निमूचाणा किसान आन्दोलन (1924 – 25)
अलवर रियासत में 1924 में भू बंदोबस्त हुआ। इसमें लगान 40 फीसदी बढ़ा दिया गया। साथ ही राजपूत ओर ब्राह्मण किसानों की रियासती जमीन खत्म कर दी। इतना भारी लगान किसानों की कमर तोड़ने वाला था। नीमूचाणा में किसान गोविंद सिंह और माधो सिंह ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। 1925 में लगान के विरोध में नीमूचाणा में करीब 200 किसानों ने सभा कर पुकार नाम की पुस्तिका का प्रकाशन किया, जिसमें किसानों की समस्याएं उठाई गईं। ये पुकार पुस्तिका जनवरी 1925 में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के दिल्ली अधिवेशन में दिखाई गयी। अलवर के राजा जयसिंह के सामने अपनी माँगे रखी।
किसानो की माँगे –
- भू-राजस्व कर कम किया जाये
- चराई कर कम किये जाये
- जंगली सूवर को मारने की इजाज़त हो
- बेगार नही ली जाये
- माफ़ी की भूमि को ज़ब्त नही की जाए 7 मई 125 अलवर के राजा जयसिंह ने किसानो से मिलने जनरल रामभद्र ओझा को भेजा। लेकिन कोई समाधान नही निकला।
14 मई 1925 को नीमूचाणा में किसानों की बड़ी सभा बुलाई गई। अलवर नरेश ने छाजू सिंह के नेतृत्व में अपनी मिलिट्री भेज सभा पर फायरिंग कराई। इसमें करीब डेढ़ 156 किसानों की मौत हुई ओर 39 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया जाता है। उनके गांव जला दिए गए। इस वीभत्स नरसंहार की पूरे देश में जलियांवाला बाग हत्याकांड से तुलना की गई। गाँधी जी ने अपने समाचार पत्र यंग इंडिया में जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी भयानक बताया ओर दोहरी डायर शाही कहा था।
तरुण राजस्थान में नीमूचाणा घटना के बारे में सचित्र छापा। राजस्थान सेवा संग ने जाँच के लिये कन्हैयालाल कलन्त्री, हरीभाई किंक़र ओर लादूराम जोशी को भेजा। राजा जयसिंह ने भी जाँच आयोग बनाया था जिसमें छाजु सिंह, रामचरन, सुल्तान सिंह थे।
वीर अर्जुन अखबार ने कलकत्ता संस्करण में इसके बारे में छापा। घटना अलवर के आजादी के आंदोलन की चिंगारी बन गई। रियासत को झुकना पड़ा और किसानों को मुआवजा तथा पुरानी दर से लगान की राहत मिली।
मेव किसान आंदोलन mev kisan andolan (1932 – 34)
- सन् 1923-24 ई. मे लागू किया गया भू-राजस्व बंदोबस्त मेव किसानों में असंतोष उत्पन्न करने वाला सिद्ध हुआ ।
- 1932 ई. में मेव किसान आंदोलन मेवात ( अलवर, भरतपुर) में मोहम्मद अली के नेतृत्व में हुआ ।
- मेव किसान आंदोलन की समाप्ति 1934 ई. में हुई । क्योंकि ये आंदोलन धार्मिक ओर हिंसक हो गया था।
- अलवर के महाराजा जयसिंह को देश निकाला दे दिया गया ।
- 26 फरवरी 1944 ई. को अलवर में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया ।
- 5 फरवरी 1947 ई को भरतपुर में प्रजा परिषद् के नेतृत्व में बेगार विरोधी दिवस मनाया गया ।