सन 1922 में पंडित नैनू राम शर्मा के नेतृत्व में बूंदी के किसानो ने मुख्यत “राज्य प्रशासन” के विरूद्ध बूंदी किसान आंदोलन किया था, जबकि मेवाड़ में किसानों ने अधिकांश आंदोलन जागीर व्यवस्था के विरोध में किया था। बूंदी किसान आंदोलन में स्त्रियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और महिलाओं का नेतृत्व अंजना देवी चौधरी ने किया था।
बूंदी किसान आंदोलन के कारण –
1. 25 प्रकार के कर
2. अधिक भू-राजस्व
3. लाता – कुंता
4. बेगार
5. युद्ध कर
6. भृष्टाचार
बूंदी के दक्षिण पश्चिम में मेवाड़ राज्य को स्पर्श करने वाला क्षेत्र भी बरड के नाम से जाना जाता है। पथरीला व कठोर होने के कारण इस क्षेत्र बरड़ के नाम से जाता है। इसलिए बूँदी किसान आंदोलन को बरड़ किसान आंदोलन भी कहा जाता है।भंवरलाल सोनी के नेतृत्व मे बरड़ किसान आंदोलन प्रारंभ किया था।बरड क्षेत्र में सर्वप्रथम अगस्त 1920 में साधु सीताराम दास द्वारा डाबी में डाबी किसान पंचायत की स्थापना की और राजपुरा के हरला भड़क को किसान पंचायत का पहला अध्यक्ष बनाया गया।
राजस्थान सेवा संघ के प्रोत्साहन के परिणाम स्वरुप बूंदी के किसानों ने सर्वप्रथम अप्रैल 1922 में बूंदी सरकार के विरुद्ध पंडित नैनू राम शर्मा के नेतृत्व मे बूंदी किसान आंदोलन प्रारंभ किया। किसानों ने निर्णय लिया कि खादी को बढ़ावा दिया जायेगा, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जायेगा, शराब बंदी की जायेगी, लगान नहीं दिया जायेगा, जंगल वाली सभी वस्तुओं पर कर नहीं दिया जायेगा, राजकीय चारागाह भूमि पर कब्जा कर लिया जायेगा, सरकारी न्यायालय का बहिष्कार किया जायेगा और 4 किसान पंचायत डाबी, बरड़, गरदढ़ा, बरूंघन स्थापित की जायेगी।
2 अप्रेल, 1923 ई. में बूंदी के डाबी नामक स्थान पर किसानों का सम्मेलन हुआ, जहाँ पर पुलिस अधीक्षक इकराम हुसैन ने गोली चला दी। जिससे नानक जी भील व देवीलाल गुर्जर घटना स्थल पर ही शहीद हो गये। नानक जी भील झण्डा गीत गा रहे थे ज़ब उनको गोली लगी थी। राजस्थान सेवा संघ द्वारा इस घटना की जांच के लिए रामनारायण चौधरी और सत्याभगत को भेजा गया था और रिपोर्ट को समाचार पत्रों में छापा। तरूण राजस्थान, नवीन राजस्थान (अजमेर) , राजस्थान केसरी (वर्धा), प्रताप (कानपुर) आदि समाचार-पत्रों में आंदोलनकारियों पर किये जा रहे जुल्मों का व्यापक रुप से प्रचार हुआ। बूँदी राज्य की सभी जगह से आलोचना होने लगी, जिससे बूंदी राज्य के राजा ने तीन लोगो के नेतृत्व में पृथ्वी सिंह, रामप्रताप एवं भैरोंलाल, जांच आयोग का गठन किया। इसके बाद भी किसानों को कोई रियायत नहीं मिली। पंडित नैनू राम शर्मा, नारायण सैनी, भंवरलाल सोनी को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। नेतृत्व विहीन होने के कारण यह आंदोलन धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लग गयाऔर 1927 में समाप्त हो जाता है।
माणिक्यलाल वर्मा ने नानक भील की स्मृति में ‘ अर्जी ‘ शीर्षक से एक गीत लिखा जो आंदोलनकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। वर्मा जी ने पंछीड़ा शीर्षक से एक गीत बिजोलिया किसान आंदोलन के लिए भी लिखा था।
बूँदी किसान आंदोलन के दौरान महिलाओं के साथ हुई अत्याचार पर राजस्थान सेवा संघ ने ‘बूंदी राज्य में महिलाओं पर अत्याचार’ नामक पुस्तिका प्रकाशित की थी।
1936 में लगान बढ़ाना, चराई कर, चरागहा भूमि पर राज्य का नियंत्रण, पशु गणना(पशुओं पर कर लगाने की संभावना), युद्ध कर आदि के कारण किसानों ने फिर से आंदोलन शुरू कर दिया। इन सभी कारणों से 5 अक्टूबर 1936 को हिंडोली में हुडेश्वर महादेव के मंदिर पर गुर्जर और मीणा किसानों की एक सभा हुई, जिसमें 90 गांवों के लगभग 500 व्यक्ति सम्मिलित हुए थे। किसानों ने राजा के पास अपनी मांगे भेजी और कालांतर में कुछ मांगे मान ली गई और यह आंदोलन 1945 में समाप्त हो गया।
डाबी नामक स्थान वर्तमान में बूंदी जिले में स्थित है ।इस आंदोलन में गुर्जर जाति के किसानों ने सबसे ज्यादा भाग लिया था।
बूंदी किसान आंदोलन का स्थानीय नेतृत्व स्वामी नित्यानंद ने किया था।