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राजस्थान में रामसर साइट Ramsar sites in rajasthan

राजस्थान में अभी 3 रामसर स्थल हैं: भरतपुर का केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान, जयपुर के पास सांभर झील और उदयपुर शहर।

पारिस्थितिक रूप से नाजुक आर्द्रभूमि स्थलों की रक्षा के लिए 1971 में ईरानी शहर रामसर में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था, ताकि दुनिया भर में आर्द्रभूमि के संरक्षण और संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनाई जा सके। हर साल 2 फ़रवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस मनाया जाता है. 

सांभर झील – 1990 में सांभर झील को रामसर साइट घोषित किया गया था।सांभर झील को छह नदियों से पानी मिलता है: मंथा, रूपनगढ़, खारी, खंडेला, मेड़था और सामोद । सांभर झील हजारों प्रवासी फ्लेमिंगो के लिए एक आश्रय स्थल है! सांभर झील, राजस्थान की सबसे बड़ी खारी झील है. यह भारत की सबसे बड़ी अंतर्देशीय खारे पानी की झील भी है. यह झील जयपुर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है. 

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान – अक्टूबर 1981 में केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान को रामसर साइट घोषित किया गया था। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के भरतपुर में स्थित है.इसे साल 1971 में संरक्षित पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया था. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान साल 1985 में इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था. • यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय साइबेरियाई सारस की बड़ी आबादी के लिए एकमात्र शीतकालीन आश्रय स्थल है

उदयपुर शहर – राजस्थान के उदयपुर और मध्य प्रदेश के इंदौर को यूनेस्को के रामसर सम्मेलन द्वारा वेटलैंड सिटी की सूची में शामिल किया गया है।उदयपुर शहर को जनवरी 2025 रामसर आर्द्रभूमि स्थलों की सूची में जोड़ा गया था।राजस्थान का उदयपुर शहर भारत में झीलों के शहर के रूप में प्रसिद्ध है। यह पाँच प्रमुख आर्द्रभूमि-रंग सागर, पिछोला, दूध तलाई, फतेह सागर और स्वरूप सागर द्वारा घिरा हुआ है।

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राजस्थान में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल | UNESCO World Heritage Sites in Rajasthan

यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट (UNESCO World Heritage Sites) की सूची में राजस्थान के कुल 9 ऐतिहासिक धरोहर हैं। इनमें आमेर महल, गागरोन फोर्ट, कुंभलगढ़, जैसलमेर, रणथंभौर और चित्तौड़गढ़ का किला हैं।

राजस्थान के कुल 9 ऐतिहासिक धरोहर हैं,जो यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट मैं शामिल है।

यूनेस्को किसी स्थान को विश्व धरोहर स्थल के रूप में तब नामित करता है जब उसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक या अन्य महत्व का माना जाता है। किसी स्थल को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित करने का उद्देश्य मुख्य रूप से पृथ्वी पर मौजूद सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और संरक्षण करना है।

  1. आमेर किला
  2. कुंभलगढ़ किला
  3. रणथंभौर किला
  4. चित्तौड़गढ़ किला
  5. गागरोन किला
  6. जैसलमेर किला
  7. जंतर मंतर ( जयपुर )
  8. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
  9. जयपुर शहर

जयपुर शहर – 6 जुलाई 2019 को यूनेस्को ने राजस्थान के जयपुर शहर को विश्व धरोहर स्थल मैं शामिल किया। देश के सबसे पहले नियोजित शहरों में से एक जयपुर है

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान – 1985 मैं यूनेस्को ने राजस्थान के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर को विश्व धरोहर स्थल मैं शामिल किया। मार्च 1990 में सांभर झील को रामसर साइट घोषित किया गया था और अक्टूबर 1981 में केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान को रामसर साइट घोषित किया गया था।

Amer fort

राजस्थान के छह पहाड़ी किलों चित्तौड़गढ़ किला (चित्तौड़गढ़), कुंभलगढ़ किला (राजसमंद), जैसलमेर किला (जैसलमेर), रणथंभौर किला (सवाई माधोपुर), गागरोन किला (झालावाड़), आमेर किला (जयपुर) को संयुक्त रूप से विश्व धरोहर सूची में जून 2013 में शामिल किया गया था।

जंतर-मंतर – जयपुर स्थित जंतर-मंतर को 31 जुलाई, 2010 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किया गया था। दिल्ली, वाराणसी, उज्जैन और मथुरा में भी जंतर-मंतर हैं, लेकिन जयपुर का जंतर-मंतर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल है. महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1734 में जंतर-मंतर का निर्माण करवाया था. जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा, और वाराणसी के सभी जंतर मंतर का निर्माण राजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने करवाया था.

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राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित मेले

राजस्थान में कई प्रमुख पर्यटन महोत्सव पर्यटन विभाग द्वारा मनाए जाते हैं, जैसे कि आभानेरी उत्सव, मारवाड़ उत्सव, पुष्कर मेला, चंद्रभागा मेला, पुष्कर मेला, मरू महोत्सव (जैसलमेर), हाथी महोत्सव (जयपुर), ऊंट महोत्सव (बीकानेर) और ग्रीष्मकालीन महोत्सव (माउंट आबू) शामिल हैं.

हाथी महोत्सव – हाथी महोत्सव जयपुर में अयोजित किया जाता है इस महोत्सव में सजे-धजे हाथियों, ऊंटों, और घोड़ों का जुलूस निकाला जाता है.

धुलण्डी उत्सव – सम्पूर्ण भारत में होलिका दहन के बाद अगले पूरे दिन धुलण्डी उत्सव (रंगों का त्योहार) मनाया जाता है। यह वसंत की शुरुआत का प्रतीक है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

राजस्थान फैस्टिवल (राजस्थान उत्सव) -‘‘महाराजाओं की भूमि’’ राजस्थान – विविध रंगों से परिपूर्ण और उज्जवल और चटकीला है। राजस्थान अपना स्थापना दिवस बड़े ही दैदीप्यमान और उत्साहित रूप से मनाता है। राजस्थान का स्थापना दिवस हर साल 30 मार्च को मनाया जाता है यह उत्सव राजस्थान सरकार और पर्यटन विभाग के आयोजन से मनाया जाता है. इस उत्सव में राजस्थान की विरासत और कहानियों को याद किया जाता है.

 गणगौर उत्सव – गणगौर उत्सव राजस्थान के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक गणगौर उत्सव है। अलग-अलग तौर-तरीकों से पूरे राजस्थान में इसे मनाया जाता है। “गण” भगवान शिव का एक पर्याय है और “गौरी” या “गौर” देवी पार्वती का, जो स्वर्ग में भगवान शिव की पत्नी /संगिनी हैं। शिव-पार्वती के साथ होने का उत्सव मनाना सुखी वैवाहिक जीवन का प्रतीक है। गणगौर की शुरुआत चैत्र महीने के पहले दिन से होती है और 18 दिनों तक मनाया जाता है

मेवाड़ उत्सव – मेवाड़ महोत्सव राजस्थान के उदयपुर में मनाया जाने वाला वार्षिक उत्सव है जो हिंदू महीने चैत्र के दौरान होता है राजस्थान के निवासियों उत्सव बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है और गणगौर के साथ मनाया जाता है

ग्रीष्म उत्सव – माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू दो दिवसीय रंगारग ग्रीष्म उत्सव समारोह से ठंडक पहुँचाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन से आरम्भ होकर यह ग्रीष्म उत्सव पूरे दो दिन राजस्थानी संस्कृति को आत्मसात करता है। वैशाख महीने में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाता है

तीज उत्सव – हरियाली तीज श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है कजरी तीज भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है, जो आमतौर पर अगस्त/सितंबर में आती है. बूंदी में कजली तीज का विशेष रूप से मनाया जाता है, जिसे बड़ी तीज भी कहा जाता है. राजस्थान में तीज त्यौहार, विशेषकर जयपुर और बूंदी में, एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव है तीज का त्यौहार, वास्तव में मानसून के कारण उत्पन्न हरियाली, सामाजिक गतिविधियों, अनुष्ठानों और रिवाजों के साथ पक्षियों के आगमन का उल्लास मनाने का त्यौहार है

आभानेरी उत्सव – आभानेरी में स्थित चांद बावड़ी एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है आभानेरी उत्सव राजस्थान के दौसा जिले के आभानेरी गाँव में आयोजित एक दो दिवसीय उत्सव है

दशहरा – राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध दशहरा मेला कोटा में लगता है यह राजस्थान का सबसे बड़ा और पुराना दशहरा मेला है. अक्टूबर नवम्बर माह में प्रतिवर्ष नौ दिन नवरात्रों के उपरांत दशहरा के अवसर पर, कोटा दशहरा मेला ग्राउंड में भारत का प्रसिद्व 15 दिवसीय दशहरा मेले का शुभारम्भ होता है।

मारवाड़ उत्सव – मारवाड़ महोत्सव जोधपुर, राजस्थान में मनाया जाता है, पहले मांड महोत्सव के नाम से जाना जाता था. इस महोत्सव का मुख्य आकर्षण राजस्थान के शासकों की रोमांटिक जीवन शैली पर केंद्रित लोक संगीत और नृत्य है.

पुष्कर मेला – पुष्कर मेला जिसे पुष्कर ऊँट मेला भी कहा जाता है राजस्थान के पुष्कर शहर में आयोजित होने वाला वार्षिक बहु-दिवसीय पशुधन और सांस्कृतिक पर्व है। मेला कार्तिक के हिंदू कैलेंडर माह से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होता है।

मोमासर उत्सव – मोमासर उत्सव, राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में मोमासर गाँव में मनाया जाता है,यह उत्सव मोमासर के स्थानीय निवासियों और जाजम फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है. मोमासर, बीकानेर के शेखावाटी क्षेत्र का एक आकर्षक गाँव है ‘मोमसर उत्सव’ की नींव वर्ष 2011 में विनोद जोशी ने रखी थी।

चंद्रभागा मेला – चंद्रभागा मेला हर साल राजस्थान के झालरापाटन में, कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) में आयोजित होता है, जो चंद्रभागा नदी के सम्मान में लगता है कार्तिक के महीने  में झालावाड़ के झालारपाटन में यह मेला आयोजित किया जाता है।

बूंदी उत्सव – बूंदी उत्सव ,राजस्थान के बूंदी में मनाया जाता है. बूंदी महोत्सव कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के महीने में मनाया जाता है

मत्स्य महोत्सव – राजस्थान के अलवर शहर में हर साल अलवर महोत्सव का आयोजन किया जाता है.मत्स्य महोत्सव अलवर, राजस्थान में शहर की स्थापना के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य अलवर क्षेत्र में सांस्कृतिक, विरासत और वन्यजीव पर्यटन को बढ़ावा देना है.

कोलायत मेला – कपिल मुनि का मेला कोलायत में कार्तिक पूर्णिमा पर आयोजित होता है। कोलायत का वार्षिक मेला राजस्थान के बीकानेर में आयोजित किया जाता है। इसे कपिल मुनि मेला भी कहा जाता है। कपिल मुनि मेला राजस्थान के बीकानेर जिले में आयोजित किया जाता है। कोलायत झील के तट पर मेले का आयोजन किया जाता है।

कुम्भलगढ़ उत्सव – कुंभलगढ़ महोत्सव राजसमंद जिले में होता है, जो कि ऊबड़-खाबड़ अरावली पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। यह किला, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल भी है

रणकपुर उत्सव – रणकपुर महोत्सव राजस्थान के पाली जिले में आयोजित एक वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव है, जो मारवाड़-गोडवाड़ क्षेत्र की लोक संस्कृति को प्रदर्शित करता है।

शीतकालीन उत्सव – माउंट आबू राजस्थान में, माउंट आबू में वार्षिक शीतकालीन उत्सव मनाया जाता है। माउंट आबू में दिसंबर में आयोजित वार्षिक शीतकालीन समारोह राजस्थान की गौरवमयी संस्कृति और परंपराओं का परिचायक है।

ऊंट उत्सव – बीकानेर में ऊंट महोत्सव अयोजित किया जाता है राजस्थान के बीकानेर शहर में हर साल ऊंट महोत्सव का आयोजन किया जाता है.जनवरी माह में राजस्थान पर्यटन द्वारा आयोजित, उत्सव में ऊंट दौड़, ऊंट दुग्ध, फर काटने के आलेखन /डिजाइन, सर्वश्रेष्ठ नस्ल प्रतियोगिता, ऊंट कलाबाजी और ऊंट सौंदर्य प्रतियोगिताएं शामिल हैं।

उत्सव पतंग उत्सव – पतंग उत्सव, भारत में मकर संक्रांति ( 14 जनवरी) के मौके पर मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्योहार है.पतंग महोत्सव राजस्थान के लिए एक उमंग भरा उत्सव है। इस अद्भुत त्यौहार पर पूरे राज्य में पतंगें उड़ाई जाती हैं।

नागौर मेला – नागौर मेला भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है हर वर्ष जनवरी और फरवरी के महीने के बीच आयोजित, नागौर के मवेशी मेले के रूप में लोकप्रिय है इस मेले में करीब 10,000 बैल, ऊंट और घोड़ों का व्यापार होता है। पशुओं को सुंदर ढंग से सजाया जाता है राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला परबतसर (नागौर) में वीर तेजाजी महाराज की स्मृति में लगता है, जिसे तेजाजी पशु मेला भी कहा जाता है. 

बाणेश्वर मेला – यह मेला माघ शुक्ल पूर्णिमा के दिन डूंगरपुर के बाणेश्वर मंदिर में लगता है. इसे आदिवासियों का कुंभ मेला भी कहा जाता है. यह मेला भगवान शिव को समर्पित है. यह मेला सोम, माही, और जाखम नदियों के संगम पर लगता है. 

मरू महोत्सव ( डैज़र्ट फेस्टिवल ) – मरु महोत्सव राजस्थान के जैसलमेर मैं अयोजित किया जाता है जो की एक एक सांस्कृतिक उत्सव है यह एक चार दिवसीय वार्षिक कार्यक्रम है जो एक रंगीन भव्य जुलूस के साथ शुरू होता है जिसके बाद मिस पोकरण और मिस्टर पोकरण प्रतियोगिताएं होती हैं।कालबेलिया, कच्ची घोड़ी, गैर जैसे क्षेत्रीय लोकनृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं।

जयपुर लिट्रेचर फैस्टिवल (साहित्यिक उत्सव) – इस फ़ेस्टिवल में साहित्य, कला, और संस्कृति पर चर्चा की जाती है. साहित्य की सीमाओं को विस्तार देने के लिए, जयपुर के डिग्गी पैलेस में, प्रसिद्ध जयपुर लिट्रेचर फैस्टिवल मनाया जाता है, जिसमें साहित्यिक परिदृश्य के सर्वोत्तम तथा उत्कृष्ट लेखकों, कवियों तथा कलाकारों को एक छत के नीचे इकट्ठा किया जाता है

उदयपुर वर्ल्ड म्यूजिक फैस्टिवल (विश्व स्तरीय संगीत समारोह) -प्रति वर्ष झीलों का शहर उदयपुर एक अलग ही धुन गुनगुनाता है। उदयपुर शहर ’उदयपुर वर्ल्ड म्यूजिक फैस्टिवल’ के अगले संस्करण की मेज़बानी करने जा रहा है। दुनियां भर के जाने माने विद्धान, कलाकारों को एक जगह इकट्ठा करने का काम ‘‘सहर” नामक संस्था करती है जिनमें बीस से अधिक देशों के लोग जिनमें ईरान, स्पेन, ब्राजील, सेनेगल, इटली और भारत सहित कई अन्य देशों के लोग भी शामिल होते हैं 

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राजस्थान दिवस और राजस्थानी भाषा दिवस

30 मार्च, 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जयपुर में एक समारोह में ग्रेटर राजस्थान का उद्घाटन किया था । इसलिए हर साल 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है। राजस्थानी भाषा दिवस हर साल 21 फ़रवरी को मनाया जाता है

राजस्थानी भाषा दिवस

राजस्थानी भाषा दिवस हर साल 21 फ़रवरी को मनाया जाता है. राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति गुर्जरी अपभ्रंश से हुई है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी ने 21 फरवरी 2021 को राजस्थानी भाषा दिवस मनाने के लिए सभी राज्य वित्त पोषित विश्वविद्यालयों / निजी विश्वविद्यालयों / सभी कॉलेजों के विभागाध्यक्षों को निर्देश दिया है।

राजस्थानी भाषा का शब्दकोश डॉक्टर सीताराम लालस ने तैयार किया था. वे एक प्रसिद्ध भाषाविद् और कोशकार थे. उन्हें सीता रामजी माड़साब के नाम से भी जाना जाता है.

राजस्थानी भाषा का पहला उपन्यास ‘कनक सुंदर’ है. इसे शिवचंद्र भरतिया ने 1903 ईस्वी में लिखा था

यूनेस्को ने हर साल 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है ताकि मातृभाषा को बढ़ावा दिया जा सके।

प्रदेश में प्रचलित बोलियों की वजह से मूल राजस्थानी भाषा को लेकर कभी एक राय नहीं बन पाई. राज्य में मारवाड़ी भाषा नागौर, पाली, जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर इलाके में बोली जाती है. तो उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा क्षेत्र में मेवाड़ी का प्रचलन है. इसी तरह बांसवाड़ा और डूंगरपुर का क्षेत्र बागड़ी का है तो जयपुर अंचल के दौसा, टोंक और सीकर में ढूंढाड़ी वहीं कोटा और बूंदी क्षेत्र हाड़ौती का है. जबकि भरतपुर में ब्रज भाषा का जोर है.

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत की भाषाओं से संबंधित है। इस अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है। लेकिन इसमें राजस्थानी भाषा को अभी तक शामिल नहीं किया जा है

राजस्थानी भाषा की सबसे पुरानी पुस्तक कुवलयमाला है. जैन मुनि उद्योतन सूरी ने इसे 779 ईस्वी में लिखा था. यह जाबालिपुर (जालोर, राजस्थान) में लिखी गई थी. इस किताब में राजस्थानी भाषा को ‘मरुभाषा’ कहा गया है.

राजस्थान दिवस

राजस्थान दिवस हर साल 30 मार्च को मनाया जाता है.राजस्थान को पहले राजपूताना के नाम से जाना जाता था और 30 मार्च 1949 को इसे अस्तित्व में लाया गया और 30 मार्च, 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जयपुर में एक समारोह में ग्रेटर राजस्थान का उद्घाटन किया था । इसलिए हर साल 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है।

राजस्थान शब्द का अर्थ है: ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां राजपूतों ने बहुत समय तक राज किया था इसलिए राजस्थान को राजपूताना कहा जाता था।

राजस्थान स्थापना दिवस

1 नवम्बर को राजस्थान स्थापना दिवस मनाया जाता है । क्योकि 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान के निर्माण का काम पूरा हुआ था राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया 18 मार्च, 1948 को शुरू हुई थी. यह प्रक्रिया सात चरणों में 01 नवंबर 1956 को पूरी हुई थी. इस दिन राजप्रमुख का पद खत्म हो गया और राज्यपाल का पद बना.

निरोगी राजस्थान दिवस

17 दिसम्बर को ”निरोगी राजस्थान दिवस” मनाया जायेगा। राजस्थान में निरोगी राजस्थान अभियान की शुरुआत 18 दिसंबर, 2019 को हुई थी. इस अभियान के ज़रिए प्रदेश में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है.

कर्नल जेम्स टॉड को राजस्थान के इतिहास का जनक कहा जाता है. वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी और ओरिएंटल विद्वान थे. उन्होंने भारत के इतिहास और भूगोल पर कई रचनाएं लिखीं.

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राजस्थान की प्रमुख छतरियां (Rajasthan ki chhatriya)

राजस्थान अपने महलों, किले और छतरियों के लिए भारत ही नहीं दुनिया में प्रसीद है गेटोर की छतरियां, 32 खंभो की छतरी, 80 खंभो की छतरी (मूसी महारानी), 80 खंभो की छतरी, क्षारबाग की छतरियाँ, केसरबाग की छतरियाँ, बङा बाग की छतरियाँ, देवीकुंड सागर छतरियाँ आदि प्रमुख छतरियां हैं।

गैटोर की छतरियां – नाहरगढ़ दुर्ग की तलहटी में बनी गैटोर की छतरियां जयपुर कछवाहा शासकों का निजी श्मशान घाट है। जिसमें सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर महाराजा सवाई माधोसिंह तक के राजाओं की छतरियां है।

ईश्वरी सिंह की छतरी यहा पर स्थित नहीं है। इनकी छतरी सिटी पैलेस (जयपुर) में स्थित है। सवाई ईश्वरी सिंह की छतरी का निर्माण सवाई माधोसिंह के शासन काल में किया गया था आमेर के राजा मानसिंह प्रथम की छतरी आमेर के पास हाड़ीपुरी गांव में है। जिसकी स्थापत्य कला कोलायत में साधु गिरिधापति की छतरी के समान है।

गुसाईयों की छतरियां विराटनगर ( जयपुर ) में स्थित है।

84 खंभों की छतरी –इस छतरी का निर्माण 1683 ईस्वी में महाराव अनिरुद्ध सिंह ने धाबाई देवा गुर्जर की स्मृति में देवपुरा गांव (बूंदी) में करवाया था। इस छतरी में कामसूत्र के 84 आसनों को दर्शाया गया है।

80 खंभों की छतरी – अलवर दुर्ग के पास बनी 80 खंभों की मूसी महारानी की छतरी है। जिसका निर्माण 1815 में महाराजा विनयसिंह ने करवाया था। जो महाराणा बख्तावर सिंह की पासवान रानी थी। यह रानी बख्तावर सिंह की मत्यु पर सती हुवी थी। यह छतरी दो मंजिला है जिस पर महाभारत और रामायण के भित्ति चित्र है। छतरी का नीचला भाग लाल बालू पत्थर से बना है। जिसकी संरचना हाथी के समान है।

बड़ा बाग की छतरियां – बड़ा बाग की छतरियां राजस्थान के जैसलमेर में स्तिथ हैं, जो की जैसलमेर के राज परिवार का शाही शमशान घाट है बड़ा बाग का निर्माण महाराजा जय सिंह द्वितीय के उत्तराधिकारी लूणकरन ने किया था. छतरियां बनाने का अधिकार शाही परिवार के देहवासी राजा के पोते का होता है। जवाहर सिंह और गिरधर सिंह महाराज की छतरियां अभी पूर्ण नही हो पाई, भारतीय स्वतंत्रता के बाद पूरी नहीं हो पायी।

क्षारबाग की छतरियां कोटा में स्थित है। क्षारबाग मैं कोटा के हाड़ा शासकों की छतरियां स्थित है।

देवकुण्ड की छतरियां देवीकुंड सागर, बीकानेर में स्थित है। देवकुण्ड की छतरियां बीकानेर राजघराने का श्मशान घाट हैं. यहां पर राव बीका व रायसिंह की छतरियां प्रसिद्ध है।

जोधपुर की रानियों की छतरियां पंचकुंड (मंडोर, जोधपुर) में स्थित है। यहाँ पर कुल 49 छतरियां, जिनमें रानी सूर्यकंवरी की छत्री 32 स्तंभों पर स्थित सबसे बड़ी छतरी है।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 8 खम्भों की छतरी, बाण्डोली (चावंड, उदयपुर) में बनी है। इसका निर्माण अमरसिंह प्रथम ने करवाया था।

छात्र विलास की छतरी कोटा में स्थित है।

केसर बाग की छतरी बूंदी में स्थित है।

जसवंत थड़ा-  यह छतरी जोधपुर में स्थित है। इसका निर्माण सरदार सिंह ने करवाया था।

संत रैदास (रविदास) की छतरी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में है यह आठ खंभों पर बनी है

गोपाल सिंह यादव की छतरी करौली में स्थित है।

मांडल गढ (भीलवाड़ा) में स्थित 32 खम्भों की छतरी का संबंध जगन्नाथ कच्छवाहा की छतरी है।

रणथम्भौर (सवाई माधोपुर) में स्थित 32 खम्भों की छतरी हम्मीर देव चैहान की छतरी है

नागौर दुर्ग में अमरसिंह राठौड़ की 16 खम्भों की छतरी बनी हुई है यह छतरी, नागौर के शूरवीर राजा अमर सिंह राठौड़ और उनके वंशजों की है

मामा भांजा की छतरी मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) में स्थित है ये धन्ना गहलोत और भीयां चौहान नामक वीरों की छतरी है, जो आपस में मामा-भान्जा थे। महाराजा अजीतसिंह ने इस 10 खम्भों की छतरी का निर्माण मेहरानगढ़ दुर्ग में लोहापोल के पास करवाया था।

पृथ्वीराज सिसोदिया की 12 खंबो की छतरी कुंभलगढ़ किले में स्थित है। पृथ्वीराज सिसोदिया को उड़ना राजकुमार भी कहा जाता है इसे न्याय की छतरी के नाम से भी जाना जाता है

टंहला की छतरीयां अलवर में स्थित हैं।

आहड़ की छतरियां उदयपुर में स्थित हैं इन्हे महासतियां भी कहते है। सिसोदिया राणाओं की छतरियाँ आहड़ , उदयपुर में स्थित है।

राजा जोधसिंह की छतरी बदनौर (भीलवाडा) में स्थित है।

एक खंभे की छतरी, रणथंभौर (सवाई माधोपुर) में स्थित है।

6 खम्भों की छतरी लालसौट (दौसा) में स्थित है। इसे बंजारे की छतरी कहा जाता है

गोराधाय की छतरी जोधपुर में स्थित हैं। ये अजीत सिंह की धाय मां की छतरी है। ये 6 खम्भों की छतरी है।

जयमल (जैमल) व कल्ला राठौड़ की छतरियाँ चित्तौड़गढ में स्थित है। जयमल और कल्लाजी की छतरी जब आप चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रवेश करते है तो दुर्ग के हनुमान पोल और भैरव पोल के मध्य दो छतरिया बनी हुई है जिसमे चार स्तम्भो वाली छतरी कल्लाजी की है और छह स्तम्भो वाली छतरी जयमलजी की है।

चार खंभों की छतरी (श्रृंगार कंवरी) चित्तौड़ दुर्ग में स्थित है इसे राणा कुंभा ने बनवाया था.

राणा सांगा की छतरी माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) में स्थित है।यह छतरी संगमरमर से बनी है और इसमें 32 खंभे हैं

रणथम्भोर अभयारण्य में कुक्कुर घाटी में कुत्ते की छतरी स्थित है ।

अलवर में नैहड़ा की छतरी स्थित है।

चेतक की छतरी वलीचा गाँव (राजसमंद) में स्थित हैं।

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राजस्थान के प्रमुख अनुसंधान केन्द्र (Major Research Centers of Rajasthan)

राजस्थान में अनुसंधान केंद्र (List of Research Centers in rajasthan in Hindi) प्रौद्योगिकी, विज्ञान, कृषि, सांस्कृतिक, अर्थव्यवस्था,चिकित्सा और सामाजिक विज्ञान सहित विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित है।

1. केन्द्रिय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) (Central Arid zone Research Institute) की स्थापना 1959 में जोधपुर मैं मरुस्थलीकरण के विस्तार को रोकने के लिए स्थापना की गई। 1952 में मरू वनीकरण केन्द्र की स्थापना जोधपुर में की गई। जिसका बाद में विस्तार 1957 में मरू वनीकरण एवं मृदा संरक्षण केन्द्र के रूप में हुआ तथा अन्ततः भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अधीन इसे केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के रूप में 1959 में पूर्ण संस्थान का दर्जा दिया गया।

2. शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (आफरी)  (Arid forest Research institute) की स्थापना जोधपुर ,राजस्थान में 1988 ई.में की गई थी. संस्थान देश के शुष्क क्षेत्रों में खेती की समस्याओं का समाधान खोजने के लिए बहु-विषयक अनुसंधान करता है भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद देहरादुन (ICFRE) के आठ संस्थानो में से एक है।

3. केन्द्रिय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान की स्थापना  1962 ई. में  अविकानगर (टोक) मैं की गई थी ,मुख्य उद्देश्य भेड़ एवं खरगोश उत्पादन प्रशिक्षण एवं अनुसंधान करना है.

4. केन्द्रिय बकरी अनुसंधान संस्थान – केन्द्रीय बकरी अनुसंधान केन्द्र अविकानगर, टोंक में स्थित है और स्थापना  1962 ई. में हुई थी. बकरी विकास एवं चारागाह उत्पादन परियोजना रामसर ,अजमेर में स्विट्‌जरलैण्ड के सहयोग से चलाई जा रही है

5. भेड़ एवं ऊन प्रशिक्षण संस्थान – जयपुर

6. केन्द्रिय ऊन विकास बोर्ड – जोधपुर

7. भेड़ रोग अनुसंधान प्रयोगशाला – जोधपुर

8. राजस्थान में NBPGR का प्रादेशिक केन्द्र  – जोधपुर में राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBPGR) का क्षेत्रीय स्टेशन साल 1976 में स्थापित किया गया था.

9. राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र – यह राजस्थान के भरतपुर के सेवर में अवस्थित है। इसकी स्थापना 20 अक्टूबर 1993 को हुई थी।

10. राष्ट्रीय मसाला बीज अनुसंधान केन्द्र – तबीजी, अजमेर

11. राजस्थान कुक्कुट अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान :-  कुक्कुट प्रशिक्षण संस्थान अजमेर, राजस्थान में स्थित है। राज्य का एकमात्र कुक्कुट प्रशिक्षण संस्थान है

12. केन्द्रिय कृषि अनुसंधान केन्द्र – दुर्गापुरा, जयपुर ( स्थापना – 1943 में)

13. केन्द्रिय कृषि फार्म – सुरतगढ़ (गंगानगर) मैं स्थापना 15 अगस्त 1956 को रुस की सहायता से स्थापित कि गी थी। इसे एशिया का सबसे बड़ा कृषि फार्म माना जाता है

14. केन्द्रिय कृषि फार्म -2  :- जैतसर, गंगानगर कनाड़ा की सहायता से स्थापित किया गया था ।

15. केन्द्रिय शुष्क बागबानी संस्थान -केन्द्रिय शुष्क बागबानी संस्थान राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित है।यह संस्थान 1993 से बागवानी फल एवं सब्जी के अनुसंधान एवं विकास कार्य में लगी हुई है।

16. बेर एवं खजुर अनुसंधान केन्द्र  बीकानेर में स्थित है।जिसकी स्थापना 1978 ई. में ।

17. बैल पालन केन्द्र नागौर में स्थित है।

18. केन्द्रिय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला – बीकानेर (स्थापना – 1965)

19.  भेड़ प्रजनन केन्द्र फतेहपुर, सीकर में स्थित है।1973 ई. भेड़ की “मेरिनो नश्ल ” यहीं से तैयार की जाती है |

20. अश्व प्रजनन केन्द्र :- राष्ट्रीय अश्व (equines) अनुसंधान केन्द्र बीकानेर में स्थित है। इस परिसर की स्थापना 28 सितंबर 1989 को अश्व के उत्पादन की क्षमता के अनुकूलन के लिए प्रौद्योगिकियों में सुधार हेतु अनुसंधान करने के लिए की गई थी।

21. राष्ट्रीय ऊँट अनुसंधान केन्द्र – राष्ट्रीय ऊँट अनुसंधान केंद्र जोहड़बीड,बीकानेर में स्थित है।

22.कपास अनुसंधान केन्द्र श्री गंगानगर में स्थित है

23. केंद्रिय पशुधन प्रजनन फार्म  सुरतगढ़ (गंगानगर) में स्थित है

24. चारा बीज उत्पादन फार्म मोहनगढ़ (जैसलमेर) में स्थित है

25. बाजरा अनुसंधान केन्द्र बाड़मेर में स्थित है

26. ज्वार (सोरधम) अनुसंधान केन्द्र वल्लभनगर (उदयपुर) में स्थित है

27. चावल अनुसंधान केन्द्र बाँसवाड़ा में स्थित है

28. मक्का अनुसंधान केन्द्र – किसानों को कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में नवीनतम तकनीकी ज्ञान अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। मक्का अनुसंधान केन्द्र की स्थापना 1 अप्रैल, 1983 को बोरवट गाँव ,बाँसवाड़ा में की गई थी

29.  राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (RSCERT)- राजस्थान सरकार द्वारा गठित महरोत्रा समिति की सिफारिश के अनुसार विद्यालयी शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक उन्नयन के लिए 11 नवंबर 1978 को उदयपुर में राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, राजस्थान (एसआईईआरटी) की स्थापना की गई थी

30. मणिक्या लाल वर्मा आदिवासी अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान भारत के राजस्थान राज्य (प्रांत) के उदयपुर में स्थित है।

31. राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण ब्यूरो का प. द क्षेत्रिय केन्द्र  उदयपुर में स्थित है.

32. भैंस प्रजनन केन्द्र , वल्लभनगर (उदयपुर) में स्थित है

33. भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण पश्चिमी क्षेत्र केन्द्र, उदयपुर में स्थित है

34. भारतीय मौसम विभाग की वेधशाला ,जयपुर में स्थित है

35. राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान ,जयपुर में स्थित है

36. केन्द्रिय इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग शोध संस्थान (सीरी), पिलानी (झुंझुनु) में स्थित है

37. राष्ट्रीय शूकर फॉर्म (सुअर) अलवर में स्थित है

38. सिरेमिक विद्युत अनुसंधान एवं विकास केन्द्र (CERDC) बीकानेर में स्थित है.

39. पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर- (West Zone Cultural Centre (WZCC) Udaipur) में स्थित है

40. रक्षा प्रयोगशाला (Defence Laboratory) जोधपुर में स्थित है

41. राजस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड ट्रैवल मैनजमेंट (RITTMAN) जयपुर में स्थित है

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कोटा का प्रसिद्ध दशहरा मेला

राजस्थान में बहुत सारे मेले लगते हैं जिसकी वजह से राजस्थान को रंगीलो प्रदेश भी कहा जाता हैं और राजस्थान के कोटा का दशहरा मेला पूरी दुनियां में अपनी एक अलग पहचान रखता है।

कोटा दशहरा मेला राजस्थान का सबसे पुराना दशहरा मेला है.

कोटा दशहरा मेला राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध दशहरा मेला है.

बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में दशहरा के दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। आमतौर पर इन पुतलों में पटाखे भरे होते हैं। भगवान राम की पोशाक पहने एक छोटे बच्चे को रावण पर अग्नि बाण चलाने के लिए कहा जाता है और फिर उस विशाल आकृति को जला दिया जाता है। ग्रामीण यहाँ बहुरंगी कपड़े पहनकर भगवान राम की पूजा करने और रावण पर उनकी जीत का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं।

चंबल नदी के किनारे बसा कोटा कई त्यौहार मनाता है। लेकिन दशहरा का त्यौहार एक अलग ही आकर्षण रखता है। इस त्यौहार के दौरान पूरा इलाका एक आकर्षक नज़ारा पेश करता है। यह त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन कोटा दशहरा काफी अनोखा है कोटा का दशहरा मेला राजस्थान में ही नहीं पूरे भारत में प्रसिद्ध है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, दशहरा को प्रतिवर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है।

इस दशहरा मेले का इतिहास 1723 ई. से शुरू होता है। इतिहास बताता है कि दशहरा उत्सव की शुरुआत महाराज दुर्जनशाल सिंह हाड़ा के शासनकाल में हुई थी।विजयादशमी के दिन, तत्कालीन राजपरिवार का कोई व्यक्ति रावण के पुतले पर तीर चलाता है, जिसमें राम के हाथों रावण का वध दर्शाया जाता है। उस समय विभिन्न मंदिरों में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम समारोह का मुख्य आयोजन होते थे। इसके अलावा, इस मेले में भगवान शिव की पूजा-अर्चना भी की जाती है। लेकिन इस दशहरा के धार्मिक आयोजन को अधिक आकर्षक और रंगीन बनाने का श्रेय महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय (1889-1940 ई.) को जाता है। मेले की शुरुआत 1892 से माना जाता है और उस समय कोटा के राजा महाराव उम्मेद सिंह थे।

पिछले कुछ सालों से जयपुर में भी दशहरा मेले का धूमधाम से आयोजन किया जाता है।

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देवनारायण जी के मंदिर Devnarayan ke mandir

देवनारायण जी राजस्थान के एक लोक देवता, शासक और महान योद्धा थे। इनकी पूजा मुख्यतः राजस्थान, हरियाणा तथा मध्यप्रदेश में होती है। इनका भव्य मंदिर आसीन्द में है। भगवान देव नारायण जी को औषधि का देवता भी कहते हैं और इनकी पूजा नीम की पत्तियों से की जाती है।

देवनारायण जी भगवान का जन्म आसींद भीलवाड़ा , बगड़ावत परिवार में हुआ था और इनकी माता जी का नाम साडू माता, पिता जी का नाम सवाई भोज और पत्नी का नाम पीपलदे था देवनारायण जी का बचपन का नाम उदयसिंह था देवनारायण जी के मंदिर राजस्थान में आसींद भीलवाड़ा, देवमाली ब्यावर, देव धाम जोधपुरिया टोंक और देव डूंगरी चित्तौड़गढ़ में हैं

देवनारायण जी को विष्णु के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोक देवता के रूप में पूजा की जाती है।

देवनारायण जी की फड़ में 335 गीत हैं । जिनका लगभग 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ हैं । ये गीत परम्परागत भोपाओं को कण्ठस्थ रहते हैं । देवनारायण जी की फड़ राजस्थान की फड़ों में  सबसे बड़ी हैदेवनारायण जी भगवान की फड़ का वजन गुर्जर जाति के भोपाओं के द्वारा जंतर वाद्य यंत्र पर किया जाता है

2 सितंबर 1992 और 3 सितंबर 2011 को 5 रुपये के भारत पोस्ट द्वारा स्मारक डाक टिकट जारी किया गये थे।

देवनारायण जी का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6km दूरी पर स्थित देहमाली ( देमाली ) स्थान पर गुजरा । भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को उनका वहीं देहावसान हुआ। इसी कारण देवनारायण जी का भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को यहाँ प्रतिवर्ष एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है

प्रमुख मंदिर

आसीन्द,भीलवाड़ा – जहाँ इनकी जन्म तिथि माघ शुक्ला छठ एवं भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को धार्मिक मेले का आयोजन होते हैं।

देवमाली, ब्यावर – जिन्हें स्वयं देवनारायण और मालासारी द्वारा स्थापित सबसे शुरुआती मंदिर माना जाता है, जहां देवनारायण का जन्म हुआ था।

देव डूंगरी , चित्तौड़ – मेवाड़ के महाराणा सांगा श्री देवनारायण के बड़े भक्त थे और कहा जाता है कि उन्होंने देवजी की स्मृति में मंदिर का निर्माण कराया था।

देव धाम ,जोधपुरिया निवाई, (टोंक)- इस मंदिर में देशी घी की अखंड ज्योति जलती रहती है।राजस्थान के टोंक जिले की देवधाम (जोधपुरिया) नामक जगह पर खाराखुर्शी नदी, बांडी नदी तथा मांसी नदी के द्वारा त्रिवेणी संगम बनाया जाता है। इस बाँध का नाम मासी बांध है।

राजस्थान राज्य सरकार ने भगवान देवनारायण के नाम से देवनारायण  स्कूटी योजना भी शुरू कर रखी है। जिसके तहत राज्य सरकार 12वीं कक्षा में 50त्न प्रतिशत या इससे अधिक अंक प्राप्त कर कॉलेज व युनिवर्सिटी में प्रवेश पाने वाली बंजारा, लोहार, गूर्जर, राईका, रैबारी आदि जाति की छात्राओं को स्कूटी प्रदान करती है।

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राजस्थान के त्रिवेणी संगम Rajasthan me Triveni Sangam

त्रिवेणी संगमों पर शिवरात्रि जैसे त्योहारों पर श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं. यहां नदी के किनारे शिव मंदिर भी होता है त्रिवेणी संगमो का इतिहास के साथ-साथ वर्तमान में भी बहुत ज्यादा महत्व है

बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) – सोम-माही-जाखम नदियों के संगम पर बना है। राजस्थान के डुंगरपुर जिले का प्रसिद्ध मेला है जिसमें जिले के आदिवासी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। यह मेला माघ शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर वेणेश्वर नामक स्थान पर लगता है जो सोम, माही व जाखम नदियों के पवित्र संगम पर स्थित है।

बेणेश्वर धाम राजस्थान का कुंभ /आदिवासियों का महाकुंभ कहलाता है ।

रामेश्वरम घाट (मानपुर, सवाई माधोपुर) –चम्बल, बनास और सीप नदियों का संगम है इस त्रिवेणी संगम के पास ही भगवान चतुर्भुजनाथ का मंदिर भी बना हुआ है। रामेश्वर शिव लिंग के दर्शनार्थ दूर दराज से आने वाले भक्तजन त्रिवेणी में स्नान कर भगवान शिव के शिव लिंग का जलाभिषेक करते हैं, इस स्थान पर प्रतिवर्ष ‘कार्तिक पूर्णिमा’ एवं ‘महा शिवरात्री’ पर विशाल मेला भरता है, लाखों की तादाद में यहाँ पर भीड़ इकट्ठा होती है। इस स्थान को राजस्थान में “मीणा जनजाति का प्रयागराज” भी कहाँ जाता है।

मांडलगढ़ (बींगोद, भीलवाड़ा) –बनास, बेड़च और मेनाल नदियों के त्रिवेणी संगम पर है।इस त्रिवेणी संगम को छोटा पुष्कर भी कहा जाता है। भीलवाड़ा से करीब 50km दूर स्थित हैं। “त्रिवेणी मंदिर” भगवान शिव को समर्पित हैं।

राजमहल (देवली , टोंक) – बनास, डाई और खारी नदियां त्रिवेणी संगम बनाती है।

राजस्थान के टोंक जिले की देवधाम (जोधपुरिया) नामक जगह पर खाराखुर्शी नदी, बांडी नदी तथा मांसी नदी के द्वारा त्रिवेणी संगम बनाया जाता है।

बनास नदी पर बनने वाले त्रिवेणी संगमो का सही क्रम है। बीगोद, राजमहल, रामेश्वर

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राजस्थान के बांध :राजस्थान के प्रमुख बांध

राजस्थान के प्रमुख बांध जेसे अडवाण बांध,अजीत सागर,डूंगरी बांध,मासी बांध ,पार्वती बांध,हेमावास बांध,रामगढ बांध,अजान बांध. राजस्थान में ज्यादातार बांध नदी पर बने है

  • राजस्थान के सभी नदी के बांध
  • ERCP परियोजना के बांध
  • सभी जिलो के बांध

मोतीझील बांध मोतीझील बांध को भरतपुर की “लाइफ-लाइन” भी कहा जाता है।
मोतीझील बांध का निर्माण महाराजा सूरजमल जाट के द्वारा करवाया गया है। इस झील में हरीश शैवाल पाई जाती है जो नाइट्रोजन से भरी खाद बनाने में उपयोगी है।
इस बांध का निर्माण रूपारेल नदी पर किया गया है।
इस बांध के द्वारा बाणगंगा तथा रूपारेल नदी का पानी उत्तर प्रदेश की ओर निकाला जाता है।

नंदसमंद बांध – नंद समंद बांध को राजसमंद की जीवन रेखा के नाम से भी जाना जाता है। इस बांध का निर्माण नाथद्वारा राजसमंद में बनास नदी के तट पर 1955 में करवाया गया था

सीकरी बांध – सीकरी बांध का निर्माण भरतपुर जिले में किया गया. सीकरी बांध के द्वारा नगर, कामा तथा डीग तहसील के अनेक बांधों को भरा जाता है यह बांध रूपारेल नदी पर स्थित हैं। लालपुर बांध को बाणगंगा नदी के द्वारा भरा जाता है

अजीत सागर बांध खेतड़ी झुंझुनू में स्थित है।

पन्नालाल शाह बांध खेतड़ी झुंझुनू में स्थित है


बांकली बांध – बांकली बांध का निर्माण जालौर में सुकड़ी तथा कुलथाना नदियों के किनारे बांके गांव में करवाया गया था।

भीम सागर परियोजना – भीम सागर परियोजना झालावाड़ जिले की है भीम सागर परियोजना के अंतर्गत उजाड़ नदी पर झालावाड़ में बांध बनाया गया है।

अडवाण बांध – अडवाण बांध भीलवाड़ा जिले मानसी नदी पर में स्थित है।

नारायण सागर बांध – नारायण सागर बांध का निर्माण ब्यावर के बाद किया गया है। नारायण सागर बांध का निर्माण खारी नदी पर किया गया है। नारायण सागर बांध का शिलान्यास देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने वर्ष 1956 में किया था। यह बांध 8 किलोमीटर लम्बे क्षेत्रफल में फैला हुआ है।

चाकन सिंचाई परियोजना – चाकन सिंचाई परियोजना  बूंदी जिले की है। इस परियोजना का निर्माण बूंदी जिले की किशोरा राय पाटन तहसील के गुड़ा गांव के पास चौकना नदी पर बांध बनाकर किया गया।

हरसोर बांध- हरसोर बांध का निर्माण नागौर की डेगाना तहसील में 1959 में किया गया था इस बांध से हरसोर तथा लूणासर नहर विकसित की गई

अजान बांध – अजान बांध भरतपुर जिले में गंभीर नदी पर राजा सूरजमल जाट द्वारा  बनाया गया। इसका निर्माण बांणगंगा व गंभीरी नदी के पानी को भरतपुर में नहीं आने देने के लिए किया गया।अजान बांध परियोजना से भरतपुर जिले को पेयजल व सिंचाई सुविधा प्राप्त होती है। इस बांध से केवलादेव घना पक्षी विहार, भरतपुर को भी पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।

अनस बांध – बांसवाड़ा जिले में अनस नदी पर बांध का निर्माण प्रस्तावित था। अनस माही नदी की एक सहायक नदी है।


कनोटा बांध-  यह बांध जयपुर मे स्थित है।  यह बांध राजस्थान मे सर्वाधिक मछली उत्पादन करने वाला बांध है।


लालपुर बांध: यह भरतपुर में स्थित हैं। इस बांध को बाणगंगा नदी द्वारा भरा जाता हैै।


बड़गाँव बाँध – बड़गाँव बाँध उदयपुर में बेड़च नदी पर स्थित है।


मासी बांध – वनस्थली, निवाई ,टोंक
नाकोड़ा बांध – बालोतरा
हेमावास बांध – पाली
रामगढ बांध – जयपुर
पार्वती बांध – धौलपुर
बीठन बांध, चितलवाणा बांध व चावरचा बांध   – जालौर

भूपाल सागर,ओराई बांध, सोनियाना बांध – चित्तौड़गढ़
उम्मेद सागर,गरदडा बांध, सीताबाडी बांध व परवन बांध – बाराँ
अनूप सागर व गजनेर बांध – बीकानेर
उम्मेद सागर बांध, गुलाबसागर बांध,जसवंत सागर व तख्त सागर बांध – जोधपुर

वाकल बांध ,उदय सागर बांध,मदार / मादर बांध ,फतेह सागर बांध ,बागोलिया बांध,गोराना बांध,मादड़ी बांध – उदयपुर
अनूप सागर व गजनेर बांध – बीकानेर
काली सिंध व भीमसागर बांध – झालावाड

माधोसागर, कालाखोह व रेडियो सागर बांध – दौसा
तालछापर बांध – चूरू


ERCP मे प्रस्तावित बांध- डुंगरी बांध मुख्य बांध एवं 6 अन्य सहायक बाँध है


कुन्नू बैराज – कुन्नू नदी पर राजस्थान मे शाहबाद ,बारां
रामगढ बैराज – कूल नदी पर राजस्थान में किशनगंज, बारां
महलपुर बैराज – पार्वती नदी पर राजस्थान में मंगरील, जिला बांरा
नवनेरा बैराज – कालीसिंध नदी पर राजस्थान में पीपलदा, कोटा
मेज बैराज – मेज नदी पर इन्द्रगढ़ ,बूंदी
राठौड़ बैराज – बनास नदी पर चौथ का बरवाडा, सवाईमाधोपुर
डूंगरी बांध – बनास नदी पर खण्डार, सवाईमाधोपुर में बांध बनाया जाना है जो “पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना” अन्तर्गत जल संग्रहण हेतु मुख्य बांध होगा।