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राजस्थान के लोक देवता और देवियाँ - Rajasthan ke lok Devta and Deviya

तेजा जी के मंदिर – Teja ji ke mandir

तेजा जी का जन्म माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन राजस्थान के नागौर जिले के खड़नाल में 1074 ई. में जाट परिवार में हुआ था। खरनाल (नागौर) में तेजाजी का एक भव्य मंदिर बनाया गया है। तेजाजी राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं और तेजा जी को शिव के ग्यारह अवतारों में से एक माना जाता है।

  • तेजाजी के पिता का नाम ताहड़ जी और माता का नाम रामकुंवरी था।
  • तेजाजी की पत्नी का नाम पेमल था। पेमल, पनेर के सरदार रायमल की पुत्री थीं।
  • तेजाजी की घोड़ी का नाम लीलण (सिंगारी) था।
  • तेजाजी को नागों के देवता, गौरक्षक, कृषि कार्यों के उपकारक, काला – बाला के देवता आदि नामो से जाना जाता है।
  • तेजाजी के जन्म दिवस पर 7 सितंबर 2011 को स्थान खड़नाल में 5 रुपय की डाक टिकट जारी की थी।
  • परबतर नागौर में भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा जी का प्रत्येक वर्ष मेला लगता है। परबतर तेजा जी मेले से राज्य सरकार को सबसे अधिक आय होती है।
  • तेजाजी, लाछा गूजरी की गायों को मीनाओं के चंगुल से छुड़ाते हुए अपने प्राण त्याग दिए। अजमेर के सुरसुरा गांव में तेजाजी मृत्यु हो गई।

वीर तेजाजी एक बार खरनाल से अपने ससुराल पनेर गए थे, वहां उनकी सास दुआरी (गाय का दूध निकाल रही थी) कर रही थी और तेजा जी की घोड़ी को देखकर गाय वहां से भाग गई, तब बिना देखे तेजाजी की सास ने श्राप दे दिया कि तुझे काल नाग डसे, ऐसा सुनकर तेजाजी वहां से लौटने लगे, तब उनकी पत्नी पेमल ने उन्हें रोका, पत्नी के कहने पर तेजाजी मान गए और सुसराल पहुंचकर आराम करने लगे। कुछ देर बाद ही गांव में एक गुर्जर जाति की महिला लाछा गूजरी मदद मांगने के लिए तेजाजी के पास आई, महिला ने बताया कि उसकी गायों को मीना चोर ले गए। चोरों से गायों को छुड़ावा कर लाएं, तेजाजी ने कहा कि गांव वालों को भेजो, तब महिला ने कहा कि आप तलवार-भाला रखते हैं, इसलिए यह काम आप ही कर सकते हैं। तेजाजी ने गायों को चोरों से छुड़ाने का वचन दिया, वचन पूरा करने के लिए तेजाजी घोड़ी पर सवार होकर किशनगढ़ के समीप पहुंचे। यहां चोरों से युद्ध कर वह गायों को छुड़ाकर ले आए, लेकिन एक गाय का बछड़ा चोरों के पास ही रह गया। लाछा गूजरी ने कहा कि पूरी गायों का मोल वह बछड़ा ही था, जिसे आप लेकर नहीं आए। तेजाजी वापस बछड़ा छुड़ाने के लिए रवाना हुए, यहीं खेजड़ी के पास पहुंचे जहां सर्प की बाम्बी थी. बाम्बी के समीप आग की लपटें देख तेजाजी ने सर्प को जलने से बचा लिया. इस पर सर्प खुश होने की जगह दुखी होकर बोला कि तुमने रुकावट डाला है, इसलिए मैं तुम्हे डसुंगा, तेजाजी ने सर्प को वचन दिया कि वो बछड़े को चोरों से छुड़ाकर लाएंगे, उसके बाद वो उन्हें डस सकते हैं। चोरों से भयानक युद्ध करने के बाद तेजाजी ने बछड़ा छुड़ा लिया और उसे लाछा गूजरी को सौंप दिया। वचन निभाने के लिए सांप के पास पहुंचे तो पूरे शरीर पर जख्म देखकर सांप ने डसने से मना कर दिया। तेजाजी ने वचन पूरा करने के लिए अपनी जीभ निकालकर कहा कि यहां घाव नहीं है और मेरी जीभ अभी सुरक्षित है, तब सर्प ने तेजाजी की जीभ पर डसा। सर्प ने वचनबद्ध रहने से प्रसन्न होकर तेजाजी को वरदान दिया कि वह सर्पों के देवता बनेंगे. सर्प से डसे हर व्यक्ति का विष तेजाजी के थान पर आने पर खत्म हो जाएगा.

पेमल का विवाह तेजाजी से बाल्यकाल में ही 1074 ईस्वी में पुष्कर में हुआ था, जब तेजाजी 9 महीने के और पेमल 6 महीने की थीं। जब तेजाजी गायों की रक्षा करते हुए शहीद हो गए, तब पेमल ने सती प्रथा का पालन किया और पेमल सती हो गई थी।

  • सैदरिया – यहां पर तेजाजी को नाग देवता से डसा था।
  • सुरसुरा – यहां पर तेजाजी ने प्राण त्याग दिए थे।
  • खरनाल – यहां पर तेजाजी का जन्म हुआ था।
  • पनेर – यहां पर तेजाजी का ससुराल था।
  • सुरसुरा तेजाजी का मुख्य निर्वाण स्थली (समाधि स्थल) है, जबकि खरनाल उनकी जन्मस्थली है।

वीर तेजाजी के अन्य पूजा स्थल –

  • भांवता, नागौर में
  • ब्यावर, अजमेर में
  • बांसी दुगारी, बूंदी में
  • परबतसर, नागौर में
  • सुरसुरा, किशनगढ़ ( अजमेर ) में
  • माड़वालिया, अजमेर में
  • भांवता, नागौर में
  • पनेर, अजमेर में
  • खड़नाल, नागौर में
  • तेजाजी का एक मंदिर चेन्नई (तमिलनाडु)के पुझल शक्तिवेल नगर में एक भव्य मंदिर है, जहाँ लीलण पर सवार तेजाजी की 51 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है।
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राजस्थान की लोक देवियां – Rajasthan Ki Lok Deviya

राजस्थान की लोक देवियां – राजस्थान में लोक देवियों का विशेष महत्व है। वे सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का भी अभिन्न अंग हैं। राजस्थान में अनेक देवियों की पूजा की जाती है। करणी माता, जीण माता, शीतला माता, नागणेची माता और चामुंडा माता आदि देवियों की पूजा राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है

नारायणी माता या करमेती माता – नारायणी माता का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के अलवर जिले में राजगढ़ तहसील के पास बरवा की डूंगरी की तलहटी में स्थित हैं।

  • नारायणी माता को सेन (नाई) समाज के लोग अपनी कुलदेवी मानते हैं। वर्तमान मे मीणा व नाईं जाति के बीच नारायणी माता के पुजारी को लेकर विवाद चल रहा है
  • अलवर जिले में नारायणी माता के पुजारी मीणा होते है ।

ज़मुवाय माता – जमवाय माता कछवाहा वंश की कुलदेवी हैं। जमवाय माता का मंदिर जयपुर के जमवारामगढ़ बांध के पास अरावली की पहाड़ियों में स्थित है। इस देवी के मंदिर में मद्य का भोग एवं पशुबलि प्रारंभ से ही वर्जित है ।

आई माता – माता का मुख्य मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले के बिलाड़ा में स्थित है और इसे “अखंड ज्योत” मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस मंदिर में दीपक की ज्योति से कैसर टपकती है ।

चामुंडा माता – चामुंडा माता का मंदिर जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित है। राव जोधा ने 1460 ईस्वी (विक्रम संवत 1517) में मंडोर से चामुंडा माता की मूर्ति लाकर मेहरानगढ़ किले में स्थापित की थी। परिहारों की कुलदेवी होने के बावजूद, राव जोधा ने भी चामुंडा माता को अपनी इष्टदेवी के रूप में स्वीकार किया, और आज भी जोधपुरवासी उन्हें शहर की रक्षक देवी मानते हैं।सितम्बर, 2008 में नवरात्रे के अवसर पर मंदिर स्थित जनसमूह में भगदड मच जाने से करीब 300 लोग असामयिक मृत्यु को प्राप्त हो गये ।इस हादसे की जाँच के लिए सरकार ने जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी ।

त्रिपुरा सुन्दरी माता – त्रिपुरा सुन्दरी माता का मंदिर बांसवाड़ा के तिलवाड़ा में स्थित है। यह एक शक्ति पीठ है जहाँ माता की 18 भुजाओं वाली काले पत्थर की मूर्ति पूजी जाती है।

सच्चीयाय माता – ओसवाल समुदाय और परमार वंश की कुलदेवी सच्चियाय माता हैं। सच्चियाय माता का मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले के ओसियां में स्थित है। गुर्जर प्रतिहार शैली ( महामारू शैली) में बना हुआ है।

ब्रह्माणी माता – राजस्थान के बारां जिले में अंता से 20 किमी दूर सौरसेन में ब्रह्माणी माता का मंदिर है। ब्रह्माणी माता का मंदिर, भारत का एकमात्र मंदिर है जहाँ देवी के पीठ की पूजा और श्रृंगार किया जाता है, उनके अग्र भाग का नहीं। माघ शुक्ला सप्तमी को यहाँ गधों का मेला भी लगता है।

नागणेचियाँ माता – नागणेची माता मारवाड़ के राठौड़ वंश की कुल देवी है । राव धूहड़, जो मारवाड़ राज्य के संस्थापक राव सीहा के पोते थे, 1295-1305 के बीच कर्नाटक से अपनी कुलदेवी चक्रेश्वरी की मूर्ति लाए थे और इसे राजस्थान के ( बालोतरा) जिले के नागाणा गांव में स्थापित किया, जिसके बाद वे नागणेची माता कहलाईं। उनका मुख्य मंदिर जोधपुर के पास नागाणा गांव में स्थित है। राव जोधा ने नागाणा गाँव से मूल मूर्ति मँगवाकर जोधपुर दुर्ग में स्थापित करवाकर वहाँ मंदिर बनवाया । नागणेची माता का दूसरा रूप ‘ श्येन पक्षी/बाज/चील ‘ है ।

आशापुटरा माता – आशापुरा माता का मंदिर राजस्थान के पोकरण के पास स्थित है ।आशापुरा माता बिस्सा जाति के लोगों की कुलदेवी है ।बिस्सा जाति में विवाहित वधू मेहँदी नहीं लगा सकती है ।बिस्सा जाति के लोग झडूला यही उतारते है तथा विवाह के बाद ‘जात’ लगाने भी जाते है ।

बाण माता – बाण माता, सिसोदिया वंश की कुलदेवी हैं, जिनका मुख्य मंदिर उदयपुर के नागदा में स्थित है। राणा लक्ष्मण सिंह ने उदयपुर के कैलवाड़ा में भी एक मंदिर बनवाया था, जिसे 1443 ई. में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने नष्ट कर दिया था। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण कर गुजरात से नई मूर्ति स्थापित की गई है।

राठासण देवी – राठासण देवी के मंदिर का निर्माण बप्पा रावल द्वारा नागदा में एकलिंग जी मंदिर के समीप करवाया गया ।

धनोप माता – धनोप माता का प्राचीन मंदिर भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा से लगभग 30 किमी दूर धनोप गाँव में एक ऊँचे रेतीले टीले पर स्थित है।

अन्नपूर्णा देवी/जोगणिया माता – भीलवाड़ा जिले के ऊपरमाल पठार के दक्षिणी छोर पर स्थित अन्नपूर्णा देवी का मंदिर जोगणिया माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जब देवा हाड़ा की बेटी की शादी में देवी ने जोगन का रूप धारण किया।

नकटी माता – जयपुर से 23 किमी. दूर जयभवानीपुरा गाँव में स्थित नकटी माता का मंदिर गुर्जर-प्रतिहार काल का है। चोरों द्वारा प्रतिमा को नाक के पास से खंडित करने के कारण देवी का नाम नकटी माता पड़ा।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग की कालिका – माता चित्तौड़ दुर्ग में रानी पद्मिनी के महलों और विजय स्तंभ के बीच स्थित कालिका माता मंदिर मूल रूप से एक सूर्य मंदिर था।

महामाई/महामाया माता – मावली (उदयपुर) में स्थित महामाया को शिशु रक्षक लोकदेवी के रूप में पूजा जाता है। गर्भवती महिलाएं स्वस्थ प्रसव और बच्चों के कल्याण के लिए इनकी पूजा करती हैं।

आमजा माता – आमजा माता का मंदिर उदयपुर से 80 किलोमीटर दूर केलवाड़ा के पास रीछड़े गांव में स्थित है। वह भीलों की देवी हैं, और उनकी पूजा एक भील भोपा और एक ब्राह्मण पुजारी दोनों करते हैं।

हिगलाज माता – प्रथम आदि शक्तिपीठ हिंगलाज माता का मुख्य मंदिर बलूचिस्तान वर्तमान पाकिस्तान मे स्थित है ।हिंगलाज माता चौहान वंश की कुल देवी है ।

क्षेमंकरी/खींवल/ खीमल माता – क्षेमंकरी/खींवल/खीमल माता का मंदिर जालौर जिले के भीनमाल गाँव से 3 किमी. दूर बसंतगढ दुर्ग में ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इन्हें शुंभकरी भी कहते हैं क्योंकि वे शुभ फल देती हैं। क्षेमंकरी/खींवल/शुंभकरी देवी भीनमाल की आदि देवी और सोलंकी राजपूत वंश की कुलदेवी हैं। इस मंदिर का निर्माण चावड़ा वंश के राजा वर्मलाट के समय विक्रम संवत 682 ई० में हुआ था।

इंद्रगढ की बीजासण माता – इंद्रगढ़ में एक विशाल पर्वत पर बीजासण माता का मंदिर स्थित है, जो हाडौती अंचल में इंद्रगढ़ देवी के नाम से प्रसिद्ध है।

सुंधा माता – सुंधा माता मंदिर राजस्थान के जालोर जिले की भीनमाल तहसील के दातालावास गांव के पास सुंधा/सूगंधाद्रि पहाड़ी पर स्थित है. चामुंडा माता को सुंधा पर्वत के नाम पर सुंधा माता कहा जाने लगा.
राजस्थान का पहला रोपवे जालौर जिले के सुंधा माता मंदिर में स्थापित किया गया था.

वीरातरा माता/वांकल माता – बाड़मेर जिले की चौहटन तहसील से 10 किमी दूर एक पहाड़ी घाटी में स्थित वांकल या वीरातरा माता का मंदिर 400 साल से भी पुराना है। देवी का नाम ‘वांकल माता’ उनकी थोड़ी झुकी हुई गर्दन के कारण पड़ा और ‘वीरातरा माता’ इसलिए पड़ा क्योंकि वीर विक्रमादित्य ने मंदिर स्थल पर रात बिताई थी।

छींछ माता – छींछ माता का मंदिर राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के छींच गांव में स्थित है।

हिचकी माता – हिचकी माता का मंदिर राजस्थान के अजमेर जिले के सरवाड में स्थित है।

सावित्री माता – सावित्री माता का मंदिर पुष्कर में रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है। सावित्री माता रोपवे, पुष्कर (अजमेर) ब्रह्मा जी के मंदिर के पास स्थित सावित्री माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बनाया गया था, जो एक रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है सावित्री माता मंदिर, रत्नागिरी पहाड़ी पर 750 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

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राजस्थान के लोक देवता और देवियाँ - Rajasthan ke lok Devta and Deviya

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां – Rajasthan ke Pramukh Lok Deviya

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां – राजस्थान में अनेक देवियों की पूजा की जाती है। करणी माता, जीण माता, शीतला माता, और चामुंडा माता आदि देवियों की पूजा राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है. नागणेची माता (राठौड़ों की), जीण माता (चौहानों की), करणी माता (बीकानेर के राठौड़ों की), और आशापुरा माता (जालौर के चौहानों की) आदि विभिन्न राजवंशों की कुलदेवी हैं

करणी माता:- राजस्थान में करणी माता का मुख्य मंदिर बीकानेर जिले के देशनोक शहर में स्थित है।

  • करणी माता ‘‘चूहों की देवी’’ के नाम से भी जानी जाती हैं।
  • करणी माता मंदिर में सफेद चूहों को “काबा” कहा जाता है. 
  • करणी माता का मेला साल में दो बार लगता है, चैत्र नवरात्रि और अश्विन नवरात्रि के दौरान लगता है
  •  मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव करणी माता ने रखी थी।
  • 1488 ई.में राव बीका ने बीकानेर के राठौड़ वंश की नींव करणी माता के आशीर्वाद से रखी गई थी। 
  • बीकानेर के राठौड़ वंश की आराध्य देवी करणी  माता हैं।
  • करणी माता को भी चारणों की कुलदेवी माना जाता है 

तनोट माता – तनोट माता का मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले के तनोट गाँव में स्थित है।

  • थार की वैष्णो देवी तनोट माता को कहा जाता है
  • तनोट माता को हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है
  • तनोट माता को रक्षा की देवी, सैनिकों की देवी और रुमाल वाली देवी के रूप में जाना जाता है।
  • तनोट माता के मंदिर में पुजारी का काम सीमा सुरक्षा बल(BSF) व सेना के जवान करते है ।
  • तनोट माता मंदिर का निर्माण भाटी राजपूत राजा तनु राव (या तन्नू राव) ने करवाया था

अर्बुदा देवी – अर्बुदा देवी का मंदिर सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है। अर्बुदा माता को देवी पार्वती का ही एक रूप माना जाता है और उनका मंदिर “अधर देवी” के नाम से भी जाना जाता है । राजस्थान की वैष्णो देवी अर्बुदा माता मंदिर को कहा जाता है

शाकम्भरी माता/सकराय माता – शाकम्भरी माता ने अकाल से पीडित जनता को बचाने के लिए साग-सब्जियां, फल और अन्य वनस्पतियां उत्पन्न कीं उत्पन किये, इस शक्ति के कारण ये शाकम्भरी कहलाई (पोषण और प्रचुरता की देवी)।

  • सकराय माता खण्डेलवालों की कूल देवी के रूप में प्रसिद्ध है
  • शाकम्भरी माता अजमेर के चौहानों की कुलदेवी है ।
  • शाकम्भरी माता का मंदिर सांभर (जयपुर) में है तथा एक मंदिर सहारनपुर (उत्तरप्रदेश) में स्थित है । सीकर जिले में उदयपुरवाटी कस्बे के पास भी शाकंभरी माता का एक प्राचीन मंदिर है।

शीतला माता – शीतला माता का मंदिर शील की डूंगरी, चाकसू (जयपुर) में है ।

शीतला माता एक ऐसी माता है, जिसकी खण्डित मूर्ति की पूजा होती है। शीतला माता का पुजारी कुम्हार होता है । चाकसू में प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी (चैत्र कृष्ण अष्टमी) के दिन मेले का आयोजन होता है । शीतला माता को बासी भोजन का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस दिन, भक्त एक दिन पहले बनाए गए भोजन को माता को अर्पित करते हैं, जिसे “बासोड़ा” या “बसोड़ा” भी कहा जाता है। 

  • शीतला माता का वाहन गधा होता है ।
  • शीतला माता के मंदिर का निर्माण सवाईं माधो सिंह ने चाकसू में शील की डूंगरी पर करवाया था।
  • चेचक की देवी के रूप में शीतला माता प्रसिद्ध है ।

 जीणमाता :- राजस्थान के लोक साहित्य में जीण माता का गीत सबसे लंबा है। जीण माता का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले रेवासा गांव में स्थित है।

  • पृथ्वीराज चौहान के सामंत हट्टड़ चौहान जीण माता के मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • सीकर के चौहानों की कुलदेवी जीण माता हैं। 
  • जीण माता के भाई हर्ष का मंदिर (हर्षनाथ मंदिर) राजस्थान के सीकर जिले में हर्ष पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर जीण माता मंदिर के पास ही स्थित है
  • जीण माता मंदिर में हर साल चैत्र और आश्विन नवरात्रि के दौरान बड़े मेले लगते हैं.
  • जीण माता के मंदिर में 12 महीने अखंड दीप जलता रहता है.

आवड़ माता:- आवड़ माता का मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित है। आवड़ माता को स्वांगिया माता के नाम से भी जाना जाता है

  • आवड़ माता / स्वांगिया माता जैसलमेर के भाटी शासको की कुलदेवी हैं।
  • राजस्थान में ‘‘सुगनंचिड़ी’’ को आवड़ माता का रूप माना जाता हैं।

सुगाली माता – सुगाली माता को राजस्थान में 1857 की क्रांति की देवी के नाम से जाना जाता है । 10 सिर और 54 हाथ वाली देवी सुगाली माता को कहा जता हैं।

सुगाली माता का मंदिर राजस्थान के पाली जिले के आऊवा गांव में स्थित है। सुगाली माता आऊवा के ठाकुरों (चंपावतों) की कुल देवी है।

कैलादेवी :- कैलादेवी का मुख्य मन्दिर करौली में त्रिकूट पर्वत पर हैें।

  • कैलादेवी का मेला चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भरता हैं। कैला देवी मेला में लांगुरिया नृत्य किया जाता है।
  • कैलादेवी, करौली के यदुवंषियों की कुलदेवी हैं।
  • कैला देवी के इस मंदिर के सामने बोहरा भक्त की छतरी स्थित है।
  • कैलादेवी मंदिर का निर्माण कार्य 1723 में करौली रियासत के शासक महाराजा गोपाल सिंह ने प्रारंभ करवाया और 1730 में पूर्ण हुआ।
  • कैलादेवी मंदिर परिसर में भैरव और हनुमान जी के मंदिर भी स्थित हैं, हनुमान जी को स्थानीय भाषा में ‘लंगूरिया’ कहा जाता है।

घेवर माता – घेवर माता मंदिर राजसमंद झील की पाल (किनारे) पर स्थित है घेवर माता को बिना पति के सती होने वाली देवी के रूप में जाना जाता है. 

  • घेवर माता के मंदिर का निर्माण महाराणा राजसिंह ने करवाया था। राजसमंद झील के निर्माण के समय महाराणा राजसिंह द्वारा बनवाई पाल दिन में बनाते और रात में टूट जाती थी। राजपुरोहित के कहने पर एक धर्मपरायण पतिव्रता महिला घेवर बाई से झील की पाल की नींव रखवाई गयी।
  • घेवर माता अपने हाथों में होम की अग्नि प्रज्जवलित कर अकेली सती हुई थी।

शिला माता – राजस्थान में शिला माता मंदिर आमेर (जयपुर) में पहले नरबलि दी जाती थी, लेकिन अब यह प्रथा बंद हो चुकी है। शिला माता मंदिर में नरबलि की जगह पशुबलि दी जाती है। 

  • शिला माता, जयुपर के कच्छावा राजवंष की कुलदेवी हैं।
  • शिला माता की मूर्ति आमरे शासक मानसिंह प्रथम पूर्वी बंगाल के विजय के दौरान महाराजा केदारनाथ से लाए थे।

ज्वाला माता :- ज्वाला माता का मंदिर जोबनेर, जयपुर में स्थित है ज्वाला माता खंगारोतो राजवंश की कुल देवी हैं।

छींक माता – राजस्थान में छींक माता का मंदिर जयपुर (गोपाल जी के रास्ते में) में स्थित है।

कुशाल माता – राणा कुम्भा ने बदनोर (भीलवाडा) के युद्ध में महमूद खिलजी को पराजित कर, इस विजय की याद में विक्रम संवत् 1490 ईं ० में कुशाल माता का मंदिर बदनोर (भीलवाडा) में बनवाया था । यहाँ प्रतिवर्ष भाद्र कृष्ण ग्यारस से भाद्र अमावस्या को मेला भरता है।

राणी सती लोक देवी – रानी सती मंदिर (रानी सती दादी मंदिर) राजस्थान के झुंझुनू जिले में स्थित है राजस्थान के झुंझुनू में स्थित रानी सती मंदिर, एक राजस्थानी महिला रानी को समर्पित सबसे बड़ा मंदिर है और मंदिर में कोई भी भगवान और देवी की मूर्ति नहीं है

  • झुंझुनू जिले की राणी सती का नाम नारायण बाई था ।
  • राणी सती का विवाह हिसार के तनधनदास के साथ हुआ । 
  • हिसार के नवाब की रक्षा करते हुए धनदास की मृत्यु हो गई तब नारायणी बाईं सन् 1652 में मार्गशीर्ष कृष्णा नवमीं को अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सती हुई ।
  • लोक भाषा में राणी सती दादीजी के नाम से भी प्रसिद्ध है
  • सती माता को अग्रवाल जाति की कुलदेवी माना जाता है ।

बड़ली माता – बड़ली माता का मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले के आकोला में स्थित है। यह मंदिर बेड़च नदी के किनारे स्थित है

बाकल माता/ विरात्रा माता – विरात्रा वांकल माता मंदिर राजस्थान के बाड़मेर जिले, चौहटन में विरात्रा नामक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है.

लटियाल माता – लटियाल माता मंदिर राजस्थान के फलोदी शहर में स्थित है। 

दधिमती माता – दधिमती माता का मंदिर राजस्थान के नागौर जिले में जायल तहसील के गोठ मांगलोद गांव में स्थित है

आवरी माता – आवरी माता का मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के भदेसर तहसील के आसावरा गांव में स्थित है। 

भदाणा माता – भदाणा माता का मंदिर राजस्थान के कोटा जिले के भदाणा गांव में स्थित है।

राजेश्वरी माता – राजेश्वरी माता को भरतपुर के जाट वंश की भी कुलदेवी मानी जाती हैं राजराजेश्वरी माता का मंदिर भरतपुर में स्थित है।

जिलानी माता – जिलानी माता मंदिर कोटपुतली-बहरोड़ जिला में स्थित है। जिलाणी माता को गुर्जर समाज की कुलदेवी माना जाता है 

चौथ माता – चौथ माता का मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा में स्थित है। 

  • चौथ माता बूंदी राजघराने और कंजर जनजाति की कुलदेवी हैं। इसके अतिरिक्त, मीणा जनजातियों में भी चौथ माता को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
  • सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा के लिए करवा चौथ  (कार्तिक कृष्ण चतुर्थी) पर चौथ माता का व्रत करती है ।

भद्रकाली माता – राजस्थान में भद्रकाली माता के दो प्रसिद्ध मंदिर हैं, एक हनुमानगढ़ जिले में और दूसरा सिरोही जिले के आबू रोड के उमरानी क्षेत्र में स्थित है

मनसा माता – मनसा माता का मंदिर चूरू में स्थित है।

रानी भटियानी सा/ भुआ सा – रानी भटियानी सा का मंदिर राजस्थान के बालोतरा जिले के जसोल गाँव में स्थित है। जिसे माजीसा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है यह मंदिर रानी भटियानी (स्वरूप कंवर) को समर्पित है

भवाल माता – भंवाल माता का मंदिर नागौर जिले की मेड़ता तहसील में भवाल गाँव में स्थित है। भंवाल माता को ढाई प्याला शराब चढ़ाई जाती है ।

कैवाय माता – कैवाय माता मंदिर राजस्थान के डिंडवाना – कुचामन जिले के किनसरिया गाँव में स्थित है 

धोलागढ देवी – धोलागढ़ देवी का मंदिर राजस्थान के अलवर जिले के कठूमर क्षेत्र में बहतूकला गाँव के धोलगिरी पर्वत पर स्थित है।

हर्षत माता – हर्षत माता मंदिर राजस्थान के दौसा जिले के आबानेरी गाँव में ‘चाँद बावड़ी’ के ठीक सामने स्थित है। अबानेरी में हर्षत माता मंदिर मूल रूप से भगवान विष्णु को समर्पित था।

पिपलाज माता – पिपलाज माता का मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले के ओसियां में स्थित है।

पपलाज माता – पपलाज माता का मंदिर राजस्थान के दौसा जिले के लालसोट में स्थित है।

पीपलाद माता – पीपलाद माता का मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले में खमनोर के पास देवल उनवास में स्थित है 

आमजा माता – आमजा माता का मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले के रिछेड़ गाँव में स्थित है.

मगरमंडी माता – मगरमंडी माता का मंदिर राजस्थान के ब्यावर जिले के निमाज कस्बे में स्थित है.

रक्तदंती माता – रक्तदंती माता का मंदिर राजस्थान के बूंदी जिले में स्थित है।

कंठेश्वरी माता – कंठेश्वरी माता आदिवासियों की कुल देवी है। कंठेसरी माता का मंदिर जालौर जिले के पंचोटा गाँव में पंचमुखी पहाड़ी पर स्थित है

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राजस्थान के लोक देवता और देवियाँ - Rajasthan ke lok Devta and Deviya

राजस्थान के लोक देवता – Rajasthan ke lok Devta

राजस्थान के लोक देवता – राजस्थान में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। रामदेवजी, गोगाजी, पाबूजी, हड़बूजी, मेहाजी, हड़बूजी, तेजाजी, कल्लाजी, तल्लीनाथजी,भोमियाजी आदि ने समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना, हिंदू धर्म की रक्षा, सांस्कृतिक उत्थान, समाज सुधार और जनहित में अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया।

रामदेवजी, पाबूजी, गोगाजी, हड़बूजी और मेहाजी को राजस्थान के पंच पीर कहा जाता है. ये पांच संत या पीर अपने धार्मिक और सामाजिक योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। राजस्थान के पांच पीरों में तेजाजी शामिल नहीं हैं। तेजाजी राजस्थान एक लोकप्रिय लोक देवता हैं, लेकिन उन्हें पंच पीरों में नहीं गिना जाता है.

रामदेव जी (पीर) – रामदेवजी के पास नीले रंग का घोड़ा था। जिसका नाम लीला था।

  • जन्म – उडुकासमेर, शिव तहसील (बाड़मेर)
  • पिता – अजमल तंवर
  • माता – मेणादे
  • पत्नी – नेतलदे/निहालदे
  • गुरु – बालिनाथ जी ( इनकी समाधि मसूरिया (जोधपुर) में स्थित है)
  • रामदेवजी के उपनाम – पीरो के पीर, रामसापीर, कृष्ण का अवतार, रुणिचा रा धणी ठाकुर जी, सांप्रदायिक सदभाव के देवता आदि नामो से जाना जाता है।
  • रामदेव जी की फड़ का वाचन कामडभोपा रावण हत्था वाद्य यंत्र से करते है। रामदेवजी के फड़ का वाचन कमाडिया पंथ के लोगो के द्वारा किया जाता है।
  • रामदेवजी ने जातिगत छुआछूत व भेद भाव मिटने के लिए “जम्मा जागरण” अभियान चलाया।
  • भाद्रपद शक्ल एकादशी, विक्रम संवत 1515 को रामदेव जी ने रुणिचा के रामसरोवर तालाब के किनारे जीवित समाधि ली। रामदेवजी का मेला भद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक रूणेचा में भरता है। जिसको माड़वाड़ का कुम्भ कहा जाता है। रामदेवजी के प्रतीक चिन्ह “ पगल्ये “ है।
  • रामदेवजी की धर्म बहिन – डाली बाई ने रामदेवजी एक दिन पहले समाधि ली थी।
  • कामड़िया पंथ की स्थापना रामदेव ने की थी। तेहरताली नृत्य कामड संप्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है । मांगी बाई तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यगना थी।
  • “चोबीस वाणिया” नामक पुस्तक बाबा रामदेव जी से संबंधित है।
  • जैसलमेर,पोखरण (रूणेचा) के मंदिर का निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया।रामदेव जी का मुख्य मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले में पोखरण के पास रामदेवरा में स्थित है। मसूरिया पहाड़ी, जोधपुर में भी रामदेव जी का मंदिर है.
  • रामदेव जी के अजमेर (खुंडियास) मंदिर को राजस्थान का छोटा रामदेवरा भी कहते है।

गोगाजी – महमूद गजनवी ने गोगाजी को जाहरपीर कहा था। गोगाजी के लिए “गांव गांव खेजड़ी गांव-गांव गोगा ” की कहावत का प्रसिद्ध है। गोगाजी का मन्दिर खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है गोगाजी के जागरण में डेरू व माठ वादे यंत्र का प्रयोग किया जाता है।

  • जन्म – ददरेवा, चुरू
  • पिता – जेवरसिंह
  • माता – बाछल दे
  • पत्नी – गोगाजी का विवाह कोलूमण्ड की राजकुमारी केलमदे के साथ हुआ था।
  • मेला – भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी ) को गोगामेड़ी गांव में मेला भरता है।
  • गोगाजी के उपनाम – गोगाजी को सांपो के देवता, गौ रक्षक देवता, गोगापीर, जहरपीर, जिंदा पीर कहते है।
  • मन्दिर – गोगामेड़ी ,नोहर (हनुमानगढ़) गोगाजी की ओल्डी – किलौरोयो की ढाणी (सांचौर) में स्थित है।
  • गोगाजी की मेड़ी मकबर नुमा है जिसका निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया था। गोगाजी के मन्दिर के मुख्य दरवाजे पर ( प्रवेश द्वार ) पर बिस्मिल्ला व मेड़ी पर ॐ शब्द लिखा हुआ है।

पाबूजी – जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित फलौदी के पास कोलू नामक गांव में 1239 ई. में हुआ था। वे धदल राठौर (राव सीहा के वंशज) के पुत्र थे। राजस्थान में सबसे पहले ऊट लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है। रायका/रेबारी जाति के आराध्य देव पाबूजी है। मेहर जाति के मुसलमान पाबूजी की पूजा करते है।

  • पिता -धंधाल जी राठौड़
  • माता – कमलदे
  • पत्नी -सुप्यारदे
  • घोड़ी – केसर कालमी (देवल चारणी की घोड़ी )
  • मुख्य मंदिर – कोलुमंड, जोधपुर
  • समाधि स्थल – देचू गांव, जोधपुर
  • उपनाम – गौरक्षक / ऊटो के देवता / प्लेक रक्षक देवता / हाड़- फाड़ के देवता
  • राजस्थान के लोक देवता पाबूजी को लक्ष्मण जी का अवतार माना जाता है। 
  • पाबूजी के मेला चैत्र अमावस्या को लगता है।
  • राजस्थान में ऊट के बीमार होने पर पाबूजी की फड़ का वचन किया जाता है।
  • पाबूजी की फड़ का वाचन नायक/धोरी जाति के भोपे करते है।
  • पाबूजी की फड़ का वाचन करते समय रावणहत्था वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है।
  • राजस्थान में सबसे लोकप्रिय फड़ पाबूजी की मानी जाती है।
  • मोरजी आशिया ने पाबू जी पर पाबू प्रकाश नामक पुस्तक लिखी।

हड़बूजी सांखला – हड़बुजी सांखला रामदेव जी मौसेरे भाई थे, उनकी प्रेरणा से ही हड़बुजी ने अस्त्र शस्त्र त्याग कर योगी बालीनाथ से दीक्षा ली थी।

  • हड़बूजी का मुख्य मंदिर बेंगटी गांव, फलौदी में स्थित है. वहां, उनकी बैलगाड़ी की पूजा की जाती है
  • वाहन – सियार
  • हड़बूजी ने रामदेवजी के समाधि लेने के 8 दिन बाद समाधि ली थी।
  • हड़बुजी के मन्दिर का निर्माण जोधपुर के शासक अजीत सिंह के द्वारा 1721 में करवाया गया।

मेहाजी मांगलिया – इनकी मृत्यु जैसलमेर शासक रांणगदेव भाटी से युद्ध में पाना गुजरी की गायों की रक्षा करते हुवे हुई थी। मेहजी के पुजारी की सन्तान नहीं होती है वह पुत्र गोद लेकर अपना वंश बढ़ाते है। मांगलिया वंश के भोपे पुत्र गोद लेकर वंश बढ़ाते है

  • जन्म – मारवाड़ में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी ( जन्माष्टमी) के दिन हुआ ।
  • घोड़ा – किरड़ काबरा
  • मन्दिर – बापणी गांव, जोधपुर
  • मेला – भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को भरता है।

तेजा जी – उनका जन्म माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन राजस्थान के नागौर जिले के खड़नाल में 1074 ई. में हुआ था। उन्होंने लाछा गूजरी की गायों को मीनाओं के चंगुल से छुड़ाते हुए अपने प्राण त्याग दिए। अजमेर के सुरसुरा गांव में तेजाजी मृत्यु हो गई।

  • पिता – ताहडजी
  • माता – राजकंवारी
  • पत्नी – पेमलदे
  • तेजाजी की घोड़ी का नाम लीलण (सिंगारी) था
  • तेजाजी को नागों के देवता, गौरक्षक, कृषि कार्यों के उपकारक, काला – बाला के देवता आदि नामो से जाना जाता है।
  • तेजाजी के जन्म दिवस पर 7 सितंबर 2011 को स्थान खड़नाल में 5 रुपय की डाक टिकट जारी की थी।
  • परबतर नागौर में भाद्रपद शुक्ल दशमी को इनका मेला लगता है। तेजाजी के इस मेले से राज्य सरकार को सबसे अधिक आय होती है।
  • सैदरिया – यहां पर तेजाजी को नाग देवता से डसा था।

मल्लिनाथ जी – रावल मल्लिनाथ राजस्थान के महानतम शासकों में से एक हैं। वे राव सलखाजी के पुत्र थे, जो बाड़मेर में मेहवानगर के शासक थे।

  • जन्म – तिलवाड़ा ( बाड़मेर ) में राठौड़ वंश में हुआ।
  • गुरु – उगमसी भाटी
  • मल्लीनाथ मेला चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक लूणी नदी के किनारे तिलवाड़ा नामक स्थान पर भरता है।
  • राजस्थान का सबसे प्राचीन मेला मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा है।
  • इनकी पत्नी रूपादे का मन्दिर मालाजाल गांव बाड़मेर में बना हुआ है।
  • बाड़मेर का गुड़ामलानी का नामकरण मल्लीनाथ जी के नाम पर हुआ है।
  • बाड़मेर के मालानी क्षेत्र का नाम इन्ही के नाम पर घोड़े प्रसिद्ध है।

देवनारायण जी – देवनारायण जी की फड़ राजस्थान के सभी लोक देवताओं में सबसे बड़ी फड़ है। देवनारायण जी फड़ का वाचन जन्तर वाद्य से गुर्जर भोपा के द्वारा किया जाता है।देवनारायण जी गुर्जर जाती के आराध्य देव है।

  • जन्म – इनका जन्म आसीन्द ( भीलवाड़ा ) में हुआ।
  • पिता – सवाई भोज
  • माता – सेढू खटाणी
  • इनकी शादी धार ( मध्यप्रदेश ) के शासक जयसिंह की पुत्री पीपलदे से इनका विवाह हुआ।
  • इनके घोड़े का नाम लीलागर था।
  • इनका मुख्य मेला भाद्रपद शुक्ल सप्तमी और माघ शुक्ल सप्तमी में भरता है।
  • देवनारायण जी आयुर्वेद के देवता, गौरक्षक का देवता, विष्णु का अवतार कहा जाता है।
  • देवनारायण जी के मंदिरों में एक ईट की पूजा की जाती है।
  • 3 सितम्बर 2011 को भरता सरकार के द्वारा 5 रुपय की डाक टिकट जारी की गई ।
  • मन्दिर – देवडूंगरी (चित्तौड़गढ़), देवधाम (जोधापुरिया, निवाई, टोंक), देवमाली (ब्यावर), आसींद (भीलवाड़ा)

वीर कल्लाजी – 1568 ई. में अकबर द्वारा चितौड़ दुर्ग पर आक्रमण किया तो महाराणा उदयसिंह ने दुर्ग की रक्षा का भार जयमल व कल्ला जी को सौंपा था और स्वयं सुरक्षित स्थान पर चले गए। युद्ध के समय जयमल को पैर में अकबर द्वारा गोली मार दी गयी तब कल्ला जी ने जयमल को अपने कंधो पर बैठाकर युद्ध लड़ा है और चार हाथों से तलवारें चलने लगी तो लोग आश्चर्य चकित हो गये इसलिये कल्ला जी को चार हाथों वाला देवता कहा जाता है।

  • जन्म – इनका जन्म मेड़ता ( नागौर ) हुआ।
  • गुरु – योगी भैरवनाथ
  • पिता – आससिंह
  • माता – श्वेतकंवर
  • इनका मेला अश्विन शुक्ल नवमी को लगता है।
  • इनको शेषनाग का अवतार, चार भुजा वाले देवता, योगी, दो सिर वाले देवता, कल्याण, बाल – ब्रह्मचारी आदि नामो से जाना जाता है।
  • मीरा बाई इनकी बुआ तथा जयमल इनके चाचा थे।
  • महाराणा उदयसिंह द्वारा कल्ला जी को रूण्डेला तथा रुणढालपुर की जागीरें प्रदान की गई थी।
  • कल्ला जी राठौड की छतरी चितौड़गढ़ दुर्ग में भैरवपोल नामक स्थान पर बनी हुई है
  • कल्ला जी का मंदिर सामलिया डूंगरपुर तथा मुख्य पीठ रनेला चितौड़गढ में स्थित है। कल्लाजी के मंदिर में अफीम चढ़ाई जाती है

डूंगर जी – जवाहर जी – डूंगर जी और जवाहर जी, शेखावाटी क्षेत्र के पाटोदा गाँव (सीकर) के निवासी थे यह दोनों रिश्तों में चाचा और भतीजा थे

  • उन्हें “धाड़वी” या “लोक देवता” के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि वे अमीरों को लूटकर गरीबों में धन बांटते थे। इन्होंने नसीराबाद ( अजमेर ) छावनी को भी लूटा था।
  • लोठिया जाट, करणा भील, सावंत मीणा, डूंगरजी और जवाहरजी के सहयोगी थे

इलोजी – राजस्थान में ईलोजी महराज को छेड़छाड़ का देवता कहते है राजस्थान के एक मात्र ऐसे लोकदेवता हैं जिन्होंने अपनी पत्नी की याद में अपने प्राण त्याग दिए. इनकी शादी से एक दिन पहले इनकी होने वाली पत्नी होलिका (हिरण्यकश्यप की बहन) ने प्राण त्याग दिए थे जालौर में इलोजी की बारात निकाली जाती है और होली के दौरान विशेष पूजा होती है.

भूरिया बाबा/ गौतमेश्वर – भूरिया बाबा को मीणा लोग अपना आराध्य मानते हैं और उनकी झूठी कसम नहीं खाते हैं

  • गौतमेश्वर महादेव का मेला वैशाखी पूर्णिमा पर अरनोद प्रतापगढ़ में आयोजित होता है
  • भूरिया बाबा का मुख्य मंदिर राजस्थान के सिरोही जिले के पोसालिया गाँव में स्थित है, जो अरावली की पहाड़ियों और सुकड़ी नदी के किनारे बसा है।
  • गौतमेश्वर के मेले में वर्दी पहने हुवे पुलिस का जाना वंचित है।

आलमजी –आलम जी का थान (मंदिर) ढांगी नामक टीले पर है, जिसे आलम जी का धोरा कहा जाता है. यहां भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को मेला लगता है. आलम जी का मंदिर धोरीमन्ना (बाड़मेर) में स्थित है।

तल्लीनाथजी – पंचोटा गांव (जालौर) में ही उनका मुख्य उपासना स्थल व समाधि है। जालोर की पंचमुखी पहाड़ी पर उनका मन्दिर व समाधि बनी हुई है। राव तल्लीनाथजी राठौड़ का मूल नाम गांगदेव राठौड़ था। इनके पिता विरमादेव राठौड़ शेरगढ ठिकाने (जोधपुर) के जागीरदार थे

  • गुरु – जालंधर नाथ ( इनके द्वारा ही गागदेव को तल्लीनाथ का नाम दिया था। )
  • इनको प्रकृति प्रेमी लोकदेवता कहा जाता है। ओरण के देवता के रूप में तल्लीनाथ जी को जाना जाता है।

भोमिया जी /क्षेत्रपाल–भोमिया जी भूमि रक्षक देवता कहते है। भोमिया जी मन्दिर गांव – गांव में होता है।

मामादेव – मामा देव को बरसात का देवता कहा जाता है। मामादेव की पूजा मंदिर या घर के अंदर नहीं की जाती है, बल्कि गांव के बाहर मुख्य सड़क पर लकड़ी के तोरण के रूप में की जाती है। मामा देव का मन्दिर स्यालोदडा ( सीकर ) में है। राजस्थान में मामादेव लोक देवता को प्रसन्न करने के लिए भैंस की बलि दी जाती है।

देवबाबा – देवबाबा को गुर्जरों आराध्य देव और ग्वालों का पालनहार देवता माना जाता है देवबाबा को पशु चिकित्सक कहते है। देवबाबा का नगला जहाज ( भरतपुर ) में इनका मुख्य मन्दिर है इनका मेला भाद्रपद शुक्ल पंचमी को भरता है। इनका वाहन भैसा है।

वीर फता जी – इनका जन्म सांथू गांव (जालौर) में हुआ। इनका मेला भाद्रपद शुक्ल नवमी को भरता है। वीर फताजी लुटेरों से गांव की रक्षा करते हुवे शाहिद हो गए थे।

पनराज जी – पनराज जी का मन्दिर पनराजसर (जैसलमेर) में बना हुआ है। पनराज जी जैसलमेर के आराध्य देव है और इनका जन्म नगा गांव (जैसलमेर) में हुआ।

हरिराम जी –हरिराम जी मंदिर में मूर्ति के स्थान पर सांप की बांबी या चरण चिन्ह की पूजा की जाती है। इनका जन्म झोरड़ा ( नागौर ) में हुआ । झोरड़ा ( नागौर ) में इनका मन्दिर बना हुआ है। इनका मेला चैत्र शुक्ल चतुर्थी व भाद्रपद शुक्ल पंचमी को भरता है।

झुंझार जी –झुंझार जी का मुख्य मंदिर स्यालोदडा, सीकर में स्थित है,जहाँ प्रतिवर्ष रामनवमी को मेला लगता है।

पंचवीर जी –पंचवीर जी का मन्दिर अजीतगढ़ (सीकर) में बना हुआ है। पंचवीर जी शेखावत समाज के कुल देवता है।

रूपानाथ जी (झरड़ा जी) –रूपानाथ जी ने जींदराव खींची का वध कर अपने चाचा पाबूजी की मौत का बदला लिया था। यह पाबूजी के भाई बुढ़ो के पुत्र थे। इन्हे हिमाचल प्रदेश मे बालकनाथ के नाम से पूजा जाता है। इनका मंदिर शिम्भूदडा गाँव (नोखा मण्डी, बीकानेर) व कोलुमण्ड (फलौदी) में स्थित है।

बीग्गा जी – वीर बिग्गामलजी या झुंझार जी का जन्म जाट जाति के जाखड़ गोत्र मैं हुआ। झुंझार जी गायों की रक्षा करते वीर गति को प्राप्त हुऐ। बिग्गाजी जाखड़ गौत्र समाज के कुल देवता के रूप मे पूजे जाते हैं। बीग्गा जी का मुख्य मन्दिर रीडी, डूंगरगढ़ ( बीकानेर ) में बना हुआ है।

वीर बावसी –वीर बावसी, देवासी समाज के एक पूजनीय देवता हैं राजस्थान के सिरोही जिले के जोयला शिवगंज में वीर बावसी का मंदिर स्थित है।