1922 में सीकर ठिकाने के ठिकानेदार माधोसिंह की मृत्यु के बाद उनके भतीजे राव राजा कल्याण सिंह ने गद्दी संभाली और उन्होंने करों में अत्यधिक वृद्धि कर दी।इसके विरोध में किसानो ने कर देना बंद कर दिया ओर यही से ये आंदोलन शुरू हो गया।इस आंदोलन के कुछ अन्य कारण भी माने जाते है।
शेखावाटी किसान आंदोलन के कारण –
- भू-राजस्व कर में वृद्धि
- ज़रीब की लंबाई आधी कर दी गई थी ( 165 फीट से 82.5 फ़ीट )
- असिंचित भूमि पर भी सिंचित भूमि जितना कर लिया जाता था।
- अकाल के समय कोई रियायत नहीं दी जाती थी।
- लाता – कुंता ( लुटेरी व्यवस्था )
- इजाफा कर लगा दिया गया था ( प्रति बीघा 2 आना नया कर )
- ज़कात कर – जब कृषि सामान को एक जगह से दूसरी जगह क्रय विक्रय ले जाने पर लगने वाला कर
- किसानो के साथ जातीय भेदभाव होता था।
- बेग़ार 1918 में मास्टर प्यारेलाल गुप्ता ने चिडावा , झुँझुनू में अमर सेवा समिति का गठन किया। ये समिति इस छेत्र में जन जाग्रति का काम करती थी।
शेखावाटी किसान आंदोलन का प्रारंभ सीकर ठिकाने से माना जाता है रामनारायण चौधरी ने तरुण राजस्थान समाचार पत्र में शेखावाटी किसान आंदोलन के समर्थन से क्रांतिकारी लेख लिखकर जागृति उत्पन्न कि थी। रामनारायण चौधरी ने लंदन से प्रकाशित डेलीहेराल्ड नामक पत्र में भी शेखावाटी किसानों के किसानों की समस्याओं के समर्थन में लेख लिखे थे। रामनारायण चौधरी के प्रयासों से 1925 मे हाउस ऑफ कामन्स के सदस्य पेट्रिक लॉरेंस ने सीकर के किसानों के मामले में प्रश्न पूछा था। ये पहला किसान आंदोलन था जिसकी चर्चा ब्रिटिश संसद में हुई थी।
रामनारायण चौधरी ओर हरी ब्रह्मचारी से साथ तरुण राजस्थान पत्रिका पर भी शेखावटी में प्रतिबंध लगा दिया गया था।
1931 में भरतपुर के किसान नेता ठाकुर देशराज ने राजस्थान जाट क्षेत्रीय महासभा का गठन किया।
1932 में झुँझुनू में अखिल भारतीय जाट महासभा का अधिवेशन हुआ , जिसने शेखावटी किसान आंदोलन का समर्थन किया।
1933 में राजस्थान जाट क्षेत्रीय महासभा ने पलथाना, सीकर में अधिवेशन बुलाया ओर निर्णय लिया गया की 1934 को बसंत पंचमी को यज्ञ का आयोजन किया जाएगे, जिसमें आंदोलन में आगे बढ़ाने की रणनीति बनाई जायेगी।
20 जनवरी 1934 को जाट प्रजापति माहायज्ञ ,बसंत पंचमी को ठाकुर देशराज ने आयोजित करवाया। यज्ञ के बाद में यज्ञमान कुंवर हुकुम सिंह के लिये हाथी की सवारी निकाली जानी थीं लेकिन ठिकानेदार राव राजा कल्याण सिंह हाथी सवारी निकालने नहीं देता है जयपुर के राजा के आदेश के बाद हाथी की सवारी निकालने देता है।
सीहोट के सामंत मान सिंह ने सोतिया का बाँस गाँव की महिलाओं के साथ दूरव्यवहार किया। इसके ख़िलाफ़ 25 अप्रैल 1934 में कतराथल, सीकर में विशाल महिला सम्मेलन हुआ। कतराथल सम्मेलन की अध्यक्षता किशोरी देवी ने की ओर उत्तमा देवी जोरदार भाषण दिया। इस सम्मेलन में 10,000 महिलाओ ने भाग लिया था।
21 जून 1934 , जयसिंहपूरा हत्याकांड – सामंत के भाई ने किसानो के ऊपर गोली चला देता है। ये पहली घटना थी जिसमें हत्यारो को सजा हुई थीं।
25 अप्रैल 1935 में कुंदन गाँव (सीकर) की महिला धापी देवी ने अंग्रेज अधिकार कैप्टन वेब को कर देने से मना देती है जिसे कैप्टन वेब के कहने पर सिपाही गोली चला देते है। जिसमें चार किसान तुलसीराम जी, चेतराम जी, टिकूराम जी , आसाराम जी मौत हो जाती है इसी को कुंदन हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।
15 मार्च 1945 में किसान नेता सिर छोटू राम चौधरी एवं रतन सिंह के सहयोग से किसानों ओर सावंत के बीच समझोता हो जाता है। ओर आन्दोलन समाप्त हो गया।
समझोते को पूरी तरह से नही माना गया, इसलिये ये आन्दोलन फिर से शुरू हो गया। ये आन्दोलन हीरालाल शास्त्री के सहयोग से 1947 में समाप्त हो जाता है।