पृथ्वी की वह ऊपरी परत जो मूल चट्टानें, वनस्पति , जीव जंतु, खनिज पदार्थ, वायु, जल आदि पदार्थों के मिश्रण से बनती है उसे मिट्टी कहते हैं। राजस्थान, भारत का सबसे बड़ा राज्य, अपनी विविध भौगोलिक संरचना के कारण विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का घर है। राज्य की मिट्टियाँ मुख्य रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु, मरुस्थलीय प्रभाव, नदी घाटियों और पर्वतीय क्षेत्रों से प्रभावित हैं। राज्य में मिट्टियों का कुल क्षेत्रफल का 60% से अधिक मरुस्थलीय या अर्ध-मरुस्थलीय हैं। मिट्टियों की उर्वरता पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ती जाती है, जहाँ चंबल, बनास, माही और लूनी नदियों की घाटियाँ सबसे उपजाऊ हैं।
राजस्थान में मुख्य रूप से पाँच प्रकार की मिट्टी पाई जाती है: एंटीसोल (रेतीली मिट्टी), एरिडीसोल (शुष्क मिट्टी), अल्फीसोल (जलोढ़ मिट्टी), इन्सेप्टिसोल (आर्द्र मिट्टी), और वर्टिसोल (काली मिट्टी)।
| प्रकार | विशेषताएँ | वितरण क्षेत्र | उर्वरता |
| एन्टिसोल (रेगिस्तानी) | हल्का पीला-भूरा | जालौर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, चुरू, झुंझुनू, नागौर (पश्चिमी सभी जिले) | यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है। |
| एरिडोसोल (शुष्क) | रेतीली, कम कार्बनिक पदार्थ | चूरू, सीकर, झुंझुनू, नागौर, पाली, जोधपुर, फलोदी, कूचामन-डीडवाना | यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है। |
| अल्फिसोल (जलोढ़) | मटियारी, पोटाश अधिक | जयपुर, अलवर, भरतपुर, कोटा, झालावाड़, धौलपुर, डीग, टोंक, अजमेर, करौली | उच्च |
| इनसेप्टिसोल (पथरीली) | अर्द्ध-शुष्क, लौह ऑक्साइड अधिक | सिरोही, बांसवाड़ा , उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ , राजसमंद, सलूंबर | मध्यम |
| वर्टिसोल (काली) | क्ले अधिक, उच्च जल धारण | झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी | उच्च |

एन्टिसोल (रेगिस्तानी/Sandy Soil/Desert Soil) :- राजस्थान के सर्वाधिक क्षेत्र फल में एंटीसोल मिट्टी पाई जाती है। राजस्थान के 12 शुष्क मरुस्थलीय जिलों में एंटीसोल मिट्टी पाई जाती हैं। यह मिट्टी पश्चिमी राजस्थान में पायी जाती है। यह मिट्टी जालौर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, चुरू, झुंझुनू, नागौर आदि जिलों के अधिकांश भागों में पायी जाती है। यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है। कण मोटे होते हैं, नमी धारण करने की क्षमता कम होती है।
एरिडोसोल (शुष्क)Aridosol :- ये मिट्टी राजस्थान के अर्धशुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र में पाई जाती है। यह सीकर, झुंझुनू, चुरू, नागौर, पाली, जालोर के अर्ध-शुष्क रेगिस्तानी जिलों में पाया जाता है।इसे बलुई मिट्टी के रूप में भी जाना जाता है।
इनसेप्टिसोल (पथरीली) :- ये मिट्टी अरावली पर्वतमाला के पर्वतीय ढाल के आसपास मिलती है
जलोढ़ मिट्टी – Alluvial soil (कछारी मिट्टी) :- इस मिट्टी का निर्माण नदियों के प्रवाह से होता है। यह मिट्टी अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र में पाई जाती है और ये मिट्टी राजस्थान के पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में पाई जाती है यह राज्य के उत्तर-पूर्वी जिलों, गंगानगर, हनुमानगढ़, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, दौसा, जयपुर और टोंक में पाया जाता है।
- इसमें चूना, फास्फोरस, पोटैशियम तथा लौह भाग भी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं, परन्तु नाइट्रोजन की कमी पायी जाती है।
- यह मिट्टी गेहूँ, सरसों, कपास, चावल और तम्बाकू के लिए उपयोगी है।
- नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी, सर्वाधिक उपजाऊ होती है। इसे दोमट मिट्टी भी कहते हैं।
काली मिट्टी (रेगुर)(Black Soil) :- यह मिट्टी राज्य के दक्षिण-पूर्वी जिलों (हाड़ौती क्षेत्र) कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ में पाई जाती है। यह लावा चट्टानों के टूटने-फूटने से बनती है।
- इस मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम तथा पोटाश पाया जाता है।
- नाइट्रोजन की कमी पायी जाती है।
- यह एक उपजाऊ मिट्टी है, जिसमें व्यावसायिक फसलों, गन्ना, धनिया, चावल और सोयाबीन की अच्छी उपज प्राप्त होती है।
- इसे रेगुर मिट्टी या कपासी मिट्टी भी कहते हैं। इसमें नमी धारण करने की क्षमता सबसे अधिक होती है।
- काली मिट्टी के कणों की आकार सबसे कम होता है।
अल्फीसोल:-यह पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी है। यह सबसे उपजाऊ मिट्टी है और गेहूं, चावल, कपास जैसी फसलों के लिए उपयुक्त है।
इन्सेप्टिसोल:- यह राजस्थान के दक्षिण में स्थित उप-आर्द्र क्षेत्रों में पाई जाती है, जिसमें सिरोही, उदयपुर और चित्तौड़गढ़ जिले शामिल हैं।
वर्टिसोल:- इसे काली मिट्टी भी कहते हैं और यह हाड़ौती क्षेत्र में बहुतायत में पाई जाती है। यह लावा चट्टानों के टूटने-फूटने से बनती है।
लाल पीली मिट्टी (Red Yellow Soil) :- इसमें लोहे के तत्वों की अधिकता के कारण रंग लाल होता है। इसमें चूने और नाइट्रोजन की कमी होती है।
- इस प्रकार की मिट्टी सवाईमाधोपुर, सिरोही, राजसमंद, उदयपुर तथा भीलवाड़ा जिले के पश्चिमी भागों में पाई जाती है।
- यह मिट्टी मूंगफली और कपास की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
लैटेराइट मिट्टी (Laterite soil) :- लौह तत्व की उपस्थिति के कारण इस मिट्टी का रंग लाल दिखाई देता है, इस मिट्टी में मक्का, चावल और गन्ना की खेती की जाती है। यह मध्य और दक्षिणी राजसमंद जिले के डूंगरपुर, उदयपुर में पाया जाता है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, ह्यूमस आदि की कमी होती है।
लवणीय मिट्टी (Saline Soi) :- राजस्थान में यह मिट्टी मुख्यतः गंगानगर, बीकानेर, बाड़मेर, जालौर में पायी जाती है। इस मिट्टी में लवणीय और क्षारीय तत्वों की मात्रा अधिक होने के कारण यह अनुपजाऊ मिट्टी है। जिप्सम, हरी खाद, रॉक फास्फेट आदि के प्रयोग से इस लवणीय मिट्टी को उपजाऊ बनाया जा सकता है।
लाल दोमट मिट्टी :– लाल दोमट मिट्टी में मुख्यतः मक्का की खेती की जाती है। लाल दोमट मिट्टी में नाइट्रोजन, कैल्शियम, फास्फोरस तत्वों की कमी तथा लौह एवं पोटाश तत्वों की प्रधानता पाई जाती है
मिट्टी की अम्लीय को बेअसर करने और संतुलित pH मान बहाल करने के लिए चूना डालना एक आम तरीका है। अम्लीय मिट्टी में कृषि चूना या डोलोमाइट जैसी सामग्री मिलाने से पीएच स्तर बढ़ सकता है और पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार हो सकता है।
क्षारीय मिट्टी का pH स्तर ऊँचा होता है। इससे पोषक तत्वों में असंतुलन पैदा हो सकता है।क्षारीय मिट्टी को सुधारने के लिए कैल्शियम क्लोराइड (CaCl2) या यूरिया आधारित उर्वरक देने की योजना का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
सैम मृदा समस्या एक जलभराव से जुड़ी गंभीर समस्या है जहाँ भूजल का स्तर ऊपर आ जाता है, जिससे जमीन दलदली हो जाती है और अनुपजाऊ हो जाती है। इसके कारण मिट्टी की उर्वरता घट जाती है, जिससे कृषि भूमि बंजर हो जाती है। राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर जैसे जिले इस समस्या से प्रभावित हैं। इंदिरा गांधी नहर जैसे क्षेत्रों में, लगातार या बहुत अधिक सिंचाई के कारण पानी जमीन द्वारा सोखा नहीं जा पाता और जमा हो जाता है। सैम की समस्या से प्रभावित क्षेत्रों में सफेद जैसे अधिक पानी सोखने वाले पेड़ लगाना।
सैम (जलभराव) मृदा समस्या के समाधान के लिए, बेहतर जल निकासी प्रणालियाँ (जैसे नालियां बनाना), उचित कृषि पद्धतियाँ (जैसे समोच्च जुताई, पट्टीदार खेती और फसल चक्र), और वृक्षारोपण (विंडब्रेक और कवर फसलें) जैसे उपाय अपनाए जा सकते हैं।
Q. अम्लीय मृदाओं में किसके प्रयोग से सुधार किया जाता है?
- (A). यूरिया
- (B) .चूना
- (C). जिप्सम
- (D). गंधक
- Ans (B)
Q. मृदा में खारेपन के दुष्प्रभाव को कम करने हेतु प्रयोग किया जाता है ?
- (A). बेंचा – जौ
- (B). धमासा – सूबबूल
- (C). लसोड़ा- मोरिंगा
- (D). पीलू सेवण
- Ans.(B)
Q. निम्न में से कौनसी पर्यावरणीय समस्या “रेगती मृत्यु ” कहलाती है ?
- (A). जल प्रदूषण
- (B). जनसंख्या वृद्धि
- (C). मृदा अपरदन
- (D). निर्वनीकरण
- Ans. (C)
Q. राजस्थान में, निम्नलिखित में से किस प्रकार की मिट्टी को सबसे उपजाऊ प्रकार की मिट्टी माना जाता है?
- (A). रेतीली मिट्टी
- (B). पीली मिट्टी
- (C). लाल और पीली मिश्रित मिट्टी
- (D). जलोढ़ मिट्टी
- Ans. (D)
Q. राजस्थान में पाई जाने वाली मिट्टी में कौन सर्वाधिक उपजाऊ है ?
- Ans. जलोढ़ मिट्टी सबसे उपजाऊ मिट्टी है यह राजस्थान के पूर्वी भू भाग में काफी पाई जाती है
Q. राजस्थान में पाई जाने वाली मिट्टियों में किसका क्षेत्र सर्वाधिक है ?
Ans. राजस्थान में सर्वाधिक रेतीली मिट्टी पाई जाती है जिसका प्रसार मुख्यता गंगानगर बीकानेर चूरु जोधपुर जैसलमेर बाड़मेर है
Q. वह कौन सी प्रक्रिया है जिससे पश्चिमी राजस्थान के मिट्टियां अम्लीय तथा क्षारीय बन जाती हैं ?
Ans. नीचे से ऊपर की ओर कोशिकाओं के रिसाव के कारण
Q. जिसका उपयोग मिट्टी की लवणता व क्षारीयता की समस्या का दीर्घकालीन हल है वह कौन सी है ? Ans. जिप्सम
Q. राजस्थान के किस जिले का सर्वाधिक क्षेत्र कछारी मिट्टी का है ?
Ans. कछारी मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी भी कहा जाता है यह मुख्यता भरतपुर जयपुर टोंक सवाई माधोपुर धोलपुर जिले में पाई जाती हैं
