राजस्थान की लोक देवियां – राजस्थान में लोक देवियों का विशेष महत्व है। वे सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का भी अभिन्न अंग हैं। राजस्थान में अनेक देवियों की पूजा की जाती है। करणी माता, जीण माता, शीतला माता, नागणेची माता और चामुंडा माता आदि देवियों की पूजा राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है
नारायणी माता या करमेती माता – नारायणी माता का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के अलवर जिले में राजगढ़ तहसील के पास बरवा की डूंगरी की तलहटी में स्थित हैं।
- नारायणी माता को सेन (नाई) समाज के लोग अपनी कुलदेवी मानते हैं। वर्तमान मे मीणा व नाईं जाति के बीच नारायणी माता के पुजारी को लेकर विवाद चल रहा है
- अलवर जिले में नारायणी माता के पुजारी मीणा होते है ।
ज़मुवाय माता – जमवाय माता कछवाहा वंश की कुलदेवी हैं। जमवाय माता का मंदिर जयपुर के जमवारामगढ़ बांध के पास अरावली की पहाड़ियों में स्थित है। इस देवी के मंदिर में मद्य का भोग एवं पशुबलि प्रारंभ से ही वर्जित है ।
आई माता – माता का मुख्य मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले के बिलाड़ा में स्थित है और इसे “अखंड ज्योत” मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस मंदिर में दीपक की ज्योति से कैसर टपकती है ।
चामुंडा माता – चामुंडा माता का मंदिर जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित है। राव जोधा ने 1460 ईस्वी (विक्रम संवत 1517) में मंडोर से चामुंडा माता की मूर्ति लाकर मेहरानगढ़ किले में स्थापित की थी। परिहारों की कुलदेवी होने के बावजूद, राव जोधा ने भी चामुंडा माता को अपनी इष्टदेवी के रूप में स्वीकार किया, और आज भी जोधपुरवासी उन्हें शहर की रक्षक देवी मानते हैं।सितम्बर, 2008 में नवरात्रे के अवसर पर मंदिर स्थित जनसमूह में भगदड मच जाने से करीब 300 लोग असामयिक मृत्यु को प्राप्त हो गये ।इस हादसे की जाँच के लिए सरकार ने जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी ।
त्रिपुरा सुन्दरी माता – त्रिपुरा सुन्दरी माता का मंदिर बांसवाड़ा के तिलवाड़ा में स्थित है। यह एक शक्ति पीठ है जहाँ माता की 18 भुजाओं वाली काले पत्थर की मूर्ति पूजी जाती है।
सच्चीयाय माता – ओसवाल समुदाय और परमार वंश की कुलदेवी सच्चियाय माता हैं। सच्चियाय माता का मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले के ओसियां में स्थित है। गुर्जर प्रतिहार शैली ( महामारू शैली) में बना हुआ है।
ब्रह्माणी माता – राजस्थान के बारां जिले में अंता से 20 किमी दूर सौरसेन में ब्रह्माणी माता का मंदिर है। ब्रह्माणी माता का मंदिर, भारत का एकमात्र मंदिर है जहाँ देवी के पीठ की पूजा और श्रृंगार किया जाता है, उनके अग्र भाग का नहीं। माघ शुक्ला सप्तमी को यहाँ गधों का मेला भी लगता है।
नागणेचियाँ माता – नागणेची माता मारवाड़ के राठौड़ वंश की कुल देवी है । राव धूहड़, जो मारवाड़ राज्य के संस्थापक राव सीहा के पोते थे, 1295-1305 के बीच कर्नाटक से अपनी कुलदेवी चक्रेश्वरी की मूर्ति लाए थे और इसे राजस्थान के ( बालोतरा) जिले के नागाणा गांव में स्थापित किया, जिसके बाद वे नागणेची माता कहलाईं। उनका मुख्य मंदिर जोधपुर के पास नागाणा गांव में स्थित है। राव जोधा ने नागाणा गाँव से मूल मूर्ति मँगवाकर जोधपुर दुर्ग में स्थापित करवाकर वहाँ मंदिर बनवाया । नागणेची माता का दूसरा रूप ‘ श्येन पक्षी/बाज/चील ‘ है ।
आशापुटरा माता – आशापुरा माता का मंदिर राजस्थान के पोकरण के पास स्थित है ।आशापुरा माता बिस्सा जाति के लोगों की कुलदेवी है ।बिस्सा जाति में विवाहित वधू मेहँदी नहीं लगा सकती है ।बिस्सा जाति के लोग झडूला यही उतारते है तथा विवाह के बाद ‘जात’ लगाने भी जाते है ।
बाण माता – बाण माता, सिसोदिया वंश की कुलदेवी हैं, जिनका मुख्य मंदिर उदयपुर के नागदा में स्थित है। राणा लक्ष्मण सिंह ने उदयपुर के कैलवाड़ा में भी एक मंदिर बनवाया था, जिसे 1443 ई. में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने नष्ट कर दिया था। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण कर गुजरात से नई मूर्ति स्थापित की गई है।
राठासण देवी – राठासण देवी के मंदिर का निर्माण बप्पा रावल द्वारा नागदा में एकलिंग जी मंदिर के समीप करवाया गया ।
धनोप माता – धनोप माता का प्राचीन मंदिर भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा से लगभग 30 किमी दूर धनोप गाँव में एक ऊँचे रेतीले टीले पर स्थित है।
अन्नपूर्णा देवी/जोगणिया माता – भीलवाड़ा जिले के ऊपरमाल पठार के दक्षिणी छोर पर स्थित अन्नपूर्णा देवी का मंदिर जोगणिया माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जब देवा हाड़ा की बेटी की शादी में देवी ने जोगन का रूप धारण किया।
नकटी माता – जयपुर से 23 किमी. दूर जयभवानीपुरा गाँव में स्थित नकटी माता का मंदिर गुर्जर-प्रतिहार काल का है। चोरों द्वारा प्रतिमा को नाक के पास से खंडित करने के कारण देवी का नाम नकटी माता पड़ा।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग की कालिका – माता चित्तौड़ दुर्ग में रानी पद्मिनी के महलों और विजय स्तंभ के बीच स्थित कालिका माता मंदिर मूल रूप से एक सूर्य मंदिर था।
महामाई/महामाया माता – मावली (उदयपुर) में स्थित महामाया को शिशु रक्षक लोकदेवी के रूप में पूजा जाता है। गर्भवती महिलाएं स्वस्थ प्रसव और बच्चों के कल्याण के लिए इनकी पूजा करती हैं।
आमजा माता – आमजा माता का मंदिर उदयपुर से 80 किलोमीटर दूर केलवाड़ा के पास रीछड़े गांव में स्थित है। वह भीलों की देवी हैं, और उनकी पूजा एक भील भोपा और एक ब्राह्मण पुजारी दोनों करते हैं।
हिगलाज माता – प्रथम आदि शक्तिपीठ हिंगलाज माता का मुख्य मंदिर बलूचिस्तान वर्तमान पाकिस्तान मे स्थित है ।हिंगलाज माता चौहान वंश की कुल देवी है ।
क्षेमंकरी/खींवल/ खीमल माता – क्षेमंकरी/खींवल/खीमल माता का मंदिर जालौर जिले के भीनमाल गाँव से 3 किमी. दूर बसंतगढ दुर्ग में ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इन्हें शुंभकरी भी कहते हैं क्योंकि वे शुभ फल देती हैं। क्षेमंकरी/खींवल/शुंभकरी देवी भीनमाल की आदि देवी और सोलंकी राजपूत वंश की कुलदेवी हैं। इस मंदिर का निर्माण चावड़ा वंश के राजा वर्मलाट के समय विक्रम संवत 682 ई० में हुआ था।
इंद्रगढ की बीजासण माता – इंद्रगढ़ में एक विशाल पर्वत पर बीजासण माता का मंदिर स्थित है, जो हाडौती अंचल में इंद्रगढ़ देवी के नाम से प्रसिद्ध है।
सुंधा माता – सुंधा माता मंदिर राजस्थान के जालोर जिले की भीनमाल तहसील के दातालावास गांव के पास सुंधा/सूगंधाद्रि पहाड़ी पर स्थित है. चामुंडा माता को सुंधा पर्वत के नाम पर सुंधा माता कहा जाने लगा.
राजस्थान का पहला रोपवे जालौर जिले के सुंधा माता मंदिर में स्थापित किया गया था.
वीरातरा माता/वांकल माता – बाड़मेर जिले की चौहटन तहसील से 10 किमी दूर एक पहाड़ी घाटी में स्थित वांकल या वीरातरा माता का मंदिर 400 साल से भी पुराना है। देवी का नाम ‘वांकल माता’ उनकी थोड़ी झुकी हुई गर्दन के कारण पड़ा और ‘वीरातरा माता’ इसलिए पड़ा क्योंकि वीर विक्रमादित्य ने मंदिर स्थल पर रात बिताई थी।
छींछ माता – छींछ माता का मंदिर राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के छींच गांव में स्थित है।
हिचकी माता – हिचकी माता का मंदिर राजस्थान के अजमेर जिले के सरवाड में स्थित है।
सावित्री माता – सावित्री माता का मंदिर पुष्कर में रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है। सावित्री माता रोपवे, पुष्कर (अजमेर) ब्रह्मा जी के मंदिर के पास स्थित सावित्री माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बनाया गया था, जो एक रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है सावित्री माता मंदिर, रत्नागिरी पहाड़ी पर 750 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
