स्थित है।

एक खंभे की छतरी, रणथंभौर (सवाई माधोपुर) में स्थित है।

6 खम्भों की छतरी लालसौट (दौसा) में स्थित है। इसे बंजारे की छतरी कहा जाता है

गोराधाय की छतरी जोधपुर में स्थित हैं। ये अजीत सिंह की धाय मां की छतरी है। ये 6 खम्भों की छतरी है।

जयमल (जैमल) व कल्ला राठौड़ की छतरियाँ चित्तौड़गढ में स्थित है। जयमल और कल्लाजी की छतरी जब आप चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रवेश करते है तो दुर्ग के हनुमान पोल और भैरव पोल के मध्य दो छतरिया बनी हुई है जिसमे चार स्तम्भो वाली छतरी कल्लाजी की है और छह स्तम्भो वाली छतरी जयमलजी की है।

चार खंभों की छतरी (श्रृंगार कंवरी) चित्तौड़ दुर्ग में स्थित है इसे राणा कुंभा ने बनवाया था.

राणा सांगा की छतरी माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) में स्थित है।यह छतरी संगमरमर से बनी है और इसमें 32 खंभे हैं

रणथम्भोर अभयारण्य में कुक्कुर घाटी में कुत्ते की छतरी स्थित है ।

अलवर में नैहड़ा की छतरी स्थित है।

चेतक की छतरी वलीचा गाँव (राजसमंद) में स्थित हैं।

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