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राजस्थानी लोकगीत – Rajasthani folk songs

राजस्थान के लोक गीत राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये गीत जनजीवन, इतिहास, भूगोल, त्योहारों, विवाह, विरह, कृषि, सामाजिक जीवन और धार्मिक अवसरों से जुड़े होते हैं।राजस्थान के लोकगीत यहाँ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो यहाँ के लोगों के जीवन, प्रेम, विरह, उल्लास और परंपराओं को दर्शाते हैं।

  • हमारी संस्कृति लोक गीतों के कन्धों पर चढ़कर आई है – रामचंद्र शुक्ल
  • लोकगीत हमारी संस्कृति के रक्षक / पहरेदार है- महात्मा गाँधी
  • लोकगीत हमारी संस्कृति में सुखद संदेश लाने की कला है – रविन्द्रनाथ टैगोर
  • लोकगीत जन समुदाय की आत्मा है – जवाहर लाल नेहरू
  • लोकगीत किसी संस्कृति के मुँह बोले चित्र होते हैं – देवेन्द्र सत्यार्थी

केसरिया बालम (Kesariya Balam) :- केसरिया बालम राजस्थान का राज्य गीत है, जो अतिथि सत्कार और प्रेम का प्रतीक है। इसे मांड गायन शैली में अल्ला जिलाई बाई जैसी विश्वविख्यात कलाकारों ने अमर कर दिया है। अल्लाह जिलाई बाई ने बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के दरबार में केसरिया बालम गीत को गाया था। केसरिया बालम को सर्वप्रथम मांगी बाई ने गाया था, जबकि इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि अल्लाह जिलाई बाई ने दिलाई थी। यह एक विरह गीत है जिसमें पत्नी अपने परदेस गए पति को देश आने का आह्वान करती है। केसरिया बालम, मूल रूप से ढोला-मारू की प्रेम कहानी से प्रेरित है, जिसमें प्रेमिका (मारू) अपने प्रेमी (ढोला) को पुकारती है। यह गीत योद्धाओं की बहादुरी और घर वापसी के सम्मान को भी दर्शाता है।

पधारो म्हारे देश :- पधारो म्हारे देश (Padharo Mhare Des) राजस्थान पर्यटन विभाग का पारंपरिक गीत या आदर्श वाक्य है। गीत मेहमानों का स्वागत करने के लिए गाया जाता है, जो राजस्थान की आतिथ्य सत्कार की परंपरा को दर्शाता है। केसरिया बालम पधारो आओ नी पधारो जी म्हारे देश, मांड गायिका मांगी बाई द्वारा गाया गया है।

चिरमी (Chirmi) :- चिरमी गीत, एक विवाहित महिला द्वारा अपने मायके (माता-पिता के घर) से भाई या पिता के आने की प्रतीक्षा में गाया जाता है। यह गीत एक नवविवाहित दुल्हन की भावनाओं को व्यक्त करता है जो ससुराल में अपने परिवार के आने का इंतजार करती है। चिरमी एक पौधे का प्रतीक है

चिरजा :- राजस्थान में लोग देवियों के भजन को चिरजा कहते है।

मूमल:- जैसलमेर क्षेत्र का मूमल गीत लोद्रवा की राजकुमारी मूमल की सुंदरता का वर्णन करता है। मूमल गीत अमरकोट के राणा महेंद्र और जैसलमेर के लोद्रवा की एक राजकुमारी मूमल की प्रेम कहानी पर आधारित है। मूमल गीत राजस्थानी लोकगीत है जो एक युवा लड़की की सुंदरता का वर्णन करता है

हिचकी :- हिचकी गीत अलवर-मेवात क्षेत्र का प्रसिद्ध गीत हैं। हिचकी गीत प्रियतम को याद (हिचकी आने) करते हुए गाया जाता है।

ढोला-मारू :- ढोला और मारू की प्रेम कहानी पर आधारित लोग गीत हैं। यह गीत सिरोही, जैसलमेर और जोधपुर क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है। नरवर के राजकुमार ढोला और पूगल (राजस्थान) की राजकुमारी मारू की प्रेम कहानी पर आधारित एक लोकगीत है। ‘ढोला मारू रा दूहा’ की रचना कवि कल्लोल ने की थी।

घुड़ला :- घुड़ला एक मिट्टी का घड़ा होता है, जिसे महिलाएं कुम्हार के घर से खरीदती हैं और फिर उसमें एक छेद करके उसमें एक जला हुआ दीपक रख देती हैं और उसे अपने सिर पर रखकर मोहल्ले में घूमती हुई घुड़ला गीत गाती हैं। यह त्यौहार मुख्य रूप से मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में शीतला सप्तमी से चैत्र शुक्ल तृतीया तक मनाया जाता है। उदाहरण: “घुड़लो घूमेला जी घूमेला”।

गोरबंद (Gorband) :- गोरबंद गीत ऊँट का श्रृंगार करते समय गाया जाता है। ऊँट के गले के आभूषण को भी ‘गोरबंद’ कहते हैं। यह मारवाड़ क्षेत्र में प्रसिद्ध है।

कुरजाँ (Kurja) :- यह एक विरह गीत है जिसमें विरहिणी स्त्री कुरजाँ (एक पक्षी) के माध्यम से अपने परदेसी पति को संदेश भेजती है। यह मुख्य रूप से मारवाड़ क्षेत्र में गाया जाता है।

मोरिया :- मोरिया गीत उस लड़की द्वारा गाया जाता है जिसकी सगाई हो गई है लेकिन अभी तक शादी नहीं हुई है। इसमें एक महिला की अपने प्रियतम के लिए प्रतीक्षा, विरह और उम्मीद की भावनाएं व्यक्त की जाती हैं।

झोरावा (Jorawa) :- झोरावा गीत एक महिला द्वारा तब गाया जाता है जब उसका पति या प्रेमी परदेश गया हो और वह उसके वियोग में हो। यह जैसलमेर क्षेत्र का प्रसिद्ध विरह गीत है।

जीरा लोकगीत :- जीरे की फसल में अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है इसलिए पत्नी अपने पति को जीरा की फसल नहीं बोने के लिए जीरा गीत गाती है यह गीत आमतौर पर जीरा उगाने से होने वाली परेशानियों और थकावट को दर्शाता है। उदाहरण “ओ जीरो जीव रो बैरी रे, मत बाओ म्हारा परण्या जीरो” है।

सुवटियो (Suvatiyo) :- यह भील स्त्री द्वारा अपने परदेस गए पति को संदेश भेजने के लिए गाया जाने वाला गीत है। यह मुख्य रूप से मेवाड़ क्षेत्र में प्रसिद्ध है।

हमसीढो :- हमसीढो उत्तरी मेवाड़ का एक प्रसिद्ध लोकगीत है जो भील समुदाय द्वारा गाया जाता है, जिसमें पुरुष और महिलाएं एक साथ मिलकर गीत गाते हैं।

घूमर (Ghoomar) :- घूमर राजस्थान का पारंपरिक लोक गीत और लोक नृत्य है और घूमर नृत्य मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा शादियों, त्योहारों (जैसे गणगौर, तीज, होली) और वधू के आगमन जैसे शुभ अवसरों पर किया जाता है। घूमर भील जनजाति का एक पारंपरिक लोक नृत्य है जो देवी सरस्वती की पूजा के लिए किया जाता है। घूमर गीत राजस्थान राज्य नृत्य घूमर के साथ गाया जाता है।

हरजस (Harjas) :– ये सगुण भक्ति के लोकगीत हैं जो भगवान राम और कृष्ण को संबोधित करके गाए जाते हैं। ये वृद्ध व्यक्ति की मृत्यु पर (जिसे ‘हरि का हिंडोला’ कहते हैं) भी गाए जाते हैं।

लांगुरिया (Languriya) :- यह कैला देवी (करौली) के भक्तों द्वारा मेले के दौरान गाया जाने वाला भक्ति गीत है।

सूपना (Supna) :- सूपना गीत में एक महिला अपने प्रेमी को सपने में देखकर खुशी और उदासी की भावनाएं व्यक्त करती है। यह एक प्रेम गीत है जो अक्सर विवाह और प्रेम संबंधों के संदर्भ में गाया जाता है।

कांगसियो (Kangasiyo) :- कंघे (comb) से संबंधित श्रृंगारिक गीत।

बिछुड़ो (Bichhudo) :- बिछुड़ो हाड़ौती क्षेत्र का लोकगीत, जिसमें बिच्छू के काटने के बाद पत्नी अपने पति को दूसरी शादी करने के लिए कहती है।

बना-बानी :- विवाह के अवसर पर दूल्हा (बना) और दुल्हन (बानी) की प्रशंसा में गाया जाता है। महिलाएं अलग-अलग गीत गाती हैं।

घोड़ी :- बारात निकलते समय दूल्हे की घोड़ी की प्रशंसा में गाया जाता है। उदाहरण: “घोड़ी म्हारी चंद्रमुखी, इंद्रलोक सुं आई ओ राज”।

पावणा :- पावणा गीत ससुराल में दामाद के स्वागत में भोजन परोसते समय गाया जाता है। उदाहरण: “एक बार आओ जी जवाई जी पावणा”।

ओल्यूं (या ओलु): – ओल्यूं गीत दुल्हन की विदाई के समय दुल्हन पक्ष द्वारा गाया जाने वाला भावुक गीत, प्रिय की याद में।

कोयलडी :- कोयलडी गीत दुल्हन की विदाई के समय महिलाओं द्वारा गाया जाता है।

जलो/जलाल :– जलो गीत, बारात का डेरा देखने जाते समय वधू पक्ष की महिलाओं द्वारा गाया जाता है। उदाहरण: “म्हे तो थारा डेरा निरखण आई ओ”।

कामण/कामन :- दूल्हे को जादू-टोने से बचाने के लिए कामण गीत गाए जाते हैं।

सीठणे :- विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले गाली गीत को सीठणे कहते हैं। विवाह में हंसी-ठिठोली में गाली गीत, वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष पर व्यंग्य।

बिंदोला :- विवाह से पहले दूल्हे के रिश्तेदारों द्वारा गाया जाता है।

बधावा :- पुत्र या पुत्री के विवाह या शुभ अवसर पर गाए जाने वाले मांगलिक गीतों को बधावा कहते हैं।

काजलियो :- भाभी द्वारा दूल्हे की आंखों में काजल लगाते समय गाया जाता है।

पीठी :- वर-वधू को उबटन/पीठी लगाते समय गाया जाता है।

दुपट्टा :- शादी के अवसर पर दूल्हे की सालियों द्वारा गाया जाने वाला गीत की दुपट्टा गीत कहते हैं

पीपली :- वर्षा ऋतु में पत्नी द्वारा पति को घर बुलाने वाले गीतों को पीपली गीत कहते हैं। यह मारवाड़, शेखावाटी और बीकानेर क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के समय गाया जाता है। पीपली एक विरह गीत हैं।

कागा :- एक पत्नी कौवे से अपने पति को संदेश पहुंचाने के लिये आगन में बैठे कौवे को उड़ने का आग्रह करती है, ताकि वे विदेश से लौट आएं। कौवे को देखकर अपने पति के लौटने की खुशी और उम्मीद जताती है।। उदाहरण: “उड़-उड़ रे म्हारा काळा रे कागला”।

पपैयो :- श्रावण में पपैया पक्षी के माध्यम से प्रियतम से मिलने की प्रार्थना। दाम्पत्य प्रेम का आदर्श।

लावणी :- नायक द्वारा नायिका को बुलाने का श्रृंगारिक या भक्ति गीत। उदाहरण: मोरध्वज, भरथरी।

गणगौर लोकगीत :- गणगौर त्योहार पर देवी पार्वती को समर्पित। उदाहरण: “खेलन द्यो गणगौर, भँवर म्हानै खेलन द्यो गणगौर”।

रातीजगा :- शुभ अवसरों पर रात भर भजन, देवी-देवताओं की आराधना में गाये जाते हैं उन्हें रातीजगा कहा जाता है।

हींडो: हींडो गीत श्रावण में झूला झूलते समय गाया जाता है। उदाहरण: “सावणियै रौ हींडौ रे बाँधन जाय”।

रसिया :- भरतपुर धौलपुर क्षेत्र के लोकगीत को रसिया कहते हैं

तेजा गीत :- किसान खेत की बुआई करते समय तेजाजी की भक्ति में तेजा गीत गाता है

मायरा/भात गीत :- शादी में मामा द्वारा भात/मायरा बरते समय महिलाओं द्वारा भात गीत गाया जाता है।

पछिंडा गीत :- पछीड़ा लोकगीत हाड़ौती और ढूंढाड़ क्षेत्र में मेलों में गाया जाने वाला प्रसिद्ध लोकगीत है

लसकरिया गीत :- लसकरिया गीत शेखावाटी में कच्ची घोड़ी नृत्य करते समय गाया जाता है।

इंडोनी :- इंडोनी लोकगीत महिलाओं द्वारा कुएं से पानी भरने जाते समय गाया जाता है।

पणिहारी :- रेगिस्तानी इलाकों में पानी की कमी के दौरान पानी की प्रशंसा में यह गीत गाया जाता है।

धूसो लोकगीत :- “धूसो बाजे रे राठौड़ा मारवाड़ में” राजस्थानी लोकगीत है जो मारवाड़ और जोधपुर राजघराने की वीरता और गौरव का वर्णन करता है। इस गीत का अर्थ है ‘ढोल बज रहे हैं राठौड़ मारवाड़ में’। धूसो लोकगीत में अजित सिंह की धाय माँ गौरा धाय का वर्णन किया जाता है

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संविधान सभा में राजस्थान के सदस्य

संविधान सभा में राजस्थान के 11 सदस्य को राजस्थान की विभिन्न रियासतों से शामिल किया गया और राजस्थान की रियासतों के 4 प्रशासनिक अधिकारी को संविधान सभा सदस्य बनाया गया था। राजस्थान से संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति उदयपुर के बलवंत सिंह मेहता थे। संविधान निर्माण में राजस्थान के चित्रकार कृपाल सिंह शेखावत का योगदान था।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1935 के लखनऊ अधिवेशन में संविधान सभा बनाने की मांग को अपना लिया और इसे औपचारिक रूप से उठाया। यह मांग भारत सरकार अधिनियम, 1935 के पारित होने के बाद की गई थी और इसका उद्देश्य वयस्क मताधिकार के आधार पर भारत के लिए एक संविधान का निर्माण करना था।

1938 में, जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की कि स्वतंत्र भारत का संविधान एक निर्वाचित संविधान सभा द्वारा बनाया जाएगा और इसमें कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं होगा। यह मांग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से की गई थी और इसे ब्रिटिश सरकार द्वारा सैद्धांतिक रूप से स्वीकार किया गया था, जिसे बाद में ‘अगस्त प्रस्ताव’ के नाम से जाना गया।

संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना 1946 के तहत 6 दिसंबर 1946 को हुआ था। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई, जिसमें डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को बाद में संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना गया।

  • प्रारूप समिति (29 अगस्त 1947) के अध्यक्ष डॉ भीमरांबेडकर को बनाया गया।
  • संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार बी. एन. राव थे।
  • जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव 13 दिसंबर, 1946 को पेश किया था, जिसे 22 जनवरी, 1947 को अपनाया गया था। इस प्रस्ताव में भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया और इसमें लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के साथ समानता और स्वतंत्रता की गारंटी दी गई।
  • भारत का संविधान बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन लगे थे। यह प्रक्रिया 9 दिसंबर 1946 को शुरू हुई थी और 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा इसे अपनाया गया था।
  • 26 जनवरी 1950 को संविधान को पूरे देश में लागू किया गया।
  • संविधान सभा की अंतिम बैठक संविधान निर्माण के लिए 24 नवंबर 1949 में हुई, जिसमें 284 लोगों ने हस्ताक्षर किए। संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे।
  • राजस्थान से हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति उदयपुर के बलवंत सिंह मेहता थे।
  • संविधान निर्माण में राजस्थान के चित्रकार कृपाल सिंह शेखावत का योगदान था। उन्होंने प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस के साथ मिलकर संविधान की मूल प्रति में चित्रकारी की थी।
  • संविधान सभा में राजस्थान के 11 लोगों को राजस्थान की विभिन्न रियासतों से शामिल किया गया।

संविधान सभा के सदस्य (राजस्थान के निवासी)

सदस्य नाम रियासत
मुकुट बिहारी लाल भार्गवअजमेर-मेरवाड़ा
माणिक्यलाल वर्मा उदयपुर
जय नारायण व्यास जोधपुर
बलवंत सिंह मेहता उदयपुर
रामचंद्र उपाध्याय अलवर
दलेल सिंह कोटा
गोकुल लाल असावाशाहपुरा (भीलवाड़ा)
जसवंत सिंह बीकानेर
राज बहादुर भरतपुर
हीरालाल शास्त्री जयपुर
सरदार सिंह खेतड़ी

संविधान सभा के सदस्य (जो राजस्थान की रियासतों में प्रशासनिक अधिकारी थे)

सदस्य नामरियासत (प्रशासनिक अधिकारी) विशेषता
सर वी. टी. कृष्णामाचारी जयपुर रियासत में प्रशासनिक अधिकारीडी पी खेतान के निधन के बाद संविधान की प्रारूप समिति के सदस्यों बने।
सी. एस. वेंकटाचारी जोधपुर 6 जनवरी 1951 से 25 अप्रैल 1951 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे।
के. एम. पन्निकर बीकानेरस्वतंत्रता के बाद इन्हें चीन, फ्रांस तथा मिस्र का राजदूत बनाया गया।
सर. टी. विजयराघवाचार्या उदयपुरमेवाड़ के प्रधानमंत्री रहे।

इनके अतिरिक्त राजस्थान मूल के प्रवासी भी विभिन्न क्षेत्रों से संविधान सभा के सदस्य चुने गए –

  • बनारसीदास झुनझुनवाला (बिहार क्षेत्र से)
  • प्रभुदयाल हिम्मत सिंह (पश्चिम बंगाल क्षेत्र से)
  • पदमपत सिंघानिया (उत्तर प्रदेश क्षेत्र से)

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राजस्थान की जलवायु – Climate of Rajasthan

राजस्थान, भारत का सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान की जलवायु की प्रकृति उपोष्णकटिबंधीय (Subtropical) है, लेकिन प्रमुख रूप से शुष्क (Arid) एवं अर्द्ध-शुष्क (Semi-Arid) मानसूनी जलवायु पाई जाती है। राजस्थान में कर्क रेखा बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ से होकर गुजरती है। अरावली पर्वतमाला की स्थिति मानसूनी पवनों के लगभग समानांतर है, जो राज्य में कम वर्षा का एक प्रमुख कारण है। अरावली का दक्षिणी भाग सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करता है और अरावली के उत्तरी क्षेत्र में बारिश बहुत कम होती है।

  • राजस्थान में वार्षिक वर्षा लगभग 58 सेंटीमीटर है। राजस्थान में अधिकांश वर्षा (लगभग 90%) दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है। माउंट आबू राजस्थान का सबसे ज़्यादा वर्षा वाला स्थान है, जबकि जिलों के आधार पर झालावाड़ सबसे ज़्यादा औसत वार्षिक वर्षा होती हैं और राजस्थान में सबसे कम बारिश जैसलमेर जिले में होती है, जहाँ औसत वार्षिक वर्षा लगभग 17 सेंटीमीटर है।
  • राजस्थान का सबसे गर्म महीना जून और सबसे ठंडा महीना जनवरी होता है।
  • राजस्थान में सर्वाधिक आँधियों गंगानगर जिले में चलती है

लू (Loo):- ग्रीष्मकाल में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवाएँ।

मावट (Mawat) :- मावट सर्दियों में होने वाली पश्चिमी विक्षोभ के कारण होने वाली वर्षा को कहते हैं, जो मुख्य रूप से राजस्थान और उत्तर-पश्चिम भारत में होती है। यह रबी की फसलों, जैसे गेहूं, चना और सरसों के लिए बहुत लाभदायक होती है और इसे “सुनहरी बूँदें” भी कहा जाता है। 

भारतीय मौसम विभाग ने राजस्थान की जलवायु को वर्षा, तापमान और आर्द्रता के आधार पर पांच भागों में वर्गीकरण किया।

  • 1. शुष्क जलवायु (Arid):- जैसलमेर, बीकानेर का पश्चिमी भाग, बाड़मेर का पश्चिमी भाग शुष्क जलवायु प्रदेश के अंदर आता है और इसमें नगण्य वर्षा (10-20 सेमी) होती है। मरुद्भिद (जीरोफाइट) प्रकार की वनस्पति पाई जाती हैं।
  • 2. आर्द्र शुष्क जलवायु(Semi-Arid/Steppe):- अरावली के पश्चिम में, जैसे नागौर, सीकर, झुंझुनूं, जोधपुर, बाड़मेर का पूर्वी भाग में आर्द्र शुष्क जलवायु पाई जाती हैं और आर्द्र शुष्क जलवायु में स्टेपी प्रकार की वनस्पति पाई जाती हैं।
  • 3. उप आर्द्र जलवायु (Sub-Humid):- अरावली के पूर्वी ढाल, जैसे जयपुर, अजमेर, अलवर में पाई जाती हैं।
  • 4. आर्द्र जलवायु (Humid):- पूर्वी मैदान, जैसे भरतपुर, सवाई माधोपुर, धौलपुर, कोटा का कुछ भाग में आर्द्र जलवायु पाई जाती हैं।
  • 5. अति आर्द्र जलवायु (Very Humid):- दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान, जैसे झालावाड़, बाँसवाड़ा तथा माउंट आबू क्षेत्र में अति आर्द्र जलवायु पाई जाती हैं और इसमें सर्वाधिक वर्षा होती हैं। राजस्थान में सवाना-तुल्य वनस्पति मुख्य रूप से अति-आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों में पाई जाती है

वर्षा के आधार पर राजस्थान को 5 भागों में वर्गीकरण किया गया है।

जलवायु वर्षा (सेमी.)प्रमुख क्षेत्र
शुष्क0-20जैसलमेर, बाड़मेर , बीकानेर, चूरू, बालोतरा
अर्ध-शुष्क20-40जोधपुर, फलौदी, सीकर, झुंझुनूं, नागौर
उप-आर्द्र40-60जयपुर, अजमेर, अलवर
आर्द्र60-80कोटा, सवाईमाधोपुर, भरतपुर, बूंदी
अति-आर्द्र80+झालावाड़, बांसवाड़ा, सिरोही

कोपेन :- कोपेन ने राजस्थान की जलवायु को शुरुआत (1900) में वनस्पति के आधार पर 4 भागों में वर्गीकरण किया। लेकिन कोपेन ने बाद (1918) में राजस्थान की जलवायु को वनस्पति, तापमान और वर्षा के आधार पर चार भागों में वर्गीकरण किया।

कोडप्रकारक्षेत्र
Awउष्ण कटिबंधीय आर्द्र/अति-आर्द्र जलवायु दक्षिण-पूर्वी (झालावाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर)
Cwgउप-आर्द्र मानसूनीपूर्वी (जयपुर, अलवर, भरतपुर, अजमेर,ब्यावर, दौसा)
BShwअर्ध-शुष्क स्टेपीमध्य (बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, जालोर)
BWhwउष्ण शुष्क मरुस्थलीयउत्तर-पश्चिम (जैसलमेर, बीकानेर)

थॉर्नथवेट वर्गीकरण :- थॉर्नथवेट ने राजस्थान की जलवायु वाष्पीकरण के आधार पर चार भागों में वर्गीकृत किया था

प्रकारविशेषताविस्तार क्षेत्र
E A’ dउष्ण कटिबंधीय शुष्क मरुस्थलीय जलवायुजैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर, बाड़मेर का पश्चिमी भाग
D B’ w अर्द्ध-शुष्क/स्टेपी जलवायु मध्यवर्ती भाग, जैसे नागौर, चूरू, जोधपुर, जालोर का पूर्वी भाग
D A’ wउप-आर्द्र जलवायु जयपुर, अलवर, कोटा, सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा
C A’ w उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर का दक्षिणी-पूर्वी भाग

राजस्थान की जलवायु पर question and answers

Q. कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार, राजस्थान के किन जिलों में ‘स्टेपी जलवायु’ पायी जाती है?

  • (A) बाड़मेर, जालौर और जोधपुर
  • (B) जैसलमेर और बीकानेर
  • (C) गंगानगर और हनुमानगढ़
  • (D) जयपुर, दौसा और टोंक
  • उत्तर: (A) – अर्द्ध शुष्क (BShw) जलवायु

Q. कॉपेन के वर्गीकरण के अनुसार, राजस्थान के कौन से भागों में ‘Aw’ प्रकार का जलवायु प्रदेश पाया जाता है ?

  • (A) दक्षिण-पूर्वी भाग
  • (B) मध्यवर्ती एवं उत्तरी भाग
  • (C) उत्तरी एवं उत्तरी-पूर्वी भाग
  • (D) पश्चिमी एवं दक्षिण-पश्चिमी भाग
  • उत्तर: (A) – दक्षिण-पूर्वी (बांसवाड़ा आदि)

Q. निम्नलिखित में से राजस्थान के किन जिलों में उप-आर्द्र जलवायु पायी जाती है ?

  • (A) जयपुर, अजमेर, अलवर, टोंक
  • (B) उदयपुर, राजसमंद, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़
  • (C) कोटा, बारां, बूंदी, झालावाड़
  • (D) गंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, चूरू
  • उत्तर: (A)

Q. राजस्थान की जलवायु के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों को पढ़िए: (i) पूर्व और दक्षिण से उत्तर की ओर वर्षा की मात्रा घटती है। (ii) रेत की अधिकता के कारण दैनिक और वार्षिक तापान्तर अधिक है। (iii) ग्रीष्म ऋतु में उच्च दैनिक तापमान 49°C तक पहुँच जाता है। सही कूट ?

  • (A) (i) और (ii)
  • (B) (i) और (iii)
  • (C) (ii) और (iii)
  • (D) सभी
  • उत्तर: (D)

Q. कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार, बाड़मेर एवं झुंझुनूं जिले किस जलवायु प्रदेश में समाहित हैं ?

  • (A) BWhw
  • (B) BShw
  • (C) Cwg
  • (D) Aw
  • उत्तर: (B)

Q. कोपेन ने जलवायु प्रदेश के वर्गीकरण का आधार किसे माना है ?

  • (A) वनस्पति
  • (B) वर्षा
  • (C) तापमान
  • (D) वायुदाब
  • उत्तर: (A)

Q. किस जलवायु प्रदेश में सवाना तुल्य वनस्पति पाई जाती है ?

  • (A) Aw
  • (B) BShw
  • (C) BWhw
  • (D) Cwg
  • उत्तर: (A)

Q. कोपेन वर्गीकरण का निम्नलिखित में से कौन सा कोड झालावाड़ जिले की जलवायु को निरूपित करता है ?

  • (A) Cwg
  • (B) Aw
  • (C) BShw
  • (D) BWhw
  • उत्तर: (B)

Q. कोपेन के अनुसार, राजस्थान में कौन सा जलवायु प्रकार उष्ण कटिबंधीय शुष्क (मरुस्थलीय) जलवायु को दर्शाता है ?

  • (A) Aw
  • (B) Cwg
  • (C) BShw
  • (D) BWhw
  • उत्तर: (D)

Q. राजस्थान के किस भाग में ‘BWhw’ प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं ?

  • (A) दक्षिण-पूर्व
  • (B) उत्तर-पश्चिम
  • (C) पूर्वी
  • (D) मध्य
  • Ans.(B) – मरुस्थलीय

Q. राजस्थान में सबसे अधिक आर्द्रता वाला जिला कौन सा है ?

  • (A) जैसलमेर
  • (B) झालावाड़
  • (C) चुरू
  • (D) बीकानेर
  • Ans. (B)

Q. थॉर्नथवेट वर्गीकरण के अनुसार, राजस्थान का कौन सा भाग ‘EA’d’ जलवायु वाला है?

  • (A) पूर्वी मैदान
  • (B) पश्चिमी मरुस्थल
  • (C) दक्षिणी पहाड़ी
  • (D) उत्तरी मैदान
  • उत्तर: (B) – उष्ण शुष्क

Q. राजस्थान में ग्रीष्म ऋतु में लू चलने का मुख्य कारण क्या है ?

  • (A) उच्च वायुदाब
  • (B) निम्न वायुदाब
  • (C) मानसूनी हवाएँ
  • (D) पश्चिमी विक्षोभ
  • उत्तर: (B)

Q. राजस्थान में भारतीय मौसम विभाग की वैद्यशाला कहाँ है ?

  • (a) अजमेर
  • (b) झालावाड़
  • (c) जयपुर
  • (d) जोधपुर
  • Ans. (C)

Q. मौसम विभाग ने राजस्थान की जलवायु को कितने भागों में विभाजित किया गया ?

  • (a). 5
  • (b). 4
  • (c). 6
  • (d). 7
  • Ans. (A)

Q. राजस्थान में अरब सागरीय मानसून का प्रवेश द्वार कौन-से जिले को कहा जाता है ? Ans. बाँसवाड़ा

Q. वर्षा की मात्रा के आधार पर जलवायु का वर्गीकरण किसने किया ? Ans.ट्रिवाथा

Q. ग्रीष्म काल में राजस्थान में उत्पन्न छोटे वायु भंवर (चक्रवात) को क्या कहते है ?

  • (a) लू
  • (b) भभूल्या
  • (c) पुरवड्या
  • (d) जोहड़
  • Ans. (B)

Q. कोपेन के वर्गीकरण के अनुसार ‘सवाना तुल्य वनस्पति’ किस जलवायु प्रदेश में मिलती है?

  • (a) Bshw
  • (b) Cwg
  • (C) AW
  • (d) Bwhw
  • Ans. (C)

Q. राजस्थान में अधिकांश वर्षा किन पवनों से होती है ?

  • (a) पछुआ पवनें
  • (b) पश्रिमी विक्षोभ
  • (C) दक्षिणी-पश्चिमी मानसून
  • (d) इनमें से कोई नहीं
  • Ans. (C)

Q. राजस्थान में कौन-सी जलवायु नहीं पाई जाती है ?

  • (a) आर्द्र
  • (b) उष्ण
  • (c) ध्रुवीय
  • (d) अर्द्ध शुष्क
  • Ans. (C)

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राजस्थान की मृदा – Soil of Rajasthan

पृथ्वी की वह ऊपरी परत जो मूल चट्टानें, वनस्पति , जीव जंतु, खनिज पदार्थ, वायु, जल आदि पदार्थों के मिश्रण से बनती है उसे मिट्टी कहते हैं। राजस्थान, भारत का सबसे बड़ा राज्य, अपनी विविध भौगोलिक संरचना के कारण विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का घर है। राज्य की मिट्टियाँ मुख्य रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु, मरुस्थलीय प्रभाव, नदी घाटियों और पर्वतीय क्षेत्रों से प्रभावित हैं। राज्य में मिट्टियों का कुल क्षेत्रफल का 60% से अधिक मरुस्थलीय या अर्ध-मरुस्थलीय हैं। मिट्टियों की उर्वरता पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ती जाती है, जहाँ चंबल, बनास, माही और लूनी नदियों की घाटियाँ सबसे उपजाऊ हैं।

राजस्थान में मुख्य रूप से पाँच प्रकार की मिट्टी पाई जाती है: एंटीसोल (रेतीली मिट्टी), एरिडीसोल (शुष्क मिट्टी), अल्फीसोल (जलोढ़ मिट्टी), इन्सेप्टिसोल (आर्द्र मिट्टी), और वर्टिसोल (काली मिट्टी)।

प्रकारविशेषताएँवितरण क्षेत्रउर्वरता
एन्टिसोल (रेगिस्तानी)हल्का पीला-भूराजालौर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, चुरू, झुंझुनू, नागौर (पश्चिमी सभी जिले)यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है।
एरिडोसोल (शुष्क)रेतीली, कम कार्बनिक पदार्थचूरू, सीकर, झुंझुनू, नागौर, पाली, जोधपुर, फलोदी, कूचामन-डीडवानायह मिट्टी कम उपजाऊ होती है।
अल्फिसोल (जलोढ़)मटियारी, पोटाश अधिकजयपुर, अलवर, भरतपुर, कोटा, झालावाड़, धौलपुर, डीग, टोंक, अजमेर, करौलीउच्च
इनसेप्टिसोल (पथरीली)अर्द्ध-शुष्क, लौह ऑक्साइड अधिकसिरोही, बांसवाड़ा , उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ , राजसमंद, सलूंबरमध्यम
वर्टिसोल (काली)क्ले अधिक, उच्च जल धारणझालावाड़, बारां, कोटा, बूंदीउच्च
Soil of rajasthan

एन्टिसोल (रेगिस्तानी/Sandy Soil/Desert Soil) :- राजस्थान के सर्वाधिक क्षेत्र फल में एंटीसोल मिट्टी पाई जाती है। राजस्थान के 12 शुष्क मरुस्थलीय जिलों में एंटीसोल मिट्टी पाई जाती हैं। यह मिट्टी पश्चिमी राजस्थान में पायी जाती है। यह मिट्टी जालौर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, चुरू, झुंझुनू, नागौर आदि जिलों के अधिकांश भागों में पायी जाती है। यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है। कण मोटे होते हैं, नमी धारण करने की क्षमता कम होती है।

एरिडोसोल (शुष्क)Aridosol :- ये मिट्टी राजस्थान के अर्धशुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र में पाई जाती है। यह सीकर, झुंझुनू, चुरू, नागौर, पाली, जालोर के अर्ध-शुष्क रेगिस्तानी जिलों में पाया जाता है।इसे बलुई मिट्टी के रूप में भी जाना जाता है।

इनसेप्टिसोल (पथरीली) :- ये मिट्टी अरावली पर्वतमाला के पर्वतीय ढाल के आसपास मिलती है

जलोढ़ मिट्टी – Alluvial soil (कछारी मिट्टी) :- इस मिट्टी का निर्माण नदियों के प्रवाह से होता है। यह मिट्टी अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र में पाई जाती है और ये मिट्टी राजस्थान के पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में पाई जाती है यह राज्य के उत्तर-पूर्वी जिलों, गंगानगर, हनुमानगढ़, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, दौसा, जयपुर और टोंक में पाया जाता है।

  • इसमें चूना, फास्फोरस, पोटैशियम तथा लौह भाग भी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं, परन्तु नाइट्रोजन की कमी पायी जाती है।
  • यह मिट्टी गेहूँ, सरसों, कपास, चावल और तम्बाकू के लिए उपयोगी है।
  • नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी, सर्वाधिक उपजाऊ होती है। इसे दोमट मिट्टी भी कहते हैं।

काली मिट्टी (रेगुर)(Black Soil) :- यह मिट्टी राज्य के दक्षिण-पूर्वी जिलों (हाड़ौती क्षेत्र) कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ में पाई जाती है। यह लावा चट्टानों के टूटने-फूटने से बनती है।

  • इस मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम तथा पोटाश पाया जाता है।
  • नाइट्रोजन की कमी पायी जाती है।
  • यह एक उपजाऊ मिट्टी है, जिसमें व्यावसायिक फसलों, गन्ना, धनिया, चावल और सोयाबीन की अच्छी उपज प्राप्त होती है।
  • इसे रेगुर मिट्टी या कपासी मिट्टी भी कहते हैं। इसमें नमी धारण करने की क्षमता सबसे अधिक होती है।
  • काली मिट्टी के कणों की आकार सबसे कम होता है।

अल्फीसोल:-यह पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी है। यह सबसे उपजाऊ मिट्टी है और गेहूं, चावल, कपास जैसी फसलों के लिए उपयुक्त है।

इन्सेप्टिसोल:- यह राजस्थान के दक्षिण में स्थित उप-आर्द्र क्षेत्रों में पाई जाती है, जिसमें सिरोही, उदयपुर और चित्तौड़गढ़ जिले शामिल हैं।

वर्टिसोल:- इसे काली मिट्टी भी कहते हैं और यह हाड़ौती क्षेत्र में बहुतायत में पाई जाती है। यह लावा चट्टानों के टूटने-फूटने से बनती है।

लाल पीली मिट्टी (Red Yellow Soil) :- इसमें लोहे के तत्वों की अधिकता के कारण रंग लाल होता है। इसमें चूने और नाइट्रोजन की कमी होती है।

  • इस प्रकार की मिट्टी सवाईमाधोपुर, सिरोही, राजसमंद, उदयपुर तथा भीलवाड़ा जिले के पश्चिमी भागों में पाई जाती है।
  • यह मिट्टी मूंगफली और कपास की खेती के लिए उपयुक्त होती है।

लैटेराइट मिट्टी (Laterite soil) :- लौह तत्व की उपस्थिति के कारण इस मिट्टी का रंग लाल दिखाई देता है, इस मिट्टी में मक्का, चावल और गन्ना की खेती की जाती है। यह मध्य और दक्षिणी राजसमंद जिले के डूंगरपुर, उदयपुर में पाया जाता है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, ह्यूमस आदि की कमी होती है।

लवणीय मिट्टी (Saline Soi) :- राजस्थान में यह मिट्टी मुख्यतः गंगानगर, बीकानेर, बाड़मेर, जालौर में पायी जाती है। इस मिट्टी में लवणीय और क्षारीय तत्वों की मात्रा अधिक होने के कारण यह अनुपजाऊ मिट्टी है। जिप्सम, हरी खाद, रॉक फास्फेट आदि के प्रयोग से इस लवणीय मिट्टी को उपजाऊ बनाया जा सकता है।

लाल दोमट मिट्टी :– लाल दोमट मिट्टी में मुख्यतः मक्का की खेती की जाती है। लाल दोमट मिट्टी में नाइट्रोजन, कैल्शियम, फास्फोरस तत्वों की कमी तथा लौह एवं पोटाश तत्वों की प्रधानता पाई जाती है

मिट्टी की अम्लीय को बेअसर करने और संतुलित pH मान बहाल करने के लिए चूना डालना एक आम तरीका है। अम्लीय मिट्टी में कृषि चूना या डोलोमाइट जैसी सामग्री मिलाने से पीएच स्तर बढ़ सकता है और पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार हो सकता है।

क्षारीय मिट्टी का pH स्तर ऊँचा होता है। इससे पोषक तत्वों में असंतुलन पैदा हो सकता है।क्षारीय मिट्टी को सुधारने के लिए कैल्शियम क्लोराइड (CaCl2) या यूरिया आधारित उर्वरक देने की योजना का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

सैम मृदा समस्या एक जलभराव से जुड़ी गंभीर समस्या है जहाँ भूजल का स्तर ऊपर आ जाता है, जिससे जमीन दलदली हो जाती है और अनुपजाऊ हो जाती है। इसके कारण मिट्टी की उर्वरता घट जाती है, जिससे कृषि भूमि बंजर हो जाती है। राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर जैसे जिले इस समस्या से प्रभावित हैं। इंदिरा गांधी नहर जैसे क्षेत्रों में, लगातार या बहुत अधिक सिंचाई के कारण पानी जमीन द्वारा सोखा नहीं जा पाता और जमा हो जाता है। सैम की समस्या से प्रभावित क्षेत्रों में सफेद जैसे अधिक पानी सोखने वाले पेड़ लगाना।

सैम (जलभराव) मृदा समस्या के समाधान के लिए, बेहतर जल निकासी प्रणालियाँ (जैसे नालियां बनाना), उचित कृषि पद्धतियाँ (जैसे समोच्च जुताई, पट्टीदार खेती और फसल चक्र), और वृक्षारोपण (विंडब्रेक और कवर फसलें) जैसे उपाय अपनाए जा सकते हैं।

Q. अम्लीय मृदाओं में किसके प्रयोग से सुधार किया जाता है?

  • (A). यूरिया
  • (B) .चूना
  • (C). जिप्सम
  • (D). गंधक
  • Ans (B)

Q. मृदा में खारेपन के दुष्प्रभाव को कम करने हेतु प्रयोग किया जाता है ?

  • (A). बेंचा – जौ
  • (B). धमासा – सूबबूल
  • (C). लसोड़ा- मोरिंगा
  • (D). पीलू सेवण
  • Ans.(B)

Q. निम्न में से कौनसी पर्यावरणीय समस्या “रेगती मृत्यु ” कहलाती है ?

  • (A). जल प्रदूषण
  • (B). जनसंख्या वृद्धि
  • (C). मृदा अपरदन
  • (D). निर्वनीकरण
  • Ans. (C)

Q. राजस्थान में, निम्नलिखित में से किस प्रकार की मिट्टी को सबसे उपजाऊ प्रकार की मिट्टी माना जाता है?

  • (A). रेतीली मिट्टी
  • (B). पीली मिट्टी
  • (C). लाल और पीली मिश्रित मिट्टी
  • (D). जलोढ़ मिट्टी
  • Ans. (D)

Q. राजस्थान में पाई जाने वाली मिट्टी में कौन सर्वाधिक उपजाऊ है ?

  • Ans. जलोढ़ मिट्टी सबसे उपजाऊ मिट्टी है यह राजस्थान के पूर्वी भू भाग में काफी पाई जाती है

Q. राजस्थान में पाई जाने वाली मिट्टियों में किसका क्षेत्र सर्वाधिक है ?

Ans. राजस्थान में सर्वाधिक रेतीली मिट्टी पाई जाती है जिसका प्रसार मुख्यता गंगानगर बीकानेर चूरु जोधपुर जैसलमेर बाड़मेर है

Q. वह कौन सी प्रक्रिया है जिससे पश्चिमी राजस्थान के मिट्टियां अम्लीय तथा क्षारीय बन जाती हैं ?

Ans. नीचे से ऊपर की ओर कोशिकाओं के रिसाव के कारण

Q. जिसका उपयोग मिट्टी की लवणता व क्षारीयता की समस्या का दीर्घकालीन हल है वह कौन सी है ? Ans. जिप्सम

Q. राजस्थान के किस जिले का सर्वाधिक क्षेत्र कछारी मिट्टी का है ?

Ans. कछारी मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी भी कहा जाता है यह मुख्यता भरतपुर जयपुर टोंक सवाई माधोपुर धोलपुर जिले में पाई जाती हैं

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राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन – Prajamandal Movement in Rajasthan

राजस्थान के प्रजामंडल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। ये रियासती राज्यों में जनतांत्रिक अधिकारों, नागरिक स्वतंत्रताओं और उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए चलाया गया। “प्रजामंडल” का अर्थ है “प्रजा का मंडल” या जनता का संगठन।

आंदोलन के प्रमुख कारण

जनजागरण: 1920 के दशक में महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन पूरे भारत में फैल रहा था, जिसका प्रभाव राजस्थान की रियासतों में भी देखने को मिला।

रियासती निरंकुशता: राजस्थान की रियासतों के शासक निरंकुश थे। वे जनता के अधिकारों की अनदेखी करते थे, जिससे जनता में असंतोष बढ़ रहा था।

आर्थिक शोषण: रियासतों में सामंतवादी व्यवस्था के कारण किसानों और आम जनता का आर्थिक शोषण हो रहा था।

राजनीतिक चेतना का उदय: शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ लोगों में अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी थी।

कृषक असंतोष :- जागीरदारी व्यवस्था के तहत किसानों पर भारी कर और शोषण, जैसे बिजोलिया और बेगू किसान आंदोलन।

समाचार पत्रों की भूमिका :- ‘राजस्थान केसरी’ (1920) और ‘नवीन राजस्थान’ (1922) जैसे पत्रों ने राष्ट्रवादी विचार फैलाए।

1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में यह तय किया गया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अब रियासतों के मामलों में सीधे हस्तक्षेप करेगी। इस निर्णय से राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलनों को नई दिशा मिली।

प्रजामंडलप्रजामंडल की स्थापना वर्ष प्रजामंडल के संस्थापक
जयपुर प्रजामंडल1. 1931
2. 1938
1. कपूरचंद पाटनी
2. जमनालाल बजाज
बूंदी प्रजामंडल 1931कांतिलाल जैन
मारवाड़ प्रजामंडल1934जयनारायण व्यास
सिरोही प्रजामंडल1. 1934
2. 1939
1. विरधी शंकर त्रिवेदी
2. गोकुल भाई भट्ट
हाड़ौती प्रजामंडल1934पंडित नयनूराम शर्मा
बीकानेर प्रजामंडल1936मघाराम वैद्य
धौलपुर प्रजामंडल 1936ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु
मेवाड़ प्रजामंडल1938माणिक्यलाल वर्मा
शाहपुरा प्रजामंडल1938रमेश चंद्र ओझा
अलवर प्रजामंडल1938हरि नारायण शर्मा
भरतपुर प्रजामंडल1938किशनलाल जोशी
करौली प्रजामंडल1938त्रिलोक चंद माथुर
किशनगढ़ प्रजामण्डल1939कांतिलाल चौथानी
कुशलगढ़ प्रजामंडल 1942भंवर लाल निगम
बांसवाड़ा प्रजामंडल1943भूपेंद्र नाथ द्विवेदी
डूंगरपुर प्रजामंडल1944भोगीलाल पंड्या
जैसलमेर प्रजामंडल1945मीठालाल व्यास
झालावाड़ प्रजामंडल1946मांगीलाल भव्य
प्रतापगढ़ प्रजामंडल1945अमृतलाल पायक

जयपुर प्रजामंडल (1931):- राजस्थान का पहला प्रजामंडल जयपुर प्रजामंडल था, जिसकी स्थापना 1931 में कपूरचंद पाटनी द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य महाराजा के अधीन उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।

  • बाद में 1936 में जमनालाल बजाज और हीरालाल शास्त्री नेताओं ने जयपुर प्रजामंडल पुनर्गठन किया और चिरंजीलाल मिश्र को अध्यक्ष बनाया गया।
  • 1938 में जमनालाल बजाज को अध्यक्ष बनाया गया और प्रजामंडल का पहला वार्षिक अधिवेशन नथमल कटला (जयपुर) में हुआ।
  • हीरालाल शास्त्री, जमनालाल बजाज, कपूर चंद पाटनी, टीकाकरण पालीवाल, लादूराम जोशी, पूर्णानन्द जोशी, राम करन जोशी आदि जयपुर प्रजामण्डल के प्रमुख नेता थे
  • जेन्टलमेट्स समझौता (1942): – भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, प्रजामंडल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री और जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री मिर्ज़ा इस्माइल के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत प्रजामंडल को भारत छोड़ो आंदोलन से अलग रखा गया।
  • आजाद मोर्चा का गठन: – जेन्टलमेट्स समझौते से नाराज होकर बाबा हरिशचंद्र ने आज़ाद मोर्चा का गठन किया गया, जिसने जयपुर में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की।

बूंदी प्रजामंडल (1931):- बूंदी प्रजामंडल की स्थापना कांतिलाल जैन ने 1931 में की थी. बूंदी प्रजामंडल में नित्यानंद नागर, मोतीलाल अग्रवाल, ऋषिदत्त मेहता, और गोपाल कोटिया जैसे प्रमुख नेता भी शामिल थे।

बूंदी राज्य लोक परिषद:- 1944 में ऋषि दत्त मेहता ने बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना की, जिसने राज्य में जिम्मेदार शासन की दिशा में काम किया।

मारवाड़ प्रजामंडल (1934):– मारवाड़ प्रजा मंडल की स्थापना जयनारायण व्यास के नेतृत्व में 1934 में जोधपुर रियासत में हुई थी और मारवाड़ प्रजामंडल का अध्यक्ष भंवरलाल सर्राफ को बनाया गया।

  • जयनारायण व्यास ने ‘पोपाबाई की पोल’ और ‘मारवाड़ की अवस्था’ जैसी पुस्तिकाएँ लिखीं, जिससे लोगों में क्रांति की भावना जागी।
  • रणछोड़ दास गट्टानी, छगन राज चौपासनी वाला,भंवरलाल सर्राफ, जयनारायण व्यास आदि मारवाड़ प्रजामंडल के नेता थे।
  • 1936 में कृष्णा कुमारी के अपहरण और अत्याचार के विरोध में कृष्णा दिवस मनाया गया। मारवाड़ प्रजामंडल ने जोधपुर रियासत में 1936 में ‘कृष्णा दिवस’ मनाया था।
  • मारवाड़ यूथ लीग (मारवाड़ युवा संघ) की स्थापना 10 मई 1931 को जयनारायण व्यास ने की थी।
  • 1918 ई. में चांदमल सुराणा ने “मरुधर हितकारिणी सभा” का गठन किया।
  • 1923 ई. में जयनारायण व्यास ने “मरुधर हितकारिणी सभा” का “मारवाड हितकारिणी सभा” के नाम से पुनर्गठन किया।
  • 1920 ई. में जयनारायण व्यास ने “मारवाड़ सेवा संघ” की स्थापना की।
  • 1932 ई. में छगनराज चौपासनीवाला ने जौधपुर में भारतीय झंडा फहराया था।

सिरोही प्रजामंडल :- 1934 में, सिरोही के निवासी भीमाशंकर शर्मा पाडीव, विरधी शंकर त्रिवेदी और समरथमल सिंघी ने मुंबई में सिरोही राज्य प्रजा मंडल की स्थापना की।

बाद में 22 जनवरी 1939 को सिरोही में गोकुल भाई भट्ट के नेतृत्व में सिरोही प्रजामंडल की पुनर्स्थापना की गई थी

हाड़ौती प्रजामंडल(1934):- हाड़ौती प्रजामंडल की स्थापना पंडित नयनूराम शर्मा ने 1934 में कोटा में की थी और हाड़ौती प्रजामंडल के पहले अध्यक्ष हाजी फैज मोहम्मद को बनाया गया था। पंडित नयनूराम शर्मा ने 1918 में कोटा में प्रजा प्रतिनिधि सभा की स्थापना की।

बीकानेर प्रजामंडल (1936): – बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना मघाराम वैद्य ने 1936 में की थी और मघाराम वैद्य ही पहले अध्यक्ष बने।

  • बीकानेर प्रजामंडल की पुनर्स्थापना अक्टूबर 1937 को कोलकाता में हुई थी और अध्यक्ष लक्ष्मी देवी आचार्य को बनाया गया।
  • रघुवरदयाल गोयल, मुक्ताप्रसाद, स्वामी गोपालदास व सत्यनारायण सराफ अन्य प्रमुख सदस्य थे।
  • 30 जून 1946 को रायसिंहनगर में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के साथ स्वतंत्रता सेनानियों ने एक विशाल जुलूस निकाला था। इस जुलूस के दौरान पुलिस ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें 1 जुलाई 1946 को बीरबल सिंह नामक युवक शहीद हो गए और 17 जुलाई 1946 को बीकानेर रियासत में बीरबल दिवस मनाया गया था

धौलपुर प्रजामंडल :- धौलपुर प्रजामंडल की स्थापना 1936 में ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु के प्रयासों से हुई थी। कृष्ण दत्त पालीवाल धौलपुर प्रजामंडल पहले अध्यक्ष बनाये गये थे।

मेवाड़ प्रजामंडल (1938):- मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना 24 अप्रैल 1938 को माणिक्यलाल वर्मा ने उदयपुर में की थी, जिसमें बलवंत सिंह मेहता अध्यक्ष और भूरेलाल बया पहले उपाध्यक्ष बनाये गये।

शाहपुरा प्रजामंडल :- शाहपुरा प्रजामंडल की स्थापना माणिक्यलाल वर्मा के सहयोग से रमेश चंद्र ओझा ने 18 अप्रैल, 1938 को की थी और अभयसिंह दांगी को अध्यक्ष बनाया गया। शाहपुरा राजस्थान की पहली देशी रियासत थी जिसने 14 अगस्त, 1947 को लोकतांत्रिक और पूर्णतः जिम्मेदार शासन की स्थापना की, जब राजा सुदर्शन देव ने राज्य का प्रभार गोकुल लाल असावा को सौंप दिया।

अलवर प्रजामंडल (1938):- अलवर प्रजा मंडल की स्थापना हरि नारायण शर्मा ने 1938 में की थी और कुंज बिहारी मोदी ने अलवर प्रजामंडल के अन्य नेता थे।

भरतपुर प्रजामंडल (1938):- भरतपुर प्रजामंडल की स्थापना मार्च 1938 में किशनलाल जोशी के प्रयासों से रेवाड़ी में की गई थी और गोपीलाल यादव को पहला अध्यक्ष बनाया जाता है। जुगल किशोर चतुर्वेदी, लछिराम, ठाकुर देशराज और मास्टर आदित्येंद्र आदि भरतपुर प्रजामंडल के नेता थे

करौली प्रजामंडल :- करौली प्रजामंडल की स्थापना 1938 में त्रिलोक चंद माथुर द्वारा की गई थी, चिरंजी लाल शर्मा और मदन सिंह अन्य प्रमुख नेता थे

कोटा प्रजामंडल :- कोटा प्रजामंडल की स्थापना पंडित नयनूराम शर्मा ने 1939 में की थी

किशनगढ़ प्रजामण्डल :- किशनगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना 1939 में कांतिलाल चौथानी द्वारा की गई थी और जमाल शाह किशनगढ़ प्रजामण्डल के पहले अध्यक्ष बने।

कुशलगढ़ प्रजामंडल :- कुशलगढ़ प्रजामंडल की स्थापना 1942 में भंवर लाल निगम की अध्यक्षता में हुई थी और कुशलगढ़ प्रजामंडल आंदोलन से कन्हैयालाल सेठिया और पन्नालाल त्रिवेदी भी जुड़े हुए थे।

बांसवाड़ा प्रजामंडल :- बांसवाड़ा प्रजामंडल की स्थापना भूपेंद्र नाथ द्विवेदी ने 1943 में की थी और विनोदचन्द्र कोठारी को अध्यक्ष बनाया गया था

डूंगरपुर प्रजामंडल :- डूंगरपुर प्रजामंडल की स्थापना 1944 में भोगीलाल पंड्या ने की थी, जिन्हें ‘वागड़ का गांधी’ भी कहा जाता है।

जैसलमेर प्रजामंडल :- जैसलमेर प्रजामंडल की स्थापना 15 दिसंबर, 1945 को मीठालाल व्यास ने जोधपुर में की थी। सागरमल गोपा को 1941 में गिरफ्तार किया गया और अप्रैल 1946 को जेल में केरोसिन डालकर जिंदा जला दिया गया, हत्या की जाँच के लिए गोपाल स्वरूप पाठक आयोग का गठन किया गया, जिसने इस घटना को आत्महत्या घोषित कर दिया। सागरमल गोपा ने ‘जैसलमेर का गुंडा राज’ और ‘आजादी के दीवाने’ जैसी किताबें लिखी थीं।

प्रतापगढ़ प्रजामंडल :- प्रतापगढ़ प्रजामंडल की स्थापना अमृतलाल पायक और चुन्नीलाल प्रभाकर ने 1945 में की थी।

झालावाड़ प्रजामंडल :- झालावाड़ प्रजामंडल की स्थापना 25 नवंबर, 1946 को मांगीलाल भव्य ने की थी।

प्रजामंडल आंदोलनों का परिणाम बहुत ही सकारात्मक रहा। इन्होंने राजस्थान की रियासतों में राजनीतिक चेतना का प्रसार किया और जनता को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। इन आंदोलनों ने भारत की आजादी के बाद राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया को भी आसान बनाया।

यह आंदोलन राजस्थान की राजनीतिक एकता और लोकतंत्र की नींव रखने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

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राजस्थान में संरक्षित क्षेत्र – Conservation reserve in Rajasthan

राजस्थान में कुल 39 कंजर्वेशन रिजर्व हैं, जिनमें 2 नए घोषित रिजर्व शामिल हैं। आसोप कंजर्वेशन रिजर्व (भीलवाड़ा) 37वां कंजर्वेशन रिजर्व था। राजस्थान के वन्यजीव विभाग ने हाल ही में 2 नए संरक्षण रिज़र्व घोषित किए हैं मोकला-पारेवर कंजर्वेशन रिजर्व,जैसलमेर और बुचारा मेन कंजर्वेशन रिजर्व, जयपुर हैं।

राष्ट्रीय उद्यान और राज्य के वन्य जीव अभयारण्य के आस पास वाले एरिया होता है, जिन्हे वन्यजीवों, वनस्पतियों, और जैव विविधता की संरक्षण के उद्देश्य से स्थापित किया जाता है, कॉन्सर्वेशन रिजर्व क्षेत्र कहा जाता है। काफी समय बाद इन्हें जरूरत के अनुसार कंजर्वेशन रिजर्व क्षेत्रों को राष्ट्रीय उद्यान या वन्य जीव अभयारण्य में शामिल कर दिया जाता है।

  • राजस्थान का सबसे बड़ा (221.69 वर्ग किमी) कंजर्वेशन रिजर्व, बालेश्वर संरक्षण रिजर्व, नीम का थाना (सीकर) हैं।
  • राजस्थान का सबसे छोटा कंजर्वेशन रिजर्व, बीड मुहाना (जयपुर) संरक्षण रिजर्व है (0.10 वर्ग किमी)
  • राजस्थान का पहला और सबसे पुराना संरक्षण रिजर्व बीसलपुर कंजर्वेशन रिजर्व है, जो टोंक जिले में स्थित है और 2008 में स्थापित किया गया था।
  • मोकला-पारेवर कंजर्वेशन रिजर्व,जैसलमेर और बुचारा मेन कंजर्वेशन रिजर्व, जयपुर की घोषणा 2025 में हुई हैं।
  • बारां में सबसे ज्यादा (7) कंजर्वेशन रिजर्व है।
कंजर्वेशन रिजर्वकंजर्वेशन रिजर्व का जिला कंजर्वेशन रिजर्व घोषित वर्ष
बीसलपुर संरक्षण रिजर्वटोंक 2008
जोहड़बीड गढ़वाला संरक्षण रिजर्वबीकानेर 2008
सुंधामाता संरक्षण रिजर्व (3 जालोर + 1 सिरोही)जालोर सिरोही 2008
गुढ़ा विश्नोई संरक्षण रिजर्वजोधपुर 2011
शाकम्भरी संरक्षण रिजर्वसीकर – झुंझुनूं 2012
गोगेलाव संरक्षण रिजर्वनागौर 2012
रोटू संरक्षण रिजर्वनागौर 2012
बीड झुंझुनू संरक्षण रिजर्वझुंझुनूं 2012
उम्मेदगंज पक्षी विहार संरक्षण रिजर्वकोटा2012
जवाई बांध लेपर्ड संरक्षण रिजर्वपाली 2013
बांसियाल खेतड़ी संरक्षण रिजर्वझुंझुनूं 2017
बांसियाल खेतड़ी बागोर संरक्षण रिजर्व झुंझुनूं 2018
जवाई बांध लैपर्ड -II संरक्षण रिजर्वपाली 2018
मनसा माता संरक्षण रिजर्वझुंझुनूं 2019
शाहबाद संरक्षण रिजर्वबारां 2021
रणखार संरक्षण रिजर्वजालोर 2022
शाहबाद तलहेटी संरक्षण रिजर्वबारां 2022
बीड घास फुलिया खुर्द संरक्षण रिजर्वभीलवाड़ा 2022
बाघदरा मगरमच्छ संरक्षण रिजर्वउदयपुर 2022
वाडाखेड़ा कंजर्वेशन रिजर्वसिरोही
झालाना-अमागढ़ कंजर्वेशन रिजर्वजयपुर
रामगढ़ संरक्षण रिजर्व बारां
खरमोर संरक्षण रिजर्वअजमेर
सोरसन -1 संरक्षण रिजर्वबारां
हमीरगढ़ संरक्षण रिजर्वभीलवाड़ा
कुरंजा संरक्षण रिजर्व, खींचनफलौदी
बंझ अमली संरक्षण रिजर्वबारां
सोरसन -3 संरक्षण रिजर्वबारां
गंगा भैरव घाटी रिजर्वअजमेर
बीड फतेहपुर संरक्षण रिजर्वसीकर
बीड मुहाना संरक्षण रिजर्व-Aजयपुर
बीड मुहाना संरक्षण रिजर्व- Bजयपुर
सोरसन -2 संरक्षण रिजर्वबारां
अमरख महादेव तेंदुआ संरक्षण रिजर्वउदयपुर
बालेश्वर संरक्षण रिजर्व नीम का थाना, सीकर
महसीर संरक्षण रिजर्व उदयपुर
आसोप संरक्षित क्षेत्र भीलवाड़ा 2024
बुचारा मेन कंजर्वेशन रिजर्वजयपुर 2025
मोकला-पारेवर कंजर्वेशन रिजर्वजैसलमेर 2025
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राजस्थान के लोक देवता और देवियाँ - Rajasthan ke lok Devta and Deviya

तेजा जी के मंदिर – Teja ji ke mandir

तेजा जी का जन्म माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन राजस्थान के नागौर जिले के खड़नाल में 1074 ई. में जाट परिवार में हुआ था। खरनाल (नागौर) में तेजाजी का एक भव्य मंदिर बनाया गया है। तेजाजी राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं और तेजा जी को शिव के ग्यारह अवतारों में से एक माना जाता है।

  • तेजाजी के पिता का नाम ताहड़ जी और माता का नाम रामकुंवरी था।
  • तेजाजी की पत्नी का नाम पेमल था। पेमल, पनेर के सरदार रायमल की पुत्री थीं।
  • तेजाजी की घोड़ी का नाम लीलण (सिंगारी) था।
  • तेजाजी को नागों के देवता, गौरक्षक, कृषि कार्यों के उपकारक, काला – बाला के देवता आदि नामो से जाना जाता है।
  • तेजाजी के जन्म दिवस पर 7 सितंबर 2011 को स्थान खड़नाल में 5 रुपय की डाक टिकट जारी की थी।
  • परबतर नागौर में भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा जी का प्रत्येक वर्ष मेला लगता है। परबतर तेजा जी मेले से राज्य सरकार को सबसे अधिक आय होती है।
  • तेजाजी, लाछा गूजरी की गायों को मीनाओं के चंगुल से छुड़ाते हुए अपने प्राण त्याग दिए। अजमेर के सुरसुरा गांव में तेजाजी मृत्यु हो गई।

वीर तेजाजी एक बार खरनाल से अपने ससुराल पनेर गए थे, वहां उनकी सास दुआरी (गाय का दूध निकाल रही थी) कर रही थी और तेजा जी की घोड़ी को देखकर गाय वहां से भाग गई, तब बिना देखे तेजाजी की सास ने श्राप दे दिया कि तुझे काल नाग डसे, ऐसा सुनकर तेजाजी वहां से लौटने लगे, तब उनकी पत्नी पेमल ने उन्हें रोका, पत्नी के कहने पर तेजाजी मान गए और सुसराल पहुंचकर आराम करने लगे। कुछ देर बाद ही गांव में एक गुर्जर जाति की महिला लाछा गूजरी मदद मांगने के लिए तेजाजी के पास आई, महिला ने बताया कि उसकी गायों को मीना चोर ले गए। चोरों से गायों को छुड़ावा कर लाएं, तेजाजी ने कहा कि गांव वालों को भेजो, तब महिला ने कहा कि आप तलवार-भाला रखते हैं, इसलिए यह काम आप ही कर सकते हैं। तेजाजी ने गायों को चोरों से छुड़ाने का वचन दिया, वचन पूरा करने के लिए तेजाजी घोड़ी पर सवार होकर किशनगढ़ के समीप पहुंचे। यहां चोरों से युद्ध कर वह गायों को छुड़ाकर ले आए, लेकिन एक गाय का बछड़ा चोरों के पास ही रह गया। लाछा गूजरी ने कहा कि पूरी गायों का मोल वह बछड़ा ही था, जिसे आप लेकर नहीं आए। तेजाजी वापस बछड़ा छुड़ाने के लिए रवाना हुए, यहीं खेजड़ी के पास पहुंचे जहां सर्प की बाम्बी थी. बाम्बी के समीप आग की लपटें देख तेजाजी ने सर्प को जलने से बचा लिया. इस पर सर्प खुश होने की जगह दुखी होकर बोला कि तुमने रुकावट डाला है, इसलिए मैं तुम्हे डसुंगा, तेजाजी ने सर्प को वचन दिया कि वो बछड़े को चोरों से छुड़ाकर लाएंगे, उसके बाद वो उन्हें डस सकते हैं। चोरों से भयानक युद्ध करने के बाद तेजाजी ने बछड़ा छुड़ा लिया और उसे लाछा गूजरी को सौंप दिया। वचन निभाने के लिए सांप के पास पहुंचे तो पूरे शरीर पर जख्म देखकर सांप ने डसने से मना कर दिया। तेजाजी ने वचन पूरा करने के लिए अपनी जीभ निकालकर कहा कि यहां घाव नहीं है और मेरी जीभ अभी सुरक्षित है, तब सर्प ने तेजाजी की जीभ पर डसा। सर्प ने वचनबद्ध रहने से प्रसन्न होकर तेजाजी को वरदान दिया कि वह सर्पों के देवता बनेंगे. सर्प से डसे हर व्यक्ति का विष तेजाजी के थान पर आने पर खत्म हो जाएगा.

पेमल का विवाह तेजाजी से बाल्यकाल में ही 1074 ईस्वी में पुष्कर में हुआ था, जब तेजाजी 9 महीने के और पेमल 6 महीने की थीं। जब तेजाजी गायों की रक्षा करते हुए शहीद हो गए, तब पेमल ने सती प्रथा का पालन किया और पेमल सती हो गई थी।

  • सैदरिया – यहां पर तेजाजी को नाग देवता से डसा था।
  • सुरसुरा – यहां पर तेजाजी ने प्राण त्याग दिए थे।
  • खरनाल – यहां पर तेजाजी का जन्म हुआ था।
  • पनेर – यहां पर तेजाजी का ससुराल था।
  • सुरसुरा तेजाजी का मुख्य निर्वाण स्थली (समाधि स्थल) है, जबकि खरनाल उनकी जन्मस्थली है।

वीर तेजाजी के अन्य पूजा स्थल –

  • भांवता, नागौर में
  • ब्यावर, अजमेर में
  • बांसी दुगारी, बूंदी में
  • परबतसर, नागौर में
  • सुरसुरा, किशनगढ़ ( अजमेर ) में
  • माड़वालिया, अजमेर में
  • भांवता, नागौर में
  • पनेर, अजमेर में
  • खड़नाल, नागौर में
  • तेजाजी का एक मंदिर चेन्नई (तमिलनाडु)के पुझल शक्तिवेल नगर में एक भव्य मंदिर है, जहाँ लीलण पर सवार तेजाजी की 51 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है।
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राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं

कालीबंगा सभ्यता – Kalibangan Civilization

कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ ‘काली रंग की चूड़ियाँ’ है, कालीबंगा में मिली तांबे की काली चूड़ियों की वजह से ही इसे कालीबंगा कहा गया। पंजाबी में ‘बंगा’ का अर्थ चूड़ी होता है, इसलिए कालीबंगा अर्थात काली चूड़ियाँ

कालीबंगा सभ्यता राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घाघर नदी (प्राचीन नाम सरस्वती नदी) के तट पर स्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्राचीन स्थल है। कालीबंगा सभ्यता को नगरीय और कांस्ययुगीन सभ्यता माना जाता है।

कालीबंगा सभ्यता को पहली बार 1952 में अमलानंद घोष द्वारा खोजा गया था। कालीबंगा एक ऐतिहासिक स्थल है जिसने सिंधु घाटी सभ्यता के विकास और पतन को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

उत्खननकर्ता (1961 से 1969)

  • (a). श्री बृजवासी लाल (बी. वी. लाल )
  • (b). श्री बालकृष्ण थापर (बी. के. थापर)
  • (c). एम.डी. खरे
  • (d). के.एम. श्रीवास्तव
  • (e). एस.पी. जैन
  • दशरथ शर्मा के अनुसार कालीबंगा, हड़पा सभ्यता की तीसरी राजधानी थी।
  • यहाँ पर कपास की खेती के अवशेष, लकड़ी के कुंड, सात अग्नि वेदियाँ, ग्रिड पैटर्न में जोता हुआ खेत, भूकंप आदि के प्रमाण मिले हैं।
  • कालीबंगा में विश्व का सर्वप्रथम जोता हुआ खेत मिला है।
  • कालीबंगा में विश्व का सर्वप्रथम भूकंप की जानकारी मिली है।
  • कालीबंगा से सिंधु घाटी (हड़प्पा) सभ्यता की मिट्टी पर बनी मुहरें मिली हैं
  • मेसोपोटामिया की बेलनाकार मुहर यहाँ मिली है, जिसे मेसोपोटामिया सभ्यता की जानकारी मिलती है
  • कालीबंगा में 1985 ई. में संग्रहालय स्थापित किया गया।
  • मिट्टी के बर्तनों और मुहरों पर लिखी हुई लिपि सैंधव थी।इसमें ड्रेनेज सिस्टम ठीक से विकसित नहीं था।
  • अग्नि वेदी लोगों के धार्मिक विश्वास को प्रकट करती पाई गई।
  • यहाँ पर से मकानों से पानी निकालने के लिए लकड़ी की नालियों का प्रयोग किया जाता था।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य केन्द्रो से भिन्न कालीबंगा में एक विशाल दुर्ग के अवशेष भी मिले हैं जो यहाँ के मानव द्वारा अपनाए गए सुरक्षात्मक उपायों का प्रमाण है।
  • कमरे में दरवाजे लगाने और पक्की ईंटों का फर्श इसी सभ्यता के प्रमाण हैं।

सोठी सभ्यता – Sothi Civilization :- बीकानेर के आस-पास की सभ्यता को सोती सभ्यता के नाम से जाना जाता है और मुख्य सोठी सभ्यता स्थल अब हनुमानगढ़ में है।

  • अमलानंद घोष ने सोठी सभ्यता को काली बग्गा सभ्यता का उद्गम स्थल बताया।
  • सोठी सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी।
  • यह घाघर और चौटांग नदी के मैदान पर स्थित है।इतिहासकारों ने इसे हड़प्पा सभ्यता का मूल स्थान बताया है।
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Rajasthan GK

राजस्थान के प्रमुख पार्क – Industrial Park in Rajasthan

राजस्थान में औद्योगिक पार्कों का निर्माण मुख्य रूप से राज्य की आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने, रोजगार सृजन करने, निवेश आकर्षित करने और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम लिमिटेड (RIICO) इस दिशा में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।

आर्थिक विकास और औद्योगीकरण को बढ़ावा, रोजगार सृजन, निवेश आकर्षण और कारोबारी सुगमता, बुनियादी ढांचे का विकास, क्षेत्र-विशिष्ट विकास आदि के लिए राजस्थान में पार्क बनाये जा रहे हैं।

  • राजस्थान का पहला साइंस पार्क (science park) जयपुर में स्थित है।
  • राजस्थान का पहला मेगा फूड पार्क अजमेर जिले के रूपनगढ़ गांव में है, जिसका नाम ग्रीनटेक मेगा फूड पार्क प्राइवेट लिमिटेड है।
  • राजस्थान का पहला मसाला पार्क (spice park) जोधपुर में है। यह जोधपुर के पास मथानिया के रामपुरा भाटियान गाँव में स्थित है।
  • राजस्थान का पहला रेगिस्तानी पार्क (Desert Park) जयपुर में स्थित किशन बाग है। यह नाहरगढ़ किले की तलहटी में 30 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • राजस्थान का पहला सोलर पार्क (Solar Park) भड़ला सोलर पार्क है, जो फलोदी जिले में स्थित है।
  • राजस्थान का पहला संविधान पार्क (Constitution Park) जयपुर के राजभवन में स्थित है। इसका उद्घाटन 3 जनवरी, 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया था।
  • राजस्थान का पहला बर्ड पार्क (Bird Park) उदयपुर के गुलाब बाग में स्थित है।
  • राजस्थान का पहला MSME पार्क दौसा में स्थापित किया गया है।
  • राजस्थान का पहला आईटी (IT) पार्क जयपुर में सीतापुरा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है।
  • राजस्थान का पहला मिनी फूड पार्क (mini food park) बांद्रा, बाड़मेर में स्थित है। हालाँकि, बीकानेर के पलाना में एक मेगा फूड पार्क प्रस्तावित है।
  • पहला मिनी एग्रो पार्क (mini agro park) टोंक जिले के निवाई के चैनपुरा प्रस्तावित है।
Industrial Park Name Park location
बटरफ्लाई पार्क/ Butterfly Parkअंबेरी, उदयपुर
साइबर पार्क / Cyber Parkजोधपुर
नमो टॉय पार्क /खिलौना पार्क/Toy Parkकोटा
BSF थीम पार्क सम, जैसलमेर
टेक्सटाइल पार्क/Textile Parkभीलवाड़ा
औद्योगिक पार्क /industrial Park शाहपुर, भीलवाड़ा
वेस्ट टू वंडर पार्क /Waste to Wonder Parkमानसरोवर, जयपुर
स्टोन पार्क /Stone Park1. सोनियाणा, चित्तौड़गढ़
2. बूँदी
सिरेमिक पार्क/ Ceramic Park1. खारा, बीकानेर
2. सोनियाणा, चित्तौड़गढ़
फिनटेक पार्क/ Fintech Parkजयपुर
मेडटेक मेडिसियन डिवाइसेस पार्क /Medtech Parkबौरानाडा, जोधपुर
ज़ीरो वेस्ट पार्क /Zero Waste Parkआंधी गाँव, जयपुर
जेम्स एंड ज्वैलरी पार्क /Gems and Jewellery Parkसीतापूरा, जयपुर
स्नेक पार्क / सर्प उद्यान / Snake Parkकोटा
स्ट्रेस पार्क /Stress Parkकोटा
ऑक्सीजन पार्क /Oxygen Parkकोटा
दूसरा मसाला पार्क /spice parkकोटा
एग्रो फूड पार्क /Agro food park 1. रानपूरा (कोटा),
2. बौरानाडा जोधपुर,
3. श्रीगंगानगर,
4. अलवर
आर्ट पार्क /Art park पुष्कर, अजमेर
इंटीग्रेटेड रिसोर्स रिकवरी पार्क /Integrated Resource Recovery Parkजमवारामगढ़, जयपुर
स्काउट गाइड एडवेंचर पार्क/scout guide adventure Park श्रीगंगानगर
चमड़ा पार्क /Leather Parkमानपुरा मोचढ़ी, जयपुर
कोरियाई पार्क/Korean Parkघिलोठ नीमराना, बहरोड़-कोटपुतली
बायोटेक्नोलॉजी पार्क /Biotechnology Park1. चौपंकी, खेरथल- तिजारा
2. सीतापुरा, जयपुर
निर्यात संवर्धन औद्योगिक पार्क /Export Promotion industrial Park1. सीतापुरा, जयपुर
2. बोरानाडा, जोधपुर
3. नीमराणा, बहरोड़-कोटपुतली
कैक्टस गार्डन /Cactus Gardenकुलधरा, जैसलमेर
जीवाश्म पार्क /Fossil Parkआकल, जैसलमेर
अभेड़ा पार्क/Abheda Parkकोटा
पर्यावरण पार्क /Environment Parkसोजत, पाली
होजरी पार्क /Hosiery Parkचोपकी भिवाड़ी, अलवर
पुष्प पार्क /Flower Parkखुशखेड़ा, खैरथल-तिजारा
जापानी पार्क /Japanese Park1. नीमराणा बहरोड़ कोटपुतली
2. घिलोठ, अलवर
सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क /Software Technology Parks1. कनकपूरा, जयपुर
2. जोधपुर
हार्डवेयर टेक्नोलॉजी पार्क /Hardware Technology Parkकुकस, जयपुर
वुड पार्क/Wood Parkदौसा
इलेक्ट्रॉनिक पार्क (ई-वेस्ट पार्क)/Electronic Parkजयपुर
ऑटोमोबाईल पार्क /Automobile Parkपथरेड़ी, अलवर
अपैरल पार्क /Apparel Parkजगतपुर, महल रोड़, जयपुर
एयर कार्गो काम्प्लेक्स/ air cargo complexसांगानेर, जयपुर
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पटवारी 2025 की कटऑफ – Patwari exam 2025 cut off

राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड (RSMSSB) ने पटवारी 2025 परीक्षा 17 अगस्त को दो शिफ्ट में आयोजित की गई। पटवारी 2025 परीक्षा 3705 रिक्तियों को भरने के लिये आयोजित की गई है।

परीक्षा में कुल 150 प्रश्न पूछे गये और प्रत्येक प्रश्न 2 नंबर का था। राजस्थान पटवारी परीक्षा में नकारात्मक अंकन (नेगेटिव मार्किंग) होती है। प्रत्येक सही उत्तर के लिए +2 अंक दिए जाते हैं, जबकि प्रत्येक गलत उत्तर के लिए 1/3 अंक काटे जाते हैं। कुल 300 नंबर का पेपर था।

पटवारी 2025 की कटऑफ अभी प्रकाशित नहीं हुई है, राजस्थान पटवारी कट ऑफ की घोषणा अंतिम परिणाम के साथ की जाएगी। लेकिन अपेक्षित पटवारी कट ऑफ सभी कोचिंग संस्थान ने जारी की है। फाइनल कट ऑफ और अपेक्षित कट ऑफ में+/- 5 नंबर का अंतर आ सकता है।

  • Utkarsh classes Rajasthan के अनुसार General की cutoff 260 मार्क्स रहेगी।
  • सुभाष Charan sir के अनुसार General की cutoff 230-260 मार्क्स रहेगी।
अपेक्षित पटवारी कट ऑफ 2025(Non -TSP Area)
Coaching Gen.EWSOBCSCST
Lakshya classes Udaipur 226-230220-228222-228204-210200-205
Quality Education 235-240225-230235-240210-215210-215
SKB Education 144226236216210
Ashu GK trick 240-250230-240236-240220-230210-220
Booster Academy 225-235220-225220-230200-210195-200
online sarthi 250240244236230
Mind Map 232-235222-226230-234210-214206-210
Genuine classes 226-230220225205200
अपेक्षित पटवारी कट ऑफ 2025(TSP Area)
Coaching Gen.EWSOBCSCST
Quality Education 201-215200-205160-165
Mind Map 205193-197153-157

RSMSSB PATWARI EXAM 2025 की सभी जानकारी RSMSSB की main website पर मिल जाएगी और फाइनल cutoff भी rsmssb की मैं website पर ही जारी होगी जिसका लिंक नीचे है।

https://rsmssb.rajasthan.gov.in/page?menuName=EJwE/Y7GD1hMok0YfKTFOtUJMJFGLBa;455611;jbRgWtRe9q4=