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राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन – Prajamandal Movement in Rajasthan

राजस्थान के प्रजामंडल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। ये रियासती राज्यों में जनतांत्रिक अधिकारों, नागरिक स्वतंत्रताओं और उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए चलाया गया। “प्रजामंडल” का अर्थ है “प्रजा का मंडल” या जनता का संगठन।

आंदोलन के प्रमुख कारण

जनजागरण: 1920 के दशक में महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन पूरे भारत में फैल रहा था, जिसका प्रभाव राजस्थान की रियासतों में भी देखने को मिला।

रियासती निरंकुशता: राजस्थान की रियासतों के शासक निरंकुश थे। वे जनता के अधिकारों की अनदेखी करते थे, जिससे जनता में असंतोष बढ़ रहा था।

आर्थिक शोषण: रियासतों में सामंतवादी व्यवस्था के कारण किसानों और आम जनता का आर्थिक शोषण हो रहा था।

राजनीतिक चेतना का उदय: शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ लोगों में अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी थी।

कृषक असंतोष :- जागीरदारी व्यवस्था के तहत किसानों पर भारी कर और शोषण, जैसे बिजोलिया और बेगू किसान आंदोलन।

समाचार पत्रों की भूमिका :- ‘राजस्थान केसरी’ (1920) और ‘नवीन राजस्थान’ (1922) जैसे पत्रों ने राष्ट्रवादी विचार फैलाए।

1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में यह तय किया गया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अब रियासतों के मामलों में सीधे हस्तक्षेप करेगी। इस निर्णय से राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलनों को नई दिशा मिली।

प्रजामंडलप्रजामंडल की स्थापना वर्ष प्रजामंडल के संस्थापक
जयपुर प्रजामंडल1. 1931
2. 1938
1. कपूरचंद पाटनी
2. जमनालाल बजाज
बूंदी प्रजामंडल 1931कांतिलाल जैन
मारवाड़ प्रजामंडल1934जयनारायण व्यास
सिरोही प्रजामंडल1. 1934
2. 1939
1. विरधी शंकर त्रिवेदी
2. गोकुल भाई भट्ट
हाड़ौती प्रजामंडल1934पंडित नयनूराम शर्मा
बीकानेर प्रजामंडल1936मघाराम वैद्य
धौलपुर प्रजामंडल 1936ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु
मेवाड़ प्रजामंडल1938माणिक्यलाल वर्मा
शाहपुरा प्रजामंडल1938रमेश चंद्र ओझा
अलवर प्रजामंडल1938हरि नारायण शर्मा
भरतपुर प्रजामंडल1938किशनलाल जोशी
करौली प्रजामंडल1938त्रिलोक चंद माथुर
किशनगढ़ प्रजामण्डल1939कांतिलाल चौथानी
कुशलगढ़ प्रजामंडल 1942भंवर लाल निगम
बांसवाड़ा प्रजामंडल1943भूपेंद्र नाथ द्विवेदी
डूंगरपुर प्रजामंडल1944भोगीलाल पंड्या
जैसलमेर प्रजामंडल1945मीठालाल व्यास
झालावाड़ प्रजामंडल1946मांगीलाल भव्य
प्रतापगढ़ प्रजामंडल1945अमृतलाल पायक

जयपुर प्रजामंडल (1931):- राजस्थान का पहला प्रजामंडल जयपुर प्रजामंडल था, जिसकी स्थापना 1931 में कपूरचंद पाटनी द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य महाराजा के अधीन उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।

  • बाद में 1936 में जमनालाल बजाज और हीरालाल शास्त्री नेताओं ने जयपुर प्रजामंडल पुनर्गठन किया और चिरंजीलाल मिश्र को अध्यक्ष बनाया गया।
  • 1938 में जमनालाल बजाज को अध्यक्ष बनाया गया और प्रजामंडल का पहला वार्षिक अधिवेशन नथमल कटला (जयपुर) में हुआ।
  • हीरालाल शास्त्री, जमनालाल बजाज, कपूर चंद पाटनी, टीकाकरण पालीवाल, लादूराम जोशी, पूर्णानन्द जोशी, राम करन जोशी आदि जयपुर प्रजामण्डल के प्रमुख नेता थे
  • जेन्टलमेट्स समझौता (1942): – भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, प्रजामंडल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री और जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री मिर्ज़ा इस्माइल के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत प्रजामंडल को भारत छोड़ो आंदोलन से अलग रखा गया।
  • आजाद मोर्चा का गठन: – जेन्टलमेट्स समझौते से नाराज होकर बाबा हरिशचंद्र ने आज़ाद मोर्चा का गठन किया गया, जिसने जयपुर में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की।

बूंदी प्रजामंडल (1931):- बूंदी प्रजामंडल की स्थापना कांतिलाल जैन ने 1931 में की थी. बूंदी प्रजामंडल में नित्यानंद नागर, मोतीलाल अग्रवाल, ऋषिदत्त मेहता, और गोपाल कोटिया जैसे प्रमुख नेता भी शामिल थे।

बूंदी राज्य लोक परिषद:- 1944 में ऋषि दत्त मेहता ने बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना की, जिसने राज्य में जिम्मेदार शासन की दिशा में काम किया।

मारवाड़ प्रजामंडल (1934):– मारवाड़ प्रजा मंडल की स्थापना जयनारायण व्यास के नेतृत्व में 1934 में जोधपुर रियासत में हुई थी और मारवाड़ प्रजामंडल का अध्यक्ष भंवरलाल सर्राफ को बनाया गया।

  • जयनारायण व्यास ने ‘पोपाबाई की पोल’ और ‘मारवाड़ की अवस्था’ जैसी पुस्तिकाएँ लिखीं, जिससे लोगों में क्रांति की भावना जागी।
  • रणछोड़ दास गट्टानी, छगन राज चौपासनी वाला,भंवरलाल सर्राफ, जयनारायण व्यास आदि मारवाड़ प्रजामंडल के नेता थे।
  • 1936 में कृष्णा कुमारी के अपहरण और अत्याचार के विरोध में कृष्णा दिवस मनाया गया। मारवाड़ प्रजामंडल ने जोधपुर रियासत में 1936 में ‘कृष्णा दिवस’ मनाया था।
  • मारवाड़ यूथ लीग (मारवाड़ युवा संघ) की स्थापना 10 मई 1931 को जयनारायण व्यास ने की थी।
  • 1918 ई. में चांदमल सुराणा ने “मरुधर हितकारिणी सभा” का गठन किया।
  • 1923 ई. में जयनारायण व्यास ने “मरुधर हितकारिणी सभा” का “मारवाड हितकारिणी सभा” के नाम से पुनर्गठन किया।
  • 1920 ई. में जयनारायण व्यास ने “मारवाड़ सेवा संघ” की स्थापना की।
  • 1932 ई. में छगनराज चौपासनीवाला ने जौधपुर में भारतीय झंडा फहराया था।

सिरोही प्रजामंडल :- 1934 में, सिरोही के निवासी भीमाशंकर शर्मा पाडीव, विरधी शंकर त्रिवेदी और समरथमल सिंघी ने मुंबई में सिरोही राज्य प्रजा मंडल की स्थापना की।

बाद में 22 जनवरी 1939 को सिरोही में गोकुल भाई भट्ट के नेतृत्व में सिरोही प्रजामंडल की पुनर्स्थापना की गई थी

हाड़ौती प्रजामंडल(1934):- हाड़ौती प्रजामंडल की स्थापना पंडित नयनूराम शर्मा ने 1934 में कोटा में की थी और हाड़ौती प्रजामंडल के पहले अध्यक्ष हाजी फैज मोहम्मद को बनाया गया था। पंडित नयनूराम शर्मा ने 1918 में कोटा में प्रजा प्रतिनिधि सभा की स्थापना की।

बीकानेर प्रजामंडल (1936): – बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना मघाराम वैद्य ने 1936 में की थी और मघाराम वैद्य ही पहले अध्यक्ष बने।

  • बीकानेर प्रजामंडल की पुनर्स्थापना अक्टूबर 1937 को कोलकाता में हुई थी और अध्यक्ष लक्ष्मी देवी आचार्य को बनाया गया।
  • रघुवरदयाल गोयल, मुक्ताप्रसाद, स्वामी गोपालदास व सत्यनारायण सराफ अन्य प्रमुख सदस्य थे।
  • 30 जून 1946 को रायसिंहनगर में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के साथ स्वतंत्रता सेनानियों ने एक विशाल जुलूस निकाला था। इस जुलूस के दौरान पुलिस ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें 1 जुलाई 1946 को बीरबल सिंह नामक युवक शहीद हो गए और 17 जुलाई 1946 को बीकानेर रियासत में बीरबल दिवस मनाया गया था

धौलपुर प्रजामंडल :- धौलपुर प्रजामंडल की स्थापना 1936 में ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु के प्रयासों से हुई थी। कृष्ण दत्त पालीवाल धौलपुर प्रजामंडल पहले अध्यक्ष बनाये गये थे।

मेवाड़ प्रजामंडल (1938):- मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना 24 अप्रैल 1938 को माणिक्यलाल वर्मा ने उदयपुर में की थी, जिसमें बलवंत सिंह मेहता अध्यक्ष और भूरेलाल बया पहले उपाध्यक्ष बनाये गये।

शाहपुरा प्रजामंडल :- शाहपुरा प्रजामंडल की स्थापना माणिक्यलाल वर्मा के सहयोग से रमेश चंद्र ओझा ने 18 अप्रैल, 1938 को की थी और अभयसिंह दांगी को अध्यक्ष बनाया गया। शाहपुरा राजस्थान की पहली देशी रियासत थी जिसने 14 अगस्त, 1947 को लोकतांत्रिक और पूर्णतः जिम्मेदार शासन की स्थापना की, जब राजा सुदर्शन देव ने राज्य का प्रभार गोकुल लाल असावा को सौंप दिया।

अलवर प्रजामंडल (1938):- अलवर प्रजा मंडल की स्थापना हरि नारायण शर्मा ने 1938 में की थी और कुंज बिहारी मोदी ने अलवर प्रजामंडल के अन्य नेता थे।

भरतपुर प्रजामंडल (1938):- भरतपुर प्रजामंडल की स्थापना मार्च 1938 में किशनलाल जोशी के प्रयासों से रेवाड़ी में की गई थी और गोपीलाल यादव को पहला अध्यक्ष बनाया जाता है। जुगल किशोर चतुर्वेदी, लछिराम, ठाकुर देशराज और मास्टर आदित्येंद्र आदि भरतपुर प्रजामंडल के नेता थे

करौली प्रजामंडल :- करौली प्रजामंडल की स्थापना 1938 में त्रिलोक चंद माथुर द्वारा की गई थी, चिरंजी लाल शर्मा और मदन सिंह अन्य प्रमुख नेता थे

कोटा प्रजामंडल :- कोटा प्रजामंडल की स्थापना पंडित नयनूराम शर्मा ने 1939 में की थी

किशनगढ़ प्रजामण्डल :- किशनगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना 1939 में कांतिलाल चौथानी द्वारा की गई थी और जमाल शाह किशनगढ़ प्रजामण्डल के पहले अध्यक्ष बने।

कुशलगढ़ प्रजामंडल :- कुशलगढ़ प्रजामंडल की स्थापना 1942 में भंवर लाल निगम की अध्यक्षता में हुई थी और कुशलगढ़ प्रजामंडल आंदोलन से कन्हैयालाल सेठिया और पन्नालाल त्रिवेदी भी जुड़े हुए थे।

बांसवाड़ा प्रजामंडल :- बांसवाड़ा प्रजामंडल की स्थापना भूपेंद्र नाथ द्विवेदी ने 1943 में की थी और विनोदचन्द्र कोठारी को अध्यक्ष बनाया गया था

डूंगरपुर प्रजामंडल :- डूंगरपुर प्रजामंडल की स्थापना 1944 में भोगीलाल पंड्या ने की थी, जिन्हें ‘वागड़ का गांधी’ भी कहा जाता है।

जैसलमेर प्रजामंडल :- जैसलमेर प्रजामंडल की स्थापना 15 दिसंबर, 1945 को मीठालाल व्यास ने जोधपुर में की थी। सागरमल गोपा को 1941 में गिरफ्तार किया गया और अप्रैल 1946 को जेल में केरोसिन डालकर जिंदा जला दिया गया, हत्या की जाँच के लिए गोपाल स्वरूप पाठक आयोग का गठन किया गया, जिसने इस घटना को आत्महत्या घोषित कर दिया। सागरमल गोपा ने ‘जैसलमेर का गुंडा राज’ और ‘आजादी के दीवाने’ जैसी किताबें लिखी थीं।

प्रतापगढ़ प्रजामंडल :- प्रतापगढ़ प्रजामंडल की स्थापना अमृतलाल पायक और चुन्नीलाल प्रभाकर ने 1945 में की थी।

झालावाड़ प्रजामंडल :- झालावाड़ प्रजामंडल की स्थापना 25 नवंबर, 1946 को मांगीलाल भव्य ने की थी।

प्रजामंडल आंदोलनों का परिणाम बहुत ही सकारात्मक रहा। इन्होंने राजस्थान की रियासतों में राजनीतिक चेतना का प्रसार किया और जनता को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। इन आंदोलनों ने भारत की आजादी के बाद राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया को भी आसान बनाया।

यह आंदोलन राजस्थान की राजनीतिक एकता और लोकतंत्र की नींव रखने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।