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राजस्थान दिवस और राजस्थानी भाषा दिवस

30 मार्च, 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जयपुर में एक समारोह में ग्रेटर राजस्थान का उद्घाटन किया था । इसलिए हर साल 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है। राजस्थानी भाषा दिवस हर साल 21 फ़रवरी को मनाया जाता है

राजस्थानी भाषा दिवस

राजस्थानी भाषा दिवस हर साल 21 फ़रवरी को मनाया जाता है. राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति गुर्जरी अपभ्रंश से हुई है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी ने 21 फरवरी 2021 को राजस्थानी भाषा दिवस मनाने के लिए सभी राज्य वित्त पोषित विश्वविद्यालयों / निजी विश्वविद्यालयों / सभी कॉलेजों के विभागाध्यक्षों को निर्देश दिया है।

राजस्थानी भाषा का शब्दकोश डॉक्टर सीताराम लालस ने तैयार किया था. वे एक प्रसिद्ध भाषाविद् और कोशकार थे. उन्हें सीता रामजी माड़साब के नाम से भी जाना जाता है.

राजस्थानी भाषा का पहला उपन्यास ‘कनक सुंदर’ है. इसे शिवचंद्र भरतिया ने 1903 ईस्वी में लिखा था

यूनेस्को ने हर साल 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है ताकि मातृभाषा को बढ़ावा दिया जा सके।

प्रदेश में प्रचलित बोलियों की वजह से मूल राजस्थानी भाषा को लेकर कभी एक राय नहीं बन पाई. राज्य में मारवाड़ी भाषा नागौर, पाली, जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर इलाके में बोली जाती है. तो उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा क्षेत्र में मेवाड़ी का प्रचलन है. इसी तरह बांसवाड़ा और डूंगरपुर का क्षेत्र बागड़ी का है तो जयपुर अंचल के दौसा, टोंक और सीकर में ढूंढाड़ी वहीं कोटा और बूंदी क्षेत्र हाड़ौती का है. जबकि भरतपुर में ब्रज भाषा का जोर है.

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत की भाषाओं से संबंधित है। इस अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है। लेकिन इसमें राजस्थानी भाषा को अभी तक शामिल नहीं किया जा है

राजस्थानी भाषा की सबसे पुरानी पुस्तक कुवलयमाला है. जैन मुनि उद्योतन सूरी ने इसे 779 ईस्वी में लिखा था. यह जाबालिपुर (जालोर, राजस्थान) में लिखी गई थी. इस किताब में राजस्थानी भाषा को ‘मरुभाषा’ कहा गया है.

राजस्थान दिवस

राजस्थान दिवस हर साल 30 मार्च को मनाया जाता है.राजस्थान को पहले राजपूताना के नाम से जाना जाता था और 30 मार्च 1949 को इसे अस्तित्व में लाया गया और 30 मार्च, 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जयपुर में एक समारोह में ग्रेटर राजस्थान का उद्घाटन किया था । इसलिए हर साल 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है।

राजस्थान शब्द का अर्थ है: ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां राजपूतों ने बहुत समय तक राज किया था इसलिए राजस्थान को राजपूताना कहा जाता था।

राजस्थान स्थापना दिवस

1 नवम्बर को राजस्थान स्थापना दिवस मनाया जाता है । क्योकि 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान के निर्माण का काम पूरा हुआ था राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया 18 मार्च, 1948 को शुरू हुई थी. यह प्रक्रिया सात चरणों में 01 नवंबर 1956 को पूरी हुई थी. इस दिन राजप्रमुख का पद खत्म हो गया और राज्यपाल का पद बना.

निरोगी राजस्थान दिवस

17 दिसम्बर को ”निरोगी राजस्थान दिवस” मनाया जायेगा। राजस्थान में निरोगी राजस्थान अभियान की शुरुआत 18 दिसंबर, 2019 को हुई थी. इस अभियान के ज़रिए प्रदेश में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है.

कर्नल जेम्स टॉड को राजस्थान के इतिहास का जनक कहा जाता है. वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी और ओरिएंटल विद्वान थे. उन्होंने भारत के इतिहास और भूगोल पर कई रचनाएं लिखीं.

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राजस्थान की प्रमुख छतरियां (Rajasthan ki chhatriya)

राजस्थान अपने महलों, किले और छतरियों के लिए भारत ही नहीं दुनिया में प्रसीद है गेटोर की छतरियां, 32 खंभो की छतरी, 80 खंभो की छतरी (मूसी महारानी), 80 खंभो की छतरी, क्षारबाग की छतरियाँ, केसरबाग की छतरियाँ, बङा बाग की छतरियाँ, देवीकुंड सागर छतरियाँ आदि प्रमुख छतरियां हैं।

गैटोर की छतरियां – नाहरगढ़ दुर्ग की तलहटी में बनी गैटोर की छतरियां जयपुर कछवाहा शासकों का निजी श्मशान घाट है। जिसमें सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर महाराजा सवाई माधोसिंह तक के राजाओं की छतरियां है।

ईश्वरी सिंह की छतरी यहा पर स्थित नहीं है। इनकी छतरी सिटी पैलेस (जयपुर) में स्थित है। सवाई ईश्वरी सिंह की छतरी का निर्माण सवाई माधोसिंह के शासन काल में किया गया था आमेर के राजा मानसिंह प्रथम की छतरी आमेर के पास हाड़ीपुरी गांव में है। जिसकी स्थापत्य कला कोलायत में साधु गिरिधापति की छतरी के समान है।

गुसाईयों की छतरियां विराटनगर ( जयपुर ) में स्थित है।

84 खंभों की छतरी –इस छतरी का निर्माण 1683 ईस्वी में महाराव अनिरुद्ध सिंह ने धाबाई देवा गुर्जर की स्मृति में देवपुरा गांव (बूंदी) में करवाया था। इस छतरी में कामसूत्र के 84 आसनों को दर्शाया गया है।

80 खंभों की छतरी – अलवर दुर्ग के पास बनी 80 खंभों की मूसी महारानी की छतरी है। जिसका निर्माण 1815 में महाराजा विनयसिंह ने करवाया था। जो महाराणा बख्तावर सिंह की पासवान रानी थी। यह रानी बख्तावर सिंह की मत्यु पर सती हुवी थी। यह छतरी दो मंजिला है जिस पर महाभारत और रामायण के भित्ति चित्र है। छतरी का नीचला भाग लाल बालू पत्थर से बना है। जिसकी संरचना हाथी के समान है।

बड़ा बाग की छतरियां – बड़ा बाग की छतरियां राजस्थान के जैसलमेर में स्तिथ हैं, जो की जैसलमेर के राज परिवार का शाही शमशान घाट है बड़ा बाग का निर्माण महाराजा जय सिंह द्वितीय के उत्तराधिकारी लूणकरन ने किया था. छतरियां बनाने का अधिकार शाही परिवार के देहवासी राजा के पोते का होता है। जवाहर सिंह और गिरधर सिंह महाराज की छतरियां अभी पूर्ण नही हो पाई, भारतीय स्वतंत्रता के बाद पूरी नहीं हो पायी।

क्षारबाग की छतरियां कोटा में स्थित है। क्षारबाग मैं कोटा के हाड़ा शासकों की छतरियां स्थित है।

देवकुण्ड की छतरियां देवीकुंड सागर, बीकानेर में स्थित है। देवकुण्ड की छतरियां बीकानेर राजघराने का श्मशान घाट हैं. यहां पर राव बीका व रायसिंह की छतरियां प्रसिद्ध है।

जोधपुर की रानियों की छतरियां पंचकुंड (मंडोर, जोधपुर) में स्थित है। यहाँ पर कुल 49 छतरियां, जिनमें रानी सूर्यकंवरी की छत्री 32 स्तंभों पर स्थित सबसे बड़ी छतरी है।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 8 खम्भों की छतरी, बाण्डोली (चावंड, उदयपुर) में बनी है। इसका निर्माण अमरसिंह प्रथम ने करवाया था।

छात्र विलास की छतरी कोटा में स्थित है।

केसर बाग की छतरी बूंदी में स्थित है।

जसवंत थड़ा-  यह छतरी जोधपुर में स्थित है। इसका निर्माण सरदार सिंह ने करवाया था।

संत रैदास (रविदास) की छतरी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में है यह आठ खंभों पर बनी है

गोपाल सिंह यादव की छतरी करौली में स्थित है।

मांडल गढ (भीलवाड़ा) में स्थित 32 खम्भों की छतरी का संबंध जगन्नाथ कच्छवाहा की छतरी है।

रणथम्भौर (सवाई माधोपुर) में स्थित 32 खम्भों की छतरी हम्मीर देव चैहान की छतरी है

नागौर दुर्ग में अमरसिंह राठौड़ की 16 खम्भों की छतरी बनी हुई है यह छतरी, नागौर के शूरवीर राजा अमर सिंह राठौड़ और उनके वंशजों की है

मामा भांजा की छतरी मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) में स्थित है ये धन्ना गहलोत और भीयां चौहान नामक वीरों की छतरी है, जो आपस में मामा-भान्जा थे। महाराजा अजीतसिंह ने इस 10 खम्भों की छतरी का निर्माण मेहरानगढ़ दुर्ग में लोहापोल के पास करवाया था।

पृथ्वीराज सिसोदिया की 12 खंबो की छतरी कुंभलगढ़ किले में स्थित है। पृथ्वीराज सिसोदिया को उड़ना राजकुमार भी कहा जाता है इसे न्याय की छतरी के नाम से भी जाना जाता है

टंहला की छतरीयां अलवर में स्थित हैं।

आहड़ की छतरियां उदयपुर में स्थित हैं इन्हे महासतियां भी कहते है। सिसोदिया राणाओं की छतरियाँ आहड़ , उदयपुर में स्थित है।

राजा जोधसिंह की छतरी बदनौर (भीलवाडा) में स्थित है।

एक खंभे की छतरी, रणथंभौर (सवाई माधोपुर) में स्थित है।

6 खम्भों की छतरी लालसौट (दौसा) में स्थित है। इसे बंजारे की छतरी कहा जाता है

गोराधाय की छतरी जोधपुर में स्थित हैं। ये अजीत सिंह की धाय मां की छतरी है। ये 6 खम्भों की छतरी है।

जयमल (जैमल) व कल्ला राठौड़ की छतरियाँ चित्तौड़गढ में स्थित है। जयमल और कल्लाजी की छतरी जब आप चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रवेश करते है तो दुर्ग के हनुमान पोल और भैरव पोल के मध्य दो छतरिया बनी हुई है जिसमे चार स्तम्भो वाली छतरी कल्लाजी की है और छह स्तम्भो वाली छतरी जयमलजी की है।

चार खंभों की छतरी (श्रृंगार कंवरी) चित्तौड़ दुर्ग में स्थित है इसे राणा कुंभा ने बनवाया था.

राणा सांगा की छतरी माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) में स्थित है।यह छतरी संगमरमर से बनी है और इसमें 32 खंभे हैं

रणथम्भोर अभयारण्य में कुक्कुर घाटी में कुत्ते की छतरी स्थित है ।

अलवर में नैहड़ा की छतरी स्थित है।

चेतक की छतरी वलीचा गाँव (राजसमंद) में स्थित हैं।

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राजस्थान के प्रमुख अनुसंधान केन्द्र (Major Research Centers of Rajasthan)

राजस्थान में अनुसंधान केंद्र (List of Research Centers in rajasthan in Hindi) प्रौद्योगिकी, विज्ञान, कृषि, सांस्कृतिक, अर्थव्यवस्था,चिकित्सा और सामाजिक विज्ञान सहित विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित है।

1. केन्द्रिय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) (Central Arid zone Research Institute) की स्थापना 1959 में जोधपुर मैं मरुस्थलीकरण के विस्तार को रोकने के लिए स्थापना की गई। 1952 में मरू वनीकरण केन्द्र की स्थापना जोधपुर में की गई। जिसका बाद में विस्तार 1957 में मरू वनीकरण एवं मृदा संरक्षण केन्द्र के रूप में हुआ तथा अन्ततः भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अधीन इसे केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के रूप में 1959 में पूर्ण संस्थान का दर्जा दिया गया।

2. शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (आफरी)  (Arid forest Research institute) की स्थापना जोधपुर ,राजस्थान में 1988 ई.में की गई थी. संस्थान देश के शुष्क क्षेत्रों में खेती की समस्याओं का समाधान खोजने के लिए बहु-विषयक अनुसंधान करता है भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद देहरादुन (ICFRE) के आठ संस्थानो में से एक है।

3. केन्द्रिय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान की स्थापना  1962 ई. में  अविकानगर (टोक) मैं की गई थी ,मुख्य उद्देश्य भेड़ एवं खरगोश उत्पादन प्रशिक्षण एवं अनुसंधान करना है.

4. केन्द्रिय बकरी अनुसंधान संस्थान – केन्द्रीय बकरी अनुसंधान केन्द्र अविकानगर, टोंक में स्थित है और स्थापना  1962 ई. में हुई थी. बकरी विकास एवं चारागाह उत्पादन परियोजना रामसर ,अजमेर में स्विट्‌जरलैण्ड के सहयोग से चलाई जा रही है

5. भेड़ एवं ऊन प्रशिक्षण संस्थान – जयपुर

6. केन्द्रिय ऊन विकास बोर्ड – जोधपुर

7. भेड़ रोग अनुसंधान प्रयोगशाला – जोधपुर

8. राजस्थान में NBPGR का प्रादेशिक केन्द्र  – जोधपुर में राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBPGR) का क्षेत्रीय स्टेशन साल 1976 में स्थापित किया गया था.

9. राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र – यह राजस्थान के भरतपुर के सेवर में अवस्थित है। इसकी स्थापना 20 अक्टूबर 1993 को हुई थी।

10. राष्ट्रीय मसाला बीज अनुसंधान केन्द्र – तबीजी, अजमेर

11. राजस्थान कुक्कुट अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान :-  कुक्कुट प्रशिक्षण संस्थान अजमेर, राजस्थान में स्थित है। राज्य का एकमात्र कुक्कुट प्रशिक्षण संस्थान है

12. केन्द्रिय कृषि अनुसंधान केन्द्र – दुर्गापुरा, जयपुर ( स्थापना – 1943 में)

13. केन्द्रिय कृषि फार्म – सुरतगढ़ (गंगानगर) मैं स्थापना 15 अगस्त 1956 को रुस की सहायता से स्थापित कि गी थी। इसे एशिया का सबसे बड़ा कृषि फार्म माना जाता है

14. केन्द्रिय कृषि फार्म -2  :- जैतसर, गंगानगर कनाड़ा की सहायता से स्थापित किया गया था ।

15. केन्द्रिय शुष्क बागबानी संस्थान -केन्द्रिय शुष्क बागबानी संस्थान राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित है।यह संस्थान 1993 से बागवानी फल एवं सब्जी के अनुसंधान एवं विकास कार्य में लगी हुई है।

16. बेर एवं खजुर अनुसंधान केन्द्र  बीकानेर में स्थित है।जिसकी स्थापना 1978 ई. में ।

17. बैल पालन केन्द्र नागौर में स्थित है।

18. केन्द्रिय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला – बीकानेर (स्थापना – 1965)

19.  भेड़ प्रजनन केन्द्र फतेहपुर, सीकर में स्थित है।1973 ई. भेड़ की “मेरिनो नश्ल ” यहीं से तैयार की जाती है |

20. अश्व प्रजनन केन्द्र :- राष्ट्रीय अश्व (equines) अनुसंधान केन्द्र बीकानेर में स्थित है। इस परिसर की स्थापना 28 सितंबर 1989 को अश्व के उत्पादन की क्षमता के अनुकूलन के लिए प्रौद्योगिकियों में सुधार हेतु अनुसंधान करने के लिए की गई थी।

21. राष्ट्रीय ऊँट अनुसंधान केन्द्र – राष्ट्रीय ऊँट अनुसंधान केंद्र जोहड़बीड,बीकानेर में स्थित है।

22.कपास अनुसंधान केन्द्र श्री गंगानगर में स्थित है

23. केंद्रिय पशुधन प्रजनन फार्म  सुरतगढ़ (गंगानगर) में स्थित है

24. चारा बीज उत्पादन फार्म मोहनगढ़ (जैसलमेर) में स्थित है

25. बाजरा अनुसंधान केन्द्र बाड़मेर में स्थित है

26. ज्वार (सोरधम) अनुसंधान केन्द्र वल्लभनगर (उदयपुर) में स्थित है

27. चावल अनुसंधान केन्द्र बाँसवाड़ा में स्थित है

28. मक्का अनुसंधान केन्द्र – किसानों को कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में नवीनतम तकनीकी ज्ञान अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। मक्का अनुसंधान केन्द्र की स्थापना 1 अप्रैल, 1983 को बोरवट गाँव ,बाँसवाड़ा में की गई थी

29.  राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (RSCERT)- राजस्थान सरकार द्वारा गठित महरोत्रा समिति की सिफारिश के अनुसार विद्यालयी शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक उन्नयन के लिए 11 नवंबर 1978 को उदयपुर में राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, राजस्थान (एसआईईआरटी) की स्थापना की गई थी

30. मणिक्या लाल वर्मा आदिवासी अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान भारत के राजस्थान राज्य (प्रांत) के उदयपुर में स्थित है।

31. राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण ब्यूरो का प. द क्षेत्रिय केन्द्र  उदयपुर में स्थित है.

32. भैंस प्रजनन केन्द्र , वल्लभनगर (उदयपुर) में स्थित है

33. भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण पश्चिमी क्षेत्र केन्द्र, उदयपुर में स्थित है

34. भारतीय मौसम विभाग की वेधशाला ,जयपुर में स्थित है

35. राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान ,जयपुर में स्थित है

36. केन्द्रिय इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग शोध संस्थान (सीरी), पिलानी (झुंझुनु) में स्थित है

37. राष्ट्रीय शूकर फॉर्म (सुअर) अलवर में स्थित है

38. सिरेमिक विद्युत अनुसंधान एवं विकास केन्द्र (CERDC) बीकानेर में स्थित है.

39. पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर- (West Zone Cultural Centre (WZCC) Udaipur) में स्थित है

40. रक्षा प्रयोगशाला (Defence Laboratory) जोधपुर में स्थित है

41. राजस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड ट्रैवल मैनजमेंट (RITTMAN) जयपुर में स्थित है

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कोटा का प्रसिद्ध दशहरा मेला

राजस्थान में बहुत सारे मेले लगते हैं जिसकी वजह से राजस्थान को रंगीलो प्रदेश भी कहा जाता हैं और राजस्थान के कोटा का दशहरा मेला पूरी दुनियां में अपनी एक अलग पहचान रखता है।

कोटा दशहरा मेला राजस्थान का सबसे पुराना दशहरा मेला है.

कोटा दशहरा मेला राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध दशहरा मेला है.

बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में दशहरा के दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। आमतौर पर इन पुतलों में पटाखे भरे होते हैं। भगवान राम की पोशाक पहने एक छोटे बच्चे को रावण पर अग्नि बाण चलाने के लिए कहा जाता है और फिर उस विशाल आकृति को जला दिया जाता है। ग्रामीण यहाँ बहुरंगी कपड़े पहनकर भगवान राम की पूजा करने और रावण पर उनकी जीत का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं।

चंबल नदी के किनारे बसा कोटा कई त्यौहार मनाता है। लेकिन दशहरा का त्यौहार एक अलग ही आकर्षण रखता है। इस त्यौहार के दौरान पूरा इलाका एक आकर्षक नज़ारा पेश करता है। यह त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन कोटा दशहरा काफी अनोखा है कोटा का दशहरा मेला राजस्थान में ही नहीं पूरे भारत में प्रसिद्ध है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, दशहरा को प्रतिवर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है।

इस दशहरा मेले का इतिहास 1723 ई. से शुरू होता है। इतिहास बताता है कि दशहरा उत्सव की शुरुआत महाराज दुर्जनशाल सिंह हाड़ा के शासनकाल में हुई थी।विजयादशमी के दिन, तत्कालीन राजपरिवार का कोई व्यक्ति रावण के पुतले पर तीर चलाता है, जिसमें राम के हाथों रावण का वध दर्शाया जाता है। उस समय विभिन्न मंदिरों में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम समारोह का मुख्य आयोजन होते थे। इसके अलावा, इस मेले में भगवान शिव की पूजा-अर्चना भी की जाती है। लेकिन इस दशहरा के धार्मिक आयोजन को अधिक आकर्षक और रंगीन बनाने का श्रेय महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय (1889-1940 ई.) को जाता है। मेले की शुरुआत 1892 से माना जाता है और उस समय कोटा के राजा महाराव उम्मेद सिंह थे।

पिछले कुछ सालों से जयपुर में भी दशहरा मेले का धूमधाम से आयोजन किया जाता है।

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देवनारायण जी के मंदिर Devnarayan ke mandir

देवनारायण जी राजस्थान के एक लोक देवता, शासक और महान योद्धा थे। इनकी पूजा मुख्यतः राजस्थान, हरियाणा तथा मध्यप्रदेश में होती है। इनका भव्य मंदिर आसीन्द में है। भगवान देव नारायण जी को औषधि का देवता भी कहते हैं और इनकी पूजा नीम की पत्तियों से की जाती है। देवनारायण जी के मंदिर मे ईंटों की पूजा की जाती हैं

देवनारायण जी भगवान का जन्म आसींद भीलवाड़ा , बगड़ावत परिवार में हुआ था और इनकी माता जी का नाम साडू माता, पिता जी का नाम सवाई भोज और पत्नी का नाम पीपलदे था देवनारायण जी का बचपन का नाम उदयसिंह था देवनारायण जी के मंदिर राजस्थान में आसींद भीलवाड़ा, देवमाली ब्यावर, देव धाम जोधपुरिया टोंक और देव डूंगरी चित्तौड़गढ़ में हैं

देवनारायण जी को विष्णु के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोक देवता के रूप में पूजा की जाती है। देवनारायण जी की घोड़ी का नाम लीलागर था।

देवनारायण जी की फड़ में 335 गीत हैं । जिनका लगभग 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ हैं । ये गीत परम्परागत भोपाओं को कण्ठस्थ रहते हैं । देवनारायण जी की फड़ राजस्थान की फड़ों में  सबसे बड़ी हैदेवनारायण जी भगवान की फड़ का वजन गुर्जर जाति के भोपाओं के द्वारा जंतर वाद्य यंत्र पर किया जाता है

2 सितंबर 1992 और 3 सितंबर 2011 को 5 रुपये के भारत पोस्ट द्वारा स्मारक डाक टिकट जारी किया गये थे।

देवनारायण जी का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6km दूरी पर स्थित देहमाली ( देमाली ) स्थान पर गुजरा । भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को उनका वहीं देहावसान हुआ। इसी कारण देवनारायण जी का भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को यहाँ प्रतिवर्ष एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है

प्रमुख मंदिर

आसीन्द,भीलवाड़ा – जहाँ इनकी जन्म तिथि माघ शुक्ला छठ एवं भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को धार्मिक मेले का आयोजन होते हैं।

देवमाली, ब्यावर – जिन्हें स्वयं देवनारायण और मालासारी द्वारा स्थापित सबसे शुरुआती मंदिर माना जाता है, जहां देवनारायण का जन्म हुआ था।

देव डूंगरी , चित्तौड़ – मेवाड़ के महाराणा सांगा श्री देवनारायण के बड़े भक्त थे और कहा जाता है कि उन्होंने देवजी की स्मृति में इस मंदिर का निर्माण कराया था।

देव धाम ,जोधपुरिया निवाई, (टोंक)- इस मंदिर में देशी घी की अखंड ज्योति जलती रहती है।राजस्थान के टोंक जिले की देवधाम (जोधपुरिया) नामक जगह पर खाराखुर्शी नदी, बांडी नदी तथा मांसी नदी के द्वारा त्रिवेणी संगम बनाया जाता है। इस बाँध का नाम मासी बांध है।

देवधाम जोधपुरिया, टोंक

देवनारायण जी का एक मंदिर देवास मध्य प्रदेश में भी है

लक्ष्मीकुमारी चूड़ावत ने बगड़ावत नाम के बुक देवनारायण जी के पिताजी सवाई भोज और उनके 24 भाइयों पर लिखी है।

राजस्थान राज्य सरकार ने भगवान देवनारायण के नाम से देवनारायण  स्कूटी योजना भी शुरू कर रखी है। जिसके तहत राज्य सरकार 12वीं कक्षा में 50त्न प्रतिशत या इससे अधिक अंक प्राप्त कर कॉलेज व युनिवर्सिटी में प्रवेश पाने वाली बंजारा, लोहार, गूर्जर, राईका, रैबारी आदि जाति की छात्राओं को स्कूटी प्रदान करती है।

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राजस्थान के त्रिवेणी संगम Rajasthan me Triveni Sangam

त्रिवेणी संगमों पर शिवरात्रि जैसे त्योहारों पर श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं. यहां नदी के किनारे शिव मंदिर भी होता है त्रिवेणी संगमो का इतिहास के साथ-साथ वर्तमान में भी बहुत ज्यादा महत्व है

बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) – सोम-माही-जाखम नदियों के संगम पर बना है। राजस्थान के डुंगरपुर जिले का प्रसिद्ध मेला है जिसमें जिले के आदिवासी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। यह मेला माघ शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर वेणेश्वर नामक स्थान पर लगता है जो सोम, माही व जाखम नदियों के पवित्र संगम पर स्थित है।

बेणेश्वर धाम राजस्थान का कुंभ /आदिवासियों का महाकुंभ कहलाता है ।

रामेश्वरम घाट (मानपुर, सवाई माधोपुर) –चम्बल, बनास और सीप नदियों का संगम है इस त्रिवेणी संगम के पास ही भगवान चतुर्भुजनाथ का मंदिर भी बना हुआ है। रामेश्वर शिव लिंग के दर्शनार्थ दूर दराज से आने वाले भक्तजन त्रिवेणी में स्नान कर भगवान शिव के शिव लिंग का जलाभिषेक करते हैं, इस स्थान पर प्रतिवर्ष ‘कार्तिक पूर्णिमा’ एवं ‘महा शिवरात्री’ पर विशाल मेला भरता है, लाखों की तादाद में यहाँ पर भीड़ इकट्ठा होती है। इस स्थान को राजस्थान में “मीणा जनजाति का प्रयागराज” भी कहाँ जाता है।

मांडलगढ़ (बींगोद, भीलवाड़ा) –बनास, बेड़च और मेनाल नदियों के त्रिवेणी संगम पर है।इस त्रिवेणी संगम को छोटा पुष्कर भी कहा जाता है। भीलवाड़ा से करीब 50km दूर स्थित हैं। “त्रिवेणी मंदिर” भगवान शिव को समर्पित हैं।

राजमहल (देवली , टोंक) – बनास, डाई और खारी नदियां त्रिवेणी संगम बनाती है।

राजस्थान के टोंक जिले की देवधाम (जोधपुरिया) नामक जगह पर खाराखुर्शी नदी, बांडी नदी तथा मांसी नदी के द्वारा त्रिवेणी संगम बनाया जाता है।

बनास नदी पर बनने वाले त्रिवेणी संगमो का सही क्रम है। बीगोद, राजमहल, रामेश्वर

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राजस्थान के बांध :राजस्थान के प्रमुख बांध

राजस्थान के प्रमुख बांध जेसे अडवाण बांध,अजीत सागर,डूंगरी बांध,मासी बांध ,पार्वती बांध,हेमावास बांध,रामगढ बांध,अजान बांध. राजस्थान में ज्यादातार बांध नदी पर बने है

  • राजस्थान के सभी नदी के बांध
  • ERCP परियोजना के बांध
  • सभी जिलो के बांध

मोतीझील बांध मोतीझील बांध को भरतपुर की “लाइफ-लाइन” भी कहा जाता है।
मोतीझील बांध का निर्माण महाराजा सूरजमल जाट के द्वारा करवाया गया है। इस झील में हरीश शैवाल पाई जाती है जो नाइट्रोजन से भरी खाद बनाने में उपयोगी है।
इस बांध का निर्माण रूपारेल नदी पर किया गया है।
इस बांध के द्वारा बाणगंगा तथा रूपारेल नदी का पानी उत्तर प्रदेश की ओर निकाला जाता है।

नंदसमंद बांध – नंद समंद बांध को राजसमंद की जीवन रेखा के नाम से भी जाना जाता है। इस बांध का निर्माण नाथद्वारा राजसमंद में बनास नदी के तट पर 1955 में करवाया गया था

सीकरी बांध – सीकरी बांध का निर्माण भरतपुर जिले में किया गया. सीकरी बांध के द्वारा नगर, कामा तथा डीग तहसील के अनेक बांधों को भरा जाता है यह बांध रूपारेल नदी पर स्थित हैं। लालपुर बांध को बाणगंगा नदी के द्वारा भरा जाता है

अजीत सागर बांध खेतड़ी झुंझुनू में स्थित है।

पन्नालाल शाह बांध खेतड़ी झुंझुनू में स्थित है


बांकली बांध – बांकली बांध का निर्माण जालौर में सुकड़ी तथा कुलथाना नदियों के किनारे बांके गांव में करवाया गया था।

भीम सागर परियोजना – भीम सागर परियोजना झालावाड़ जिले की है भीम सागर परियोजना के अंतर्गत उजाड़ नदी पर झालावाड़ में बांध बनाया गया है।

अडवाण बांध – अडवाण बांध भीलवाड़ा जिले मानसी नदी पर में स्थित है।

नारायण सागर बांध – नारायण सागर बांध का निर्माण ब्यावर के बाद किया गया है। नारायण सागर बांध का निर्माण खारी नदी पर किया गया है। नारायण सागर बांध का शिलान्यास देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने वर्ष 1956 में किया था। यह बांध 8 किलोमीटर लम्बे क्षेत्रफल में फैला हुआ है।

चाकन सिंचाई परियोजना – चाकन सिंचाई परियोजना  बूंदी जिले की है। इस परियोजना का निर्माण बूंदी जिले की किशोरा राय पाटन तहसील के गुड़ा गांव के पास चौकना नदी पर बांध बनाकर किया गया।

हरसोर बांध- हरसोर बांध का निर्माण नागौर की डेगाना तहसील में 1959 में किया गया था इस बांध से हरसोर तथा लूणासर नहर विकसित की गई

अजान बांध – अजान बांध भरतपुर जिले में गंभीर नदी पर राजा सूरजमल जाट द्वारा  बनाया गया। इसका निर्माण बांणगंगा व गंभीरी नदी के पानी को भरतपुर में नहीं आने देने के लिए किया गया।अजान बांध परियोजना से भरतपुर जिले को पेयजल व सिंचाई सुविधा प्राप्त होती है। इस बांध से केवलादेव घना पक्षी विहार, भरतपुर को भी पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।

अनस बांध – बांसवाड़ा जिले में अनस नदी पर बांध का निर्माण प्रस्तावित था। अनस माही नदी की एक सहायक नदी है।


कनोटा बांध-  यह बांध जयपुर मे स्थित है।  यह बांध राजस्थान मे सर्वाधिक मछली उत्पादन करने वाला बांध है।


लालपुर बांध: यह भरतपुर में स्थित हैं। इस बांध को बाणगंगा नदी द्वारा भरा जाता हैै।


बड़गांव मोरजाई बांध – बड़गांव मोरजाई बांध का फैलाव उदयपुर जिले की वल्लभनगर तहसील में है, लेकिन इसका समस्त नियंत्रण चित्तौड़गढ़ जिले के अधीन आता है।सरजणा बांध की रपट चलने पर पानी बेड़च नदी से बड़गांव मोरजाई बांध में आता है।


मासी बांध – वनस्थली, निवाई ,टोंक
नाकोड़ा बांध – बालोतरा
हेमावास बांध – पाली
रामगढ बांध – जयपुर
पार्वती बांध – धौलपुर
बीठन बांध, चितलवाणा बांध व चावरचा बांध   – जालौर

भूपाल सागर,ओराई बांध, सोनियाना बांध – चित्तौड़गढ़
उम्मेद सागर,गरदडा बांध, सीताबाडी बांध व परवन बांध – बाराँ
अनूप सागर व गजनेर बांध – बीकानेर
उम्मेद सागर बांध, गुलाबसागर बांध,जसवंत सागर व तख्त सागर बांध – जोधपुर

वाकल बांध ,उदय सागर बांध,मदार / मादर बांध ,फतेह सागर बांध ,बागोलिया बांध,गोराना बांध,मादड़ी बांध – उदयपुर
अनूप सागर व गजनेर बांध – बीकानेर
काली सिंध व भीमसागर बांध – झालावाड

माधोसागर, कालाखोह व रेडियो सागर बांध – दौसा
तालछापर बांध – चूरू

राजस्थान में शिव सागर बांध मेज नदी पर स्थित है शिव सागर बांध राजस्थान के भीलवाडा की माण्डलगढ़ तहसील में स्थित है. मेज नदी भीलवाडा की माण्डलगढ़ तहसील के धनवाडा गाँव की पहाड़ियों की तलहटी से निकलकर बूँदी जिले में बहती हुई लाखेरी के पास सहनपुर गांव में चम्बल में मिल जाती है।


ERCP मे प्रस्तावित बांध- डुंगरी बांध मुख्य बांध एवं 6 अन्य सहायक बाँध है


कुन्नू बैराज – कुन्नू नदी पर राजस्थान मे शाहबाद ,बारां
रामगढ बैराज – कूल नदी पर राजस्थान में किशनगंज, बारां
महलपुर बैराज – पार्वती नदी पर राजस्थान में मंगरील, जिला बांरा
नवनेरा बैराज – कालीसिंध नदी पर राजस्थान में पीपलदा, कोटा
मेज बैराज – मेज नदी पर इन्द्रगढ़ ,बूंदी
राठौड़ बैराज – बनास नदी पर चौथ का बरवाडा, सवाईमाधोपुर
डूंगरी बांध – बनास नदी पर खण्डार, सवाईमाधोपुर में बांध बनाया जाना है जो “पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना” अन्तर्गत जल संग्रहण हेतु मुख्य बांध होगा।

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राजस्थान के प्रमुख बांध Rajasthan ke bandh

राजस्थान क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे बड़ा राज्य हैं जिसे राजस्थान कुछ क्षेत्र में बारिश भी कम होती है इसलिए राजस्थान में बहुत सारे तालाब, नदिया ओर झिले हैं।
राजस्थान में बहने वाली प्रमुख नदियाँ बनास , चंबल, माही, सेई, मानसी, जवाई नदी आदि हैं। इन नदियों पर राज्य को पानी उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न बांध बनाए गए हैं।
राजस्थान के कुछ प्रमुख बांधों में बीसलपुर बांध, जाखम बांध, मोरेल बांध, जवाहर सागर बांध, मेजा बांध, कोटा बैराज आदि हैं।

बीसलपुर बांध –  बीसलपुर बांध राजस्थान के देवली तहसील, टोंक जिले में बनास नदी पर स्थित गुरुत्वाकर्षण प्रकार का बांध  है।
यह बांध बनास, डाई तथा खारी नदियों के संगम पर स्थित है । इस बांध का निर्माण अजमेर के चौहान वंश के राजा बिसलदेव चौहान/ विगृहराज चतुर्थ ने करवाया था।

बीसलपुर बांध राजधानी जयपुर समेत कई जिलों की लाइफलाइन कहा जाता है। यह बांध टोंक, अजमेर, सवाई माधोपुर  किशनगढ़, ब्यावर और जयपुर ग्रामीण समेत क्षेत्रों के लोगों की कई सालों से प्यास बुझा रहा है, ये राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है इस बांध से नहरो से सिचाई भी की जाती है इस बांध के कुल 18 गेट है बाँध के किनारे प्रसिद्ध बीसलदेव मन्दिर है। बीसलपुर बांध के तट पर मत्स्य विभाग ने मछली एक्वेरियम व प्रजनन केन्द्र बनाया गया है।

राणा प्रताप सागर बांध – राणा प्रताप सागर बांध राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा में चंबल नदी पर स्थित है। यह चंबल नदी पर बना दूसरा सबसे बड़ा बांध है चंबल नदी पर सबसे बड़ा बांध गांधी सागर, जो कि मध्य प्रदेश में है चम्बल नदी घाटी परियोजना मैं 4 बांध बनाये गये थे, गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बेराज है राणा प्रताप सागर बांध ग्यारह सौ मीटर लंबा तथा 36 मीटर चौड़ा है।राणा प्रताप सागर बांध विश्व का सबसे सस्ता बांध है जिसका निर्माण ₹31 करोड़ में किया गया था ।
राणा प्रताप सागर बांध के निर्माण का कार्य 1970 में पूर्ण किया गया। इस बांध पर कनाडा के संयोग से परमाणु बिजलीघर की स्थापना की गई है। जल क्षमता की दृष्टि से ये राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है।

गांधी सागर बांध- गांधी सागर बांध का निर्माण 1960 में चंबल नदी पर मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की भानपुर तहसील में किया गया। गांधी सागर बांध 510 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है। गांधी सागर बांध के ऊपर विद्युत गृह का निर्माण किया गया है

माही बजाज सागर बांध (Mahi Bajaj Sagar Dam) – माही बजाज सागर बांध बोरखेड़ा गांव, बांसवाड़ा में माही नदी पर स्थित है। यह परियोजना राजस्थान एवं गुजरात  की संयुक्त परियोजना है
बांध की ऊंचाई – 43.8 मीटर (144 फीट) , लंबाई – 3,109 मीटर (9,905 फीट)  और बिजली उत्पादन – 140 मेगावाट. बिजली उत्पादन का उपयोग 100%  राजस्थान सरकार करती है जिसका 55 प्रतिशत निर्माण खर्च गुजरात सरकार ने वहां किया है, तथा शेष 45 प्रतिशत राजस्थान सरकार द्वारा वहां किया गया है।
इस बांध का निर्माण 1972 और 1983 के बीच जलविद्युत उत्पादन और जल आपूर्ति के उद्देश्य से किया गया था । यह राजस्थान का सबसे लंबा और दूसरा सबसे बड़ा बांध है। इसका नाम जमनालाल बजाज के नाम पर रखा गया है


जवाहर सागर बांध – जवाहर सागर बांध चंबल नदी पर चंबल घाटी परियोजनाओं की श्रृंखला में तीसरा बांध है , जो कोटा शहर से 29 किमी ऊपर और राणा प्रताप सागर बांध से 26 किमी नीचे की ओर स्थित है। यह एक कंक्रीट गुरुत्वाकर्षण बांध है, 45 मीटर ऊंचा और 393 मीटर लंबा, स्थापित क्षमता 60 मेगावाट बिजली पैदा करता है। इसका निर्माण 1972 में पूरा हुआ था। बांध की सकल भंडारण क्षमता 67.07 मिलियन क्यूबिक मीटर (2.37 टीएमसीएफटी) है। ये बांध गांधी सागर बांध और राणा प्रताप सागर बांध के बाद स्थित है, लेकिन कोटा बैराज से पहले । इस बांध से कोटा तथा बूंदी को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होगी इस बांध का निर्माण विद्युत उत्पादन के लिए किया गया। यह एक पिकअप बांध है

कोटा बैराज बांध – कोटा बैराज बांध चंबल नदी पर राजस्थान के कोटा शहर में स्थित है। कोटा बैराज बांध जल विद्युत का उत्पादन नहीं करता है। बैराज का निर्माण 1960 में पूरा हुआ था। चंबल कमांड क्षेत्र में राजस्थान कृषि ड्रेनेज अनुसंधान परियोजना कनाडा की अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी के सहयोग से चलाई जा रही है
बैराज का मुख्य उद्देश्य राजस्थान और मध्य प्रदेश के किसानों को सिंचाई और जल की आपूर्ति करना है।

मेजा बांध– मेजा बांध राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में कोठारी नदी पर स्थित है। यह भीलवाड़ा का सबसे बड़ा बांध है।कोठारी नदी बनास नदी की सहायक नदी है|
यह झील विभिन्न पक्षियों और स्तनधारियों का आवास है।
भीलवाड़ा मेजा बांध भीलवाड़ा शहर से 20 किमी दूर स्थित है। पास के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध ग्रीन माउंट पार्क है।

जवाई बांध-जवाई बांध राजस्थान के पाली जिले में सुमेरपुर कस्बे के पास लूनी नदी की सहायक नदी जवाई नदी पर है। इसका निर्माण जोधपुर के राजा महाराजा उमैद सिंह ने करवाया था। बांध में 7887.5 मिलियन क्यूबिक फीट की क्षमता है,निर्माण कार्य 12 मई 1946 को शुरू हुआ और यह 1957 में पूर्ण हुआ। जवाई बांध पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है।जवाई बांध को मारवाड़ का अमृत सरोवर कहा जाता है।जवाई बांध की जल क्षमता बढ़ाने के लिए 1971 से सेइ बांध परियोजना बनाई गई,सेई बांध का जल प्रथम बार 9 अगस्त 1977 को जवाई बांध में डाला गया. जवाई बांध का निर्माण इंजीनियर ऐडगर और मोती सिंह की देखरेख में हुआ।
यह झील प्रवासी पक्षियों और मगरमच्छों का प्रमुख स्थल है बांध के आसपास की पहाड़ियाँ तेंदुओं और जंगली बिल्लियों के लिए जानी जाती हैं।

मोरेल बांध – मोरेल बांध राजस्थान के लालसोट शहर में कांकरिया गांव के पास मोरेल नदी पर बना है। मोरेल बांध सवाई माधोपुर व दौसा जिले की जीवनरेखा के रूप में माना जाता है। मोरेल बांध में पानी की आवक ढूंढ नदी व मोरेल नदी से होती है  यह एक मिट्टी का बाँध है। यह बांध वर्ष 1959 में बनाया गया था और इसका निर्माण मुख्य उद्देश्य सिंचाई है।

जाखम बांध – जाखम बांध का निर्माण प्रतापगढ़ जिले की अनूपपूरा के पास करवाया गया।
जाखम बांध जाखम नदी पर 81 मीटर की ऊंचाई पर बनाया गया है।यह बांध राजस्थान का सबसे ऊंचा बांध है।
इस बांध का निर्माण जनजाति उपयोजना के अंतर्गत किया गया था। जाखम नदी के ऊपर एक विद्युत गृह का निर्माण भी किया गया है।

पांचना बांध – इस बांध का निर्माण करौली जिले की गुडला गांव के पास पांच नदियों (भद्रावती, अटा, माची, बरखेड़ा तथा भैंसावर) के संगम पर मिट्टी से किया गया है। राजस्थान में यह मिट्टी का बना सबसे बड़ा बांध है। इस बांध का निर्माण अमेरिका के आर्थिक सहयोग से किया गया है।

बरेठा बांध – यह बांध भरतपुर जिले की बयाना तहसील के बरेठां गांव में स्थित है।
1866 में महाराजा जसवंत सिंह ने कमांडर इंजीनियर बहादुर रॉयल, कोकुंड नदी पर एक बांध का निर्माण शुरू किया था, जिसे 1897 में महाराजा राम सिंह ने पूर्ण करवाया।
इस बांध को वन्य जीव अभ्यारण के रूप में भी घोषित किया गया है इस बांध की बनावट एक जहाज जैसी है अंत यह दूर से जहाज के समान दिखाई देता है
यह भरतपुर का सबसे बड़ा बांध है इस बांध में मत्स्य पालन विभाग द्वारा मछली पालन में मछली बीज संग्रहण का कार्य भी किया जाता है।

टोरड़ी सागर बांध – इस बांध का निर्माण टोंक जिले की टोली गांव में किया गया है।इस बांध की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें सभी मोरिया खोलने पर एक बूंद पानी भी बांध में नहीं रुकता है।

सरजणा बांध – सरजणा बांध उदयपुर जिले के वल्लभनगर में बेड़च नदी पर बना है सरजणा बांध को राजस्थान की सबसे लंबी रपट वाला बांध माना जाता है

कोट बांध(सरजू सागर बांध) – कोट बांध को सरजू सागर बांध के नाम से भी जाना जाता है। कोट बांध झुंझुनूं जिले के उदयपुरवाटी में शाकंभरी पहाड़ियों में बना है

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राजस्थान के प्रसिद्ध शिव जी के मंदिर

राजस्थान में बहुत सारे मंदिर है जिसमें शिव जी के कुछ मंदिर देश ही नही दुनिया में अपनी पहचान बनाते है। जेसे जयपुर का सिद्धेश्वर शिव मन्दिर जो साल में एक बार शिवरात्रि के अवसर पर दर्शन के लिये खुलता है, नाथद्वारा (statue of belief) में दुनिया की सबसे बड़ी शिव जी की मूर्ति, शिवाड़ का घुष्मेश्वर महादेव का मन्दिर जो 12 ज्योर्तिलिंग में विख्यात है, उदयपुर के कैलाशपुरी में स्थित एकलिंग जी का मंदिर आदि।

बेणेश्वर महादेव का मंदिर :- (नवाटापुरा, डूंगरपुर)

 बेणेश्वर का अर्थ होता है -” मृत आत्माओं का मुक्ति स्थल “। यह मंदिर सोम, माही व जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित हैं।

 यहाँ पर विश्व का एकमात्र मन्दिर है जिसमें खण्डित शिवलिंग की पूजा की जाती है।

 यहाँ पर मेला माघ पूर्णिमा को लगता हैं जिसे आदिवासियों का कुम्भ/भीलों का कुम्भ/ वागड़ का पुष्कर भी कहते हैं | यहाँ पर आदिवासी अपनें पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन करते हैं।

 एकलिंग जी का मंदिर :– (कैलाशपुरी, उदयपुर)

एकलिंग जी मेवाड़ के महाराणाओं के इष्टदेव या कुल देवता है। 

इस मन्दिर का निर्माण 8वीं सदी में बप्पा रावल (कालभोज) ने करवाया जिसकों वर्तमान स्वरूप महाराजा रायमल ने दिया।

मेवाड़ के शासक स्वयं को एकलिंग जी का दीवान मानकर शासन किया करते थे, मेवाड़ के शासक एकलिंग जी के मन्दिर में तलवार के स्थान पर छड़ी लेकर जाते थे।

एकलिंगजी का मन्दिर राज्य में पाशुपत सम्प्रदाय का सबसे बड़ा मन्दिर है। इस मन्दिर में शिव की चैमुखी मूर्ति है। पूर्व के मुख में सूर्य, उत्तर के मुख में ब्रह्मा, दक्षिण के मुख में शिव तथा पश्चिम केमुख में विष्णु के दृष्य हैं।

 शीतलेश्वर महादेव मन्दिर :- (झालरापाटन, झालावाड़)

चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित इस मंदिर को चन्द्रमोली मन्दिर भी कहते हैं। महामारू शैली में बना यह राजस्थान का पहला समय अंकित मन्दिर है, जिस पर 689 लिखा है। यह एक अर्द्धनारीश्वर मन्दिर है। अर्द्धनारीश्वर का अर्थ है – आधा शिव आधी पार्वती।

राजराजेश्वर / सिद्धेश्वर शिव मन्दिर :- जयपुर

ये मन्दिर आम जनता के लिए केवल शिवरात्री के दिन खुलता हैं। मोती डूंगरी के महलों में इस मन्दिर का निर्माण 1864 में जयपुर के नरेश रामसिंह – 2 ने करवाया था।यह जयपुर के राजाओं का निजी मन्दिर हैं। मोटी डूँगरी की तलहटी में गणेश जी का भी मंदिर है।

 घुष्मेश्वर महादेव का मन्दिर :- शिवाड़ (सवाई माधोपुर)

देश के 12 ज्योर्तिलिंग में विख्यात है। इस मन्दिर में शिवलिंग 12 घंटे जल में डूबा हुआ रहता है। पास की पहाड़ी पर क़िला भी बना है जिसे शिवाड़ का क़िला भी कहते है ओर इस पहाड़ में सुरंग भी है माना जाता है कि ये सुरंग निवाई में जाकर निकलती है।

 अचलेश्वर महादेव मन्दिर :- सिरोही

यहाँ पर शिवलिंग के स्थान पर एक खड्ढ़ा हैं जो ब्रह्मखड्ढ़ा कहलाता हैं, इसे शिव के पैर का अंगूठा मानते है।इस मन्दिर में शिव जी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है। इस मन्दिर में महमूद बेगड़ा द्वारा खण्डित शिव प्रिया पार्वती हैं।

हल्देश्वर महादेव मंदिर :- (पीपलूद , सिवाना)

इसे मारवाड़ का लघु माउण्ट आबू कहते हैं क्योंकि यह पर पश्चिमी राजस्थान की सबसे ज़्यादा बारिश यहाँ पर होती है। यह मंदिर 56 की पहाड़ियों की हल्देश्वर पहाड़ी पर बना है।56 की पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी पर गुफा में जोगमाया का मन्दिर है।

मण्डलेश्वर शिव मन्दिर :- (अर्थूना, बांसवाड़ा)

अर्थूना को ग्रन्थों में “उत्थूनक” कहा गया है। यह लकुलीश सम्प्रदाय का परमार कालीन राजस्थान का प्रसिद्ध मन्दिर है।शिल्पकला की दृष्टि से आबू तथा यहाँ के मन्दिरों मे काफी समानता हैं।

 नाथद्वारा (राजसमंद)

राजस्थान के नाथद्वारा में दुनिया की सबसे बड़ी शिव मूर्ति स्थित है।इसे “statue of belief” के नाम से जाना जाता है। 

इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग 369 फुट है। ये इतनी ऊंची है कि 20 किमी दूर से भी नजर आती है। इस मूर्ति कोहेलिकॉप्टर से देखने के लिए जॉयराइड की शुरुआत की गई है। अब एक हजार फीट की ऊंचाई से दुनिया की सबसे बड़ी शिव प्रतिमा को देखा जा सकता है।

 हर्षनाथ जी का मंदिर :- हर्ष की पहाड़ी (सीकर)

विग्रहराज द्वितीय के काल में 10वीं सदी में निर्मित इस मन्दिर में लिंगोद्भव शिव की मूर्ति स्थित है।इस मंदिर में ब्रह्मा व विष्णु को शिवलिंग का आदि अन्त जानने हेतु परिक्रमा करते हुए दिखाया गया है।महामारू शैली में निर्मित इस मन्दिर को औरंगजेब के सेनापति खानजहां बहादुर ने तोड़ा था, जिसके कारण राजा शिवसिंह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। यहाँ पर मेला भाद्रपद शुक्ल 13 को भरता हैं।

 तिलस्वा महादेव मन्दिर :– भीलवाड़ा

यहाँ पर मेला शिवरात्री को लगता है तथा इस मन्दिर में चर्म रोगी व कुष्ठ रोगी को लाभ मिलता है।

महामन्दिर / सिरे मंदिर :- जोधपुर

इस मन्दिर का निर्माण 84 खम्बों पर मारवाड़ के शासक मानसिंह ने करवाया था, इस मन्दिर में जालन्धर नाथ की प्रतिमा है।यह मन्दिर नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल हैं।

 गेपरनाथ महादेव मंदिर :- कोटा

2008 में भूस्खलन के कारण यह मन्दिर चर्चा में रहा, इस मन्दिर में शिवलिंग/गर्भगृह जमीन की सतह से 300 फीट नीचे हैं।इस मन्दिर में स्थित शिवलिंग पर सदैव एक जलधारा बहती है।

 कंसुआ का शिव मंदिर :- कोटा

इस मंदिर की विशेषता है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के 7-8 मीटर अन्दर स्थित शिवलिंग पर गिरती है।इस मन्दिर का शिवलिंग 1008 मुखी शिवलिंग है।

 सोमनाथ मन्दिर :– भानगढ़ (अलवर)

गुजरात के सोमनाथ मन्दिर की प्रकृति का राज्य में यह एकमात्र मन्दिर है।

 चार-चैमा का शिवालय :- चारचैमा (कोटा)

यह कोटा राज्य का सबसे प्राचीन शिव मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण चोथी सदी के आसपास हुआ था, इसलिए इसे गुदा कालीन मंदिर भी कहते है।

 देव सोमनाथ मन्दिर :- डूंगरपुर 

12वी सदी में निर्मित और यह 3 मंजिला देव सोमनाथ मन्दिर सोम नदी के किनारे स्थित हैं।इसका निर्माण केवल पत्थरों से बिना चूना, मिट्टी व सीमेन्ट के किया गया है।

कपालीश्वर महादेव मन्दिर :– इन्द्रगढ़ (बूँदी)

यह मन्दिर चाकण नदी के किनारे है। शैव सम्प्रदाय के आचार्य मत्स्येन्द्रनाथ की राज्य में एकमात्र प्रतिमा इन्द्रगढ़ से मिली है।

समिद्धश्वर महादेव मन्दिर :- चितौड़गढ़ 

इस मन्दिर का निर्माण मालवा के राजा भोज ने करवाया, लेकिन पुनर्निर्माण महाराणा मोकल ने करवाया, इसलिए इसे “मोकल जी का मन्दिर” भी कहते है।

 मातृकुण्ड़िया का मन्दिर :- राश्मी गाँव (चित्तौड़गढ़)

बनास नदी के किनारे स्थित मातृकुण्डिया को “मेवाड़ का हरिद्वार” कहते हैं।यहाँ स्थित कुण्ड़ में मृत व्यक्ति की अस्थियों का विसर्जन किया जाता है।हरिद्वार की तरह यहाँ भी लक्ष्मण झूला लगा हुआ हैं।

भंडदेवरा शिव मंदिर :- (बारां)

इसे “हाड़ौती का खजुराहो” तथा राजस्थान का लघु (मिनी) खजुराहो भी कहते हैं।इन मंदिरों का निर्माण पंचायतन शैली में मेदवंशीय राजा मलय ने करवाया।वर्तमान मे मन्दिर में वायुकोण पर स्थित विष्णु मन्दिर ही अवशिष्ट रह गया हैं।

 नीलकण्ठ महादेव मन्दिर :- (टहला गाँव, राजगढ़, अलवर)

इस मन्दिर का निर्माण अजयपाल ने करवाया तथा इस मन्दिर में ही नृत्य गणेश की मूर्ति है। इस मंदिर के गर्भगृह में काले रंग का नीलम धातु का बना हुआ शिवलिंग है।

फूलदेवरा शिवालय :- अटरू (बारां)

इस मंदिर के निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ हैं तथा इस मन्दिर के पास  “मामा-भान्जा का मन्दिर” बना हैं।

बाड़ौली के शिव मन्दिर :- भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़)

भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में गुप्तकालीन स्थापत्य कला की छाप दिखाई देती है।

 मुकन्दरा का शिव मन्दिर :- कोटा

यह राजस्थान का एकमात्र गुप्तकालीन शिव मन्दिर हैं।

 गड़गच्च शिवालय :– अटरू (बारां)

 गुप्तेश्वर मन्दिर :– उदयपुर

इस मन्दिर को “गिरवा व मेवाड़ का अमरनाथ” कहते है।

  सेपऊ महादेव मन्दिर :– धौलपुर 

अचलनाथ महादेव :- जोधपुर

केशव राय मंदिर :– केशवरायपाटन (बूँदी)

 सारणेश्वर मंदिर :– सिरोही

हरणी महादेव मन्दिर :– भीलवाड़ा

भूतेश्वर महादेव मंदिर :- बसेड़ी (धौलपुर)

चौपड़ा महादेव मंदिर :- धौलपुर