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कोटा का प्रसिद्ध दशहरा मेला

राजस्थान में बहुत सारे मेले लगते हैं जिसकी वजह से राजस्थान को रंगीलो प्रदेश भी कहा जाता हैं और राजस्थान के कोटा का दशहरा मेला पूरी दुनियां में अपनी एक अलग पहचान रखता है।

कोटा दशहरा मेला राजस्थान का सबसे पुराना दशहरा मेला है.

कोटा दशहरा मेला राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध दशहरा मेला है.

बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में दशहरा के दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। आमतौर पर इन पुतलों में पटाखे भरे होते हैं। भगवान राम की पोशाक पहने एक छोटे बच्चे को रावण पर अग्नि बाण चलाने के लिए कहा जाता है और फिर उस विशाल आकृति को जला दिया जाता है। ग्रामीण यहाँ बहुरंगी कपड़े पहनकर भगवान राम की पूजा करने और रावण पर उनकी जीत का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं।

चंबल नदी के किनारे बसा कोटा कई त्यौहार मनाता है। लेकिन दशहरा का त्यौहार एक अलग ही आकर्षण रखता है। इस त्यौहार के दौरान पूरा इलाका एक आकर्षक नज़ारा पेश करता है। यह त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन कोटा दशहरा काफी अनोखा है कोटा का दशहरा मेला राजस्थान में ही नहीं पूरे भारत में प्रसिद्ध है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, दशहरा को प्रतिवर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है।

इस दशहरा मेले का इतिहास 1723 ई. से शुरू होता है। इतिहास बताता है कि दशहरा उत्सव की शुरुआत महाराज दुर्जनशाल सिंह हाड़ा के शासनकाल में हुई थी।विजयादशमी के दिन, तत्कालीन राजपरिवार का कोई व्यक्ति रावण के पुतले पर तीर चलाता है, जिसमें राम के हाथों रावण का वध दर्शाया जाता है। उस समय विभिन्न मंदिरों में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम समारोह का मुख्य आयोजन होते थे। इसके अलावा, इस मेले में भगवान शिव की पूजा-अर्चना भी की जाती है। लेकिन इस दशहरा के धार्मिक आयोजन को अधिक आकर्षक और रंगीन बनाने का श्रेय महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय (1889-1940 ई.) को जाता है। मेले की शुरुआत 1892 से माना जाता है और उस समय कोटा के राजा महाराव उम्मेद सिंह थे।

पिछले कुछ सालों से जयपुर में भी दशहरा मेले का धूमधाम से आयोजन किया जाता है।