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कोटा का प्रसिद्ध दशहरा मेला

राजस्थान में बहुत सारे मेले लगते हैं जिसकी वजह से राजस्थान को रंगीलो प्रदेश भी कहा जाता हैं और राजस्थान के कोटा का दशहरा मेला पूरी दुनियां में अपनी एक अलग पहचान रखता है।

कोटा दशहरा मेला राजस्थान का सबसे पुराना दशहरा मेला है.

कोटा दशहरा मेला राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध दशहरा मेला है.

बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में दशहरा के दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। आमतौर पर इन पुतलों में पटाखे भरे होते हैं। भगवान राम की पोशाक पहने एक छोटे बच्चे को रावण पर अग्नि बाण चलाने के लिए कहा जाता है और फिर उस विशाल आकृति को जला दिया जाता है। ग्रामीण यहाँ बहुरंगी कपड़े पहनकर भगवान राम की पूजा करने और रावण पर उनकी जीत का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं।

चंबल नदी के किनारे बसा कोटा कई त्यौहार मनाता है। लेकिन दशहरा का त्यौहार एक अलग ही आकर्षण रखता है। इस त्यौहार के दौरान पूरा इलाका एक आकर्षक नज़ारा पेश करता है। यह त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन कोटा दशहरा काफी अनोखा है कोटा का दशहरा मेला राजस्थान में ही नहीं पूरे भारत में प्रसिद्ध है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, दशहरा को प्रतिवर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है।

इस दशहरा मेले का इतिहास 1723 ई. से शुरू होता है। इतिहास बताता है कि दशहरा उत्सव की शुरुआत महाराज दुर्जनशाल सिंह हाड़ा के शासनकाल में हुई थी।विजयादशमी के दिन, तत्कालीन राजपरिवार का कोई व्यक्ति रावण के पुतले पर तीर चलाता है, जिसमें राम के हाथों रावण का वध दर्शाया जाता है। उस समय विभिन्न मंदिरों में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम समारोह का मुख्य आयोजन होते थे। इसके अलावा, इस मेले में भगवान शिव की पूजा-अर्चना भी की जाती है। लेकिन इस दशहरा के धार्मिक आयोजन को अधिक आकर्षक और रंगीन बनाने का श्रेय महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय (1889-1940 ई.) को जाता है। मेले की शुरुआत 1892 से माना जाता है और उस समय कोटा के राजा महाराव उम्मेद सिंह थे।

पिछले कुछ सालों से जयपुर में भी दशहरा मेले का धूमधाम से आयोजन किया जाता है।

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देवनारायण जी के मंदिर Devnarayan ke mandir

देवनारायण जी राजस्थान के एक लोक देवता, शासक और महान योद्धा थे। इनकी पूजा मुख्यतः राजस्थान, हरियाणा तथा मध्यप्रदेश में होती है। इनका भव्य मंदिर आसीन्द में है। भगवान देव नारायण जी को औषधि का देवता भी कहते हैं और इनकी पूजा नीम की पत्तियों से की जाती है।

देवनारायण जी भगवान का जन्म आसींद भीलवाड़ा , बगड़ावत परिवार में हुआ था और इनकी माता जी का नाम साडू माता, पिता जी का नाम सवाई भोज और पत्नी का नाम पीपलदे था देवनारायण जी का बचपन का नाम उदयसिंह था देवनारायण जी के मंदिर राजस्थान में आसींद भीलवाड़ा, देवमाली ब्यावर, देव धाम जोधपुरिया टोंक और देव डूंगरी चित्तौड़गढ़ में हैं

देवनारायण जी को विष्णु के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोक देवता के रूप में पूजा की जाती है।

देवनारायण जी की फड़ में 335 गीत हैं । जिनका लगभग 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ हैं । ये गीत परम्परागत भोपाओं को कण्ठस्थ रहते हैं । देवनारायण जी की फड़ राजस्थान की फड़ों में  सबसे बड़ी हैदेवनारायण जी भगवान की फड़ का वजन गुर्जर जाति के भोपाओं के द्वारा जंतर वाद्य यंत्र पर किया जाता है

2 सितंबर 1992 और 3 सितंबर 2011 को 5 रुपये के भारत पोस्ट द्वारा स्मारक डाक टिकट जारी किया गये थे।

देवनारायण जी का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6km दूरी पर स्थित देहमाली ( देमाली ) स्थान पर गुजरा । भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को उनका वहीं देहावसान हुआ। इसी कारण देवनारायण जी का भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को यहाँ प्रतिवर्ष एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है

प्रमुख मंदिर

आसीन्द,भीलवाड़ा – जहाँ इनकी जन्म तिथि माघ शुक्ला छठ एवं भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को धार्मिक मेले का आयोजन होते हैं।

देवमाली, ब्यावर – जिन्हें स्वयं देवनारायण और मालासारी द्वारा स्थापित सबसे शुरुआती मंदिर माना जाता है, जहां देवनारायण का जन्म हुआ था।

देव डूंगरी , चित्तौड़ – मेवाड़ के महाराणा सांगा श्री देवनारायण के बड़े भक्त थे और कहा जाता है कि उन्होंने देवजी की स्मृति में मंदिर का निर्माण कराया था।

देव धाम ,जोधपुरिया निवाई, (टोंक)- इस मंदिर में देशी घी की अखंड ज्योति जलती रहती है।राजस्थान के टोंक जिले की देवधाम (जोधपुरिया) नामक जगह पर खाराखुर्शी नदी, बांडी नदी तथा मांसी नदी के द्वारा त्रिवेणी संगम बनाया जाता है। इस बाँध का नाम मासी बांध है।

राजस्थान राज्य सरकार ने भगवान देवनारायण के नाम से देवनारायण  स्कूटी योजना भी शुरू कर रखी है। जिसके तहत राज्य सरकार 12वीं कक्षा में 50त्न प्रतिशत या इससे अधिक अंक प्राप्त कर कॉलेज व युनिवर्सिटी में प्रवेश पाने वाली बंजारा, लोहार, गूर्जर, राईका, रैबारी आदि जाति की छात्राओं को स्कूटी प्रदान करती है।

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राजस्थान के त्रिवेणी संगम Rajasthan me Triveni Sangam

त्रिवेणी संगमों पर शिवरात्रि जैसे त्योहारों पर श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं. यहां नदी के किनारे शिव मंदिर भी होता है त्रिवेणी संगमो का इतिहास के साथ-साथ वर्तमान में भी बहुत ज्यादा महत्व है

बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) – सोम-माही-जाखम नदियों के संगम पर बना है। राजस्थान के डुंगरपुर जिले का प्रसिद्ध मेला है जिसमें जिले के आदिवासी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। यह मेला माघ शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर वेणेश्वर नामक स्थान पर लगता है जो सोम, माही व जाखम नदियों के पवित्र संगम पर स्थित है।

बेणेश्वर धाम राजस्थान का कुंभ /आदिवासियों का महाकुंभ कहलाता है ।

रामेश्वरम घाट (मानपुर, सवाई माधोपुर) –चम्बल, बनास और सीप नदियों का संगम है इस त्रिवेणी संगम के पास ही भगवान चतुर्भुजनाथ का मंदिर भी बना हुआ है। रामेश्वर शिव लिंग के दर्शनार्थ दूर दराज से आने वाले भक्तजन त्रिवेणी में स्नान कर भगवान शिव के शिव लिंग का जलाभिषेक करते हैं, इस स्थान पर प्रतिवर्ष ‘कार्तिक पूर्णिमा’ एवं ‘महा शिवरात्री’ पर विशाल मेला भरता है, लाखों की तादाद में यहाँ पर भीड़ इकट्ठा होती है। इस स्थान को राजस्थान में “मीणा जनजाति का प्रयागराज” भी कहाँ जाता है।

मांडलगढ़ (बींगोद, भीलवाड़ा) –बनास, बेड़च और मेनाल नदियों के त्रिवेणी संगम पर है।इस त्रिवेणी संगम को छोटा पुष्कर भी कहा जाता है। भीलवाड़ा से करीब 50km दूर स्थित हैं। “त्रिवेणी मंदिर” भगवान शिव को समर्पित हैं।

राजमहल (देवली , टोंक) – बनास, डाई और खारी नदियां त्रिवेणी संगम बनाती है।

राजस्थान के टोंक जिले की देवधाम (जोधपुरिया) नामक जगह पर खाराखुर्शी नदी, बांडी नदी तथा मांसी नदी के द्वारा त्रिवेणी संगम बनाया जाता है।

बनास नदी पर बनने वाले त्रिवेणी संगमो का सही क्रम है। बीगोद, राजमहल, रामेश्वर

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राजस्थान के बांध :राजस्थान के प्रमुख बांध

राजस्थान के प्रमुख बांध जेसे अडवाण बांध,अजीत सागर,डूंगरी बांध,मासी बांध ,पार्वती बांध,हेमावास बांध,रामगढ बांध,अजान बांध. राजस्थान में ज्यादातार बांध नदी पर बने है

  • राजस्थान के सभी नदी के बांध
  • ERCP परियोजना के बांध
  • सभी जिलो के बांध

मोतीझील बांध मोतीझील बांध को भरतपुर की “लाइफ-लाइन” भी कहा जाता है।
मोतीझील बांध का निर्माण महाराजा सूरजमल जाट के द्वारा करवाया गया है। इस झील में हरीश शैवाल पाई जाती है जो नाइट्रोजन से भरी खाद बनाने में उपयोगी है।
इस बांध का निर्माण रूपारेल नदी पर किया गया है।
इस बांध के द्वारा बाणगंगा तथा रूपारेल नदी का पानी उत्तर प्रदेश की ओर निकाला जाता है।

नंदसमंद बांध – नंद समंद बांध को राजसमंद की जीवन रेखा के नाम से भी जाना जाता है। इस बांध का निर्माण नाथद्वारा राजसमंद में बनास नदी के तट पर 1955 में करवाया गया था

सीकरी बांध – सीकरी बांध का निर्माण भरतपुर जिले में किया गया. सीकरी बांध के द्वारा नगर, कामा तथा डीग तहसील के अनेक बांधों को भरा जाता है यह बांध रूपारेल नदी पर स्थित हैं। लालपुर बांध को बाणगंगा नदी के द्वारा भरा जाता है

अजीत सागर बांध खेतड़ी झुंझुनू में स्थित है।

पन्नालाल शाह बांध खेतड़ी झुंझुनू में स्थित है


बांकली बांध – बांकली बांध का निर्माण जालौर में सुकड़ी तथा कुलथाना नदियों के किनारे बांके गांव में करवाया गया था।

भीम सागर परियोजना – भीम सागर परियोजना झालावाड़ जिले की है भीम सागर परियोजना के अंतर्गत उजाड़ नदी पर झालावाड़ में बांध बनाया गया है।

अडवाण बांध – अडवाण बांध भीलवाड़ा जिले मानसी नदी पर में स्थित है।

नारायण सागर बांध – नारायण सागर बांध का निर्माण ब्यावर के बाद किया गया है। नारायण सागर बांध का निर्माण खारी नदी पर किया गया है। नारायण सागर बांध का शिलान्यास देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने वर्ष 1956 में किया था। यह बांध 8 किलोमीटर लम्बे क्षेत्रफल में फैला हुआ है।

चाकन सिंचाई परियोजना – चाकन सिंचाई परियोजना  बूंदी जिले की है। इस परियोजना का निर्माण बूंदी जिले की किशोरा राय पाटन तहसील के गुड़ा गांव के पास चौकना नदी पर बांध बनाकर किया गया।

हरसोर बांध- हरसोर बांध का निर्माण नागौर की डेगाना तहसील में 1959 में किया गया था इस बांध से हरसोर तथा लूणासर नहर विकसित की गई

अजान बांध – अजान बांध भरतपुर जिले में गंभीर नदी पर राजा सूरजमल जाट द्वारा  बनाया गया। इसका निर्माण बांणगंगा व गंभीरी नदी के पानी को भरतपुर में नहीं आने देने के लिए किया गया।अजान बांध परियोजना से भरतपुर जिले को पेयजल व सिंचाई सुविधा प्राप्त होती है। इस बांध से केवलादेव घना पक्षी विहार, भरतपुर को भी पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।

अनस बांध – बांसवाड़ा जिले में अनस नदी पर बांध का निर्माण प्रस्तावित था। अनस माही नदी की एक सहायक नदी है।


कनोटा बांध-  यह बांध जयपुर मे स्थित है।  यह बांध राजस्थान मे सर्वाधिक मछली उत्पादन करने वाला बांध है।


लालपुर बांध: यह भरतपुर में स्थित हैं। इस बांध को बाणगंगा नदी द्वारा भरा जाता हैै।


बड़गाँव बाँध – बड़गाँव बाँध उदयपुर में बेड़च नदी पर स्थित है।


मासी बांध – वनस्थली, निवाई ,टोंक
नाकोड़ा बांध – बालोतरा
हेमावास बांध – पाली
रामगढ बांध – जयपुर
पार्वती बांध – धौलपुर
बीठन बांध, चितलवाणा बांध व चावरचा बांध   – जालौर

भूपाल सागर,ओराई बांध, सोनियाना बांध – चित्तौड़गढ़
उम्मेद सागर,गरदडा बांध, सीताबाडी बांध व परवन बांध – बाराँ
अनूप सागर व गजनेर बांध – बीकानेर
उम्मेद सागर बांध, गुलाबसागर बांध,जसवंत सागर व तख्त सागर बांध – जोधपुर

वाकल बांध ,उदय सागर बांध,मदार / मादर बांध ,फतेह सागर बांध ,बागोलिया बांध,गोराना बांध,मादड़ी बांध – उदयपुर
अनूप सागर व गजनेर बांध – बीकानेर
काली सिंध व भीमसागर बांध – झालावाड

माधोसागर, कालाखोह व रेडियो सागर बांध – दौसा
तालछापर बांध – चूरू


ERCP मे प्रस्तावित बांध- डुंगरी बांध मुख्य बांध एवं 6 अन्य सहायक बाँध है


कुन्नू बैराज – कुन्नू नदी पर राजस्थान मे शाहबाद ,बारां
रामगढ बैराज – कूल नदी पर राजस्थान में किशनगंज, बारां
महलपुर बैराज – पार्वती नदी पर राजस्थान में मंगरील, जिला बांरा
नवनेरा बैराज – कालीसिंध नदी पर राजस्थान में पीपलदा, कोटा
मेज बैराज – मेज नदी पर इन्द्रगढ़ ,बूंदी
राठौड़ बैराज – बनास नदी पर चौथ का बरवाडा, सवाईमाधोपुर
डूंगरी बांध – बनास नदी पर खण्डार, सवाईमाधोपुर में बांध बनाया जाना है जो “पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना” अन्तर्गत जल संग्रहण हेतु मुख्य बांध होगा।

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राजस्थान के प्रमुख बांध Rajasthan ke bandh

राजस्थान क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे बड़ा राज्य हैं जिसे राजस्थान कुछ क्षेत्र में बारिश भी कम होती है इसलिए राजस्थान में बहुत सारे तालाब, नदिया ओर झिले हैं।
राजस्थान में बहने वाली प्रमुख नदियाँ बनास , चंबल, माही, सेई, मानसी, जवाई नदी आदि हैं। इन नदियों पर राज्य को पानी उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न बांध बनाए गए हैं।
राजस्थान के कुछ प्रमुख बांधों में बीसलपुर बांध, जाखम बांध, मोरेल बांध, जवाहर सागर बांध, मेजा बांध, कोटा बैराज आदि हैं।

बीसलपुर बांध –  बीसलपुर बांध राजस्थान के देवली तहसील, टोंक जिले में बनास नदी पर स्थित गुरुत्वाकर्षण प्रकार का बांध  है।
यह बांध बनास, डाई तथा खारी नदियों के संगम पर स्थित है । इस बांध का निर्माण अजमेर के चौहान वंश के राजा बिसलदेव चौहान/ विगृहराज चतुर्थ ने करवाया था।

बीसलपुर बांध राजधानी जयपुर समेत कई जिलों की लाइफलाइन कहा जाता है। यह बांध टोंक, अजमेर, सवाई माधोपुर  किशनगढ़, ब्यावर और जयपुर ग्रामीण समेत क्षेत्रों के लोगों की कई सालों से प्यास बुझा रहा है, ये राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है इस बांध से नहरो से सिचाई भी की जाती है इस बांध के कुल 18 गेट है बाँध के किनारे प्रसिद्ध बीसलदेव मन्दिर है। बीसलपुर बांध के तट पर मत्स्य विभाग ने मछली एक्वेरियम व प्रजनन केन्द्र बनाया गया है।

राणा प्रताप सागर बांध – राणा प्रताप सागर बांध राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा में चंबल नदी पर स्थित है। यह चंबल नदी पर बना दूसरा सबसे बड़ा बांध है चंबल नदी पर सबसे बड़ा बांध गांधी सागर, जो कि मध्य प्रदेश में है चम्बल नदी घाटी परियोजना मैं 4 बांध बनाये गये थे, गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बेराज है राणा प्रताप सागर बांध ग्यारह सौ मीटर लंबा तथा 36 मीटर चौड़ा है।राणा प्रताप सागर बांध विश्व का सबसे सस्ता बांध है जिसका निर्माण ₹31 करोड़ में किया गया था ।
राणा प्रताप सागर बांध के निर्माण का कार्य 1970 में पूर्ण किया गया। इस बांध पर कनाडा के संयोग से परमाणु बिजलीघर की स्थापना की गई है। जल क्षमता की दृष्टि से ये राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है।

गांधी सागर बांध- गांधी सागर बांध का निर्माण 1960 में चंबल नदी पर मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की भानपुर तहसील में किया गया। गांधी सागर बांध 510 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है। गांधी सागर बांध के ऊपर विद्युत गृह का निर्माण किया गया है

माही बजाज सागर बांध (Mahi Bajaj Sagar Dam) – माही बजाज सागर बांध बोरखेड़ा गांव, बांसवाड़ा में माही नदी पर स्थित है। यह परियोजना राजस्थान एवं गुजरात  की संयुक्त परियोजना है
बांध की ऊंचाई – 43.8 मीटर (144 फीट) , लंबाई – 3,109 मीटर (9,905 फीट)  और बिजली उत्पादन – 140 मेगावाट. बिजली उत्पादन का उपयोग 100%  राजस्थान सरकार करती है जिसका 55 प्रतिशत निर्माण खर्च गुजरात सरकार ने वहां किया है, तथा शेष 45 प्रतिशत राजस्थान सरकार द्वारा वहां किया गया है।
इस बांध का निर्माण 1972 और 1983 के बीच जलविद्युत उत्पादन और जल आपूर्ति के उद्देश्य से किया गया था । यह राजस्थान का सबसे लंबा और दूसरा सबसे बड़ा बांध है। इसका नाम जमनालाल बजाज के नाम पर रखा गया है


जवाहर सागर बांध – जवाहर सागर बांध चंबल नदी पर चंबल घाटी परियोजनाओं की श्रृंखला में तीसरा बांध है , जो कोटा शहर से 29 किमी ऊपर और राणा प्रताप सागर बांध से 26 किमी नीचे की ओर स्थित है। यह एक कंक्रीट गुरुत्वाकर्षण बांध है, 45 मीटर ऊंचा और 393 मीटर लंबा, स्थापित क्षमता 60 मेगावाट बिजली पैदा करता है। इसका निर्माण 1972 में पूरा हुआ था। बांध की सकल भंडारण क्षमता 67.07 मिलियन क्यूबिक मीटर (2.37 टीएमसीएफटी) है। ये बांध गांधी सागर बांध और राणा प्रताप सागर बांध के बाद स्थित है, लेकिन कोटा बैराज से पहले । इस बांध से कोटा तथा बूंदी को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होगी इस बांध का निर्माण विद्युत उत्पादन के लिए किया गया। यह एक पिकअप बांध है

कोटा बैराज बांध – कोटा बैराज बांध चंबल नदी पर राजस्थान के कोटा शहर में स्थित है। कोटा बैराज बांध जल विद्युत का उत्पादन नहीं करता है। बैराज का निर्माण 1960 में पूरा हुआ था। चंबल कमांड क्षेत्र में राजस्थान कृषि ड्रेनेज अनुसंधान परियोजना कनाडा की अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी के सहयोग से चलाई जा रही है
बैराज का मुख्य उद्देश्य राजस्थान और मध्य प्रदेश के किसानों को सिंचाई और जल की आपूर्ति करना है।

मेजा बांध– मेजा बांध राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में कोठारी नदी पर स्थित है। यह भीलवाड़ा का सबसे बड़ा बांध है।कोठारी नदी बनास नदी की सहायक नदी है|
यह झील विभिन्न पक्षियों और स्तनधारियों का आवास है।
भीलवाड़ा मेजा बांध भीलवाड़ा शहर से 20 किमी दूर स्थित है। पास के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध ग्रीन माउंट पार्क है।

जवाई बांध-जवाई बांध राजस्थान के पाली जिले में सुमेरपुर कस्बे के पास लूनी नदी की सहायक नदी जवाई नदी पर है। इसका निर्माण जोधपुर के राजा महाराजा उमैद सिंह ने करवाया था। बांध में 7887.5 मिलियन क्यूबिक फीट की क्षमता है,निर्माण कार्य 12 मई 1946 को शुरू हुआ और यह 1957 में पूर्ण हुआ। जवाई बांध पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है।जवाई बांध को मारवाड़ का अमृत सरोवर कहा जाता है।जवाई बांध की जल क्षमता बढ़ाने के लिए 1971 से सेइ बांध परियोजना बनाई गई,सेई बांध का जल प्रथम बार 9 अगस्त 1977 को जवाई बांध में डाला गया. जवाई बांध का निर्माण इंजीनियर ऐडगर और मोती सिंह की देखरेख में हुआ।
यह झील प्रवासी पक्षियों और मगरमच्छों का प्रमुख स्थल है बांध के आसपास की पहाड़ियाँ तेंदुओं और जंगली बिल्लियों के लिए जानी जाती हैं।

मोरेल बांध – मोरेल बांध राजस्थान के लालसोट शहर में कांकरिया गांव के पास मोरेल नदी पर बना है। मोरेल बांध सवाई माधोपुर व दौसा जिले की जीवनरेखा के रूप में माना जाता है। मोरेल बांध में पानी की आवक ढूंढ नदी व मोरेल नदी से होती है  यह एक मिट्टी का बाँध है। यह बांध वर्ष 1959 में बनाया गया था और इसका निर्माण मुख्य उद्देश्य सिंचाई है।

जाखम बांध – जाखम बांध का निर्माण प्रतापगढ़ जिले की अनूपपूरा के पास करवाया गया।
जाखम बांध जाखम नदी पर 81 मीटर की ऊंचाई पर बनाया गया है।यह बांध राजस्थान का सबसे ऊंचा बांध है।
इस बांध का निर्माण जनजाति उपयोजना के अंतर्गत किया गया था। जाखम नदी के ऊपर एक विद्युत गृह का निर्माण भी किया गया है।

पांचना बांध – इस बांध का निर्माण करौली जिले की गुडला गांव के पास पांच नदियों (भद्रावती, अटा, माची, बरखेड़ा तथा भैंसावर) के संगम पर मिट्टी से किया गया है। राजस्थान में यह मिट्टी का बना सबसे बड़ा बांध है। इस बांध का निर्माण अमेरिका के आर्थिक सहयोग से किया गया है।

बरेठा बांध – यह बांध भरतपुर जिले की बयाना तहसील के बरेठां गांव में स्थित है।
1866 में महाराजा जसवंत सिंह ने कमांडर इंजीनियर बहादुर रॉयल, कोकुंड नदी पर एक बांध का निर्माण शुरू किया था, जिसे 1897 में महाराजा राम सिंह ने पूर्ण करवाया।
इस बांध को वन्य जीव अभ्यारण के रूप में भी घोषित किया गया है इस बांध की बनावट एक जहाज जैसी है अंत यह दूर से जहाज के समान दिखाई देता है
यह भरतपुर का सबसे बड़ा बांध है इस बांध में मत्स्य पालन विभाग द्वारा मछली पालन में मछली बीज संग्रहण का कार्य भी किया जाता है।

टोरड़ी सागर बांध – इस बांध का निर्माण टोंक जिले की टोली गांव में किया गया है।इस बांध की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें सभी मोरिया खोलने पर एक बूंद पानी भी बांध में नहीं रुकता है।

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राजस्थान के प्रसिद्ध शिव जी के मंदिर

राजस्थान में बहुत सारे मंदिर है जिसमें शिव जी के कुछ मंदिर देश ही नही दुनिया में अपनी पहचान बनाते है। जेसे जयपुर का सिद्धेश्वर शिव मन्दिर जो साल में एक बार शिवरात्रि के अवसर पर दर्शन के लिये खुलता है, नाथद्वारा (statue of belief) में दुनिया की सबसे बड़ी शिव जी की मूर्ति, शिवाड़ का घुष्मेश्वर महादेव का मन्दिर जो 12 ज्योर्तिलिंग में विख्यात है, उदयपुर के कैलाशपुरी में स्थित एकलिंग जी का मंदिर आदि।

बेणेश्वर महादेव का मंदिर :- (नवाटापुरा, डूंगरपुर)

 बेणेश्वर का अर्थ होता है -” मृत आत्माओं का मुक्ति स्थल “। यह मंदिर सोम, माही व जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित हैं।

 यहाँ पर विश्व का एकमात्र मन्दिर है जिसमें खण्डित शिवलिंग की पूजा की जाती है।

 यहाँ पर मेला माघ पूर्णिमा को लगता हैं जिसे आदिवासियों का कुम्भ/भीलों का कुम्भ/ वागड़ का पुष्कर भी कहते हैं | यहाँ पर आदिवासी अपनें पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन करते हैं।

 एकलिंग जी का मंदिर :– (कैलाशपुरी, उदयपुर)

एकलिंग जी मेवाड़ के महाराणाओं के इष्टदेव या कुल देवता है। 

इस मन्दिर का निर्माण 8वीं सदी में बप्पा रावल (कालभोज) ने करवाया जिसकों वर्तमान स्वरूप महाराजा रायमल ने दिया।

मेवाड़ के शासक स्वयं को एकलिंग जी का दीवान मानकर शासन किया करते थे, मेवाड़ के शासक एकलिंग जी के मन्दिर में तलवार के स्थान पर छड़ी लेकर जाते थे।

एकलिंगजी का मन्दिर राज्य में पाशुपत सम्प्रदाय का सबसे बड़ा मन्दिर है। इस मन्दिर में शिव की चैमुखी मूर्ति है। पूर्व के मुख में सूर्य, उत्तर के मुख में ब्रह्मा, दक्षिण के मुख में शिव तथा पश्चिम केमुख में विष्णु के दृष्य हैं।

 शीतलेश्वर महादेव मन्दिर :- (झालरापाटन, झालावाड़)

चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित इस मंदिर को चन्द्रमोली मन्दिर भी कहते हैं। महामारू शैली में बना यह राजस्थान का पहला समय अंकित मन्दिर है, जिस पर 689 लिखा है। यह एक अर्द्धनारीश्वर मन्दिर है। अर्द्धनारीश्वर का अर्थ है – आधा शिव आधी पार्वती।

राजराजेश्वर / सिद्धेश्वर शिव मन्दिर :- जयपुर

ये मन्दिर आम जनता के लिए केवल शिवरात्री के दिन खुलता हैं। मोती डूंगरी के महलों में इस मन्दिर का निर्माण 1864 में जयपुर के नरेश रामसिंह – 2 ने करवाया था।यह जयपुर के राजाओं का निजी मन्दिर हैं। मोटी डूँगरी की तलहटी में गणेश जी का भी मंदिर है।

 घुष्मेश्वर महादेव का मन्दिर :- शिवाड़ (सवाई माधोपुर)

देश के 12 ज्योर्तिलिंग में विख्यात है। इस मन्दिर में शिवलिंग 12 घंटे जल में डूबा हुआ रहता है। पास की पहाड़ी पर क़िला भी बना है जिसे शिवाड़ का क़िला भी कहते है ओर इस पहाड़ में सुरंग भी है माना जाता है कि ये सुरंग निवाई में जाकर निकलती है।

 अचलेश्वर महादेव मन्दिर :- सिरोही

यहाँ पर शिवलिंग के स्थान पर एक खड्ढ़ा हैं जो ब्रह्मखड्ढ़ा कहलाता हैं, इसे शिव के पैर का अंगूठा मानते है।इस मन्दिर में शिव जी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है। इस मन्दिर में महमूद बेगड़ा द्वारा खण्डित शिव प्रिया पार्वती हैं।

हल्देश्वर महादेव मंदिर :- (पीपलूद , सिवाना)

इसे मारवाड़ का लघु माउण्ट आबू कहते हैं क्योंकि यह पर पश्चिमी राजस्थान की सबसे ज़्यादा बारिश यहाँ पर होती है। यह मंदिर 56 की पहाड़ियों की हल्देश्वर पहाड़ी पर बना है।56 की पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी पर गुफा में जोगमाया का मन्दिर है।

मण्डलेश्वर शिव मन्दिर :- (अर्थूना, बांसवाड़ा)

अर्थूना को ग्रन्थों में “उत्थूनक” कहा गया है। यह लकुलीश सम्प्रदाय का परमार कालीन राजस्थान का प्रसिद्ध मन्दिर है।शिल्पकला की दृष्टि से आबू तथा यहाँ के मन्दिरों मे काफी समानता हैं।

 नाथद्वारा (राजसमंद)

राजस्थान के नाथद्वारा में दुनिया की सबसे बड़ी शिव मूर्ति स्थित है।इसे “statue of belief” के नाम से जाना जाता है। 

इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग 369 फुट है। ये इतनी ऊंची है कि 20 किमी दूर से भी नजर आती है। इस मूर्ति कोहेलिकॉप्टर से देखने के लिए जॉयराइड की शुरुआत की गई है। अब एक हजार फीट की ऊंचाई से दुनिया की सबसे बड़ी शिव प्रतिमा को देखा जा सकता है।

 हर्षनाथ जी का मंदिर :- हर्ष की पहाड़ी (सीकर)

विग्रहराज द्वितीय के काल में 10वीं सदी में निर्मित इस मन्दिर में लिंगोद्भव शिव की मूर्ति स्थित है।इस मंदिर में ब्रह्मा व विष्णु को शिवलिंग का आदि अन्त जानने हेतु परिक्रमा करते हुए दिखाया गया है।महामारू शैली में निर्मित इस मन्दिर को औरंगजेब के सेनापति खानजहां बहादुर ने तोड़ा था, जिसके कारण राजा शिवसिंह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। यहाँ पर मेला भाद्रपद शुक्ल 13 को भरता हैं।

 तिलस्वा महादेव मन्दिर :– भीलवाड़ा

यहाँ पर मेला शिवरात्री को लगता है तथा इस मन्दिर में चर्म रोगी व कुष्ठ रोगी को लाभ मिलता है।

महामन्दिर / सिरे मंदिर :- जोधपुर

इस मन्दिर का निर्माण 84 खम्बों पर मारवाड़ के शासक मानसिंह ने करवाया था, इस मन्दिर में जालन्धर नाथ की प्रतिमा है।यह मन्दिर नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल हैं।

 गेपरनाथ महादेव मंदिर :- कोटा

2008 में भूस्खलन के कारण यह मन्दिर चर्चा में रहा, इस मन्दिर में शिवलिंग/गर्भगृह जमीन की सतह से 300 फीट नीचे हैं।इस मन्दिर में स्थित शिवलिंग पर सदैव एक जलधारा बहती है।

 कंसुआ का शिव मंदिर :- कोटा

इस मंदिर की विशेषता है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के 7-8 मीटर अन्दर स्थित शिवलिंग पर गिरती है।इस मन्दिर का शिवलिंग 1008 मुखी शिवलिंग है।

 सोमनाथ मन्दिर :– भानगढ़ (अलवर)

गुजरात के सोमनाथ मन्दिर की प्रकृति का राज्य में यह एकमात्र मन्दिर है।

 चार-चैमा का शिवालय :- चारचैमा (कोटा)

यह कोटा राज्य का सबसे प्राचीन शिव मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण चोथी सदी के आसपास हुआ था, इसलिए इसे गुदा कालीन मंदिर भी कहते है।

 देव सोमनाथ मन्दिर :- डूंगरपुर 

12वी सदी में निर्मित और यह 3 मंजिला देव सोमनाथ मन्दिर सोम नदी के किनारे स्थित हैं।इसका निर्माण केवल पत्थरों से बिना चूना, मिट्टी व सीमेन्ट के किया गया है।

कपालीश्वर महादेव मन्दिर :– इन्द्रगढ़ (बूँदी)

यह मन्दिर चाकण नदी के किनारे है। शैव सम्प्रदाय के आचार्य मत्स्येन्द्रनाथ की राज्य में एकमात्र प्रतिमा इन्द्रगढ़ से मिली है।

समिद्धश्वर महादेव मन्दिर :- चितौड़गढ़ 

इस मन्दिर का निर्माण मालवा के राजा भोज ने करवाया, लेकिन पुनर्निर्माण महाराणा मोकल ने करवाया, इसलिए इसे “मोकल जी का मन्दिर” भी कहते है।

 मातृकुण्ड़िया का मन्दिर :- राश्मी गाँव (चित्तौड़गढ़)

बनास नदी के किनारे स्थित मातृकुण्डिया को “मेवाड़ का हरिद्वार” कहते हैं।यहाँ स्थित कुण्ड़ में मृत व्यक्ति की अस्थियों का विसर्जन किया जाता है।हरिद्वार की तरह यहाँ भी लक्ष्मण झूला लगा हुआ हैं।

भंडदेवरा शिव मंदिर :- (बारां)

इसे “हाड़ौती का खजुराहो” तथा राजस्थान का लघु (मिनी) खजुराहो भी कहते हैं।इन मंदिरों का निर्माण पंचायतन शैली में मेदवंशीय राजा मलय ने करवाया।वर्तमान मे मन्दिर में वायुकोण पर स्थित विष्णु मन्दिर ही अवशिष्ट रह गया हैं।

 नीलकण्ठ महादेव मन्दिर :- (टहला गाँव, राजगढ़, अलवर)

इस मन्दिर का निर्माण अजयपाल ने करवाया तथा इस मन्दिर में ही नृत्य गणेश की मूर्ति है। इस मंदिर के गर्भगृह में काले रंग का नीलम धातु का बना हुआ शिवलिंग है।

फूलदेवरा शिवालय :- अटरू (बारां)

इस मंदिर के निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ हैं तथा इस मन्दिर के पास  “मामा-भान्जा का मन्दिर” बना हैं।

बाड़ौली के शिव मन्दिर :- भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़)

भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में गुप्तकालीन स्थापत्य कला की छाप दिखाई देती है।

 मुकन्दरा का शिव मन्दिर :- कोटा

यह राजस्थान का एकमात्र गुप्तकालीन शिव मन्दिर हैं।

 गड़गच्च शिवालय :– अटरू (बारां)

 गुप्तेश्वर मन्दिर :– उदयपुर

इस मन्दिर को “गिरवा व मेवाड़ का अमरनाथ” कहते है।

  सेपऊ महादेव मन्दिर :– धौलपुर 

अचलनाथ महादेव :- जोधपुर

केशव राय मंदिर :– केशवरायपाटन (बूँदी)

 सारणेश्वर मंदिर :– सिरोही

हरणी महादेव मन्दिर :– भीलवाड़ा

भूतेश्वर महादेव मंदिर :- बसेड़ी (धौलपुर)

चौपड़ा महादेव मंदिर :- धौलपुर

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राजस्थान की प्रसिद्ध होली famous Holi in Rajasthan

होली रंगों का त्योहार है जो पूरी तरह से देश की सांस्कृतिक अपील का प्रतीक बन गया है। भारत आने वाले कई पर्यटक होली के जीवंत उत्सव के माहौल से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं उदयपुर, जोधपुर और जयपुर में होली समारोह प्रसिद्ध हैं क्योंकि उन्हें शाही होली कहा जाता है। यहां तक ​​कि पुष्कर और रणथंभौर भी इसी तरह होली मनाते हैं।

राजस्थान की होली

क्र.सं. होली मनाने का रिवाजक्षेत्र
01लट्ठमार होलीकरोली और भरतपुर
02पत्थरमार होलीबाड़मेर व डूंगरपुर
03कोड़ामार होलीश्रीगंगानगर
04फूलों की होलीगोविन्द देवजी मंदिर, जयपुर
05ब्रज होलीभरतपुर
06माली होलीअजमेर
07धुलेंडी होलीजयपुर
08डोलची होलीबीकानेर
09चांग और गीदड़शेखावाटी
holi enjoy
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REET Mains Result 2023| REET Level-1 & Level-2 Cut Off Marks 2023

REET 2023 Mains Expected Cut off Marks – यहाँ से आप रीट 2023 की मुख्य परीक्षा के लिए संभावित कट ऑफ अंक देख सकते हैं, आपको यहाँ से Reet main exam 2023 के लिए सभी मुख्य कोचिंग संस्थानों द्वारा जारी की गई संभावित कट ऑफ अंक देख सकते हैं ! Reet 2023 के लिए rsmssb jaipur राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड जयपुर द्वारा कट ऑफ अंक भी अभी जारी नहीं हुए हैं, लेकिन परीक्षा में गए छात्रों से पूछकर और उनके द्वारा किए सर्वे के आधार पर ये कट ऑफ निकाल लिया गया हैं, आप इसे जरूर देखिऐ

REET Main Exam Level-1 2023 Category-Wise Cut Off 2023 Marks

CategoryExpected cut offExpected cut off %
GEN 205 – 21568-71%
OBC200-21066-70%
EWS 198 – 20865-68%
MBC 297 – 20765-68%
SC 190 – 20063-66%
ST 280 – 19060-63%

REET Mains 2023 Level 2 Expected Cut off Marks – आप यहाँ से रीट 2023 की मुख्य परीक्षा के लिए लेवल 2 में आयोजित सभी विषयों के लिए संभावित कट ऑफ को चेक कर सकते हैं, यहाँ से आप reet 2023 mains level 2 विषयों की यूट्यूब पर जारी शिक्षाविदों के द्वारा बताई गई कट ऑफ अंक चेक कर सकते हैं, ये कट ऑफ बिल्कुल सही तो नहीं हैं, लेकिन अभी जिन जिन अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी हैं ये इस आधार पर बनाई गई हैं , आप इस reet 2023 level 2 cut off subjectwise, को अपनी फाइनल कट ऑफ नहीं समझें ,

SubjectGenOBCMBCEWSSCST
science160-165155-160150-155155-160150-155149-154
SST190-200180-190178-188180-190175-180170-180
Hindi210-220205-210200-205205-210190-199185-195
English200-230190-220190-215190-220175-210170-205
Sanskrit 214-224208-214196-206204-210192-210188-196
Reet Level 2 Cut off 2023 tsp area
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राजस्थान सहकारिता Rajasthan Sahkarita

राजस्थान/भारत में सहकारिता आंदोलन

सहकारिता का सिद्धांत/नारा:-  ‘एक सबके लिए तथा सब एक के लिए’

सहकारिता का उद्देश्य:- सामाजिक आर्थिक विकास के साथ सामाजिक उत्थान

सहकारिता के ध्वज में 7 रंग होते है।

भारत में सहकारिता आंदोलन की शुरुआत भारतीय दुर्भिक्ष आयोग से मानी जाती है। इस आयोग की सिफारिश पर ‘सहकारी साख अधिनियम 1904’ पारित किया गया।

राजस्थान में सहकारिता आंदोलन की शुरुआत 1904 में अजमेर से हुई।

उद्देश्य:- किसानों को साख (ऋण) सुविधा उपलब्ध करवाना तथा उन्हें महाजनों एवं अन्य बिचौलियों से मुक्ति दिलाते हुए शोषण मुक्त समाज की स्थापना करना।

इसके बाद 1904 में डीग (भरतपुर) में सहकारी कृषि बैंक की स्थापना की गई।

अक्टूबर 1905 में राजस्थान के प्रथम सहकारी समिति की स्थापना भिनाय (अजमेर) में की गई।

अजमेर में ही 1910 में केंद्रीय सहकारी बैंक की स्थापना की गई।

1915 में सर्वप्रथम भरतपुर रियासत ने सहकारिता अधिनियम(कानून) बनाया।

राजस्थान में सहकारी उपभोक्ता आंदोलन आंदोलन की शुरुआत 1919 में अजमेर से हुई।

राजस्थान में प्रथम भूमि बंधक बैंक की स्थापना 1924 अजमेर में हुई थी।

आजादी के बाद राजस्थान में पहली बार 1953 में सहकारी समिति विधेयक पारित किया गया। 

राजस्थान राज्य सहकारी भूमि विकास बैंक की स्थापना 16 मार्च 1957 में जयपुर में की गयी थीं।

वर्तमान में सहकारिता अधिनियम 2001 आया था, जिसे 14 नवंबर 2002 को लागू किया गया।

राज्य में सहकारी बैंकों की संरचना त्रिस्तरीय है, राज्य में जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक स्थापित किए जाते हैं।

राजस्थान की प्रथम महिला नागरिक सहकारी बैंक (राजपूताना महिला नागरिक बैंक) की स्थापना 1995 में जयपुर में की गई।

देश में सहकारी बैंकों में सुधार के लिए वैद्यनाथन कमेटी का गठन किया गया था।

प्रतिवर्ष 7 जुलाई को सहकारिता दिवस मनाया जाता है।

संसद ने दिसंबर 2011 में देश में सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन से संबंधित 97वां संविधान संशोधन पारित किया था। यह 15 फरवरी, 2012 से लागू हुआ था। संविधान में परिवर्तन के तहत सहकारिता को संरक्षण देने के लिए अनुच्छेद 19(1)(सी) में संशोधन किया गया और उनसे संबंधित अनुच्छेद 43 बी और भाग नौ बी को सम्मिलित किया गया।

वर्तमान में सहकारिता क्षेत्र में शीर्ष स्तर पर 29 केन्द्रीय सहकारी बैंक, 23 दुग्ध संघ, 38 उपभोक्ता थोक भंडार, 36 प्राथमिक भूमि विकास बैंक, 7,094 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां, 274 फल एवं सब्जी विपणन समितियां, 22 सहकारी संघ एवं 37,642 सहकारी समितियां पंजीकृत हैं।

• राज्य में 35 अरबन को-ऑपरेटिव बैंक कार्यरत हैं।

राजस्थान में सहकारी संस्थाओं द्वारा अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराए जाते हैं।

किसान सेवा पोर्टलः- ऋण आवेदन, सब्सिडी आदि के लिए एकीकृत मंच।

राज सहकार पोर्टल:- सहकारिता विभाग की योजनाओं और सुविधाओं के लिए एकीकृत मंच।

सहकारी विपणन संरचना:- राज्य में प्रत्येक मण्डी यार्ड पर 274 क्रय-विक्रय सहकारी समितियाँ किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलवाने एवं प्रमाणित बीज, खाद्य एवं कीटनाशक दवाईयां उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने का कार्य कर रही है।

• शीर्ष संस्था के रूप में राजस्थान क्रय-विक्रय सहकारी संघ (राजफैड) कार्यरत हैं।

सहकारी उपभोक्ता संरचना:- उपभोक्ताओं को कालाबाजारी और बाजार में कृत्रिम अभाव से बचाने के लिए जिला स्तर पर 38 सहकारी उपभोक्ता होलसेल भण्डार तथा शीर्ष संस्था के रूप में राजस्थान सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड (कॉनफेड) कार्यरत हैं।

राजस्थान में सहकारी संस्थाएं:-

RAJFED (Rajasthan State co-operative marketing federation limited)

(राजस्थान राज्य सहकारी क्रय-विक्रय संघ लिमिटेड)

• स्थापना – 1957

• मुख्यालय – जयपुर

• राजफैड का कार्य:- सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को उन्नत किस्मों के खाद बीज व कीटनाशक उपलब्ध करवाना।

• राजफैड द्वारा जयपुर के झोटवाड़ा में पशु आहार कारखाना एवं सहकारी कीटनाशक दवाई फैक्ट्री  संचालित है।

CONFED (Rajasthan State co-operative consumer federation limited)

(राजस्थान राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड)

• स्थापना – 1967

• मुख्यालय – जयपुर

• कॉनफेड का कार्य:- उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण सामग्री उपलब्ध करवाना।

RCDF (Rajasthan State co-operative dairy federation limited)

(राजस्थान राज्य सहकारी दुग्ध संघ लिमिटेड)

• स्थापना – 1977

• मुख्यालय – जयपुर

• कार्य:- यह राज्य की सभी डेयरियों पर नियंत्रण रखती है तथा दुग्ध उत्पादकों को उचित मूल्य देकर उन्हें बिचौलियों के शोषण से बचाती है।

• राजस्थान की प्रथम डेयरी पद्मा डेयरी (अजमेर) है।

• उरमूल डेयरी – बीकानेर

• गंगमूल डेयरी – गंगानगर

• वरमूल डेयरी – जोधपुर

SPINFED (Rajasthan State co-operative spining and zining federation limited)

(राजस्थान राज्य सहकारी कताई एवं बुना संघ लिमिटेड)

• स्थापना – 1993

• मुख्यालय – जयपुर

• स्पिनफैड का कार्य:- कपास की खरीद करना और राज्य की सहकारी कताई मिलों का संचालन करना।

1. गुलाबपुरा सहकारी मिल‌ (भीलवाड़ा)

2. गंगापुर सहकारी मिल‌ (भीलवाड़ा)

3. श्री गंगानगर सहकारी कताई मिल‌ (हनुमानगढ़)

RICEM (Rajasthan Institute of co-operative education and management)

(राजस्थान सहकारी शिक्षा एवं प्रबंध संस्थान)

• स्थापना – 1994

• मुख्यालय – जयपुर

• राइसम का कार्य:- सहकारिता से जुड़े कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रशिक्षण उपलब्ध करवाना।

राजस संघ:-

(राजस्थान जनजातीय क्षेत्रीय विकास सहकारी संघ)

• स्थापना – 1976

• मुख्यालय – उदयपुर

• कार्य:- जनजातीय लोगों को साहूकारों के ऋण शोषण से बचाना, उनकी निर्धनता दूर करना तथा वन उपज का उचित मूल्य दिलाना।

COPSEF (Co-operative welfare and service forum)

(सहकारिता कल्याण एवं सेवा संस्थान)

• स्थापना – 1988

• मुख्यालय – जयपुर

• कोपसेफ का कार्य:- सहकारिता से जुड़े ग्रामीणों को चिकित्सा सुविधा, शिक्षा, परिवार कल्याण सेवा उपलब्ध करवाना।

राजस्थान राज्य सहकारी बुनकर संघ लिमिटेड

• स्थापना – 1958

• मुख्यालय – जयपुर

• कार्य:- बुनकरों को कच्चा माल उपलब्ध करवाना तथा उनके माल की बिक्री की व्यवस्था करवाना।

तिलम संघ:-

राजस्थान राज्य तिलहन उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड।

राजस्थान राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड जयपुर (अपेक्स बैंक) का गठन कब किया गया ? – 14 अक्टूबर 1953 को।

राजस्थान राज्य सहकारी भूमि विकास बैंक – 26 मार्च 1957

सहकारी योजनाएं:-

एकमुश्त समझौता योजना वर्ष 2020-21:- इसके अन्तर्गत प्राथमिक भूमि विकास बैंकों के सभी प्रकार के अवधिपार ऋणों की ब्याज राशि में 50% की राहत दी जा रही हैं।

ज्ञान सागर क्रेडिट योजना:- राज्य में ग्रामीण एवं शहरी छात्र-छात्राओं को व्यवसायिक व तकनीकी पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने एवं छात्रों और अभिभावकों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह योजना प्रारंभ की गई।

• भारत में शिक्षा प्राप्त करने पर 6 लाख रुपए तथा विदेश के लिए 10 लाख रुपए निर्धारित हैं। 

स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड योजना:- इसके अन्तर्गत गैर कृषि गतिविधियों हेतु ₹50,000 तक का ऋण 5 वर्ष की अवधि तक के लिए दिया जाता हैं।

महिला विकास ऋण योजना:- भूमि विकास बैंकों द्वारा महिलाओं को गैर कृषि उद्देश्यों तथा डेयरी व्यवसाय हेतु ₹50,000 तक का ऋण दिया जाता है।

सहकार स्वरोजगार योजना

कृषि, अकृषि एवं सेवा क्षेत्र में स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हेतु 2लाख तक का ऋण।

जनमंगल आवास ऋण योजना

50 हजार से अधिक आबादी वाले शहरों और कस्बों में मकान खरीदने या बनाने के लिए 25 हजार से 5 लाख तक का ऋण उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई। 

कृषक मित्र सहकारी ऋण योजना (1997)

उद्देश्य:- नकदी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देना और छोटे बड़े सभी काश्तकारों को सहकारी दायरे में लाना।

बेबी ब्लैंकेट योजना (1998):- आवास निर्माण, मरम्मत एवं रखरखाव हेतु 7लाख तक का ऋण।

सहकारी किसान कार्ड योजना (1999)

किसानों को आसानी से सहकारी कर्जें उपलब्ध कराने के उद्देश्य से समूचे देश में सबसे पहले सहकारी क्षेत्र में राजस्थान में को सहकारी किसान कार्ड योजना लागू की गई।

सहकारी किसान कल्याण योजना:- केद्रीय सहकारी बैंकों द्वारा कृषि और सम्बद्ध कृषि उद्देश्यों के लिए 

अधिकतम 10 लाख तक का ऋण दिया जाता है।

सहकारी आवास योजना:- मकान निर्माण, खरीद एवं विस्तार के लिए 15 वर्ष तक की अवधि के लिए 20 लाख तक का ऋण।

सहकार प्रभा योजना:-

ऋण स्वीकृति व वितरण में विलम्ब को समाप्त

विफल कूप क्षतिपूर्ति योजना

प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंकों से ऋण प्राप्त कर कुंए खुदवाने पर उनके उद्देश्यों में विफल होने की स्थिति में काश्तकारों को राहत देने के उद्देश्य से विफल कूप क्षतिपूर्ति योजना चलाई जा रही है ।

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बिजोलिया किसान आन्दोलन Bijolia Kisan andolan 

बिजोलिया किसान आन्दोलन मेवाड़ राज्य के किसानों द्वारा 1897 ई शुरू किया गया था और ये आन्दोलन भारत का सर्वाधिक समय (44 साल) तक चलने वाला एकमात्र अहिंसक आंदोलन था। यह आन्दोलन किसानों पर अत्यधिक लगान/कर लगाने  के विरुद्ध किया गया था। यह आन्दोलन बिजोलिया जागीर से आरम्भ होकर आसपास के जागीरों में भी फैल गया।इस समय में बिजोलिया( प्राचीन नाम विजयावल्ली), राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है। बिजोलिया ठिकाना उपरमाल की जांगिर के अंतर्गत आता है | ये ठिकाना राणा सांगा ने अशोक परमार क़ो उपहार में दिया था क्योंकि अशोक परमार ने राणा सांगा की खानवा की युद्ध में मदद की थी | 

आंदोलन के मुख्य कारण थे

1. 84 प्रकार के लाग बाग़ – कर

2. लाटा कूंता कर – खेत में खड़ी फसल के आधार पर कर

3. चवरी कर – किसान की बेटी की शादी पर कर

4. तलवार बंधाई कर – नए जागीरदार बनने पर लिया जाने वाला कर

5. बेगार – – बिना वेतन के काम

ये आंदोलन 3 चरणो में हुआ ओर इस आन्दोलन में धाकड़ जाति के किशनो का प्रमुख योगदान था |

प्रथम चरण (1897-1916) – नेतृत्व – साधु सीताराम दास

इस आंदोलन की शुरुआत 1897 में गिरधारीपुरा गांव में हुई थी 1897 में गिरधारीपुरा नामक गांव में गंगाराम धाकड़ के पिता के मृत्यु भोज के अवसर पर किसानों ने एक सभा रखी जिसमें कर बढ़ोतरी की शिकायत मेवाड़ के महाराजा से करने का प्रस्ताव रखा गया। इस हेतु नानजी पटेल एवं ठाकरी पटेलको उदयपुर भेजा गया लेकिन वे महाराणा से मिलने में सफल न हो सके।शिकायत पर मेवाड़ महाराणा फतेहसिंह ने अपना जाँच अधिकारी हामिद हुसेनको नियुक्त किया और जाँच के बाद कोई भी करवाईं नहीं हुई | बिजोलिया के ठिकानेदार राव कृष्णसिंह ने शिकायत करता नानज़ी पटेल एवं ठाकरी पटेल को मेवाड़ से निष्कासित कर दिया | 

राव कृष्णसिंह ने 1903  ईस्वी में चंवरी कर लगा दिया। जो भी व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह करता उसे ठिकाने में कर के रूप में ₹5 जमा कराने होते थे।1906 में राव कृष्णसिंह का निधन हो गया ओर राव पृथ्वीसिंह नया ठिकानेदार बना |

1906 ईस्वी में राव पृथ्वीसिंह द्वारा तलवार बंधाई नामक नया कर लगा दिया। यह नए जागीरदार के उत्तराधिकार के रूप में राज्य द्वारा लिया जानेवाला उत्तराधिकार शुल्क था।तलवार बंधाई कर के विरोध में साधु सीतारामदास, फतेहकरण चारण व ब्रह्मदेव के नेतृत्व में किसानों ने 1913 ई. में आंदोलन करते हुए भूमिकर नहीं दिया।

पहले चरण में साधु सीताराम दास ,नानजी पटेल, ठाकरी पटेल, फतेहकरण चारण, ब्रह्मदेव आदि ने आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।

द्वितीय चरण (1915 -1927 ) – नेतृत्व – विजय सिंह पथिक

1916 ईस्वी में विजय सिंह पथिक ने साधु सीताराम दास के आग्रह पर बिजौलिया किसान आंदोलन की बागडोर संभाली।विजय सिंह पथिक का वास्तविक नाम भूपसिंह था। बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश ) के रहने वाले थे।विजय सिंह पथिक ने  1916 में किसान पंच बोर्ड (अध्यक्ष साधु सीताराम दास) की स्थापना की ओर फिर 1917 में ऊपरमाल पंच बोर्ड (13 सदस्य) की स्थापना की साथ ही श्री मन्ना पटेल को इसका सरपंच बनाया। उपरमाल का डंका नामक पर्चा लोगो को आंदोलन से जोड़ने के लिए बाटा गाया |

1918 में पथिक जी गाँधी जी से मिले ओर इस आन्दोलन के बारे में बताया | गाँधी जी अपने महासचिव महादेव देसाई को जाँच के लिए भेजा | गाँधी जी की इस आंदोलन में रुचि लेने के कारण अंग्रेज़ सरकार ने किसानों की मांगों के औचित्य की जांच करने के लिए अप्रैल 1919 में न्यायमूर्ति बिंदु लाल भट्टाचार्य जांच आयोग गठित हुआ लेकिन मेवाड़ राज्य ने कोई निर्णय नहीं लिया | 1922 में AGG हॉलेंड के प्रयासों से किसानों व रियासत के बीच एक समझौता हुआ लेकिन ठिकाने ने इसे भी लागू नहीं किया।ओर किसानों ने लगान एवं करों का भुगतान बंद कर दिया। विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन के मुद्दे को नागपुर कांग्रेस के अधिवेशन में उठाया।

नारायण पटेल कर देने से मन के देता है ओर जब इने जेल में डालने की कोशिश की जाती है तो 2000 से 3000 किसान इनके साथ खड़े हो जाते है | 

गणेश शंकर विद्यार्थी (संपादक थ) ने कानपुर से प्रकाशित अपने प्रताप नामक समाचार पत्र के माध्यम से इस आंदोलन को पूरे भारत में लोकप्रिय बना दिया। 1920 में विजय सिंहपथिक ने पहले वर्धा और फिर अजमेर से राजस्थान केसरी नामक पत्र का प्रकाशन किया। बिजोलिया किसान आंदोलन के बारे में मराठा(पूना), अभ्युदय(प्रयाग), भारतमित्र(कोलकाता), नवीन राजस्थान(अजमेर) समाचार पत्रों में लिखा गया |

1927 में विजय सिंह पथिक नेताओ के बीच आपसी मतभेद की वजह से इस आंदोलन से अलग हो जाते है |

तृतीय चरण (1927-1941 ) – नेतृत्व – माणिक्यलाल वर्मा

विजय सिंह पथिक जाने के बाद इस आंदोलन को माणिक्यलाल वर्मा, जमना लाल बजाज, हरिभाऊँ उपाध्याय, रामनारायण चौधरी, हरिभाई किंकर, रमा बाई, जानकी देवी आदि ने आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। 

1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर राघवाचारी एवं किसानों के बीच समझौता हो गया जिसमें सभी बाते मान ली गयी ओर आंदोलन का समाप्त हो गया। 

माणिक्यलाल वर्मा ने अपने ‘पंछीड़ा‘ गीत से किसानों में जोश भर दिया करते थे इस आंदोलन में।