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राजस्थानी लोकगीत – Rajasthani folk songs

राजस्थान के लोक गीत राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये गीत जनजीवन, इतिहास, भूगोल, त्योहारों, विवाह, विरह, कृषि, सामाजिक जीवन और धार्मिक अवसरों से जुड़े होते हैं।राजस्थान के लोकगीत यहाँ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो यहाँ के लोगों के जीवन, प्रेम, विरह, उल्लास और परंपराओं को दर्शाते हैं।

  • हमारी संस्कृति लोक गीतों के कन्धों पर चढ़कर आई है – रामचंद्र शुक्ल
  • लोकगीत हमारी संस्कृति के रक्षक / पहरेदार है- महात्मा गाँधी
  • लोकगीत हमारी संस्कृति में सुखद संदेश लाने की कला है – रविन्द्रनाथ टैगोर
  • लोकगीत जन समुदाय की आत्मा है – जवाहर लाल नेहरू
  • लोकगीत किसी संस्कृति के मुँह बोले चित्र होते हैं – देवेन्द्र सत्यार्थी

केसरिया बालम (Kesariya Balam) :- केसरिया बालम राजस्थान का राज्य गीत है, जो अतिथि सत्कार और प्रेम का प्रतीक है। इसे मांड गायन शैली में अल्ला जिलाई बाई जैसी विश्वविख्यात कलाकारों ने अमर कर दिया है। अल्लाह जिलाई बाई ने बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के दरबार में केसरिया बालम गीत को गाया था। केसरिया बालम को सर्वप्रथम मांगी बाई ने गाया था, जबकि इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि अल्लाह जिलाई बाई ने दिलाई थी। यह एक विरह गीत है जिसमें पत्नी अपने परदेस गए पति को देश आने का आह्वान करती है। केसरिया बालम, मूल रूप से ढोला-मारू की प्रेम कहानी से प्रेरित है, जिसमें प्रेमिका (मारू) अपने प्रेमी (ढोला) को पुकारती है। यह गीत योद्धाओं की बहादुरी और घर वापसी के सम्मान को भी दर्शाता है।

पधारो म्हारे देश :- पधारो म्हारे देश (Padharo Mhare Des) राजस्थान पर्यटन विभाग का पारंपरिक गीत या आदर्श वाक्य है। गीत मेहमानों का स्वागत करने के लिए गाया जाता है, जो राजस्थान की आतिथ्य सत्कार की परंपरा को दर्शाता है। केसरिया बालम पधारो आओ नी पधारो जी म्हारे देश, मांड गायिका मांगी बाई द्वारा गाया गया है।

चिरमी (Chirmi) :- चिरमी गीत, एक विवाहित महिला द्वारा अपने मायके (माता-पिता के घर) से भाई या पिता के आने की प्रतीक्षा में गाया जाता है। यह गीत एक नवविवाहित दुल्हन की भावनाओं को व्यक्त करता है जो ससुराल में अपने परिवार के आने का इंतजार करती है। चिरमी एक पौधे का प्रतीक है

चिरजा :- राजस्थान में लोग देवियों के भजन को चिरजा कहते है।

मूमल:- जैसलमेर क्षेत्र का मूमल गीत लोद्रवा की राजकुमारी मूमल की सुंदरता का वर्णन करता है। मूमल गीत अमरकोट के राणा महेंद्र और जैसलमेर के लोद्रवा की एक राजकुमारी मूमल की प्रेम कहानी पर आधारित है। मूमल गीत राजस्थानी लोकगीत है जो एक युवा लड़की की सुंदरता का वर्णन करता है

हिचकी :- हिचकी गीत अलवर-मेवात क्षेत्र का प्रसिद्ध गीत हैं। हिचकी गीत प्रियतम को याद (हिचकी आने) करते हुए गाया जाता है।

ढोला-मारू :- ढोला और मारू की प्रेम कहानी पर आधारित लोग गीत हैं। यह गीत सिरोही, जैसलमेर और जोधपुर क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है। नरवर के राजकुमार ढोला और पूगल (राजस्थान) की राजकुमारी मारू की प्रेम कहानी पर आधारित एक लोकगीत है। ‘ढोला मारू रा दूहा’ की रचना कवि कल्लोल ने की थी।

घुड़ला :- घुड़ला एक मिट्टी का घड़ा होता है, जिसे महिलाएं कुम्हार के घर से खरीदती हैं और फिर उसमें एक छेद करके उसमें एक जला हुआ दीपक रख देती हैं और उसे अपने सिर पर रखकर मोहल्ले में घूमती हुई घुड़ला गीत गाती हैं। यह त्यौहार मुख्य रूप से मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में शीतला सप्तमी से चैत्र शुक्ल तृतीया तक मनाया जाता है। उदाहरण: “घुड़लो घूमेला जी घूमेला”।

गोरबंद (Gorband) :- गोरबंद गीत ऊँट का श्रृंगार करते समय गाया जाता है। ऊँट के गले के आभूषण को भी ‘गोरबंद’ कहते हैं। यह मारवाड़ क्षेत्र में प्रसिद्ध है।

कुरजाँ (Kurja) :- यह एक विरह गीत है जिसमें विरहिणी स्त्री कुरजाँ (एक पक्षी) के माध्यम से अपने परदेसी पति को संदेश भेजती है। यह मुख्य रूप से मारवाड़ क्षेत्र में गाया जाता है।

मोरिया :- मोरिया गीत उस लड़की द्वारा गाया जाता है जिसकी सगाई हो गई है लेकिन अभी तक शादी नहीं हुई है। इसमें एक महिला की अपने प्रियतम के लिए प्रतीक्षा, विरह और उम्मीद की भावनाएं व्यक्त की जाती हैं।

झोरावा (Jorawa) :- झोरावा गीत एक महिला द्वारा तब गाया जाता है जब उसका पति या प्रेमी परदेश गया हो और वह उसके वियोग में हो। यह जैसलमेर क्षेत्र का प्रसिद्ध विरह गीत है।

जीरा लोकगीत :- जीरे की फसल में अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है इसलिए पत्नी अपने पति को जीरा की फसल नहीं बोने के लिए जीरा गीत गाती है यह गीत आमतौर पर जीरा उगाने से होने वाली परेशानियों और थकावट को दर्शाता है। उदाहरण “ओ जीरो जीव रो बैरी रे, मत बाओ म्हारा परण्या जीरो” है।

सुवटियो (Suvatiyo) :- यह भील स्त्री द्वारा अपने परदेस गए पति को संदेश भेजने के लिए गाया जाने वाला गीत है। यह मुख्य रूप से मेवाड़ क्षेत्र में प्रसिद्ध है।

हमसीढो :- हमसीढो उत्तरी मेवाड़ का एक प्रसिद्ध लोकगीत है जो भील समुदाय द्वारा गाया जाता है, जिसमें पुरुष और महिलाएं एक साथ मिलकर गीत गाते हैं।

घूमर (Ghoomar) :- घूमर राजस्थान का पारंपरिक लोक गीत और लोक नृत्य है और घूमर नृत्य मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा शादियों, त्योहारों (जैसे गणगौर, तीज, होली) और वधू के आगमन जैसे शुभ अवसरों पर किया जाता है। घूमर भील जनजाति का एक पारंपरिक लोक नृत्य है जो देवी सरस्वती की पूजा के लिए किया जाता है। घूमर गीत राजस्थान राज्य नृत्य घूमर के साथ गाया जाता है।

हरजस (Harjas) :– ये सगुण भक्ति के लोकगीत हैं जो भगवान राम और कृष्ण को संबोधित करके गाए जाते हैं। ये वृद्ध व्यक्ति की मृत्यु पर (जिसे ‘हरि का हिंडोला’ कहते हैं) भी गाए जाते हैं।

लांगुरिया (Languriya) :- यह कैला देवी (करौली) के भक्तों द्वारा मेले के दौरान गाया जाने वाला भक्ति गीत है।

सूपना (Supna) :- सूपना गीत में एक महिला अपने प्रेमी को सपने में देखकर खुशी और उदासी की भावनाएं व्यक्त करती है। यह एक प्रेम गीत है जो अक्सर विवाह और प्रेम संबंधों के संदर्भ में गाया जाता है।

कांगसियो (Kangasiyo) :- कंघे (comb) से संबंधित श्रृंगारिक गीत।

बिछुड़ो (Bichhudo) :- बिछुड़ो हाड़ौती क्षेत्र का लोकगीत, जिसमें बिच्छू के काटने के बाद पत्नी अपने पति को दूसरी शादी करने के लिए कहती है।

बना-बानी :- विवाह के अवसर पर दूल्हा (बना) और दुल्हन (बानी) की प्रशंसा में गाया जाता है। महिलाएं अलग-अलग गीत गाती हैं।

घोड़ी :- बारात निकलते समय दूल्हे की घोड़ी की प्रशंसा में गाया जाता है। उदाहरण: “घोड़ी म्हारी चंद्रमुखी, इंद्रलोक सुं आई ओ राज”।

पावणा :- पावणा गीत ससुराल में दामाद के स्वागत में भोजन परोसते समय गाया जाता है। उदाहरण: “एक बार आओ जी जवाई जी पावणा”।

ओल्यूं (या ओलु): – ओल्यूं गीत दुल्हन की विदाई के समय दुल्हन पक्ष द्वारा गाया जाने वाला भावुक गीत, प्रिय की याद में।

कोयलडी :- कोयलडी गीत दुल्हन की विदाई के समय महिलाओं द्वारा गाया जाता है।

जलो/जलाल :– जलो गीत, बारात का डेरा देखने जाते समय वधू पक्ष की महिलाओं द्वारा गाया जाता है। उदाहरण: “म्हे तो थारा डेरा निरखण आई ओ”।

कामण/कामन :- दूल्हे को जादू-टोने से बचाने के लिए कामण गीत गाए जाते हैं।

सीठणे :- विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले गाली गीत को सीठणे कहते हैं। विवाह में हंसी-ठिठोली में गाली गीत, वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष पर व्यंग्य।

बिंदोला :- विवाह से पहले दूल्हे के रिश्तेदारों द्वारा गाया जाता है।

बधावा :- पुत्र या पुत्री के विवाह या शुभ अवसर पर गाए जाने वाले मांगलिक गीतों को बधावा कहते हैं।

काजलियो :- भाभी द्वारा दूल्हे की आंखों में काजल लगाते समय गाया जाता है।

पीठी :- वर-वधू को उबटन/पीठी लगाते समय गाया जाता है।

दुपट्टा :- शादी के अवसर पर दूल्हे की सालियों द्वारा गाया जाने वाला गीत की दुपट्टा गीत कहते हैं

पीपली :- वर्षा ऋतु में पत्नी द्वारा पति को घर बुलाने वाले गीतों को पीपली गीत कहते हैं। यह मारवाड़, शेखावाटी और बीकानेर क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के समय गाया जाता है। पीपली एक विरह गीत हैं।

कागा :- एक पत्नी कौवे से अपने पति को संदेश पहुंचाने के लिये आगन में बैठे कौवे को उड़ने का आग्रह करती है, ताकि वे विदेश से लौट आएं। कौवे को देखकर अपने पति के लौटने की खुशी और उम्मीद जताती है।। उदाहरण: “उड़-उड़ रे म्हारा काळा रे कागला”।

पपैयो :- श्रावण में पपैया पक्षी के माध्यम से प्रियतम से मिलने की प्रार्थना। दाम्पत्य प्रेम का आदर्श।

लावणी :- नायक द्वारा नायिका को बुलाने का श्रृंगारिक या भक्ति गीत। उदाहरण: मोरध्वज, भरथरी।

गणगौर लोकगीत :- गणगौर त्योहार पर देवी पार्वती को समर्पित। उदाहरण: “खेलन द्यो गणगौर, भँवर म्हानै खेलन द्यो गणगौर”।

रातीजगा :- शुभ अवसरों पर रात भर भजन, देवी-देवताओं की आराधना में गाये जाते हैं उन्हें रातीजगा कहा जाता है।

हींडो: हींडो गीत श्रावण में झूला झूलते समय गाया जाता है। उदाहरण: “सावणियै रौ हींडौ रे बाँधन जाय”।

रसिया :- भरतपुर धौलपुर क्षेत्र के लोकगीत को रसिया कहते हैं

तेजा गीत :- किसान खेत की बुआई करते समय तेजाजी की भक्ति में तेजा गीत गाता है

मायरा/भात गीत :- शादी में मामा द्वारा भात/मायरा बरते समय महिलाओं द्वारा भात गीत गाया जाता है।

पछिंडा गीत :- पछीड़ा लोकगीत हाड़ौती और ढूंढाड़ क्षेत्र में मेलों में गाया जाने वाला प्रसिद्ध लोकगीत है

लसकरिया गीत :- लसकरिया गीत शेखावाटी में कच्ची घोड़ी नृत्य करते समय गाया जाता है।

इंडोनी :- इंडोनी लोकगीत महिलाओं द्वारा कुएं से पानी भरने जाते समय गाया जाता है।

पणिहारी :- रेगिस्तानी इलाकों में पानी की कमी के दौरान पानी की प्रशंसा में यह गीत गाया जाता है।

धूसो लोकगीत :- “धूसो बाजे रे राठौड़ा मारवाड़ में” राजस्थानी लोकगीत है जो मारवाड़ और जोधपुर राजघराने की वीरता और गौरव का वर्णन करता है। इस गीत का अर्थ है ‘ढोल बज रहे हैं राठौड़ मारवाड़ में’। धूसो लोकगीत में अजित सिंह की धाय माँ गौरा धाय का वर्णन किया जाता है

By Rohit

My name is Rohit and I am from Rajasthan. I have done B.Tech from National Institute of Technology Hamirpur. I am selected in Rajasthan JE, SSS JE, DFCCIL, Coal India, HPCL etc.

I am also manage instagram id – Rajasthan1GK4 and Twitter account (X account) – rajasthan1gk4

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