त्रिवेणी संगमों पर शिवरात्रि जैसे त्योहारों पर श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं. यहां नदी के किनारे शिव मंदिर भी होता है त्रिवेणी संगमो का इतिहास के साथ-साथ वर्तमान में भी बहुत ज्यादा महत्व है
बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) – सोम-माही-जाखम नदियों के संगम पर बना है। राजस्थान के डुंगरपुर जिले का प्रसिद्ध मेला है जिसमें जिले के आदिवासी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। यह मेला माघ शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर वेणेश्वर नामक स्थान पर लगता है जो सोम, माही व जाखम नदियों के पवित्र संगम पर स्थित है।
बेणेश्वर धाम राजस्थान का कुंभ /आदिवासियों का महाकुंभ कहलाता है ।
रामेश्वरम घाट (मानपुर, सवाई माधोपुर) –चम्बल, बनास और सीप नदियों का संगम है इस त्रिवेणी संगम के पास ही भगवान चतुर्भुजनाथ का मंदिर भी बना हुआ है। रामेश्वर शिव लिंग के दर्शनार्थ दूर दराज से आने वाले भक्तजन त्रिवेणी में स्नान कर भगवान शिव के शिव लिंग का जलाभिषेक करते हैं, इस स्थान पर प्रतिवर्ष ‘कार्तिक पूर्णिमा’ एवं ‘महा शिवरात्री’ पर विशाल मेला भरता है, लाखों की तादाद में यहाँ पर भीड़ इकट्ठा होती है। इस स्थान को राजस्थान में “मीणा जनजाति का प्रयागराज” भी कहाँ जाता है।
मांडलगढ़ (बींगोद, भीलवाड़ा) –बनास, बेड़च और मेनाल नदियों के त्रिवेणी संगम पर है।इस त्रिवेणी संगम को छोटा पुष्कर भी कहा जाता है। भीलवाड़ा से करीब 50km दूर स्थित हैं। “त्रिवेणी मंदिर” भगवान शिव को समर्पित हैं।
राजमहल (देवली , टोंक) – बनास, डाई और खारी नदियां त्रिवेणी संगम बनाती है।
राजस्थान के टोंक जिले की देवधाम (जोधपुरिया) नामक जगह पर खाराखुर्शी नदी, बांडी नदी तथा मांसी नदी के द्वारा त्रिवेणी संगम बनाया जाता है।
बनास नदी पर बनने वाले त्रिवेणी संगमो का सही क्रम है। बीगोद, राजमहल, रामेश्वर