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राजस्थान के जैविक उद्यान (बायोलॉजिकल पार्क)

राजस्थान के जैविक उद्यान (बायोलॉजिकल पार्क)

राजस्थान के जैविक उद्यान: वर्तमान में राजस्थान में 5 बायोलॉजिकल पार्क (जैविक उद्यान) है राजस्थान में कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य हैं, लेकिन जैविक उद्यान एक विशेष श्रेणी के हैं, जो संरक्षण, शिक्षा और जानवरों के लिए एक सुरक्षित आवास प्रदान करने पर केंद्रित हैं। राजस्थान के जैविक उद्यान (बायोलॉजिकल पार्क) राज्य की समृद्ध जैव विविधता का प्रमाण हैं।

जैविक उद्यान के अंतर्गत सरकार एक ऐसे क्षेत्र को विकसित करती है जंहा किसी विशेष प्रजाति के वनस्पति या जीव- जंतुओं का संरक्षण और प्रबंध किया जाता है। राजस्थान में वर्तमान में 5 बायोलॉजिकल पार्क हैं। जो की निम्न प्रकार है

  • 1. सज्जनगढ़ जैविक उद्यान (उदयपुर)
  • 2. माचिया बायोलॉजिकल पार्क (जोधपुर)
  • 3. नाहरगढ़ जैविक उद्यान (जयपुर)
  • 4. अभेड़ा जैविक उद्यान (कोटा)
  • 5.मरुधरा जैविक उद्यान (बीकानेर)
बायोलॉजिकल पार्क जिलालोकार्पण वर्ष
सज्जनगढ़ जैविक उद्यान उदयपुर12 अप्रैल 2015
माचिया बायोलॉजिकल पार्क जोधपुर20 जनवरी 2016
नाहरगढ़ जैविक उद्यान जयपुर4 जून 2016
अभेड़ा जैविक उद्यान कोटा18 दिसम्बर 2021
मरुधरा जैविक उद्यान बीकानेरनिर्माण कार्य चल रहा है

1. नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क (जयपुर) – नाहरगढ़ जैविक उद्यान राजस्थान के जयपुर में स्थित है. नाहरगढ़ जैविक उद्यान का लोकार्पण जयपुर में 4 जून 2016 को हुआ था।उसके बाद 2016 में राम निवास जयपुर चिड़ियाघर को नाहरगढ़ प्राणी उद्यान में स्थानांतरित कर दिया गया। नाहरगढ़ जैविक उद्यान बनाने की घोषणा सबसे पहले हुई थी

अरावली पहाड़ियों की गोद में बसा यह पार्क वन्यजीव प्रेमियों के लिए स्वर्ग है। यह सिर्फ एक चिड़ियाघर नहीं है यह विभिन्न प्रकार के जानवरों और पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है। यह विशेष रूप से बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, तेंदुआ और सुस्त भालू जैसे जानवरों के लिए जाना जाता है। आप यहाँ सांभर और चीतल जैसे हिरण और विभिन्न प्रकार के पक्षी भी देख सकते हैं, जो इसे पक्षी प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान बनाते हैं।

हाथी सफारी और इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए नाहरगढ़ जूलॉजिकल पार्क बनाया गया था। नाहरगढ़ जैविक उद्यान की हाथी सफारी काफी लोकप्रिय है।

राजस्थान में पर्यटकों के सर्वाधिक आगमन और पर्यटकों से सबसे ज्यादा आय वाला जैविक उद्यान नाहरगढ़ जैविक उद्यान है।

2. सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क( उदयपुर)- सज्जनगढ़ जैविक उद्यान राजस्थान का पहला बायोलॉजिकल पार्क है। 12 अप्रैल 2015 को सज्जनगढ़ जैविक उद्यान लोकार्पण हुआ था। सज्जनगढ़ जैविक उद्यान राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है.

उदयपुर में प्रसिद्ध मानसून पैलेस (सज्जनगढ़ पैलेस) के नीचे स्थित, सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व को भी जोड़ता है। इस पार्क की स्थापना का उद्देश्य क्षेत्र की जैव विविधता को सुरक्षित करना और लुप्तप्राय जानवरों के लिए एक सुरक्षित घर प्रदान करना था। यहां सरीसृप, बाघ, नीलगाय, सांभर, वन्य सूअर, हनीस, पेंथर और गॉल्स देखे जा सकते हैं।

इस पार्क की एक अनूठी विशेषता इसका ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) ऐप है। यहाँ आने वाले लोग ऐप का उपयोग करके पार्क के शुभंकर के साथ बातचीत कर सकते हैं और जानवरों के बारे में अधिक जान सकते हैं।

3. माचिया बायोलॉजिकल पार्क (जोधपुर) – माचिया जैविक उद्यान राजस्थान के जोधपुर में कायलाना झील के पास स्थित है। 20 जनवरी 2016 को माचिया जैविक उद्यान लोकार्पण हुआ। जोधपुर का माचिया बायोलॉजिकल पार्क परिवार के साथ घूमने के लिए एक आदर्श स्थान है। यह रेगिस्तान और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के वन्यजीवों में रुचि रखने वालों के लिए एक प्रमुख गंतव्य है। माचिया सफारी पार्क में हिरण, रेगिस्तानी लोमड़ी, नीलगाय, जंगली बिल्लियाँ और विभिन्न प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं। आप पार्क के माध्यम से जीप सफारी का आनंद ले सकते हैं। पार्क के किले से सूर्यास्त का शानदार दृश्य भी देखने को मिलता है, जो आपकी यात्रा को यादगार बना देता है।

4. अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क (कोटा) – 18 दिसंबर 2021 को अभेड़ा जैविक उद्यान लोकार्पण हुआ। अभेड़ा जैविक उद्यान राजस्थान के कोटा जिले में स्थित एक बायोलॉजिकल पार्क है।

5. मरुधरा जैविक उद्यान (बीकानेर) – मरुधरा जैविक उद्यान, राजस्थान के बीकानेर में स्थित है, जिसे वन्यजीव संरक्षण और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया है। यह उद्यान मरुस्थलीय क्षेत्र की जैव-विविधता को प्रदर्शित करता है और स्थानीय प्रजातियों, जैसे चिंकारा, काले हिरण, और विभिन्न पक्षियों को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मरुधरा जैविक उद्यान का अभी भी निर्माण कार्य चल रहा है, इसका अभी उद्घाटन नहीं हुआ है।

6. पुष्कर जैविक उद्यान (अजमेर) – पुष्कर जैविक उद्यान अभी निर्माणाधीन है।

जैविक उद्यान में किसी विशेष जानवर को रखने के लिए उसके अनुकूल प्राकृतिक वातावरण बनाया जाता है, जिससे पर्यटक के क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलता है, जैसे जयपुर के नाहरगढ़ बायलॉजिकल पार्क में पर्यटको के लिए टाइगर सफारी उपलब्ध कराई जाती है, इसके लिए लोगो को रणथम्भौर टाइगर रिज़र्व या सरिस्का टाइगर रिज़र्व जाना नहीं पड़ता है। जैविक उद्यान आमतौर पर शहरों या कस्बों के पास स्थित होते हैं, ताकि पर्यटक आसानी से विजिट कर सके।

जैविक उद्यान का महत्त्व:-

लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण: इनमें से कई पार्क महत्वपूर्ण प्रजनन कार्यक्रमों में शामिल हैं जो दुर्लभ और लुप्तप्राय जानवरों को विलुप्त होने से बचाने में मदद करते हैं।

शिक्षा और जागरूकता: ये शैक्षिक केंद्रों के रूप में कार्य करते हैं, जहाँ आगंतुकों को जैव विविधता के महत्व और वन्यजीव संरक्षण की चुनौतियों के बारे में सिखाया जाता है।

इको-टूरिज्म: जानवरों को देखने के लिए एक सुरक्षित और सुखद वातावरण प्रदान करके, वे स्थायी इको-टूरिज्म को बढ़ावा देते हैं और संरक्षण प्रयासों के लिए धन जुटाने में मदद करते हैं।

सीएम भजनलाल शर्मा ने भरतपुर में बायोलॉजिकल पार्क खोलने की योजना है. ऐसे में राजस्व विभाग के साथ मिलकर केवलादेव उद्यान के मलाह क्षेत्र व आगरा-जयपुर हाइवे पर कुछ जमीनों का सर्वे किया गया है. साथ ही प्रस्ताव तैयार कर अनुमोदन के लिए राज्य सरकार को भेजा गया है. वहीं, इस पार्क के निर्माण में करीब 70 करोड़ खर्च करने की योजना है.

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Rajasthan GK Book – राजस्थान GK बुक

राजस्थान जीके (Rajasthan GK) की बाजार में बहुत सारी किताबें उपलब्ध हैं, जो नवीनतम जिलों के अनुसार अपडेटेड हैं। यह नवीनतम संस्करण किताबें 41 जिलों और 7 संभागों के अनुसार राजस्थान जीके को कवर करती है

17 मार्च 2023 को, माननीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी ने 17 नए जिलों और 3 नए संभागों के निर्माण की घोषणा की थी, जिसकी आधिकारिक अधिसूचना 7 अगस्त 2023 को प्रकाशित की गई। तत्पश्चात, 17 जिलों और 3 नए संभागों में से 9 जिलों और तीनों नए संभागों को 30 दिसंबर 2024 की आधिकारिक अधिसूचना द्वारा निरस्त कर दिया गया।

इस प्रकार, अब राजस्थान में कुल जिलों की संख्या 41 और संभागों की संख्या 7 हो गई है।

राजस्थान रामबाण 2.0 बुक :- “राजस्थान रामबन 2.0” मदन सर द्वारा लिखी गई एक पुस्तक है, जो राजस्थान की सभी परीक्षाओं के लिए उपयोगी है. यह पुस्तक माइंड मैप (Mind Map) तकनीक का उपयोग करके बनाई गई है, जिसमें नवीनतम 41 जिलों के अनुसार राजस्थान जीके को कवर किया गया है यह 2025 के नए सिलेबस के अनुसार है और इसमें राजस्थान के इतिहास, कला, संस्कृति, भूगोल, अर्थव्यवस्था और राजनीति जैसे विषयों को शामिल किया गया है. यह पुस्तक अपनी सरल भाषा शैली के लिए जानी जाती है, जिससे पाठकों को आसानी से समझ में आ जाता है यह पुस्तक संपूर्ण सिलेबस को कवर करती है और विस्तृत नोट्स और महत्वपूर्ण प्रश्न प्रदान करती है

आप “राजस्थान रामबन 2.0” पुस्तक को अमेज़न (Amazon) और फ्लिपकार्ट (Flipkart) जैसी ऑनलाइन वेबसाइटों पर खरीद सकते हैं.

“ramban 2.0 book madan sir” पुस्तक की MRP 475 है लेकिन ये बुक आपको कुछ दुकानों पर 400 रुपये से कम में भी मिल सकती है।

Daksh Rajasthan Sar Sangrah :- यह किताब राजस्थान के इतिहास, भूगोल, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और सामान्य ज्ञान के विषयों को कवर करती है। सार संग्रह (Sar Sangrah) पुस्तक की MRP 680 है लेकिन ये बुक आपको कुछ दुकानों पर 300 रुपये से कम में भी मिल सकती है। Daksh की ऑनलाइन वेबसाइट (darkshbook.com) पर ये बुक आपको 280 में मिल जाएगी

Rajasthan Sar Sangrah by Utkarsh :- राजस्थान Saar Sangrah पुस्तक राज्य स्तरीय सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है। इस पुस्तक में राजस्थान के भूगोल, अर्थव्यवस्था, इतिहास, कला एवं संस्कृति, राज्यव्यवस्था, और विविध तथ्यों का संग्रह किया गया है। Rajasthan Sar Sangrah by Utkarsh पुस्तक की MRP 230 है लेकिन ये बुक आपको कुछ दुकानों पर 200 रुपये से कम में भी मिल सकती है। Utkarsh की ऑनलाइन वेबसाइट पर ये बुक आपको 218 में मिल जाएगी

राजस्थान Saar Sangrah की पुस्तक sanjeev publication and dhindhwal publication की भी book आती है जो भी बुक आपको अच्छी लगती है और जो आपके नजदीकी बुक स्टोर पर उपलब्ध है वह बुक ले सकता है

Rajasthan gk black book :- राजस्थान सामान्य ज्ञान (GK) के लिए, ‘संकल्प गंगानगर’ द्वारा प्रकाशित “राजस्थान GK Black Book” एक लोकप्रिय पुस्तक है. यह 41 जिलों और 7 संभागों के अनुसार जानकारी प्रदान करती है इस पुस्तक में राजस्थान के भूगोल, अर्थव्यवस्था, इतिहास, कला एवं संस्कृति, राज्यव्यवस्था, और विविध तथ्यों का संग्रह किया गया है।

rajasthan gk black book पुस्तक की MRP 599 है लेकिन ये बुक आपको कुछ दुकानों पर 300 रुपये से कम में भी मिल सकती है।

सिखवाल राजस्थान मानचित्रवली 2025 – यह पुस्तक RAS, SI, REET, I, II, III ग्रेड, पुलिस कांस्टेबल, पटवार, ग्रामसेवक और राजस्थान कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी है। यह पुस्तक 2025 संस्करण के लिए अद्यतन की गई है और राजस्थान की 41 जिलों और 7 संभागों का विवरण प्रदान करती है। sikhwal manchitrawali book पुस्तक की MRP 160 है लेकिन ये बुक आपको कुछ दुकानों पर 120 रुपये से कम में भी मिल सकती है।

springboard handwritten notes – इसमे 4 बुक आती है और ये 4 किताबें आपको 500 से लेकर 800 के बीच ऑनलाइन या ऑफलाइन मिल जाएंगी

springboard handwritten notes राजवीर सर द्वारा बनाया गया है 4 किताब में से 2 किताब राजवीर सर ने लिखी है 1 बुक विजय सिहाग सर और 1 बुक दिलीप सर ने लिखी है राजवीर सर ने राजस्थान का इतिहास और राजस्थान की कला और संस्कृति के नोट्स लिखे हैं Rajveer sir के springboard handwritten notes ऑनलाइन और ऑफलाइन खरीद सकते हैं

लुसेंट राजस्थान सामान्य ज्ञान :- यह एक लोकप्रिय और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली पुस्तक है जो राजस्थान के सामान्य ज्ञान को कवर करती है.

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राजस्थान में रोपवे – Rajasthan me Ropeway

राजस्थान में रोपवे – राजस्थान में पर्यटन को बढ़ावा देने और धार्मिक स्थलों तक पहुंच को आसान बनाने के लिए कई रोपवे संचालित हैं राजस्थान में वर्तमान में 7 रोपवे संचालित हैं और भविष्य में कई और रोपवे प्रस्तावित हैं।

सुंधा माता रोपवे, भीनमाल (जालौर) :- सुंधा माता रोपवे राजस्थान का पहला रोपवे है। यह रोपवे सुंधा माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बनाया गया था, जो जालौर जिले के भीनमाल के पास सुंधा पर्वत पर स्थित है।, जिसका उद्घाटन 20 दिसंबर 2006 को हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 800 मीटर है। यह रोपवे राजस्थान के पर्यटन और धार्मिक स्थलों को सुगम बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

मंशापूर्ण करणी माता रोपवे, उदयपुर :- यह राजस्थान का दूसरा रोपवे है, जिसका उद्घाटन 8 जून 2008 को हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 387 मीटर है। यह उदयपुर के प्रसिद्ध करणी माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बनाया गया था, जहाँ से पिछोला झील और शहर का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यह रोपवे उदयपुर में माछला मगरा पहाड़ी पर स्थित मंशापूर्ण करणी माता मंदिर तक जाता है। यह उदयपुर के पर्यटन को बढ़ावा देने और भक्तों को सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।

सावित्री माता रोपवे, पुष्कर (अजमेर) :- यह रोपवे ब्रह्मा जी के मंदिर के पास स्थित सावित्री माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बनाया गया था, जो एक रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है। यह तीसरा रोपवे है, जिसका निर्माण मई 2016 में हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 700 मीटर है। सविता देवी का मंदिर पुष्कर में रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है। पुष्कर में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने और श्रद्धालुओं को पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक आसानी से पहुंचने में मदद करने के लिए इसका निर्माण किया गया। सावित्री माता मंदिर, रत्नागिरी पहाड़ी पर 750 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

सामोद वीर हनुमान मंदिर रोपवे, चौमू (जयपुर) :- यह चौथा रोपवे है, जिसका निर्माण मई 2019 में हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 400 मीटर है। सामोद वीर हनुमान मंदिर रोपवे एक मानवरहित स्वचालित रोपवे है यह भक्तों को 1050 सीढ़ियां चढ़ने की बजाय 5 मिनट में मंदिर तक पहुंचने की सुविधा देता है।

खोले के हनुमान मंदिर रोपवे (अन्नपूर्णा रोपवे), जयपुर :- इसका निर्माण सितंबर 2023 में हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 436 मीटर है। अन्नपूर्णा माता मंदिर से खोले के हनुमान मंदिर की पहाड़ी पर स्थित वैष्णो माता मंदिर (जयपुर) तक पहुंचने के लिए बनाया गया था। यह रोपवे खोले के हनुमान मंदिर रोपवे राजस्थान का पहला स्वचालित (ऑटोमेटिक) रोपवे है। यह जयपुर में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने और श्रद्धालुओं को खोले के हनुमान जी और वैष्णो माता मंदिर तक पहुंचने में सुविधा प्रदान करने के लिए बनाया गया।

नीमच माता रोपवे, उदयपुर :- इसका निर्माण जनवरी 2024 में हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 430 मीटर है। उदयपुर में एक और धार्मिक स्थल को सुगम बनाने के उद्देश्य से इसका उद्घाटन जनवरी 2024 में हुआ।

जीण माता मंदिर रोपवे, रेवासा (सीकर) :- यह राजस्थान का सातवां रोपवे है, जिसका उद्घाटन 10 अप्रैल 2024 को हुआ था। यह रोपवे जीण माता मंदिर से काजल शिखर मंदिर, रेवासा (सीकर) तक पहुंचने के लिए बनाया गया था। यह जीण माता मंदिर में भक्तों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए शुरू किया गया।

प्रस्तावित/योजनाबद्ध रोपवे:राजस्थान सरकार “पर्वतमाला योजना” के तहत राज्य के 12 जिलों में 16 नए रोपवे बनाने की योजना बना रही है। यह पहल राजस्थान में पर्यटन को बढ़ावा देने और दुर्गम स्थानों तक पहुंच को आसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

  • 1. आमेर-जयगढ़-नाहरगढ़ रोपवे, जयपुर :- यह 6.5 किलोमीटर लंबा होने वाला है और राजस्थान का सबसे लंबा रोपवे बन सकता है।
  • 2. जोगी महल, सवाई माधोपुर
  • 3. बिजासन माता (इंदरगढ़), बूंदी
  • 4. समई माता, बांसवाड़ा 5
  • . छतरंग मोरी, चित्तौड़गढ़
  • 6. त्रिनेत्र गणेश मंदिर, रणथंभौर, सवाई माधोपुर
  • 7. रामेश्वर महादेव मंदिर, बूंदी
  • 8. चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर
  • 9. रूठी रानी महल से हवामहल, जयसमंद, उदयपुर
  • 10. कुंभलगढ़ किला ,लाखेला, राजसमंद
  • 11. राजसमंद झील के आसपास की पहाड़ियों को जोड़ते हुए
  • 12. सिद्धनाथ महादेव मंदिर, कल्याणा, जोधपुर
  • 13. श्रीगढ गणेश मंदिर, ब्रह्मपुरी, जयपुर
  • 14. भैरव मंदिर, मेहंदीपुर बालाजी, दौसा
  • 15. कृष्णाई माता, रामगढ़, बारां
  • 16. राजा जी का तालाब, तारागढ़ किला, अजमेर

ये रोपवे पर्यटन को बढ़ावा देने और यात्रियों को इन स्थानों तक पहुंचने में सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

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राजस्थान के लोक देवता और देवियाँ - Rajasthan ke lok Devta and Deviya

राजस्थान की लोक देवियां – Rajasthan Ki Lok Deviya

राजस्थान की लोक देवियां – राजस्थान में लोक देवियों का विशेष महत्व है। वे सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का भी अभिन्न अंग हैं। राजस्थान में अनेक देवियों की पूजा की जाती है। करणी माता, जीण माता, शीतला माता, नागणेची माता और चामुंडा माता आदि देवियों की पूजा राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है

नारायणी माता या करमेती माता – नारायणी माता का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के अलवर जिले में राजगढ़ तहसील के पास बरवा की डूंगरी की तलहटी में स्थित हैं।

  • नारायणी माता को सेन (नाई) समाज के लोग अपनी कुलदेवी मानते हैं। वर्तमान मे मीणा व नाईं जाति के बीच नारायणी माता के पुजारी को लेकर विवाद चल रहा है
  • अलवर जिले में नारायणी माता के पुजारी मीणा होते है ।

ज़मुवाय माता – जमवाय माता कछवाहा वंश की कुलदेवी हैं। जमवाय माता का मंदिर जयपुर के जमवारामगढ़ बांध के पास अरावली की पहाड़ियों में स्थित है। इस देवी के मंदिर में मद्य का भोग एवं पशुबलि प्रारंभ से ही वर्जित है ।

आई माता – माता का मुख्य मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले के बिलाड़ा में स्थित है और इसे “अखंड ज्योत” मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस मंदिर में दीपक की ज्योति से कैसर टपकती है ।

चामुंडा माता – चामुंडा माता का मंदिर जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित है। राव जोधा ने 1460 ईस्वी (विक्रम संवत 1517) में मंडोर से चामुंडा माता की मूर्ति लाकर मेहरानगढ़ किले में स्थापित की थी। परिहारों की कुलदेवी होने के बावजूद, राव जोधा ने भी चामुंडा माता को अपनी इष्टदेवी के रूप में स्वीकार किया, और आज भी जोधपुरवासी उन्हें शहर की रक्षक देवी मानते हैं।सितम्बर, 2008 में नवरात्रे के अवसर पर मंदिर स्थित जनसमूह में भगदड मच जाने से करीब 300 लोग असामयिक मृत्यु को प्राप्त हो गये ।इस हादसे की जाँच के लिए सरकार ने जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी ।

त्रिपुरा सुन्दरी माता – त्रिपुरा सुन्दरी माता का मंदिर बांसवाड़ा के तिलवाड़ा में स्थित है। यह एक शक्ति पीठ है जहाँ माता की 18 भुजाओं वाली काले पत्थर की मूर्ति पूजी जाती है।

सच्चीयाय माता – ओसवाल समुदाय और परमार वंश की कुलदेवी सच्चियाय माता हैं। सच्चियाय माता का मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले के ओसियां में स्थित है। गुर्जर प्रतिहार शैली ( महामारू शैली) में बना हुआ है।

ब्रह्माणी माता – राजस्थान के बारां जिले में अंता से 20 किमी दूर सौरसेन में ब्रह्माणी माता का मंदिर है। ब्रह्माणी माता का मंदिर, भारत का एकमात्र मंदिर है जहाँ देवी के पीठ की पूजा और श्रृंगार किया जाता है, उनके अग्र भाग का नहीं। माघ शुक्ला सप्तमी को यहाँ गधों का मेला भी लगता है।

नागणेचियाँ माता – नागणेची माता मारवाड़ के राठौड़ वंश की कुल देवी है । राव धूहड़, जो मारवाड़ राज्य के संस्थापक राव सीहा के पोते थे, 1295-1305 के बीच कर्नाटक से अपनी कुलदेवी चक्रेश्वरी की मूर्ति लाए थे और इसे राजस्थान के ( बालोतरा) जिले के नागाणा गांव में स्थापित किया, जिसके बाद वे नागणेची माता कहलाईं। उनका मुख्य मंदिर जोधपुर के पास नागाणा गांव में स्थित है। राव जोधा ने नागाणा गाँव से मूल मूर्ति मँगवाकर जोधपुर दुर्ग में स्थापित करवाकर वहाँ मंदिर बनवाया । नागणेची माता का दूसरा रूप ‘ श्येन पक्षी/बाज/चील ‘ है ।

आशापुटरा माता – आशापुरा माता का मंदिर राजस्थान के पोकरण के पास स्थित है ।आशापुरा माता बिस्सा जाति के लोगों की कुलदेवी है ।बिस्सा जाति में विवाहित वधू मेहँदी नहीं लगा सकती है ।बिस्सा जाति के लोग झडूला यही उतारते है तथा विवाह के बाद ‘जात’ लगाने भी जाते है ।

बाण माता – बाण माता, सिसोदिया वंश की कुलदेवी हैं, जिनका मुख्य मंदिर उदयपुर के नागदा में स्थित है। राणा लक्ष्मण सिंह ने उदयपुर के कैलवाड़ा में भी एक मंदिर बनवाया था, जिसे 1443 ई. में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने नष्ट कर दिया था। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण कर गुजरात से नई मूर्ति स्थापित की गई है।

राठासण देवी – राठासण देवी के मंदिर का निर्माण बप्पा रावल द्वारा नागदा में एकलिंग जी मंदिर के समीप करवाया गया ।

धनोप माता – धनोप माता का प्राचीन मंदिर भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा से लगभग 30 किमी दूर धनोप गाँव में एक ऊँचे रेतीले टीले पर स्थित है।

अन्नपूर्णा देवी/जोगणिया माता – भीलवाड़ा जिले के ऊपरमाल पठार के दक्षिणी छोर पर स्थित अन्नपूर्णा देवी का मंदिर जोगणिया माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जब देवा हाड़ा की बेटी की शादी में देवी ने जोगन का रूप धारण किया।

नकटी माता – जयपुर से 23 किमी. दूर जयभवानीपुरा गाँव में स्थित नकटी माता का मंदिर गुर्जर-प्रतिहार काल का है। चोरों द्वारा प्रतिमा को नाक के पास से खंडित करने के कारण देवी का नाम नकटी माता पड़ा।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग की कालिका – माता चित्तौड़ दुर्ग में रानी पद्मिनी के महलों और विजय स्तंभ के बीच स्थित कालिका माता मंदिर मूल रूप से एक सूर्य मंदिर था।

महामाई/महामाया माता – मावली (उदयपुर) में स्थित महामाया को शिशु रक्षक लोकदेवी के रूप में पूजा जाता है। गर्भवती महिलाएं स्वस्थ प्रसव और बच्चों के कल्याण के लिए इनकी पूजा करती हैं।

आमजा माता – आमजा माता का मंदिर उदयपुर से 80 किलोमीटर दूर केलवाड़ा के पास रीछड़े गांव में स्थित है। वह भीलों की देवी हैं, और उनकी पूजा एक भील भोपा और एक ब्राह्मण पुजारी दोनों करते हैं।

हिगलाज माता – प्रथम आदि शक्तिपीठ हिंगलाज माता का मुख्य मंदिर बलूचिस्तान वर्तमान पाकिस्तान मे स्थित है ।हिंगलाज माता चौहान वंश की कुल देवी है ।

क्षेमंकरी/खींवल/ खीमल माता – क्षेमंकरी/खींवल/खीमल माता का मंदिर जालौर जिले के भीनमाल गाँव से 3 किमी. दूर बसंतगढ दुर्ग में ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इन्हें शुंभकरी भी कहते हैं क्योंकि वे शुभ फल देती हैं। क्षेमंकरी/खींवल/शुंभकरी देवी भीनमाल की आदि देवी और सोलंकी राजपूत वंश की कुलदेवी हैं। इस मंदिर का निर्माण चावड़ा वंश के राजा वर्मलाट के समय विक्रम संवत 682 ई० में हुआ था।

इंद्रगढ की बीजासण माता – इंद्रगढ़ में एक विशाल पर्वत पर बीजासण माता का मंदिर स्थित है, जो हाडौती अंचल में इंद्रगढ़ देवी के नाम से प्रसिद्ध है।

सुंधा माता – सुंधा माता मंदिर राजस्थान के जालोर जिले की भीनमाल तहसील के दातालावास गांव के पास सुंधा/सूगंधाद्रि पहाड़ी पर स्थित है. चामुंडा माता को सुंधा पर्वत के नाम पर सुंधा माता कहा जाने लगा.
राजस्थान का पहला रोपवे जालौर जिले के सुंधा माता मंदिर में स्थापित किया गया था.

वीरातरा माता/वांकल माता – बाड़मेर जिले की चौहटन तहसील से 10 किमी दूर एक पहाड़ी घाटी में स्थित वांकल या वीरातरा माता का मंदिर 400 साल से भी पुराना है। देवी का नाम ‘वांकल माता’ उनकी थोड़ी झुकी हुई गर्दन के कारण पड़ा और ‘वीरातरा माता’ इसलिए पड़ा क्योंकि वीर विक्रमादित्य ने मंदिर स्थल पर रात बिताई थी।

छींछ माता – छींछ माता का मंदिर राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के छींच गांव में स्थित है।

हिचकी माता – हिचकी माता का मंदिर राजस्थान के अजमेर जिले के सरवाड में स्थित है।

सावित्री माता – सावित्री माता का मंदिर पुष्कर में रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है। सावित्री माता रोपवे, पुष्कर (अजमेर) ब्रह्मा जी के मंदिर के पास स्थित सावित्री माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बनाया गया था, जो एक रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है सावित्री माता मंदिर, रत्नागिरी पहाड़ी पर 750 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

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राजस्थान के लोक देवता और देवियाँ - Rajasthan ke lok Devta and Deviya

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां – Rajasthan ke Pramukh Lok Deviya

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां – राजस्थान में अनेक देवियों की पूजा की जाती है। करणी माता, जीण माता, शीतला माता, और चामुंडा माता आदि देवियों की पूजा राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है. नागणेची माता (राठौड़ों की), जीण माता (चौहानों की), करणी माता (बीकानेर के राठौड़ों की), और आशापुरा माता (जालौर के चौहानों की) आदि विभिन्न राजवंशों की कुलदेवी हैं

करणी माता:- राजस्थान में करणी माता का मुख्य मंदिर बीकानेर जिले के देशनोक शहर में स्थित है।

  • करणी माता ‘‘चूहों की देवी’’ के नाम से भी जानी जाती हैं।
  • करणी माता मंदिर में सफेद चूहों को “काबा” कहा जाता है. 
  • करणी माता का मेला साल में दो बार लगता है, चैत्र नवरात्रि और अश्विन नवरात्रि के दौरान लगता है
  •  मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव करणी माता ने रखी थी।
  • 1488 ई.में राव बीका ने बीकानेर के राठौड़ वंश की नींव करणी माता के आशीर्वाद से रखी गई थी। 
  • बीकानेर के राठौड़ वंश की आराध्य देवी करणी  माता हैं।
  • करणी माता को भी चारणों की कुलदेवी माना जाता है 

तनोट माता – तनोट माता का मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले के तनोट गाँव में स्थित है।

  • थार की वैष्णो देवी तनोट माता को कहा जाता है
  • तनोट माता को हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है
  • तनोट माता को रक्षा की देवी, सैनिकों की देवी और रुमाल वाली देवी के रूप में जाना जाता है।
  • तनोट माता के मंदिर में पुजारी का काम सीमा सुरक्षा बल(BSF) व सेना के जवान करते है ।
  • तनोट माता मंदिर का निर्माण भाटी राजपूत राजा तनु राव (या तन्नू राव) ने करवाया था

अर्बुदा देवी – अर्बुदा देवी का मंदिर सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है। अर्बुदा माता को देवी पार्वती का ही एक रूप माना जाता है और उनका मंदिर “अधर देवी” के नाम से भी जाना जाता है । राजस्थान की वैष्णो देवी अर्बुदा माता मंदिर को कहा जाता है

शाकम्भरी माता/सकराय माता – शाकम्भरी माता ने अकाल से पीडित जनता को बचाने के लिए साग-सब्जियां, फल और अन्य वनस्पतियां उत्पन्न कीं उत्पन किये, इस शक्ति के कारण ये शाकम्भरी कहलाई (पोषण और प्रचुरता की देवी)।

  • सकराय माता खण्डेलवालों की कूल देवी के रूप में प्रसिद्ध है
  • शाकम्भरी माता अजमेर के चौहानों की कुलदेवी है ।
  • शाकम्भरी माता का मंदिर सांभर (जयपुर) में है तथा एक मंदिर सहारनपुर (उत्तरप्रदेश) में स्थित है । सीकर जिले में उदयपुरवाटी कस्बे के पास भी शाकंभरी माता का एक प्राचीन मंदिर है।

शीतला माता – शीतला माता का मंदिर शील की डूंगरी, चाकसू (जयपुर) में है ।

शीतला माता एक ऐसी माता है, जिसकी खण्डित मूर्ति की पूजा होती है। शीतला माता का पुजारी कुम्हार होता है । चाकसू में प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी (चैत्र कृष्ण अष्टमी) के दिन मेले का आयोजन होता है । शीतला माता को बासी भोजन का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस दिन, भक्त एक दिन पहले बनाए गए भोजन को माता को अर्पित करते हैं, जिसे “बासोड़ा” या “बसोड़ा” भी कहा जाता है। 

  • शीतला माता का वाहन गधा होता है ।
  • शीतला माता के मंदिर का निर्माण सवाईं माधो सिंह ने चाकसू में शील की डूंगरी पर करवाया था।
  • चेचक की देवी के रूप में शीतला माता प्रसिद्ध है ।

 जीणमाता :- राजस्थान के लोक साहित्य में जीण माता का गीत सबसे लंबा है। जीण माता का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले रेवासा गांव में स्थित है।

  • पृथ्वीराज चौहान के सामंत हट्टड़ चौहान जीण माता के मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • सीकर के चौहानों की कुलदेवी जीण माता हैं। 
  • जीण माता के भाई हर्ष का मंदिर (हर्षनाथ मंदिर) राजस्थान के सीकर जिले में हर्ष पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर जीण माता मंदिर के पास ही स्थित है
  • जीण माता मंदिर में हर साल चैत्र और आश्विन नवरात्रि के दौरान बड़े मेले लगते हैं.
  • जीण माता के मंदिर में 12 महीने अखंड दीप जलता रहता है.

आवड़ माता:- आवड़ माता का मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित है। आवड़ माता को स्वांगिया माता के नाम से भी जाना जाता है

  • आवड़ माता / स्वांगिया माता जैसलमेर के भाटी शासको की कुलदेवी हैं।
  • राजस्थान में ‘‘सुगनंचिड़ी’’ को आवड़ माता का रूप माना जाता हैं।

सुगाली माता – सुगाली माता को राजस्थान में 1857 की क्रांति की देवी के नाम से जाना जाता है । 10 सिर और 54 हाथ वाली देवी सुगाली माता को कहा जता हैं।

सुगाली माता का मंदिर राजस्थान के पाली जिले के आऊवा गांव में स्थित है। सुगाली माता आऊवा के ठाकुरों (चंपावतों) की कुल देवी है।

कैलादेवी :- कैलादेवी का मुख्य मन्दिर करौली में त्रिकूट पर्वत पर हैें।

  • कैलादेवी का मेला चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भरता हैं। कैला देवी मेला में लांगुरिया नृत्य किया जाता है।
  • कैलादेवी, करौली के यदुवंषियों की कुलदेवी हैं।
  • कैला देवी के इस मंदिर के सामने बोहरा भक्त की छतरी स्थित है।
  • कैलादेवी मंदिर का निर्माण कार्य 1723 में करौली रियासत के शासक महाराजा गोपाल सिंह ने प्रारंभ करवाया और 1730 में पूर्ण हुआ।
  • कैलादेवी मंदिर परिसर में भैरव और हनुमान जी के मंदिर भी स्थित हैं, हनुमान जी को स्थानीय भाषा में ‘लंगूरिया’ कहा जाता है।

घेवर माता – घेवर माता मंदिर राजसमंद झील की पाल (किनारे) पर स्थित है घेवर माता को बिना पति के सती होने वाली देवी के रूप में जाना जाता है. 

  • घेवर माता के मंदिर का निर्माण महाराणा राजसिंह ने करवाया था। राजसमंद झील के निर्माण के समय महाराणा राजसिंह द्वारा बनवाई पाल दिन में बनाते और रात में टूट जाती थी। राजपुरोहित के कहने पर एक धर्मपरायण पतिव्रता महिला घेवर बाई से झील की पाल की नींव रखवाई गयी।
  • घेवर माता अपने हाथों में होम की अग्नि प्रज्जवलित कर अकेली सती हुई थी।

शिला माता – राजस्थान में शिला माता मंदिर आमेर (जयपुर) में पहले नरबलि दी जाती थी, लेकिन अब यह प्रथा बंद हो चुकी है। शिला माता मंदिर में नरबलि की जगह पशुबलि दी जाती है। 

  • शिला माता, जयुपर के कच्छावा राजवंष की कुलदेवी हैं।
  • शिला माता की मूर्ति आमरे शासक मानसिंह प्रथम पूर्वी बंगाल के विजय के दौरान महाराजा केदारनाथ से लाए थे।

ज्वाला माता :- ज्वाला माता का मंदिर जोबनेर, जयपुर में स्थित है ज्वाला माता खंगारोतो राजवंश की कुल देवी हैं।

छींक माता – राजस्थान में छींक माता का मंदिर जयपुर (गोपाल जी के रास्ते में) में स्थित है।

कुशाल माता – राणा कुम्भा ने बदनोर (भीलवाडा) के युद्ध में महमूद खिलजी को पराजित कर, इस विजय की याद में विक्रम संवत् 1490 ईं ० में कुशाल माता का मंदिर बदनोर (भीलवाडा) में बनवाया था । यहाँ प्रतिवर्ष भाद्र कृष्ण ग्यारस से भाद्र अमावस्या को मेला भरता है।

राणी सती लोक देवी – रानी सती मंदिर (रानी सती दादी मंदिर) राजस्थान के झुंझुनू जिले में स्थित है राजस्थान के झुंझुनू में स्थित रानी सती मंदिर, एक राजस्थानी महिला रानी को समर्पित सबसे बड़ा मंदिर है और मंदिर में कोई भी भगवान और देवी की मूर्ति नहीं है

  • झुंझुनू जिले की राणी सती का नाम नारायण बाई था ।
  • राणी सती का विवाह हिसार के तनधनदास के साथ हुआ । 
  • हिसार के नवाब की रक्षा करते हुए धनदास की मृत्यु हो गई तब नारायणी बाईं सन् 1652 में मार्गशीर्ष कृष्णा नवमीं को अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सती हुई ।
  • लोक भाषा में राणी सती दादीजी के नाम से भी प्रसिद्ध है
  • सती माता को अग्रवाल जाति की कुलदेवी माना जाता है ।

बड़ली माता – बड़ली माता का मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले के आकोला में स्थित है। यह मंदिर बेड़च नदी के किनारे स्थित है

बाकल माता/ विरात्रा माता – विरात्रा वांकल माता मंदिर राजस्थान के बाड़मेर जिले, चौहटन में विरात्रा नामक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है.

लटियाल माता – लटियाल माता मंदिर राजस्थान के फलोदी शहर में स्थित है। 

दधिमती माता – दधिमती माता का मंदिर राजस्थान के नागौर जिले में जायल तहसील के गोठ मांगलोद गांव में स्थित है

आवरी माता – आवरी माता का मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के भदेसर तहसील के आसावरा गांव में स्थित है। 

भदाणा माता – भदाणा माता का मंदिर राजस्थान के कोटा जिले के भदाणा गांव में स्थित है।

राजेश्वरी माता – राजेश्वरी माता को भरतपुर के जाट वंश की भी कुलदेवी मानी जाती हैं राजराजेश्वरी माता का मंदिर भरतपुर में स्थित है।

जिलानी माता – जिलानी माता मंदिर कोटपुतली-बहरोड़ जिला में स्थित है। जिलाणी माता को गुर्जर समाज की कुलदेवी माना जाता है 

चौथ माता – चौथ माता का मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा में स्थित है। 

  • चौथ माता बूंदी राजघराने और कंजर जनजाति की कुलदेवी हैं। इसके अतिरिक्त, मीणा जनजातियों में भी चौथ माता को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
  • सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा के लिए करवा चौथ  (कार्तिक कृष्ण चतुर्थी) पर चौथ माता का व्रत करती है ।

भद्रकाली माता – राजस्थान में भद्रकाली माता के दो प्रसिद्ध मंदिर हैं, एक हनुमानगढ़ जिले में और दूसरा सिरोही जिले के आबू रोड के उमरानी क्षेत्र में स्थित है

मनसा माता – मनसा माता का मंदिर चूरू में स्थित है।

रानी भटियानी सा/ भुआ सा – रानी भटियानी सा का मंदिर राजस्थान के बालोतरा जिले के जसोल गाँव में स्थित है। जिसे माजीसा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है यह मंदिर रानी भटियानी (स्वरूप कंवर) को समर्पित है

भवाल माता – भंवाल माता का मंदिर नागौर जिले की मेड़ता तहसील में भवाल गाँव में स्थित है। भंवाल माता को ढाई प्याला शराब चढ़ाई जाती है ।

कैवाय माता – कैवाय माता मंदिर राजस्थान के डिंडवाना – कुचामन जिले के किनसरिया गाँव में स्थित है 

धोलागढ देवी – धोलागढ़ देवी का मंदिर राजस्थान के अलवर जिले के कठूमर क्षेत्र में बहतूकला गाँव के धोलगिरी पर्वत पर स्थित है।

हर्षत माता – हर्षत माता मंदिर राजस्थान के दौसा जिले के आबानेरी गाँव में ‘चाँद बावड़ी’ के ठीक सामने स्थित है। अबानेरी में हर्षत माता मंदिर मूल रूप से भगवान विष्णु को समर्पित था।

पिपलाज माता – पिपलाज माता का मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले के ओसियां में स्थित है।

पपलाज माता – पपलाज माता का मंदिर राजस्थान के दौसा जिले के लालसोट में स्थित है।

पीपलाद माता – पीपलाद माता का मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले में खमनोर के पास देवल उनवास में स्थित है 

आमजा माता – आमजा माता का मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले के रिछेड़ गाँव में स्थित है.

मगरमंडी माता – मगरमंडी माता का मंदिर राजस्थान के ब्यावर जिले के निमाज कस्बे में स्थित है.

रक्तदंती माता – रक्तदंती माता का मंदिर राजस्थान के बूंदी जिले में स्थित है।

कंठेश्वरी माता – कंठेश्वरी माता आदिवासियों की कुल देवी है। कंठेसरी माता का मंदिर जालौर जिले के पंचोटा गाँव में पंचमुखी पहाड़ी पर स्थित है