कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ ‘काली रंग की चूड़ियाँ’ है, कालीबंगा में मिली तांबे की काली चूड़ियों की वजह से ही इसे कालीबंगा कहा गया। पंजाबी में ‘बंगा’ का अर्थ चूड़ी होता है, इसलिए कालीबंगा अर्थात काली चूड़ियाँ
कालीबंगा सभ्यता राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घाघर नदी (प्राचीन नाम सरस्वती नदी) के तट पर स्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्राचीन स्थल है। कालीबंगा सभ्यता को नगरीय और कांस्ययुगीन सभ्यता माना जाता है।
कालीबंगा सभ्यता को पहली बार 1952 में अमलानंद घोष द्वारा खोजा गया था। कालीबंगा एक ऐतिहासिक स्थल है जिसने सिंधु घाटी सभ्यता के विकास और पतन को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
उत्खननकर्ता (1961 से 1969)
(a). श्री बृजवासी लाल (बी. वी. लाल )
(b). श्री बालकृष्ण थापर (बी. के. थापर)
(c). एम.डी. खरे
(d). के.एम. श्रीवास्तव
(e). एस.पी. जैन
दशरथ शर्मा के अनुसार कालीबंगा, हड़पा सभ्यता की तीसरी राजधानी थी।
यहाँ पर कपास की खेती के अवशेष, लकड़ी के कुंड, सात अग्नि वेदियाँ, ग्रिड पैटर्न में जोता हुआ खेत, भूकंप आदि के प्रमाण मिले हैं।
कालीबंगा में विश्व का सर्वप्रथम जोता हुआ खेत मिला है।
कालीबंगा में विश्व का सर्वप्रथम भूकंप की जानकारी मिली है।
कालीबंगा से सिंधु घाटी (हड़प्पा) सभ्यता की मिट्टी पर बनी मुहरें मिली हैं
मेसोपोटामिया की बेलनाकार मुहर यहाँ मिली है, जिसे मेसोपोटामिया सभ्यता की जानकारी मिलती है
कालीबंगा में 1985 ई. में संग्रहालय स्थापित किया गया।
मिट्टी के बर्तनों और मुहरों पर लिखी हुई लिपि सैंधव थी।इसमें ड्रेनेज सिस्टम ठीक से विकसित नहीं था।
अग्नि वेदी लोगों के धार्मिक विश्वास को प्रकट करती पाई गई।
यहाँ पर से मकानों से पानी निकालने के लिए लकड़ी की नालियों का प्रयोग किया जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य केन्द्रो से भिन्न कालीबंगा में एक विशाल दुर्ग के अवशेष भी मिले हैं जो यहाँ के मानव द्वारा अपनाए गए सुरक्षात्मक उपायों का प्रमाण है।
कमरे में दरवाजे लगाने और पक्की ईंटों का फर्श इसी सभ्यता के प्रमाण हैं।
सोठी सभ्यता – Sothi Civilization :- बीकानेर के आस-पास की सभ्यता को सोती सभ्यता के नाम से जाना जाता है और मुख्य सोठी सभ्यता स्थल अब हनुमानगढ़ में है।
अमलानंद घोष ने सोठी सभ्यता को काली बग्गा सभ्यता का उद्गम स्थल बताया।
सोठी सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी।
यह घाघर और चौटांग नदी के मैदान पर स्थित है।इतिहासकारों ने इसे हड़प्पा सभ्यता का मूल स्थान बताया है।
राजस्थान में औद्योगिक पार्कों का निर्माण मुख्य रूप से राज्य की आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने, रोजगार सृजन करने, निवेश आकर्षित करने और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम लिमिटेड (RIICO) इस दिशा में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
आर्थिक विकास और औद्योगीकरण को बढ़ावा, रोजगार सृजन, निवेश आकर्षण और कारोबारी सुगमता, बुनियादी ढांचे का विकास, क्षेत्र-विशिष्ट विकास आदि के लिए राजस्थान में पार्क बनाये जा रहे हैं।
राजस्थान का पहला साइंस पार्क (science park) जयपुर में स्थित है।
राजस्थान का पहला मेगा फूड पार्क अजमेर जिले के रूपनगढ़ गांव में है, जिसका नाम ग्रीनटेक मेगा फूड पार्क प्राइवेट लिमिटेड है।
राजस्थान का पहला मसाला पार्क (spice park) जोधपुर में है। यह जोधपुर के पास मथानिया के रामपुरा भाटियान गाँव में स्थित है।
राजस्थान का पहला रेगिस्तानी पार्क (Desert Park) जयपुर में स्थित किशन बाग है। यह नाहरगढ़ किले की तलहटी में 30 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है।
राजस्थान का पहला सोलर पार्क (Solar Park) भड़ला सोलर पार्क है, जो फलोदी जिले में स्थित है।
राजस्थान का पहला संविधान पार्क (Constitution Park) जयपुर के राजभवन में स्थित है। इसका उद्घाटन 3 जनवरी, 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया था।
राजस्थान का पहला बर्ड पार्क (Bird Park) उदयपुर के गुलाब बाग में स्थित है।
राजस्थान का पहला MSME पार्क दौसा में स्थापित किया गया है।
राजस्थान का पहला आईटी (IT) पार्क जयपुर में सीतापुरा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है।
राजस्थान का पहला मिनी फूड पार्क (mini food park) बांद्रा, बाड़मेर में स्थित है। हालाँकि, बीकानेर के पलाना में एक मेगा फूड पार्क प्रस्तावित है।
पहला मिनी एग्रो पार्क (mini agro park) टोंक जिले के निवाई के चैनपुरा प्रस्तावित है।
राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड (RSMSSB) ने पटवारी 2025 परीक्षा 17 अगस्त को दो शिफ्ट में आयोजित की गई। पटवारी 2025 परीक्षा 3705 रिक्तियों को भरने के लिये आयोजित की गई है।
परीक्षा में कुल 150 प्रश्न पूछे गये और प्रत्येक प्रश्न 2 नंबर का था। राजस्थान पटवारी परीक्षा में नकारात्मक अंकन (नेगेटिव मार्किंग) होती है। प्रत्येक सही उत्तर के लिए +2 अंक दिए जाते हैं, जबकि प्रत्येक गलत उत्तर के लिए 1/3 अंक काटे जाते हैं। कुल 300 नंबर का पेपर था।
पटवारी 2025 की कटऑफ अभी प्रकाशित नहीं हुई है, राजस्थान पटवारी कट ऑफ की घोषणा अंतिम परिणाम के साथ की जाएगी। लेकिन अपेक्षित पटवारी कट ऑफ सभी कोचिंग संस्थान ने जारी की है। फाइनल कट ऑफ और अपेक्षित कट ऑफ में+/- 5 नंबर का अंतर आ सकता है।
Utkarsh classes Rajasthan के अनुसार General की cutoff 260 मार्क्स रहेगी।
सुभाष Charan sir के अनुसार General की cutoff 230-260 मार्क्स रहेगी।
अपेक्षित पटवारी कट ऑफ 2025(Non -TSP Area)
Coaching
Gen.
EWS
OBC
SC
ST
Lakshya classes Udaipur
226-230
220-228
222-228
204-210
200-205
Quality Education
235-240
225-230
235-240
210-215
210-215
SKB Education
144
226
236
216
210
Ashu GK trick
240-250
230-240
236-240
220-230
210-220
Booster Academy
225-235
220-225
220-230
200-210
195-200
online sarthi
250
240
244
236
230
Mind Map
232-235
222-226
230-234
210-214
206-210
Genuine classes
226-230
220
225
205
200
अपेक्षित पटवारी कट ऑफ 2025(TSP Area)
Coaching
Gen.
EWS
OBC
SC
ST
Quality Education
201-215
200-205
160-165
Mind Map
205
193-197
153-157
RSMSSB PATWARI EXAM 2025 की सभी जानकारी RSMSSB की main website पर मिल जाएगी और फाइनल cutoff भी rsmssb की मैं website पर ही जारी होगी जिसका लिंक नीचे है।
राजस्थान में पैनोरमा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित करने और युवा पीढ़ी को महापुरुषों, लोक देवताओं, वीरों, और स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और योगदान को त्रि-आयामी (3D) या कलात्मक रूप से दर्शाया जाता है। ये पैनोरमा न केवल पर्यटन को बढ़ावा देते हैं, बल्कि राजस्थान के गौरवशाली इतिहास को जीवंत करते हैं।
राजस्थान का पहला पैनोरमा हसन खान मेवाती पैनोरमा, अलवर में स्थापित किया गया था
हसन खान मेवाती पैनोरमा
राजस्थान का महाराणा प्रताप पैनोरमा चावंड, उदयपुर में स्थापित किया गया था। यह पैनोरमा महाराणा प्रताप के जीवन, वीरता और मेवाड़ के इतिहास को दर्शाता है।
शेखावाटी की मीरा करमेती बाई का पैनोरमा सीकर जिले के खंडेला में बनेगा।
निम्नलिखित कुछ प्रमुख पैनोरमा और उनके स्थान हैं, जो हाल के वर्षों में बनाए गए या प्रस्तावित हैं:
राष्ट्रीय जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय मानगढ़, बांसवाड़ा
कृष्ण भक्त अलीबख्श पेनोरमा मुन्डावर, अलवर
श्री करणी माता पेनोरमा देशनोक, बीकानेर
संत शिरोमणि रैदास पेनोरमा चित्तौड़ीखेड़ा, चित्तौड़गढ़
वीर झाला मन्ना पेनोरमा बड़ी सादड़ी, चित्तौड़गढ़
लोकदेवता बाबा रामदेव जी पेनोरमा रामदेवरा, जैसलमेर
महाकवि माघ एवं गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त पेनोरमा भीनमाल, जालोर
सैन्य शक्ति स्मारक (वॉर मेमोरिअल) दोरासर, झुन्झुनू
1857 स्वतंत्रता संग्राम पेनोरमा आऊवा, पाली
राजा भर्तृहरि पेनोरमा, अलवर
संत शिरोमणि रैदास पेनोरमा चित्तौड़ीखेड़ा, चित्तौड़गढ़
पैनोरमा
पैनोरमा के स्थान
महाराजा सूरजमल पैनोरमा
डीग
सवाईभोज पैनोरमा
भीलवाड़ा (आसींद)
कैला देवी पैनोरमा
करौली
पृथ्वीराज चौहान पैनोरमा
अजमेर
वीरमदेव और कान्हड़देव चौहान पैनोरमा
जालोर
इंदिरा महाशक्ति भारत पैनोरमा
जैसलमेर (पोकरण)
स्वतंत्रता सेनानियों का पैनोरमा
जयपुर
महावीर जी पैनोरमा
करौली (महावीर जी मंदिर)
जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज पैनोरमा
अजमेर
भक्त शिरोमणि करमा बाई पैनोरमा
डीडवाना-कुचामन (कालवा)
जसनाथ जी पैनोरमा
बीकानेर (कतरियासर)
खेमा बाबा पैनोरमा
बालोतरा (बायतू)
भामाशाह पैनोरमा
चित्तौड़गढ़
राव चन्द्रसेन पैनोरमा
जोधपुर
गोकुला जाट पैनोरमा
भरतपुर
जैसलमेर पैनोरमा
जैसलमेर
महाबलिदानी पन्नाधाय पैनोरमा
राजसमंद (कामेंरी)
महाबलिदानी पन्नाधाय पैनोरमा
चित्तौड़गढ़ (पाण्डोली)
राव बीकाजी पैनोरमा
बीकानेर
स्वामी आत्माराम लक्ष्य पैनोरमा
जयपुर
राजा बूंदा मीणा पैनोरमा
बूंदी
महर्षि नवल पैनोरमा
जोधपुर
केसरी सिंह बारहठ पैनोरमा
भीलवाड़ा (शाहपुरा)
महाराणा राजसिंह पैनोरमा
राजसमंद (राजसमंद झील)
महाराणा कुंभा पैनोरमा
राजसमंद (माल्यावास, देवगढ़)
वीर तेजाजी पैनोरमा
नागौर (खरनाल)
वीर अमरसिंह राठौड़ पैनोरमा
नागौर
गुरु जम्भेश्वर पैनोरमा
नागौर
चालक नेची पेनोरमा
बाड़मेर (सेडवा क्षेत्र)
मीराबाई पैनोरमा
नागौर (मेड़ता)
देवनारायण पैनोरमा
भीलवाड़ा (मालासेरी)
गोविंद गुरु पैनोरमा
डूंगरपुर (छाणी मगरी धाम)
अमराजी भगत अनगढ बावजी पैनोरमा
चित्तौड़गढ़(नरबदिया)
बाप्पा रावल पनोरमा
उदयपुर (मथता)
राव शेखाजी पैनोरमा
जयपुर (अमरसर)
सेन महाराज पेनोरमा
अजमेर (पुष्कर)
शबरी पैनोरमा
चित्तौड़गढ़ (दूध तलाई)
महाराणा प्रताप पैनोरमा
उदयपुर (चावंड)
राजस्थान सरकार श्री ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग में विकास कार्य करेगी
राजस्थान अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और रेगिस्तान के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां कुछ बेहद खूबसूरत झरने भी हैं मुख्यत: चूलिया झरना, मेनाल झरना, भीमलत झरना, दिर झरना, भील बेरी झरना, दमोह झरना, अरणा-जरणा जलप्रपात और पांडुपोल झरना है।
मानसून के दौरान इसकी खूबसूरती देखने लायक होती है। राजस्थान के ज्यादातर झरने बारिश में ही बहते हैं। मानसून के दौरान इसकी खूबसूरती देखने लायक होती है।
भील बेरी झरना – Bheel Beri Waterfall (पाली) :- राजस्थान का सबसे ऊंचा झरना पाली जिले के भगाेड़ा गाँव में स्थित भील बेरी झरना है। यह 182 फीट (55 मीटर) की ऊंचाई से गिरता है। यह झरना पाली और राजसमंद जिले की सीमा पर स्थित है। भील बेरी झरना, टॉडगढ़ रावली वन्यजीव अभयारण्य में स्थित है। भील बेरी जलप्रपात को ‘राजस्थान का दूध सागर’ कहते है, क्योंकि यह झरना इतनी ऊंचाई से गिरता है, तो दूध जैसा प्रतीत होता है।
भीमलत झरना – Bhimlat Waterfall (बूंदी) :- भीमलत जलप्रपात बूंदी जिले में, मांगली नदी पर स्थित है। मांगली नदी, मेज नदी की सहायक नदी है। स्थानीय लोगों का मानना है कि वनवास के दौरान पांडवों की प्यास बुझाने के लिए भीम ने इस झरने का निर्माण किया था.
मेनाल झरना – Menal Waterfall (भीलवाड़ा) :– राजस्थान का दूसरा सबसे ऊंचा झरना भीलवाड़ा जिले में मेनाल नदी पर स्थित मेनाल झरना है, जिसकी ऊँचाई 180 फीट (54 मीटर) है मेनाल झरना को “राजस्थान का मिनी नियाग्रा” कहा जाता है।
गैपरनाथ झरना – Geparnath Waterfall (कोटा) :- गैपरनाथ झरना, राजस्थान के कोटा जिले में रावतभाटा के पास स्थित एक खूबसूरत प्राकृतिक जलप्रपात है।
चूलिया झरना -chuliya Waterfall (रावतभाटा, कोटा) :- चूलिया जलप्रपात की ऊंचाई 18 मीटर (54 फीट) है। यह जलप्रपात चितौड़गढ़ जिले में स्थित राणा प्रताप सागर बांध और भैंसरोडगढ़ के मध्य रावतभाटा में चम्बल नदी पर स्थित है। यह राजस्थान का एक बड़ा और लोकप्रिय जलप्रपात है। रावतभाटा के पास चम्बल नदी अधिक सकरी हो जाती है, जिसे चम्बल घाटी कहते है। इस घाटी की चट्टानों को चुड़ीनुमा आकृति में काटा गया है, जिससे पानी बहकर जलप्रपात का निर्माण करता है, इसलिए इसे चूलिया जलप्रपात कहते है।
पदाझर महादेव झरना (चित्तौड़गढ़) :– पदाझर महादेव झरना, राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा के पास एक शांत और प्राकृतिक जलप्रपात है।
ध्रुधिया झरना (माउंट आबू ) :- धुधिया झरना राजस्थान के सिरोही जिले में, माउंट आबू के पास स्थित है।
दमोह झरना (सरमथुरा, धौलपुर) :– दमोह जलप्रपात राजस्थान के धौलपुर जिले के सरमथुरा गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित एक प्राकृतिक जलप्रपात है। यह जलप्रपात लगभग 100 फीट ऊंचा है
गर्भाजी झरना (अलवर):- गर्भाजी झरना राजस्थान के अलवर जिले में सिलिसेढ़ झील के रास्ते में, अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित है।
अरना झरना (जोधपुर) :- अरना झरना राजस्थान के जोधपुर जिले में मोकलावास गाँव के पास, भोगिशैल पहाड़ियों में स्थित है। झरने के पास अरणेश्वर महादेव मंदिर स्थित है अरना-जरना जलप्रपात (Arna Jharna Waterfall) राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित है।
हल्दीघाटी झरना (उदयपुर) :- हल्दीघाटी झरना, राजस्थान के उदयपुर जिले में हल्दीघाटी क्षेत्र में स्थित एक मौसमी जलप्रपात है। पास में महाराणा प्रताप संग्रहालय है।
सीता माता झरना (प्रतापगढ़) :- सीता माता झरना राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में सीता माता वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित एक खूबसूरत और पवित्र जलप्रपात है।
दिर झरना (भरतपुर) :- दिर जलप्रपात राजस्थान के भरतपुर जिले के बयाना तहसील के दर्र बरहाना गांव के पास कांकुड़ नदी पर स्थित है।
बरवाड़ा सामोद झरना (जयपुर) :- बरवाड़ा सामोद झरना जयपुर के सामोद के बालाजी मंदिर के पास स्थित है।
हथनी कुंड झरना (आथुणी कुंड) :– हथनी कुंड झरना राजस्थान के जयपुर शहर में नाहरगढ़ दुर्ग के पास स्थित है। हथनी कुंड ही जयपुर के बीच में से बहने वाली द्रव्यवती नदी का उद्गम स्थल था।
पांडुपोल जलप्रपात राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का टाइगर रिजर्व के अंदर स्थित है।
खो नागौरिया झरना (जगतपुरा झरना) राजस्थान के जयपुर जिले में स्थित है।
राजस्थान में पाराशर (Parashar) जलप्रपात (waterfall) अलवर जिले में स्थित है।
गढ़मोरा झरना (Garhmora Waterfall) राजस्थान के गंगापुर सिटी में गढ़मोरा गाँव में स्थित है
महेश्वरा झरना (maheshwara Waterfall) राजस्थान के करौली जिले में है।
राजस्थान अपने राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभ्यारण्यों के लिए प्रसिद्ध है। 23 अप्रैल 1951 को राजस्थान वन्य-पक्षी संरक्षण अधिनियम 1951 लागू किया गया। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 भारत सरकार द्वारा 9 सितंबर 1972 को लागू किया गया था। राजस्थान में इसे 1 सितंबर 1973 को लागू किया गया था।
42वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा वनों को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में डाल दिया गया।
वन्यजीव अभयारण्य
जिला
अभयारण्य घोषित
बंध बारेठा अभयारण्य
भरतपुर
1985
कुंभलगढ़ अभयारण्य
राजसमंद, पाली, उदयपुर
1971
माउंट आबू अभयारण्य
सिरोही
1960
सीतामाता अभयारण्य
प्रतापगढ़
1979
ताल छापर अभयारण्य
चूरू
1966
कैलादेवी वन्यजीव अभयारण्य
करौली, सवाईमाधोपुर
1983
फुलवारी की नाल अभयारण्य
उदयपुर
1983
टॉडगढ़ रावली अभयारण्य
पाली, राजसमंद, ब्यावर
1983
जमवारामगढ़ अभयारण्य
जयपुर
1982
राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य
कोटा, सवाईमाधोपुर, बूंदी, धौलपुर, करौली
1979
भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य
चित्तौड़गढ़
1983
बस्सी अभयारण्य
चित्तौड़गढ़
1988
जवाहर सागर अभयारण्य
कोटा, बूंदी, चित्तौड़गढ़
1975
शेरगढ़ अभयारण्य
बारां
1983
जयसमंद अभयारण्य
उदयपुर
1957
नाहरगढ़ जैविक अभयारण्य
जयपुर
1977
रामसागर अभयारण्य
धौलपुर
1955
वन विहार अभयारण्य
धौलपुर
1955
केसरबाग अभयारण्य
धौलपुर
1955
सज्जनगढ़ अभयारण्य
उदयपुर
1987
सरिस्का ‘अ’ अभयारण्य
अलवर
सवाई मानसिंह अभयारण्य
सवाईमाधोपुर
1984
सरिस्का अभयारण्य
अलवर
रामगढ़- विषधारी अभयारण्य
बूंदी
कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य (राजसमंद, पाली, उदयपुर) :- कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है और राजसमंद, उदयपुर, और पाली जिलों भी इस अभ्यारण्य में शामिल है। इसे 1971 में स्थापित किया गया था। बनास नदी का उद्गम कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में स्थित खमनौर पहाड़ियों से होता है, जो राजसमंद जिले में कुंभलगढ़ के पास स्थित है। कुंभलगढ़ किला कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के अंदर स्थित है।
बंध बारेठा अभयारण्य (भरतपुर) :- बंध बारेठा वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के भरतपुर जिले की बयाना तहसील में स्थित है। बंध बारेठा बांध का निर्माण 1866 में महाराजा जसवंत सिंह ने कुकुंद नदी पर शुरू किया था और 1897 में महाराजा राम सिंह के शासनकाल में पूरा हुआ।
माउंट आबू अभयारण्य (सिरोही) :- माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है। अरावली की सबसे ऊँची चोटी गुरु शिखर भी माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य में स्थित है। गुरु शिखर की ऊँचाई 1722 मीटर है। आबू अभयारण्य में लगभग 820 पुष्प प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह राजस्थान का एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ विभिन्न प्रकार के ऑर्किड देखे जा सकते हैं। इस अभयारण्य में जंगली गुलाब की 3 प्रजातियाँ और फेरस की 16 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
सीतामाता अभयारण्य (प्रतापगढ़) :- सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य प्रतापगढ़ जिले में स्थित है और इसका नाम सीता माता मंदिर से लिया गया है, जो अभयारण्य के भीतर स्थित है। उड़न गिलहरी (Petaurista philippensis), चौसिंगा हिरण और पेंगोलिन सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य में पाई जाती हैं। जाखम, करमोई और सीता नदियां अभयारण्य से होकर बहती हैं।
ताल छापर अभयारण्य (चूरू) :- ताल छापर वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के चुरू जिले में सुजानगढ़ तहसील के पास स्थित है। ताल छापर अभयारण्य काले हिरण (ब्लैकबक) लिए प्रसिद्ध है और अभयारण्य में घास के मैदान में पाई जाने वालीं सेवन, धामन, और मोथिया जैसी घास के लिए प्रसिद्ध हैं।
कैलादेवी वन्यजीव अभयारण्य (करौली, सवाईमाधोपुर) :- कैला देवी मंदिर के नाम पर अभयारण्य का नाम रखा गया है जो की इस अभ्यारण्य के अंदर ही स्थिति है। कैलादेवी अभयारण्य रणथंभौर टाइगर रिजर्व का बफर जोन है।
फुलवारी की नाल वन्यजीव अभयारण्य (उदयपुर) :- फुलवारी की नाल वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के उदयपुर जिले में कोटड़ा और झाड़ोल तहसीलों में स्थित है। फुलवारी की नाल अभयारण्य से मानसी, वाकल और सोम नदियों का उद्गम होता है। फुलवारी की नाल वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान का एकमात्र अभयारण्य है जहाँ काला धौंक (Anogeisus pendula) नहीं मिलता।
टॉडगढ़ रावली वन्यजीव अभयारण्य (पाली, राजसमंद, ब्यावर) :- टॉडगढ़ रावली वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के ब्यावर, पाली और राजसमंद जिलों में फैला हुआ है। इसका नाम ब्रिटिश अधिकारी कर्नल जेम्स टॉड के नाम पर पड़ा।
गोरम घाट हेरिटेज ट्रेन (गोरम घाट रेलवे ट्रैक ,मीटर गेज) टॉडगढ़ रावली वन्यजीव अभयारण्य के झरनों और सुरंगों से होकर गुजरती है। भील बेरी झरना, दुधलेश्वर महादेव मंदिर, प्रज्ञा शिखर और दिवेर स्थल इसी अभ्यारण्य में स्थित है।
जमवारामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य (जयपुर) :- जमवारामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य जयपुर में स्थित है 1982 के एशियाई खेलों के दौरान रामगढ़ बांध में रोइंग प्रतियोगिताएँ आयोजित की गई थीं और अभी रामगढ़ बांध सुख गया है इसमें पानी लाने के लिए क्रत्रिम वर्षा कराने की कोशिश की जा रही है।
राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य (कोटा, सवाईमाधोपुर, बूंदी, धौलपुर, करौली) :- यह अभयारण्य मुख्य रूप से गंभीर रूप से लुप्तप्राय घड़ियाल, लाल मुकुट वाले कछुए (रेड-क्राउन्ड रूफ टर्टल) और गंगा नदी की डॉल्फिन के संरक्षण के लिए चंबल नदी के आसपास क्षेत्र में बनाया गया था।
भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य (चित्तौड़गढ़) :- भैंसरोड़गढ़ वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है, जो चंबल और ब्राह्मणी नदियों के संगम पर फैला हुआ है।
बस्सी अभयारण्य (चित्तौड़गढ़) :- बस्सी वन्यजीव अभयारण्य चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र है, जो बस्सी कस्बे के पास स्थित है। यह अभयारण्य बस्सी किले से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है।
जवाहर सागर अभयारण्य (कोटा, बूंदी, चित्तौड़गढ़) :- जवाहर सागर वन्यजीव अभयारण्य ,राजस्थान के कोटा जिले में स्थित है, जो जवाहर सागर बांध (जिसे भीम सागर बांध के नाम से भी जाना जाता है) के आसपास फैला हुआ है।
शेरगढ़ अभयारण्य (बारां) :- शेरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य बारां जिले में स्थित है, जो अटरू तहसील के शेरगढ़ कस्बे के पास फैला हुआ है।
यह परवन नदी के किनारे स्थित है, जो अभयारण्य को दो असमान भागों में विभाजित करती है।
घोड़े की नाल के आकार की घाटी इसकी खासियत है
शेरगढ़ किला, कुंडा खोह जलप्रपात, पाड़ा खोह आकर्षण स्थान इसी अभ्यारण्य के अन्दर हैं।
शेरगढ़ अभयारण्य को सांपों की शरणस्थली कहां जाता है।
जयसमंद अभयारण्य (उदयपुर) :- जयसमंद अभयारण्य राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है। यह अभयारण्य जयसमंद झील के आसपास फैला हुआ है और जयसमंद झील, जिसे ढेबर झील के नाम से भी जाना जाता है, एशिया की दूसरी सबसे बड़ी कृत्रिम झील है
नाहरगढ़ जैविक अभयारण्य (जयपुर) :- नाहरगढ़ जैविक अभयारण्य जयपुर शहर से लगभग 12-15 किलोमीटर दूर, नाहरगढ़ किले के पास स्थित है।
केसरबाग अभयारण्य, वन विहार अभयारण्य, रामसागर अभयारण्य तीनों अभ्यारण्य राजस्थान के धौलपुर जिले में स्थित है।
सज्जनगढ़ अभयारण्य (उदयपुर) :- सज्जनगढ़ वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है। इस अभयारण्य के पास में सज्जनगढ़ पैलेस (मानसून पैलेस) पास स्थित है
सवाई मानसिंह अभयारण्य (सवाईमाधोपुर) :- सवाई मानसिंह वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित है, जो रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान का बफर जोन माना जाता है।
सरिस्का ‘अ’ अभयारण्य (अलवर) :- राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है।
राजस्थान में पांच प्रमुख बाघ अभयारण्य (टाइगर रिजर्व) हैं: रणथंभौर, सरिस्का, मुकुंदरा हिल्स, रामगढ़ विषधारी और धौलपुर-करौली, कुंभलगढ़ को छठा टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव है।
अपने किलों, महल और संस्कृति के लिए मशहूर राजस्थान शुरू से ही दुनियाभर के पर्यटकों के लिए एक खास पहचान रखता है। यही वजह है कि हर साल यहां देश-विदेश से लाखों की संख्या में पर्यटक यहां की विरासत, परंपरा, झीलों, किलों आदि को देखने के लिए आते हैं। राजस्थान के ये बाघ अभ्यारण्य अपने आप में एक अलग ही रोमांच पैदा करते हैं। इन्हें देखने के लिए मशहूर हस्तियों के साथ-साथ राजनेता भी इनका दीदार करने के लिए आते हैं। इन्हें देखने के लिए लोग इनका घंटों तक इंतजार करते हैं।
प्रोजेक्ट टाइगर – प्रोजेक्ट टाइगर भारत सरकार द्वारा 1 अप्रैल, 1973 को उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क से शुरू किया गया था। प्रोजेक्ट टाइगर का उद्देश्य देश में बाघों (पैंथेरा टाइग्रिस) की घटती आबादी को बचाना और उनके प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करना है। देश के प्रसिद्ध जीव विज्ञानी कैलाश सांखला (Kailash Sankhala) को इस कार्यक्रम का पहला निदेशक नियुक्त किया गया था, उन्हें 1992 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। भारत के “टाइगर मैन” के रूप में कैलाश सांखला को जाना जाता है।राजस्थान में यह परियोजना 5 प्रमुख बाघ अभयारण्यों के माध्यम से संचालित होती है।
बाघ अभयारण्य
बाघ अभयारण्य घोषित
बाघ अभयारण्य का क्षेत्र
रणथंभौर टाइगर रिजर्व
1973
सवाईमाधोपुर
सरिस्का टाइगर रिजर्व
1978
अलवर
मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व
2013
कोटा, बूंदी, झालावाड़
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व
2022
बूंदी, कोटा
धौलपुर-करौली टाइगर रिजर्व
2023
धौलपुर, करौली
रणथंभौर टाइगर रिजर्व (सवाई माधोपुर): यह राजस्थान का सबसे पहला और सबसे बड़ा बाघ अभयारण्य है। यह बाघों को देखने के लिए सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। दुनिया में सबसे ज्यादा फोटो खींचे जाने वाली बाघिन मछली भी यहीं पाई जाती थी। वर्ष 2016 में उसका निधन हो गया था। इस अभ्यारण्य को 1955 में सवाई माधोपुर खेल अभयारण्य के रूप में स्थापित किया गया था। रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत स्थापित होने वाला राजस्थान का पहला बाघ अभयारण्य है और 1980 राजस्थान का पहला राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। लगभग 1,334 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला यह अभ्यारण्य वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग है और तत्कालीन शाही शिकारगाह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
सरिस्का टाइगर रिजर्व (अलवर): यह राजस्थान का दूसरा बाघ अभयारण्य है, जो अपनी बाघों की आबादी के लिए जाना जाता है। शुरू में यहां राजघराने के सदस्य शिकार करने के लिए आते थे, लेकिन वर्तमान समय में यह बाघों के लिए एक संरक्षित अभ्यारण्य है। सरिस्का को वर्ष 1955 में वनस्पति और वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था और सरिस्का टाइगर रिजर्व को 1978 में प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल किया गया था। सरिस्का को 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। 2004 में बाघों की आबादी शून्य हो गई थी, जिसके बाद 2008 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बाघों को पुनर्वास के लिए रणथंभौर नेशनल पार्क से सरिस्का में स्थानांतरित किया गया और 2025 तक बाघों की संख्या लगभग 44 हो गयी है।
मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व (कोटा, बूंदी, झालावाड़, चित्तौड़गढ़): यह राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र में स्थित है और चार जिलों कोटा, बूंदी, चित्तौड़गढ़ और झालावाड़ में फैला हुआ है। यह तीन वन्यजीव अभयारण्यों दर्रा वन्यजीव अभयारण्य, जवाहर सागर वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य का कुछ हिस्सा, का एक संयोजन है और कोटा के राजाओं का पूर्व शाही शिकारगाह था।
यह रिज़र्व मगरमच्छ और घड़ियाल के लिए भी जाना जाता है।
मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व, रणथंभौर टाइगर रिज़र्व में बाघों की बढ़ती आबादी के दबाव को कम करने में भी मदद करता है, क्योंकि वहां से बाघों को यहां स्थानांतरित किया जाता है। हाल ही में यहां दुर्लभ कैराकल (एक जंगली बिल्ली) को भी देखा गया है, जो इस क्षेत्र की जैव विविधता के लिए एक शुभ संकेत है।
इसे 1955 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था।
2004 में इसे मुकुंदरा हिल्स (दर्रा) राष्ट्रीय उद्यान के रूप में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व (कोटा, बूंदी): यह राजस्थान के बूंदी जिले में स्थित है, और इसका कुछ हिस्सा भीलवाड़ा और कोटा जिले में भी आता है। यह अभयारण्य रणथंभौर बाघ अभयारण्य और मुकुंदरा हिल्स बाघ अभयारण्य के बीच एक महत्वपूर्ण गलियारे (कॉरिडोर) के रूप में कार्य करता है, जिससे बाघों की आवाजाही बनी रहती है। इसे आमतौर पर रणथंभौर बाघ अभयारण्य में पनप रहे बाघों का प्रसूति गृह माना जाता है। चंबल नदी की एक सहायक नदी मेज नदी , रामगढ़ विषधारी बाघ अभयारण्य से होकर बहती है। मई 2022 में, इसे भारत के 52वां और राजस्थान का चौथा टाइगर रिजर्व अधिसूचित किया गया।
धौलपुर-करौली टाइगर रिजर्व (धौलपुर, करौली): धौलपुर-करौली टाइगर रिजर्व, राजस्थान के धौलपुर और करौली जिलों में स्थित एक बाघ अभयारण्य है। यह भारत का 54वाँ और राजस्थान का 5वाँ टाइगर रिजर्व है, जिसे अगस्त 2023 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा अनुमोदित किया गया था। यह राजस्थान का सबसे नया और सबसे छोटा बाघ अभयारण्य है। यह मुकुंदरा से रामगढ़ तक 1253 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है धौलपुर जिले में पहले ही केशरबाग, वन विहार, रामसागर, चंबल और धौलपुर सेंचुरी को मिलाकर नया टाइगर रिजर्व बनाया गया है
इनके अलावा, कुंभलगढ़ को छठा टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव है.
राजस्थान में पांच प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान हैं, जो अपनी अनूठी पारिस्थितिकी और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं। राजस्थान के ये राष्ट्रीय उद्यान प्रकृति, वन्यजीव और इतिहास का अनूठा संगम हैं।
राजस्थान में वर्तमान में 27 वन्यजीव अभयारण्य हैं। इसके अतिरिक्त, राज्य में 5 राष्ट्रीय उद्यान, 5 जैविक उद्यान, 39 कन्वेंशन रिजर्व और 33 आखेट निषिद्ध क्षेत्र भी हैं. राजस्थान में कई प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान हैं, जिनमें से कुछ तो विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं।
राजस्थान, जिसे अक्सर ‘किंग्स की भूमि’ कहा जाता है, प्रकृति का एक अनमोल उपहार भी है। यहाँ पर शुष्क रेगिस्तान से लेकर हरे-भरे जंगल और खूबसूरत झीलें हैं, जो अनगिनत प्रजातियों के वन्यजीवों और पक्षियों का घर हैं।
राष्ट्रीय उद्यान
जिला
क्षेत्रफल
राष्ट्रीय उद्यान घोषित
रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
सवाई माधोपुर
1,334 वर्ग किलोमीटर
1980
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
भरतपुर
29 वर्ग किलोमीटर
1982
सरीस्का राष्ट्रीय उद्यान
अलवर
881 वर्ग किलोमीटर
1982
मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क
कोटा, चित्तौड़गढ़, झालावाड़ और बूंदी
200.54 वर्ग किलोमीटर
2004
राष्ट्रीय मरू उद्यान(डेजर्ट नेशनल पार्क)
जैसलमेर और बीकानेर
3162 वर्ग किलोमीटर
1980
रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान (Ranthambore National Park) – रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित है और ये बाघों के लिये विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां पर जीप सफारी के लिये देश विदेश से लोग आते हैं।
राजस्थान में बाघों की सबसे अधिक संख्या रणथंभौर टाइगर रिजर्व में पाई जाती है। यह राजस्थान का सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध टाइगर रिजर्व है।
रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत स्थापित होने वाला राजस्थान का पहला बाघ अभयारण्य है और 1980 राजस्थान का पहला राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। जबकि इसको अभयारण्य का दर्जा 1955 में ही मिल गया था। राजस्थान के सभी अभयारण्य में से रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में सबसे ज्यादा वन्यजीव पाये जाते हैं।
त्रिनेत्र गणेश मंदिर सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर में स्थित है। यह मंदिर रणथंभौर किले के अंदर स्थित है यहां भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान हैं, जिनके साथ उनकी पत्नियां रिद्धि और सिद्धि तथा पुत्र शुभ और लाभ भी हैं त्रिनेत्र गणेश मंदिर (रणत भंवर गणेश मंदिर) का निर्माण हम्मीरदेव चौहान ने करवाया था।
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल रणथंभौर किला रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के कोर क्षेत्र में स्थित है।
कुत्ता की छतरी सवाई माधोपुर में रणथंभौर दुर्ग के पास स्थित है। कुकुर घाटी राजस्थान में रणथंभौर दुर्ग के पास स्थित है। यह एक ऐतिहासिक स्मारक है जो एक राजघराने ने कुत्ते की याद में बनाया गया था।
पदम तालाब रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यही वह झील है जहाँ राजकुमारी पद्मावती स्नान करती थीं और यही वह जगह भी है जहाँ उन्होंने सती होने का संकल्प लिया था। इसी पदम तालाब में रानी रंगादेवी और उनकी बेटी देवलदे ने 1301 में रणथंभौर में जल जौहर किया था
1301 में अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंभौर पर आक्रमण किया, हम्मीर देव चौहान युद्ध में मारे गए। अपनी रक्षा के लिए, रानी रंगादेवी ने जल जौहर करने का फैसला किया।
1301 में रणथंभौर में हुये जौहर को राजस्थान के इतिहास में पहला और एकमात्र जल जौहर को माना जाता है।
जोगी महल पदम तालाब के किनारे रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है।
2. सरिस्का टाइगर रिजर्व (Sariska Tiger Reserve) – सरिस्का टाइगर रिजर्व राजस्थान में अलवर जिले में स्थित हैसरिस्का टाइगर रिजर्व को 1955 में वन्यजीव अभयारण्य के रूप में स्थापित और सरिस्का टाइगर रिजर्व को 1978 में प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल किया गया था। सरिस्का को 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
राजस्थान का सबसे छोटा टाइगर रिजर्व सरिस्का टाइगर रिजर्व है।
सरिस्का टाइगर रिजर्व के अंदर पांडुपोल हनुमान मंदिर, भानगढ़ का किला और कांकलवाड़ी किला जैसे ऐतिहासिक महत्व रखने वाले स्थल हैं।
2004 में बाघों की आबादी शून्य हो गई थी, जिसके बाद 2008 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बाघों को पुनर्वास के लिए रणथंभौर नेशनल पार्क से सरिस्का में स्थानांतरित किया गया और 2023 तक बाघों की संख्या लगभग 28 हो गयी है।
3. केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo Ghana National Park) – केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित है। केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान को पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है। भारत के बर्ड मैन सलीम अली के प्रयासों से , 1956 में भरतपुर पक्षी अभयारण्य बना था।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को 1982 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्राप्त हुआ।
1985 में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को 1981 में रामसर सूची में शामिल किया गया। इसका नाम केवलादेव (भगवान शिव) के मंदिर के नाम पर रखा गया है, जो उद्यान के अंदर स्थित है।
केवलादेव घाना पक्षी अभयारण्य प्रवासी साइबेरियन सारसों (क्रेन) के लिए प्रसिद्ध है ये पक्षी प्रजनन और भोजन के लिए यहां आते हैं। केवलादेव में विभिन्न प्रकार के प्रवासी और निवासी पक्षी जैसे साइबेरियन क्रेन, पेलिकन, बगुला, सारस, किंगफिशर और कई अन्य पाये जाते हैं
अजान बांध से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पानी की सप्लाई की जाती है।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पानी गंभीर नदी और बाणगंगा नदी द्वारा आता है।
पांचना बांध (करौली), गंभीर नदी पर बना है और पांचना बांध भर जाने पर पानी गंभीर नदी मे छोड़ा जाता है और ये पानी अजान बांध में जाता है।
अजान बांध (भरतपुर), केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में गंभीर नदी पर स्थित है, इसका निर्माण राजा सूरजमल ने करवाया था
4. मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व (Mukundra Hills Tiger Reserve) – मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान कोटा, बूंदी, झालावाड़ और चित्तौड़गढ़ जिलों में फैला हुआ है और इसे दर्रा राष्ट्रीय उद्यान के नाम से भी जाना जाता है।
1955 में इसे वन्यजीव अभयारण्य (दर्रा वन्यजीव अभयारण्य) घोषित किया गया।
मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान दो समानांतर पहाड़ियों, मुकुंदरा और गागरोला के बीच एक घाटी में बसा है, जो विंध्य पर्वत श्रृंखला का हिस्सा हैं।
2004 में मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क को राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया था।
2013 में मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व बनाया गया था,जिससे यह राजस्थान का तीसरा टाइगर रिजर्व बना।
मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क चंबल, काली, आहू और रमजान नदियों से घिरा हुआ है।
गागरोन दुर्ग राजस्थान के झालावाड़ जिले में काली, सिंध और आहु नदी के संगम पर बना है। यह एक जल दुर्ग है।
गरडिया महादेव मंदिर कोटा में है, जो चंबल नदी के किनारे पर स्थित है।
यह भी बाघों और अन्य वन्यजीवों का घर है। यहां बाघ, तेंदुआ, भालू, हिरण की प्रजातियाँ और विभिन्न पक्षी पाये जाते हैं।
5. डेजर्ट नेशनल पार्क मरू राष्ट्रीय उद्यान) – डेजर्ट नेशनल पार्क राजस्थान के जैसलमेर और बीकानेर जिले मेंं फेला हुआ है और इसे राष्ट्रीय मरू उद्यान के नाम से भी जाना जाता है।
राजस्थान का सबसे बड़ा अभ्यारण्य राष्ट्रीय मरु उद्यान (National Desert Park) है। यह 3162 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह उद्यान ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण) के संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण है अलावा, यह कई अन्य पक्षियों और जीवों का भी घर है, जैसे कि सफेद पीठ वाले गिद्ध ,चिंकारा और रेगिस्तानी लोमड़ी
मरु राष्ट्रीय उद्यान को 1980 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित किया गया था।
अकाल वुड फॉसिल पार्क राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित है। अकाल वुड फॉसिल पार्क मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान का हिस्सा है और इसे राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक घोषित किया गया है
जैसलमेर के पास स्थित डेजर्ट नेशनल पार्क थार रेगिस्तान के अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है। यह शुष्क और बंजर भूमि में रहने वाले वन्यजीवों का घर है। यहां आप ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण) को देख सकते हैं।
राजस्थान के राष्ट्रीय उद्यान सिर्फ वन्यजीवों को देखने का स्थान नहीं हैं, बल्कि ये प्रकृति के साथ जुड़ने और भारत की अविश्वसनीय जैव विविधता को समझने का एक शानदार अवसर भी प्रदान करते हैं। वन्यजीवों को देखने के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे अच्छा माना जाता है, जब मौसम सुहावना होता है।