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राजस्थान सहकारिता Rajasthan Sahkarita

राजस्थान/भारत में सहकारिता आंदोलन

सहकारिता का सिद्धांत/नारा:-  ‘एक सबके लिए तथा सब एक के लिए’

सहकारिता का उद्देश्य:- सामाजिक आर्थिक विकास के साथ सामाजिक उत्थान

सहकारिता के ध्वज में 7 रंग होते है।

भारत में सहकारिता आंदोलन की शुरुआत भारतीय दुर्भिक्ष आयोग से मानी जाती है। इस आयोग की सिफारिश पर ‘सहकारी साख अधिनियम 1904’ पारित किया गया।

राजस्थान में सहकारिता आंदोलन की शुरुआत 1904 में अजमेर से हुई।

उद्देश्य:- किसानों को साख (ऋण) सुविधा उपलब्ध करवाना तथा उन्हें महाजनों एवं अन्य बिचौलियों से मुक्ति दिलाते हुए शोषण मुक्त समाज की स्थापना करना।

इसके बाद 1904 में डीग (भरतपुर) में सहकारी कृषि बैंक की स्थापना की गई।

अक्टूबर 1905 में राजस्थान के प्रथम सहकारी समिति की स्थापना भिनाय (अजमेर) में की गई।

अजमेर में ही 1910 में केंद्रीय सहकारी बैंक की स्थापना की गई।

1915 में सर्वप्रथम भरतपुर रियासत ने सहकारिता अधिनियम(कानून) बनाया।

राजस्थान में सहकारी उपभोक्ता आंदोलन आंदोलन की शुरुआत 1919 में अजमेर से हुई।

राजस्थान में प्रथम भूमि बंधक बैंक की स्थापना 1924 अजमेर में हुई थी।

आजादी के बाद राजस्थान में पहली बार 1953 में सहकारी समिति विधेयक पारित किया गया। 

राजस्थान राज्य सहकारी भूमि विकास बैंक की स्थापना 16 मार्च 1957 में जयपुर में की गयी थीं।

वर्तमान में सहकारिता अधिनियम 2001 आया था, जिसे 14 नवंबर 2002 को लागू किया गया।

राज्य में सहकारी बैंकों की संरचना त्रिस्तरीय है, राज्य में जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक स्थापित किए जाते हैं।

राजस्थान की प्रथम महिला नागरिक सहकारी बैंक (राजपूताना महिला नागरिक बैंक) की स्थापना 1995 में जयपुर में की गई।

देश में सहकारी बैंकों में सुधार के लिए वैद्यनाथन कमेटी का गठन किया गया था।

प्रतिवर्ष 7 जुलाई को सहकारिता दिवस मनाया जाता है।

संसद ने दिसंबर 2011 में देश में सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन से संबंधित 97वां संविधान संशोधन पारित किया था। यह 15 फरवरी, 2012 से लागू हुआ था। संविधान में परिवर्तन के तहत सहकारिता को संरक्षण देने के लिए अनुच्छेद 19(1)(सी) में संशोधन किया गया और उनसे संबंधित अनुच्छेद 43 बी और भाग नौ बी को सम्मिलित किया गया।

वर्तमान में सहकारिता क्षेत्र में शीर्ष स्तर पर 29 केन्द्रीय सहकारी बैंक, 23 दुग्ध संघ, 38 उपभोक्ता थोक भंडार, 36 प्राथमिक भूमि विकास बैंक, 7,094 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां, 274 फल एवं सब्जी विपणन समितियां, 22 सहकारी संघ एवं 37,642 सहकारी समितियां पंजीकृत हैं।

• राज्य में 35 अरबन को-ऑपरेटिव बैंक कार्यरत हैं।

राजस्थान में सहकारी संस्थाओं द्वारा अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराए जाते हैं।

किसान सेवा पोर्टलः- ऋण आवेदन, सब्सिडी आदि के लिए एकीकृत मंच।

राज सहकार पोर्टल:- सहकारिता विभाग की योजनाओं और सुविधाओं के लिए एकीकृत मंच।

सहकारी विपणन संरचना:- राज्य में प्रत्येक मण्डी यार्ड पर 274 क्रय-विक्रय सहकारी समितियाँ किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलवाने एवं प्रमाणित बीज, खाद्य एवं कीटनाशक दवाईयां उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने का कार्य कर रही है।

• शीर्ष संस्था के रूप में राजस्थान क्रय-विक्रय सहकारी संघ (राजफैड) कार्यरत हैं।

सहकारी उपभोक्ता संरचना:- उपभोक्ताओं को कालाबाजारी और बाजार में कृत्रिम अभाव से बचाने के लिए जिला स्तर पर 38 सहकारी उपभोक्ता होलसेल भण्डार तथा शीर्ष संस्था के रूप में राजस्थान सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड (कॉनफेड) कार्यरत हैं।

राजस्थान में सहकारी संस्थाएं:-

RAJFED (Rajasthan State co-operative marketing federation limited)

(राजस्थान राज्य सहकारी क्रय-विक्रय संघ लिमिटेड)

• स्थापना – 1957

• मुख्यालय – जयपुर

• राजफैड का कार्य:- सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को उन्नत किस्मों के खाद बीज व कीटनाशक उपलब्ध करवाना।

• राजफैड द्वारा जयपुर के झोटवाड़ा में पशु आहार कारखाना एवं सहकारी कीटनाशक दवाई फैक्ट्री  संचालित है।

CONFED (Rajasthan State co-operative consumer federation limited)

(राजस्थान राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड)

• स्थापना – 1967

• मुख्यालय – जयपुर

• कॉनफेड का कार्य:- उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण सामग्री उपलब्ध करवाना।

RCDF (Rajasthan State co-operative dairy federation limited)

(राजस्थान राज्य सहकारी दुग्ध संघ लिमिटेड)

• स्थापना – 1977

• मुख्यालय – जयपुर

• कार्य:- यह राज्य की सभी डेयरियों पर नियंत्रण रखती है तथा दुग्ध उत्पादकों को उचित मूल्य देकर उन्हें बिचौलियों के शोषण से बचाती है।

• राजस्थान की प्रथम डेयरी पद्मा डेयरी (अजमेर) है।

• उरमूल डेयरी – बीकानेर

• गंगमूल डेयरी – गंगानगर

• वरमूल डेयरी – जोधपुर

SPINFED (Rajasthan State co-operative spining and zining federation limited)

(राजस्थान राज्य सहकारी कताई एवं बुना संघ लिमिटेड)

• स्थापना – 1993

• मुख्यालय – जयपुर

• स्पिनफैड का कार्य:- कपास की खरीद करना और राज्य की सहकारी कताई मिलों का संचालन करना।

1. गुलाबपुरा सहकारी मिल‌ (भीलवाड़ा)

2. गंगापुर सहकारी मिल‌ (भीलवाड़ा)

3. श्री गंगानगर सहकारी कताई मिल‌ (हनुमानगढ़)

RICEM (Rajasthan Institute of co-operative education and management)

(राजस्थान सहकारी शिक्षा एवं प्रबंध संस्थान)

• स्थापना – 1994

• मुख्यालय – जयपुर

• राइसम का कार्य:- सहकारिता से जुड़े कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रशिक्षण उपलब्ध करवाना।

राजस संघ:-

(राजस्थान जनजातीय क्षेत्रीय विकास सहकारी संघ)

• स्थापना – 1976

• मुख्यालय – उदयपुर

• कार्य:- जनजातीय लोगों को साहूकारों के ऋण शोषण से बचाना, उनकी निर्धनता दूर करना तथा वन उपज का उचित मूल्य दिलाना।

COPSEF (Co-operative welfare and service forum)

(सहकारिता कल्याण एवं सेवा संस्थान)

• स्थापना – 1988

• मुख्यालय – जयपुर

• कोपसेफ का कार्य:- सहकारिता से जुड़े ग्रामीणों को चिकित्सा सुविधा, शिक्षा, परिवार कल्याण सेवा उपलब्ध करवाना।

राजस्थान राज्य सहकारी बुनकर संघ लिमिटेड

• स्थापना – 1958

• मुख्यालय – जयपुर

• कार्य:- बुनकरों को कच्चा माल उपलब्ध करवाना तथा उनके माल की बिक्री की व्यवस्था करवाना।

तिलम संघ:-

राजस्थान राज्य तिलहन उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड।

राजस्थान राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड जयपुर (अपेक्स बैंक) का गठन कब किया गया ? – 14 अक्टूबर 1953 को।

राजस्थान राज्य सहकारी भूमि विकास बैंक – 26 मार्च 1957

सहकारी योजनाएं:-

एकमुश्त समझौता योजना वर्ष 2020-21:- इसके अन्तर्गत प्राथमिक भूमि विकास बैंकों के सभी प्रकार के अवधिपार ऋणों की ब्याज राशि में 50% की राहत दी जा रही हैं।

ज्ञान सागर क्रेडिट योजना:- राज्य में ग्रामीण एवं शहरी छात्र-छात्राओं को व्यवसायिक व तकनीकी पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने एवं छात्रों और अभिभावकों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह योजना प्रारंभ की गई।

• भारत में शिक्षा प्राप्त करने पर 6 लाख रुपए तथा विदेश के लिए 10 लाख रुपए निर्धारित हैं। 

स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड योजना:- इसके अन्तर्गत गैर कृषि गतिविधियों हेतु ₹50,000 तक का ऋण 5 वर्ष की अवधि तक के लिए दिया जाता हैं।

महिला विकास ऋण योजना:- भूमि विकास बैंकों द्वारा महिलाओं को गैर कृषि उद्देश्यों तथा डेयरी व्यवसाय हेतु ₹50,000 तक का ऋण दिया जाता है।

सहकार स्वरोजगार योजना

कृषि, अकृषि एवं सेवा क्षेत्र में स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हेतु 2लाख तक का ऋण।

जनमंगल आवास ऋण योजना

50 हजार से अधिक आबादी वाले शहरों और कस्बों में मकान खरीदने या बनाने के लिए 25 हजार से 5 लाख तक का ऋण उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई। 

कृषक मित्र सहकारी ऋण योजना (1997)

उद्देश्य:- नकदी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देना और छोटे बड़े सभी काश्तकारों को सहकारी दायरे में लाना।

बेबी ब्लैंकेट योजना (1998):- आवास निर्माण, मरम्मत एवं रखरखाव हेतु 7लाख तक का ऋण।

सहकारी किसान कार्ड योजना (1999)

किसानों को आसानी से सहकारी कर्जें उपलब्ध कराने के उद्देश्य से समूचे देश में सबसे पहले सहकारी क्षेत्र में राजस्थान में को सहकारी किसान कार्ड योजना लागू की गई।

सहकारी किसान कल्याण योजना:- केद्रीय सहकारी बैंकों द्वारा कृषि और सम्बद्ध कृषि उद्देश्यों के लिए 

अधिकतम 10 लाख तक का ऋण दिया जाता है।

सहकारी आवास योजना:- मकान निर्माण, खरीद एवं विस्तार के लिए 15 वर्ष तक की अवधि के लिए 20 लाख तक का ऋण।

सहकार प्रभा योजना:-

ऋण स्वीकृति व वितरण में विलम्ब को समाप्त

विफल कूप क्षतिपूर्ति योजना

प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंकों से ऋण प्राप्त कर कुंए खुदवाने पर उनके उद्देश्यों में विफल होने की स्थिति में काश्तकारों को राहत देने के उद्देश्य से विफल कूप क्षतिपूर्ति योजना चलाई जा रही है ।

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बिजोलिया किसान आन्दोलन Bijolia Kisan andolan 

बिजोलिया किसान आन्दोलन मेवाड़ राज्य के किसानों द्वारा 1897 ई शुरू किया गया था और ये आन्दोलन भारत का सर्वाधिक समय (44 साल) तक चलने वाला एकमात्र अहिंसक आंदोलन था। यह आन्दोलन किसानों पर अत्यधिक लगान/कर लगाने  के विरुद्ध किया गया था। यह आन्दोलन बिजोलिया जागीर से आरम्भ होकर आसपास के जागीरों में भी फैल गया।इस समय में बिजोलिया( प्राचीन नाम विजयावल्ली), राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है। बिजोलिया ठिकाना उपरमाल की जांगिर के अंतर्गत आता है | ये ठिकाना राणा सांगा ने अशोक परमार क़ो उपहार में दिया था क्योंकि अशोक परमार ने राणा सांगा की खानवा की युद्ध में मदद की थी | 

आंदोलन के मुख्य कारण थे

1. 84 प्रकार के लाग बाग़ – कर

2. लाटा कूंता कर – खेत में खड़ी फसल के आधार पर कर

3. चवरी कर – किसान की बेटी की शादी पर कर

4. तलवार बंधाई कर – नए जागीरदार बनने पर लिया जाने वाला कर

5. बेगार – – बिना वेतन के काम

ये आंदोलन 3 चरणो में हुआ ओर इस आन्दोलन में धाकड़ जाति के किशनो का प्रमुख योगदान था |

प्रथम चरण (1897-1916) – नेतृत्व – साधु सीताराम दास

इस आंदोलन की शुरुआत 1897 में गिरधारीपुरा गांव में हुई थी 1897 में गिरधारीपुरा नामक गांव में गंगाराम धाकड़ के पिता के मृत्यु भोज के अवसर पर किसानों ने एक सभा रखी जिसमें कर बढ़ोतरी की शिकायत मेवाड़ के महाराजा से करने का प्रस्ताव रखा गया। इस हेतु नानजी पटेल एवं ठाकरी पटेलको उदयपुर भेजा गया लेकिन वे महाराणा से मिलने में सफल न हो सके।शिकायत पर मेवाड़ महाराणा फतेहसिंह ने अपना जाँच अधिकारी हामिद हुसेनको नियुक्त किया और जाँच के बाद कोई भी करवाईं नहीं हुई | बिजोलिया के ठिकानेदार राव कृष्णसिंह ने शिकायत करता नानज़ी पटेल एवं ठाकरी पटेल को मेवाड़ से निष्कासित कर दिया | 

राव कृष्णसिंह ने 1903  ईस्वी में चंवरी कर लगा दिया। जो भी व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह करता उसे ठिकाने में कर के रूप में ₹5 जमा कराने होते थे।1906 में राव कृष्णसिंह का निधन हो गया ओर राव पृथ्वीसिंह नया ठिकानेदार बना |

1906 ईस्वी में राव पृथ्वीसिंह द्वारा तलवार बंधाई नामक नया कर लगा दिया। यह नए जागीरदार के उत्तराधिकार के रूप में राज्य द्वारा लिया जानेवाला उत्तराधिकार शुल्क था।तलवार बंधाई कर के विरोध में साधु सीतारामदास, फतेहकरण चारण व ब्रह्मदेव के नेतृत्व में किसानों ने 1913 ई. में आंदोलन करते हुए भूमिकर नहीं दिया।

पहले चरण में साधु सीताराम दास ,नानजी पटेल, ठाकरी पटेल, फतेहकरण चारण, ब्रह्मदेव आदि ने आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।

द्वितीय चरण (1915 -1927 ) – नेतृत्व – विजय सिंह पथिक

1916 ईस्वी में विजय सिंह पथिक ने साधु सीताराम दास के आग्रह पर बिजौलिया किसान आंदोलन की बागडोर संभाली।विजय सिंह पथिक का वास्तविक नाम भूपसिंह था। बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश ) के रहने वाले थे।विजय सिंह पथिक ने  1916 में किसान पंच बोर्ड (अध्यक्ष साधु सीताराम दास) की स्थापना की ओर फिर 1917 में ऊपरमाल पंच बोर्ड (13 सदस्य) की स्थापना की साथ ही श्री मन्ना पटेल को इसका सरपंच बनाया। उपरमाल का डंका नामक पर्चा लोगो को आंदोलन से जोड़ने के लिए बाटा गाया |

1918 में पथिक जी गाँधी जी से मिले ओर इस आन्दोलन के बारे में बताया | गाँधी जी अपने महासचिव महादेव देसाई को जाँच के लिए भेजा | गाँधी जी की इस आंदोलन में रुचि लेने के कारण अंग्रेज़ सरकार ने किसानों की मांगों के औचित्य की जांच करने के लिए अप्रैल 1919 में न्यायमूर्ति बिंदु लाल भट्टाचार्य जांच आयोग गठित हुआ लेकिन मेवाड़ राज्य ने कोई निर्णय नहीं लिया | 1922 में AGG हॉलेंड के प्रयासों से किसानों व रियासत के बीच एक समझौता हुआ लेकिन ठिकाने ने इसे भी लागू नहीं किया।ओर किसानों ने लगान एवं करों का भुगतान बंद कर दिया। विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन के मुद्दे को नागपुर कांग्रेस के अधिवेशन में उठाया।

नारायण पटेल कर देने से मन के देता है ओर जब इने जेल में डालने की कोशिश की जाती है तो 2000 से 3000 किसान इनके साथ खड़े हो जाते है | 

गणेश शंकर विद्यार्थी (संपादक थ) ने कानपुर से प्रकाशित अपने प्रताप नामक समाचार पत्र के माध्यम से इस आंदोलन को पूरे भारत में लोकप्रिय बना दिया। 1920 में विजय सिंहपथिक ने पहले वर्धा और फिर अजमेर से राजस्थान केसरी नामक पत्र का प्रकाशन किया। बिजोलिया किसान आंदोलन के बारे में मराठा(पूना), अभ्युदय(प्रयाग), भारतमित्र(कोलकाता), नवीन राजस्थान(अजमेर) समाचार पत्रों में लिखा गया |

1927 में विजय सिंह पथिक नेताओ के बीच आपसी मतभेद की वजह से इस आंदोलन से अलग हो जाते है |

तृतीय चरण (1927-1941 ) – नेतृत्व – माणिक्यलाल वर्मा

विजय सिंह पथिक जाने के बाद इस आंदोलन को माणिक्यलाल वर्मा, जमना लाल बजाज, हरिभाऊँ उपाध्याय, रामनारायण चौधरी, हरिभाई किंकर, रमा बाई, जानकी देवी आदि ने आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। 

1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर राघवाचारी एवं किसानों के बीच समझौता हो गया जिसमें सभी बाते मान ली गयी ओर आंदोलन का समाप्त हो गया। 

माणिक्यलाल वर्मा ने अपने ‘पंछीड़ा‘ गीत से किसानों में जोश भर दिया करते थे इस आंदोलन में।