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राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन – Prajamandal Movement in Rajasthan

राजस्थान के प्रजामंडल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। ये रियासती राज्यों में जनतांत्रिक अधिकारों, नागरिक स्वतंत्रताओं और उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए चलाया गया। “प्रजामंडल” का अर्थ है “प्रजा का मंडल” या जनता का संगठन।

आंदोलन के प्रमुख कारण

जनजागरण: 1920 के दशक में महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन पूरे भारत में फैल रहा था, जिसका प्रभाव राजस्थान की रियासतों में भी देखने को मिला।

रियासती निरंकुशता: राजस्थान की रियासतों के शासक निरंकुश थे। वे जनता के अधिकारों की अनदेखी करते थे, जिससे जनता में असंतोष बढ़ रहा था।

आर्थिक शोषण: रियासतों में सामंतवादी व्यवस्था के कारण किसानों और आम जनता का आर्थिक शोषण हो रहा था।

राजनीतिक चेतना का उदय: शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ लोगों में अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी थी।

कृषक असंतोष :- जागीरदारी व्यवस्था के तहत किसानों पर भारी कर और शोषण, जैसे बिजोलिया और बेगू किसान आंदोलन।

समाचार पत्रों की भूमिका :- ‘राजस्थान केसरी’ (1920) और ‘नवीन राजस्थान’ (1922) जैसे पत्रों ने राष्ट्रवादी विचार फैलाए।

1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में यह तय किया गया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अब रियासतों के मामलों में सीधे हस्तक्षेप करेगी। इस निर्णय से राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलनों को नई दिशा मिली।

प्रजामंडलप्रजामंडल की स्थापना वर्ष प्रजामंडल के संस्थापक
जयपुर प्रजामंडल1. 1931
2. 1938
1. कपूरचंद पाटनी
2. जमनालाल बजाज
बूंदी प्रजामंडल 1931कांतिलाल जैन
मारवाड़ प्रजामंडल1934जयनारायण व्यास
सिरोही प्रजामंडल1. 1934
2. 1939
1. विरधी शंकर त्रिवेदी
2. गोकुल भाई भट्ट
हाड़ौती प्रजामंडल1934पंडित नयनूराम शर्मा
बीकानेर प्रजामंडल1936मघाराम वैद्य
धौलपुर प्रजामंडल 1936ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु
मेवाड़ प्रजामंडल1938माणिक्यलाल वर्मा
शाहपुरा प्रजामंडल1938रमेश चंद्र ओझा
अलवर प्रजामंडल1938हरि नारायण शर्मा
भरतपुर प्रजामंडल1938किशनलाल जोशी
करौली प्रजामंडल1938त्रिलोक चंद माथुर
किशनगढ़ प्रजामण्डल1939कांतिलाल चौथानी
कुशलगढ़ प्रजामंडल 1942भंवर लाल निगम
बांसवाड़ा प्रजामंडल1943भूपेंद्र नाथ द्विवेदी
डूंगरपुर प्रजामंडल1944भोगीलाल पंड्या
जैसलमेर प्रजामंडल1945मीठालाल व्यास
झालावाड़ प्रजामंडल1946मांगीलाल भव्य
प्रतापगढ़ प्रजामंडल1945अमृतलाल पायक

जयपुर प्रजामंडल (1931):- राजस्थान का पहला प्रजामंडल जयपुर प्रजामंडल था, जिसकी स्थापना 1931 में कपूरचंद पाटनी द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य महाराजा के अधीन उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।

  • बाद में 1936 में जमनालाल बजाज और हीरालाल शास्त्री नेताओं ने जयपुर प्रजामंडल पुनर्गठन किया और चिरंजीलाल मिश्र को अध्यक्ष बनाया गया।
  • 1938 में जमनालाल बजाज को अध्यक्ष बनाया गया और प्रजामंडल का पहला वार्षिक अधिवेशन नथमल कटला (जयपुर) में हुआ।
  • हीरालाल शास्त्री, जमनालाल बजाज, कपूर चंद पाटनी, टीकाकरण पालीवाल, लादूराम जोशी, पूर्णानन्द जोशी, राम करन जोशी आदि जयपुर प्रजामण्डल के प्रमुख नेता थे
  • जेन्टलमेट्स समझौता (1942): – भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, प्रजामंडल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री और जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री मिर्ज़ा इस्माइल के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत प्रजामंडल को भारत छोड़ो आंदोलन से अलग रखा गया।
  • आजाद मोर्चा का गठन: – जेन्टलमेट्स समझौते से नाराज होकर बाबा हरिशचंद्र ने आज़ाद मोर्चा का गठन किया गया, जिसने जयपुर में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की।

बूंदी प्रजामंडल (1931):- बूंदी प्रजामंडल की स्थापना कांतिलाल जैन ने 1931 में की थी. बूंदी प्रजामंडल में नित्यानंद नागर, मोतीलाल अग्रवाल, ऋषिदत्त मेहता, और गोपाल कोटिया जैसे प्रमुख नेता भी शामिल थे।

बूंदी राज्य लोक परिषद:- 1944 में ऋषि दत्त मेहता ने बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना की, जिसने राज्य में जिम्मेदार शासन की दिशा में काम किया।

मारवाड़ प्रजामंडल (1934):– मारवाड़ प्रजा मंडल की स्थापना जयनारायण व्यास के नेतृत्व में 1934 में जोधपुर रियासत में हुई थी और मारवाड़ प्रजामंडल का अध्यक्ष भंवरलाल सर्राफ को बनाया गया।

  • जयनारायण व्यास ने ‘पोपाबाई की पोल’ और ‘मारवाड़ की अवस्था’ जैसी पुस्तिकाएँ लिखीं, जिससे लोगों में क्रांति की भावना जागी।
  • रणछोड़ दास गट्टानी, छगन राज चौपासनी वाला,भंवरलाल सर्राफ, जयनारायण व्यास आदि मारवाड़ प्रजामंडल के नेता थे।
  • 1936 में कृष्णा कुमारी के अपहरण और अत्याचार के विरोध में कृष्णा दिवस मनाया गया। मारवाड़ प्रजामंडल ने जोधपुर रियासत में 1936 में ‘कृष्णा दिवस’ मनाया था।
  • मारवाड़ यूथ लीग (मारवाड़ युवा संघ) की स्थापना 10 मई 1931 को जयनारायण व्यास ने की थी।
  • 1918 ई. में चांदमल सुराणा ने “मरुधर हितकारिणी सभा” का गठन किया।
  • 1923 ई. में जयनारायण व्यास ने “मरुधर हितकारिणी सभा” का “मारवाड हितकारिणी सभा” के नाम से पुनर्गठन किया।
  • 1920 ई. में जयनारायण व्यास ने “मारवाड़ सेवा संघ” की स्थापना की।
  • 1932 ई. में छगनराज चौपासनीवाला ने जौधपुर में भारतीय झंडा फहराया था।

सिरोही प्रजामंडल :- 1934 में, सिरोही के निवासी भीमाशंकर शर्मा पाडीव, विरधी शंकर त्रिवेदी और समरथमल सिंघी ने मुंबई में सिरोही राज्य प्रजा मंडल की स्थापना की।

बाद में 22 जनवरी 1939 को सिरोही में गोकुल भाई भट्ट के नेतृत्व में सिरोही प्रजामंडल की पुनर्स्थापना की गई थी

हाड़ौती प्रजामंडल(1934):- हाड़ौती प्रजामंडल की स्थापना पंडित नयनूराम शर्मा ने 1934 में कोटा में की थी और हाड़ौती प्रजामंडल के पहले अध्यक्ष हाजी फैज मोहम्मद को बनाया गया था। पंडित नयनूराम शर्मा ने 1918 में कोटा में प्रजा प्रतिनिधि सभा की स्थापना की।

बीकानेर प्रजामंडल (1936): – बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना मघाराम वैद्य ने 1936 में की थी और मघाराम वैद्य ही पहले अध्यक्ष बने।

  • बीकानेर प्रजामंडल की पुनर्स्थापना अक्टूबर 1937 को कोलकाता में हुई थी और अध्यक्ष लक्ष्मी देवी आचार्य को बनाया गया।
  • रघुवरदयाल गोयल, मुक्ताप्रसाद, स्वामी गोपालदास व सत्यनारायण सराफ अन्य प्रमुख सदस्य थे।
  • 30 जून 1946 को रायसिंहनगर में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के साथ स्वतंत्रता सेनानियों ने एक विशाल जुलूस निकाला था। इस जुलूस के दौरान पुलिस ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें 1 जुलाई 1946 को बीरबल सिंह नामक युवक शहीद हो गए और 17 जुलाई 1946 को बीकानेर रियासत में बीरबल दिवस मनाया गया था

धौलपुर प्रजामंडल :- धौलपुर प्रजामंडल की स्थापना 1936 में ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु के प्रयासों से हुई थी। कृष्ण दत्त पालीवाल धौलपुर प्रजामंडल पहले अध्यक्ष बनाये गये थे।

मेवाड़ प्रजामंडल (1938):- मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना 24 अप्रैल 1938 को माणिक्यलाल वर्मा ने उदयपुर में की थी, जिसमें बलवंत सिंह मेहता अध्यक्ष और भूरेलाल बया पहले उपाध्यक्ष बनाये गये।

शाहपुरा प्रजामंडल :- शाहपुरा प्रजामंडल की स्थापना माणिक्यलाल वर्मा के सहयोग से रमेश चंद्र ओझा ने 18 अप्रैल, 1938 को की थी और अभयसिंह दांगी को अध्यक्ष बनाया गया। शाहपुरा राजस्थान की पहली देशी रियासत थी जिसने 14 अगस्त, 1947 को लोकतांत्रिक और पूर्णतः जिम्मेदार शासन की स्थापना की, जब राजा सुदर्शन देव ने राज्य का प्रभार गोकुल लाल असावा को सौंप दिया।

अलवर प्रजामंडल (1938):- अलवर प्रजा मंडल की स्थापना हरि नारायण शर्मा ने 1938 में की थी और कुंज बिहारी मोदी ने अलवर प्रजामंडल के अन्य नेता थे।

भरतपुर प्रजामंडल (1938):- भरतपुर प्रजामंडल की स्थापना मार्च 1938 में किशनलाल जोशी के प्रयासों से रेवाड़ी में की गई थी और गोपीलाल यादव को पहला अध्यक्ष बनाया जाता है। जुगल किशोर चतुर्वेदी, लछिराम, ठाकुर देशराज और मास्टर आदित्येंद्र आदि भरतपुर प्रजामंडल के नेता थे

करौली प्रजामंडल :- करौली प्रजामंडल की स्थापना 1938 में त्रिलोक चंद माथुर द्वारा की गई थी, चिरंजी लाल शर्मा और मदन सिंह अन्य प्रमुख नेता थे

कोटा प्रजामंडल :- कोटा प्रजामंडल की स्थापना पंडित नयनूराम शर्मा ने 1939 में की थी

किशनगढ़ प्रजामण्डल :- किशनगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना 1939 में कांतिलाल चौथानी द्वारा की गई थी और जमाल शाह किशनगढ़ प्रजामण्डल के पहले अध्यक्ष बने।

कुशलगढ़ प्रजामंडल :- कुशलगढ़ प्रजामंडल की स्थापना 1942 में भंवर लाल निगम की अध्यक्षता में हुई थी और कुशलगढ़ प्रजामंडल आंदोलन से कन्हैयालाल सेठिया और पन्नालाल त्रिवेदी भी जुड़े हुए थे।

बांसवाड़ा प्रजामंडल :- बांसवाड़ा प्रजामंडल की स्थापना भूपेंद्र नाथ द्विवेदी ने 1943 में की थी और विनोदचन्द्र कोठारी को अध्यक्ष बनाया गया था

डूंगरपुर प्रजामंडल :- डूंगरपुर प्रजामंडल की स्थापना 1944 में भोगीलाल पंड्या ने की थी, जिन्हें ‘वागड़ का गांधी’ भी कहा जाता है।

जैसलमेर प्रजामंडल :- जैसलमेर प्रजामंडल की स्थापना 15 दिसंबर, 1945 को मीठालाल व्यास ने जोधपुर में की थी। सागरमल गोपा को 1941 में गिरफ्तार किया गया और अप्रैल 1946 को जेल में केरोसिन डालकर जिंदा जला दिया गया, हत्या की जाँच के लिए गोपाल स्वरूप पाठक आयोग का गठन किया गया, जिसने इस घटना को आत्महत्या घोषित कर दिया। सागरमल गोपा ने ‘जैसलमेर का गुंडा राज’ और ‘आजादी के दीवाने’ जैसी किताबें लिखी थीं।

प्रतापगढ़ प्रजामंडल :- प्रतापगढ़ प्रजामंडल की स्थापना अमृतलाल पायक और चुन्नीलाल प्रभाकर ने 1945 में की थी।

झालावाड़ प्रजामंडल :- झालावाड़ प्रजामंडल की स्थापना 25 नवंबर, 1946 को मांगीलाल भव्य ने की थी।

प्रजामंडल आंदोलनों का परिणाम बहुत ही सकारात्मक रहा। इन्होंने राजस्थान की रियासतों में राजनीतिक चेतना का प्रसार किया और जनता को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। इन आंदोलनों ने भारत की आजादी के बाद राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया को भी आसान बनाया।

यह आंदोलन राजस्थान की राजनीतिक एकता और लोकतंत्र की नींव रखने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

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राजस्थान के प्रमुख पार्क – Industrial Park in Rajasthan

राजस्थान में औद्योगिक पार्कों का निर्माण मुख्य रूप से राज्य की आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने, रोजगार सृजन करने, निवेश आकर्षित करने और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम लिमिटेड (RIICO) इस दिशा में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।

आर्थिक विकास और औद्योगीकरण को बढ़ावा, रोजगार सृजन, निवेश आकर्षण और कारोबारी सुगमता, बुनियादी ढांचे का विकास, क्षेत्र-विशिष्ट विकास आदि के लिए राजस्थान में पार्क बनाये जा रहे हैं।

  • राजस्थान का पहला साइंस पार्क (science park) जयपुर में स्थित है।
  • राजस्थान का पहला मेगा फूड पार्क अजमेर जिले के रूपनगढ़ गांव में है, जिसका नाम ग्रीनटेक मेगा फूड पार्क प्राइवेट लिमिटेड है।
  • राजस्थान का पहला मसाला पार्क (spice park) जोधपुर में है। यह जोधपुर के पास मथानिया के रामपुरा भाटियान गाँव में स्थित है।
  • राजस्थान का पहला रेगिस्तानी पार्क (Desert Park) जयपुर में स्थित किशन बाग है। यह नाहरगढ़ किले की तलहटी में 30 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • राजस्थान का पहला सोलर पार्क (Solar Park) भड़ला सोलर पार्क है, जो फलोदी जिले में स्थित है।
  • राजस्थान का पहला संविधान पार्क (Constitution Park) जयपुर के राजभवन में स्थित है। इसका उद्घाटन 3 जनवरी, 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया था।
  • राजस्थान का पहला बर्ड पार्क (Bird Park) उदयपुर के गुलाब बाग में स्थित है।
  • राजस्थान का पहला MSME पार्क दौसा में स्थापित किया गया है।
  • राजस्थान का पहला आईटी (IT) पार्क जयपुर में सीतापुरा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है।
  • राजस्थान का पहला मिनी फूड पार्क (mini food park) बांद्रा, बाड़मेर में स्थित है। हालाँकि, बीकानेर के पलाना में एक मेगा फूड पार्क प्रस्तावित है।
  • पहला मिनी एग्रो पार्क (mini agro park) टोंक जिले के निवाई के चैनपुरा प्रस्तावित है।
Industrial Park Name Park location
बटरफ्लाई पार्क/ Butterfly Parkअंबेरी, उदयपुर
साइबर पार्क / Cyber Parkजोधपुर
नमो टॉय पार्क /खिलौना पार्क/Toy Parkकोटा
BSF थीम पार्क सम, जैसलमेर
टेक्सटाइल पार्क/Textile Parkभीलवाड़ा
औद्योगिक पार्क /industrial Park शाहपुर, भीलवाड़ा
वेस्ट टू वंडर पार्क /Waste to Wonder Parkमानसरोवर, जयपुर
स्टोन पार्क /Stone Park1. सोनियाणा, चित्तौड़गढ़
2. बूँदी
सिरेमिक पार्क/ Ceramic Park1. खारा, बीकानेर
2. सोनियाणा, चित्तौड़गढ़
फिनटेक पार्क/ Fintech Parkजयपुर
मेडटेक मेडिसियन डिवाइसेस पार्क /Medtech Parkबौरानाडा, जोधपुर
ज़ीरो वेस्ट पार्क /Zero Waste Parkआंधी गाँव, जयपुर
जेम्स एंड ज्वैलरी पार्क /Gems and Jewellery Parkसीतापूरा, जयपुर
स्नेक पार्क / सर्प उद्यान / Snake Parkकोटा
स्ट्रेस पार्क /Stress Parkकोटा
ऑक्सीजन पार्क /Oxygen Parkकोटा
दूसरा मसाला पार्क /spice parkकोटा
एग्रो फूड पार्क /Agro food park 1. रानपूरा (कोटा),
2. बौरानाडा जोधपुर,
3. श्रीगंगानगर,
4. अलवर
आर्ट पार्क /Art park पुष्कर, अजमेर
इंटीग्रेटेड रिसोर्स रिकवरी पार्क /Integrated Resource Recovery Parkजमवारामगढ़, जयपुर
स्काउट गाइड एडवेंचर पार्क/scout guide adventure Park श्रीगंगानगर
चमड़ा पार्क /Leather Parkमानपुरा मोचढ़ी, जयपुर
कोरियाई पार्क/Korean Parkघिलोठ नीमराना, बहरोड़-कोटपुतली
बायोटेक्नोलॉजी पार्क /Biotechnology Park1. चौपंकी, खेरथल- तिजारा
2. सीतापुरा, जयपुर
निर्यात संवर्धन औद्योगिक पार्क /Export Promotion industrial Park1. सीतापुरा, जयपुर
2. बोरानाडा, जोधपुर
3. नीमराणा, बहरोड़-कोटपुतली
कैक्टस गार्डन /Cactus Gardenकुलधरा, जैसलमेर
जीवाश्म पार्क /Fossil Parkआकल, जैसलमेर
अभेड़ा पार्क/Abheda Parkकोटा
पर्यावरण पार्क /Environment Parkसोजत, पाली
होजरी पार्क /Hosiery Parkचोपकी भिवाड़ी, अलवर
पुष्प पार्क /Flower Parkखुशखेड़ा, खैरथल-तिजारा
जापानी पार्क /Japanese Park1. नीमराणा बहरोड़ कोटपुतली
2. घिलोठ, अलवर
सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क /Software Technology Parks1. कनकपूरा, जयपुर
2. जोधपुर
हार्डवेयर टेक्नोलॉजी पार्क /Hardware Technology Parkकुकस, जयपुर
वुड पार्क/Wood Parkदौसा
इलेक्ट्रॉनिक पार्क (ई-वेस्ट पार्क)/Electronic Parkजयपुर
ऑटोमोबाईल पार्क /Automobile Parkपथरेड़ी, अलवर
अपैरल पार्क /Apparel Parkजगतपुर, महल रोड़, जयपुर
एयर कार्गो काम्प्लेक्स/ air cargo complexसांगानेर, जयपुर
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राजस्थान के पैनोरमा – panorama in Rajasthan

राजस्थान में पैनोरमा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित करने और युवा पीढ़ी को महापुरुषों, लोक देवताओं, वीरों, और स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और योगदान को त्रि-आयामी (3D) या कलात्मक रूप से दर्शाया जाता है। ये पैनोरमा न केवल पर्यटन को बढ़ावा देते हैं, बल्कि राजस्थान के गौरवशाली इतिहास को जीवंत करते हैं।

राजस्थान का पहला पैनोरमा हसन खान मेवाती पैनोरमा, अलवर में स्थापित किया गया था

हसन खान मेवाती पैनोरमा

राजस्थान का महाराणा प्रताप पैनोरमा चावंड, उदयपुर में स्थापित किया गया था। यह पैनोरमा महाराणा प्रताप के जीवन, वीरता और मेवाड़ के इतिहास को दर्शाता है।

शेखावाटी की मीरा करमेती बाई का पैनोरमा सीकर जिले के खंडेला में बनेगा।

निम्नलिखित कुछ प्रमुख पैनोरमा और उनके स्थान हैं, जो हाल के वर्षों में बनाए गए या प्रस्तावित हैं:

  • राष्ट्रीय जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय मानगढ़, बांसवाड़ा
  • कृष्ण भक्त अलीबख्श पेनोरमा मुन्डावर, अलवर
  • श्री करणी माता पेनोरमा देशनोक, बीकानेर
  • संत शिरोमणि रैदास पेनोरमा चित्तौड़ीखेड़ा, चित्तौड़गढ़
  • वीर झाला मन्ना पेनोरमा बड़ी सादड़ी, चित्तौड़गढ़
  • लोकदेवता बाबा रामदेव जी पेनोरमा रामदेवरा, जैसलमेर
  • महाकवि माघ एवं गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त पेनोरमा भीनमाल, जालोर
  • सैन्य शक्ति स्मारक (वॉर मेमोरिअल) दोरासर, झुन्झुनू
  • 1857 स्वतंत्रता संग्राम पेनोरमा आऊवा, पाली
  • राजा भर्तृहरि पेनोरमा, अलवर
  • संत शिरोमणि रैदास पेनोरमा चित्तौड़ीखेड़ा, चित्तौड़गढ़
पैनोरमापैनोरमा के स्थान
महाराजा सूरजमल पैनोरमा डीग
सवाईभोज पैनोरमा भीलवाड़ा (आसींद)
कैला देवी पैनोरमा करौली
पृथ्वीराज चौहान पैनोरमा अजमेर
वीरमदेव और कान्हड़देव चौहान पैनोरमा जालोर
इंदिरा महाशक्ति भारत पैनोरमा जैसलमेर (पोकरण)
स्वतंत्रता सेनानियों का पैनोरमा जयपुर
महावीर जी पैनोरमा करौली (महावीर जी मंदिर)
जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज पैनोरमा अजमेर
भक्त शिरोमणि करमा बाई पैनोरमा डीडवाना-कुचामन (कालवा)
जसनाथ जी पैनोरमा बीकानेर (कतरियासर)
खेमा बाबा पैनोरमा बालोतरा (बायतू)
भामाशाह पैनोरमा चित्तौड़गढ़
राव चन्द्रसेन पैनोरमा जोधपुर
गोकुला जाट पैनोरमा भरतपुर
जैसलमेर पैनोरमा जैसलमेर
महाबलिदानी पन्नाधाय पैनोरमा राजसमंद (कामेंरी)
महाबलिदानी पन्नाधाय पैनोरमा चित्तौड़गढ़ (पाण्डोली)
राव बीकाजी पैनोरमा बीकानेर
स्वामी आत्माराम लक्ष्य पैनोरमा जयपुर
राजा बूंदा मीणा पैनोरमा बूंदी
महर्षि नवल पैनोरमा जोधपुर
केसरी सिंह बारहठ पैनोरमा भीलवाड़ा (शाहपुरा)
महाराणा राजसिंह पैनोरमा राजसमंद (राजसमंद झील)
महाराणा कुंभा पैनोरमा राजसमंद (माल्यावास, देवगढ़)
वीर तेजाजी पैनोरमा नागौर (खरनाल)
वीर अमरसिंह राठौड़ पैनोरमा नागौर
गुरु जम्भेश्वर पैनोरमा नागौर
चालक नेची पेनोरमा बाड़मेर (सेडवा क्षेत्र)
मीराबाई पैनोरमा नागौर (मेड़ता)
देवनारायण पैनोरमा भीलवाड़ा (मालासेरी)
गोविंद गुरु पैनोरमा डूंगरपुर (छाणी मगरी धाम)
अमराजी भगत अनगढ बावजी पैनोरमा चित्तौड़गढ़(नरबदिया)
बाप्पा रावल पनोरमा उदयपुर (मथता)
राव शेखाजी पैनोरमा जयपुर (अमरसर)
सेन महाराज पेनोरमा अजमेर (पुष्कर)
शबरी पैनोरमा चित्तौड़गढ़ (दूध तलाई)
महाराणा प्रताप पैनोरमाउदयपुर (चावंड)

राजस्थान सरकार श्री ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग में विकास कार्य करेगी

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राजस्थान में झरने – Waterfall in Rajasthan

राजस्थान अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और रेगिस्तान के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां कुछ बेहद खूबसूरत झरने भी हैं मुख्यत: चूलिया झरना, मेनाल झरना, भीमलत झरना, दिर झरना, भील बेरी झरना, दमोह झरना, अरणा-जरणा जलप्रपात और पांडुपोल झरना है।

मानसून के दौरान इसकी खूबसूरती देखने लायक होती है। राजस्थान के ज्यादातर झरने बारिश में ही बहते हैं। मानसून के दौरान इसकी खूबसूरती देखने लायक होती है।

भील बेरी झरना – Bheel Beri Waterfall (पाली) :- राजस्थान का सबसे ऊंचा झरना पाली जिले के भगाेड़ा गाँव में स्थित भील बेरी झरना है। यह 182 फीट (55 मीटर) की ऊंचाई से गिरता है। यह झरना पाली और राजसमंद जिले की सीमा पर स्थित है। भील बेरी झरना, टॉडगढ़ रावली वन्यजीव अभयारण्य में स्थित है। भील बेरी जलप्रपात को ‘राजस्थान का दूध सागर’ कहते है, क्योंकि यह झरना इतनी ऊंचाई से गिरता है, तो दूध जैसा प्रतीत होता है।

भीमलत झरना – Bhimlat Waterfall (बूंदी) :- भीमलत जलप्रपात बूंदी जिले में, मांगली नदी पर स्थित है। मांगली नदी, मेज नदी की सहायक नदी है। स्थानीय लोगों का मानना है कि वनवास के दौरान पांडवों की प्यास बुझाने के लिए भीम ने इस झरने का निर्माण किया था.

मेनाल झरना – Menal Waterfall (भीलवाड़ा) :– राजस्थान का दूसरा सबसे ऊंचा झरना भीलवाड़ा जिले में मेनाल नदी पर स्थित मेनाल झरना है, जिसकी ऊँचाई 180 फीट (54 मीटर) है मेनाल झरना को “राजस्थान का मिनी नियाग्रा” कहा जाता है।

गैपरनाथ झरना – Geparnath Waterfall (कोटा) :- गैपरनाथ झरना, राजस्थान के कोटा जिले में रावतभाटा के पास स्थित एक खूबसूरत प्राकृतिक जलप्रपात है।

चूलिया झरना -chuliya Waterfall (रावतभाटा, कोटा) :- चूलिया जलप्रपात की ऊंचाई 18 मीटर (54 फीट) है। यह जलप्रपात चितौड़गढ़ जिले में स्थित राणा प्रताप सागर बांध और भैंसरोडगढ़ के मध्य रावतभाटा में चम्बल नदी पर स्थित है। यह राजस्थान का एक बड़ा और लोकप्रिय जलप्रपात है। रावतभाटा के पास चम्बल नदी अधिक सकरी हो जाती है, जिसे चम्बल घाटी कहते है। इस घाटी की चट्टानों को चुड़ीनुमा आकृति में काटा गया है, जिससे पानी बहकर जलप्रपात का निर्माण करता है, इसलिए इसे चूलिया जलप्रपात कहते है।

पदाझर महादेव झरना (चित्तौड़गढ़) :– पदाझर महादेव झरना, राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा के पास एक शांत और प्राकृतिक जलप्रपात है।

ध्रुधिया झरना (माउंट आबू ) :- धुधिया झरना राजस्थान के सिरोही जिले में, माउंट आबू के पास स्थित है।

दमोह झरना (सरमथुरा, धौलपुर) :– दमोह जलप्रपात राजस्थान के धौलपुर जिले के सरमथुरा गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित एक प्राकृतिक जलप्रपात है। यह जलप्रपात लगभग 100 फीट ऊंचा है

गर्भाजी झरना (अलवर):- गर्भाजी झरना राजस्थान के अलवर जिले में सिलिसेढ़ झील के रास्ते में, अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित है।

अरना झरना (जोधपुर) :- अरना झरना राजस्थान के जोधपुर जिले में मोकलावास गाँव के पास, भोगिशैल पहाड़ियों में स्थित है। झरने के पास अरणेश्वर महादेव मंदिर स्थित है अरना-जरना जलप्रपात (Arna Jharna Waterfall) राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित है।

हल्दीघाटी झरना (उदयपुर) :- हल्दीघाटी झरना, राजस्थान के उदयपुर जिले में हल्दीघाटी क्षेत्र में स्थित एक मौसमी जलप्रपात है। पास में महाराणा प्रताप संग्रहालय है।

सीता माता झरना (प्रतापगढ़) :- सीता माता झरना राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में सीता माता वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित एक खूबसूरत और पवित्र जलप्रपात है।

दिर झरना (भरतपुर) :- दिर जलप्रपात राजस्थान के भरतपुर जिले के बयाना तहसील के दर्र बरहाना गांव के पास कांकुड़ नदी पर स्थित है।

बरवाड़ा सामोद झरना (जयपुर) :- बरवाड़ा सामोद झरना जयपुर के सामोद के बालाजी मंदिर के पास स्थित है।

हथनी कुंड झरना (आथुणी कुंड) :– हथनी कुंड झरना राजस्थान के जयपुर शहर में नाहरगढ़ दुर्ग के पास स्थित है। हथनी कुंड ही जयपुर के बीच में से बहने वाली द्रव्यवती नदी का उद्गम स्थल था।

  • पांडुपोल जलप्रपात राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का टाइगर रिजर्व के अंदर स्थित है।
  • खो नागौरिया झरना (जगतपुरा झरना) राजस्थान के जयपुर जिले में स्थित है।
  • राजस्थान में पाराशर (Parashar) जलप्रपात (waterfall) अलवर जिले में स्थित है।
  • गढ़मोरा झरना (Garhmora Waterfall) राजस्थान के गंगापुर सिटी में गढ़मोरा गाँव में स्थित है
  • महेश्वरा झरना (maheshwara Waterfall) राजस्थान के करौली जिले में है।
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राजस्थान में रोपवे – Rajasthan me Ropeway

राजस्थान में रोपवे – राजस्थान में पर्यटन को बढ़ावा देने और धार्मिक स्थलों तक पहुंच को आसान बनाने के लिए कई रोपवे संचालित हैं राजस्थान में वर्तमान में 7 रोपवे संचालित हैं और भविष्य में कई और रोपवे प्रस्तावित हैं।

सुंधा माता रोपवे, भीनमाल (जालौर) :- सुंधा माता रोपवे राजस्थान का पहला रोपवे है। यह रोपवे सुंधा माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बनाया गया था, जो जालौर जिले के भीनमाल के पास सुंधा पर्वत पर स्थित है।, जिसका उद्घाटन 20 दिसंबर 2006 को हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 800 मीटर है। यह रोपवे राजस्थान के पर्यटन और धार्मिक स्थलों को सुगम बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

मंशापूर्ण करणी माता रोपवे, उदयपुर :- यह राजस्थान का दूसरा रोपवे है, जिसका उद्घाटन 8 जून 2008 को हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 387 मीटर है। यह उदयपुर के प्रसिद्ध करणी माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बनाया गया था, जहाँ से पिछोला झील और शहर का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यह रोपवे उदयपुर में माछला मगरा पहाड़ी पर स्थित मंशापूर्ण करणी माता मंदिर तक जाता है। यह उदयपुर के पर्यटन को बढ़ावा देने और भक्तों को सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।

सावित्री माता रोपवे, पुष्कर (अजमेर) :- यह रोपवे ब्रह्मा जी के मंदिर के पास स्थित सावित्री माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बनाया गया था, जो एक रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है। यह तीसरा रोपवे है, जिसका निर्माण मई 2016 में हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 700 मीटर है। सविता देवी का मंदिर पुष्कर में रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है। पुष्कर में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने और श्रद्धालुओं को पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक आसानी से पहुंचने में मदद करने के लिए इसका निर्माण किया गया। सावित्री माता मंदिर, रत्नागिरी पहाड़ी पर 750 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

सामोद वीर हनुमान मंदिर रोपवे, चौमू (जयपुर) :- यह चौथा रोपवे है, जिसका निर्माण मई 2019 में हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 400 मीटर है। सामोद वीर हनुमान मंदिर रोपवे एक मानवरहित स्वचालित रोपवे है यह भक्तों को 1050 सीढ़ियां चढ़ने की बजाय 5 मिनट में मंदिर तक पहुंचने की सुविधा देता है।

खोले के हनुमान मंदिर रोपवे (अन्नपूर्णा रोपवे), जयपुर :- इसका निर्माण सितंबर 2023 में हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 436 मीटर है। अन्नपूर्णा माता मंदिर से खोले के हनुमान मंदिर की पहाड़ी पर स्थित वैष्णो माता मंदिर (जयपुर) तक पहुंचने के लिए बनाया गया था। यह रोपवे खोले के हनुमान मंदिर रोपवे राजस्थान का पहला स्वचालित (ऑटोमेटिक) रोपवे है। यह जयपुर में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने और श्रद्धालुओं को खोले के हनुमान जी और वैष्णो माता मंदिर तक पहुंचने में सुविधा प्रदान करने के लिए बनाया गया।

नीमच माता रोपवे, उदयपुर :- इसका निर्माण जनवरी 2024 में हुआ था। इसकी लंबाई लगभग 430 मीटर है। उदयपुर में एक और धार्मिक स्थल को सुगम बनाने के उद्देश्य से इसका उद्घाटन जनवरी 2024 में हुआ।

जीण माता मंदिर रोपवे, रेवासा (सीकर) :- यह राजस्थान का सातवां रोपवे है, जिसका उद्घाटन 10 अप्रैल 2024 को हुआ था। यह रोपवे जीण माता मंदिर से काजल शिखर मंदिर, रेवासा (सीकर) तक पहुंचने के लिए बनाया गया था। यह जीण माता मंदिर में भक्तों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए शुरू किया गया।

प्रस्तावित/योजनाबद्ध रोपवे:राजस्थान सरकार “पर्वतमाला योजना” के तहत राज्य के 12 जिलों में 16 नए रोपवे बनाने की योजना बना रही है। यह पहल राजस्थान में पर्यटन को बढ़ावा देने और दुर्गम स्थानों तक पहुंच को आसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

  • 1. आमेर-जयगढ़-नाहरगढ़ रोपवे, जयपुर :- यह 6.5 किलोमीटर लंबा होने वाला है और राजस्थान का सबसे लंबा रोपवे बन सकता है।
  • 2. जोगी महल, सवाई माधोपुर
  • 3. बिजासन माता (इंदरगढ़), बूंदी
  • 4. समई माता, बांसवाड़ा 5
  • . छतरंग मोरी, चित्तौड़गढ़
  • 6. त्रिनेत्र गणेश मंदिर, रणथंभौर, सवाई माधोपुर
  • 7. रामेश्वर महादेव मंदिर, बूंदी
  • 8. चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर
  • 9. रूठी रानी महल से हवामहल, जयसमंद, उदयपुर
  • 10. कुंभलगढ़ किला ,लाखेला, राजसमंद
  • 11. राजसमंद झील के आसपास की पहाड़ियों को जोड़ते हुए
  • 12. सिद्धनाथ महादेव मंदिर, कल्याणा, जोधपुर
  • 13. श्रीगढ गणेश मंदिर, ब्रह्मपुरी, जयपुर
  • 14. भैरव मंदिर, मेहंदीपुर बालाजी, दौसा
  • 15. कृष्णाई माता, रामगढ़, बारां
  • 16. राजा जी का तालाब, तारागढ़ किला, अजमेर

ये रोपवे पर्यटन को बढ़ावा देने और यात्रियों को इन स्थानों तक पहुंचने में सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

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1857 की क्रांति के समय राजस्थान के पॉलिटिकल एजेंट

1857 की क्रांति :- 1857 के विद्रोह के समय भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड कैनिंग थे और 1858 में लॉर्ड कैनिंग भारत के पहले वायसराय भी बने। 1857 का विद्रोह, भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था।

1857 की क्रांति के समय राजस्थान में A.G.G. (एजेंट टू गवर्नर-जनरल) जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस थे. 1857 के विद्रोह के समय, राजपूताना रेजीडेंसी में एजेंट टू गवर्नर-जनरल (एजीजी) जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस थे। 1857 की क्रांति के समय, राजस्थान में A.G.G. (एजेंट टू गवर्नर-जनरल) जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस का कार्यालय अजमेर में स्थित था.

1857 के विद्रोह के समय, राजस्थान की विभिन्न रियासतों में अलग-अलग पॉलिटिकल एजेंट और शासक –

रियासत पॉलिटिकल एजेंट शासक
मेवाड़ (उदयपुर) मेजर शावर्स स्वरूप सिंह
मारवाड़ (जोधपुर) मैक मेसन तख्त सिंह
जयपुर कर्नल ईडन राम सिंह द्वितीय
कोटा मेजर बर्टनमहाराव राम सिंह
भरतपुर मॉरिसनजसवंत सिंह प्रथम
सिरोही जे.डी. हॉल महाराव शिव सिंह
धौलपुरभगवन्त सिंह

1832 में A.G.G. का मुख्यालय अजमेर में स्थापित किया गया था और राजस्थान के पहले एजीजी मिस्टर अब्राहम लॉकेट थे, 1845 में, A.G.G. का मुख्यालय को आबू में स्थानांतरित कर दिया गया था। 1864 में A.G.G. की दो राजधानियाँ, अजमेर (शीतकालीन राजधानी) और आबू (ग्रीष्मकालीन राजधानी) बनाई गई.

15 अक्टूबर 1857 को कोटा में अंग्रेज पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन एवं उसके दो पुत्रों आर्थर और फ्रांसिस को क्रांतिकारियों ने मौत के घाट उतार दिया गया था, धनतेरस पर पटाखों की जगह तोप और बंदूकें गूंजी थीं. क्रांतिकारियों ने कोटा के पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन के सिर को शहर में घुमाया। सिर को बाद में तोप से उड़ा दिया।

1857 के विद्रोह के दौरान क्रांतिकारियों की सेना (नेतृत्व ठाकुर कुशाल सिंह) ने जोधपुर पॉलिटिकल एजेंट (अंग्रेज कैप्टन) मैक मेसन का सिर कलम कर आऊवा किले की प्राचीर पर टांग दिया था। 25 जनवरी 1858 को 24 स्वतंत्रता सेनानियों को आऊवा की गलियों में बांध कर तोपों व बंदूकों से ब्रिटिश सेना ने छलनी कर दिया गया।

  • 1857 की क्रांति के समय जयपुर के राजनीतिक एजेंट कर्नल ईडन थे.
  • 1857 की क्रांति के समय कोटा का पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन था।
  • 1857 की क्रांति के समय जोधपुर के राजनीतिक एजेंट मैक मेसन थे।
  • 1857 के विद्रोह के समय सिरोही रियासत का पॉलिटिकल एजेंट जे.डी. हॉल था।
  • 1857 की क्रांति के समय उदयपुर का पॉलिटिकल एजेंट कैप्टन शावर्स था।

1857 की क्रांति के समय राजस्थान में 6 सैनिक छावनियाँ थीं।

  • 1. नसीराबाद
  • 2. नीमच
  • 3. खेरवाड़ा
  • 4. देवली
  • 5. एरिनपुरा
  • 6. ब्यावर

1857 की क्रांति राजस्थान में सबसे पहले नसीराबाद छावनी (अजमेर) में 28 मई 1857 को हुई थी। खेरवाड़ा और ब्यावर छावनी ने 1857 के विद्रोह में भाग नहीं लिया था।

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राजस्थान के पंच पीर rajasthan ke panch peer

रामदेवजी, पाबूजी, गोगाजी, हड़बूजी और मेहाजी को राजस्थान के पंच पीर कहा जाता है. ये पांच संत या पीर अपने धार्मिक और सामाजिक योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं।

पंच पीर को याद करने की ट्रिक :- गोपा मेरा है

  • गो – गोगा जी
  • पा – पाबू जी
  • मे – मेहा जी
  • रा – रामदेव जी
  • है – हड़बू जी

राजस्थान के पंच पीरों के लिए प्रसिद्ध कहावत है:

पाबू, हड़बू, रामदेव, मांगलिया मेहा । पांचों पीर पधारो, गोगा जी जेहा।।

राजस्थान के पांच पीरों में तेजाजी शामिल नहीं हैं। तेजाजी राजस्थान एक लोकप्रिय लोक देवता हैं, लेकिन उन्हें पंच पीरों में नहीं गिना जाता है.

राजस्थान के लोक देवता, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे न केवल आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि सामाजिक समरसता, न्याय और लोक कल्याण के लिए भी प्रेरणा स्रोत हैं।

राजस्थान के पंच पीर

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राजस्थान का एकीकरण Rajasthan Ka Ekikaran

राजस्थान के एकीकरण से पूर्व राजस्थान में 19 रियासतें, 3 ठिकाने और केंद्र शासित प्रदेश अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र थे. इन रियासतों को एकीकृत कर एक आधुनिक राज्य राजस्थान का निर्माण किया गया।

राजस्थान की एकीकरण प्रक्रिया 18 मार्च 1948 से शुरू होकर 1 नवंबर 1956 को 7 चरणों में पूरी हुई। राजस्थान के एकीकरण में 8 साल, 7 महीने और 14 दिन लगे थे।

5 जुलाई, 1947 को भारतीय रियासत विभाग का गठन हुआ था। भारतीय रियासत विभाग का प्रमुख सरदार वल्लभभाई पटेल को बनाया गया था और भारतीय रियासत विभाग का प्रशासनिक प्रमुख (सचिव) वी. पी. मेनन को नियुक्त किया गया था एकीकरण की इस प्रक्रिया में सरदार वल्लभभाई पटेल और वी.पी. मेनन की अहम भूमिका रही।

राजस्थान एकीकरण के 7 चरण (7 Stages of Integration)

  • 1. पहला चरण: मत्स्य संघ (18 मार्च 1948)
  • 2. दूसरा चरण: राजस्थान संघ (25 मार्च 1948)
  • 3. तीसरा चरण: संयुक्त राजस्थान (18 अप्रैल 1948)
  • 4. चौथा चरण: वृहत राजस्थान (30 मार्च 1949)
  • 5. पांचवां चरण: संयुक्त वृहत राजस्थान (15 मई 1949)
  • 6. छठा चरण: संयुक्त राजस्थान (26 जनवरी 1950)
  • 7. सातवां चरण: पुनर्गठित राजस्थान (1 नवंबर 1956)

प्रथम चरण – 18 मार्च 1948 (मत्स्य संघ)

राजस्थान के एकीकरण का पहला चरण 18 मार्च, 1948 को शुरू हुआ था मत्स्य संघ में अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली रियासतें शामिल कर के बनाया गया था.

शोभाराम कुमावत को मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री बनाया गया था. अलवर को मत्स्य संघ की राजधानी बनाया गया था श्री एन.वी. गाडगिल ने लोहारगढ़, भरतपुर में मत्स्य संघ का उद्घाटन किया.

मत्स्य नाम महाभारत काल से जुड़ा है, जो कनहिया लाल माणिक्य लाल मुंशी द्वारा दिया गया था। युगल किशोर चतुर्वेदी को मत्स्य संघ का उपप्रधानमंत्री किसे बनाया गया.

अलवर रियासत ने 15 अगस्त, 1947 को पहला स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया था। महात्मा गांधी की हत्या के मामले में, अलवर रियासत के महाराजा तेज सिंह प्रभाकर पर संदेह जताया गया था। उन पर नाथूराम गोडसे को हथियार उपलब्ध कराने और साजिश में शामिल होने का आरोप था तत्कालीन महाराज तेज सिंह को नजरबंद कर दिल्ली बुला लिया गया।

महात्मा गांधी की हत्या के आरोप, हिंदू महासभा से उनके संबंध, और अलवर में हुई सांप्रदायिक घटनाओं ने महाराजा तेज सिंह की स्थिति को कमजोर कर दिया, जिससे उन्हें मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। इसके बजाय, अलवर प्रजामंडल के लोकप्रिय नेता शोभाराम कुमावत को मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।

द्वितीय चरण – 25 मार्च 1948 (राजस्थान संघ)

राजस्थान के एकीकरण के दूसरा चरण में कोटा, बूंदी, झालावाड़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, टोंक, शाहपुरा, और किशनगढ़ रियासतें शामिल थी और राजस्थान संघ की राजधानी कोटा को बनाया गया था। राजस्थान संघ का उद्घाटन 25 मार्च, 1948 को कोटा किले में एन.वी. गाडगिल द्वारा किया गया था।

गोकुल लाल असावा को राजस्थान संघ का प्रधानमंत्री बनाया गया था और कोटा के भीम सिंह राजस्थान संघ के राजप्रमुख बनाया गया। बूंदी के बहादुर श्री बहादुर सिंह राजस्थान संघ के उपराजप्रमुख थे।

तृतीय चरण – 18 अप्रैल 1948 (संयुक्त राजस्थान)

राजस्थान के एकीकरण के तीसरे चरण में उदयपुर रियासत (मेवाड़) को राजस्थान संघ में शामिल किया गया, जिसके बाद इसका नाम बदलकर “संयुक्त राज्य राजस्थान” कर दिया गया। माननीय प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने कोटा में संयुक्त राजस्थान का उद्घाटन 18 अप्रैल, 1948 को किया था।

मेवाड़ के भूपाल सिंह को राजप्रमुख चुना गया और कोटा के श्री भीम सिंह को उपराजप्रमुख चुना गया। उदयपुर को संयुक्त राजस्थान राजधानी बनाया गया था

चतुर्थ चरण – 30 मार्च 1949 (वृहद राजस्थान)

राजस्थान के एकीकरण के चौथा चरण में जोधपुर, जयपुर, बीकानेर और जैसलमेर रियासतों को संयुक्त राजस्थान में मिलाया गया था, यह सबसे बड़ा चरण था और इसी दिन राज्य का नाम “राजस्थान”रखा गया। हर वर्ष 30 मार्च को राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है , क्योंकि वृहद राजस्थान का उद्घाटन 30 मार्च, 1949 को सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया था।

सत्यनारायण राव समिति की सिफारिश पर जयपुर को वृहद राजस्थान की राजधानी बनाया गया था. सत्य नारायण राव समिति सिफारिश पर जोधपुर को उच्च न्यायालय, भरतपुर को कृषि, उदयपुर को खनिज विभाग, बीकानेर को शिक्षा विभाग दिया गया। जयपुर के मानसिंह द्वितीय को राजप्रमुख और श्री भीम सिंह को उपराजप्रमुख बनाया गया था. जयपुर के हीरालाल शास्त्री वृहद राजस्थान के प्रधानमंत्री बने ।

पंचम चरण – 15 मई 1949 (संयुक्त वृहत् राजस्थान)

राजस्थान के एकीकरण का पांचवां चरण में मत्स्य संघ को वृहद राजस्थान में मिलाया गया था सरदार वल्लभभाई पटेल ने 15 मई 1949 को संयुक्त वृहत् राजस्थान का उद्घाटन किया। जयपुर संयुक्त वृहत् राजस्थान राज्य की राजधानी थी। मानसिंह द्वितीय राजप्रमुख थे तथा कोटा के श्री भीमसिंह संघ के उपराजप्रमुख थे । हीरालाल शास्त्री संयुक्त वृहत् राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री बने।

षष्ठम चरण – 26 जनवरी 1950(संयुक्त राजस्थान)

संयुक्त राजस्थान 26 जनवरी 1950 को सिरोही क्षेत्र को संयुक्त वृहत् राजस्थान के विलय के साथ अस्तित्व में आया। इस दिन राजस्थान को अपना आधिकारिक नाम मिला और जयपुर को राजधानी बनाया गया। सिरोही रियासत के आबू और देलवाड़ा क्षेत्र को इस विलय से अलग रखा गया था। भारत का नया संविधान लागू हुआ और राजस्थान को एक पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। मानसिंह द्वितीय को संयुक्त राजस्थान राजप्रमुख और श्री हीरालाल शास्त्री राजस्थान का प्रथम मुख्यमंत्री बनाया गया था।

सप्तम चरण – 1 नवंबर 1956(पुनर्गठित राजस्थान)

राजस्थान के एकीकरण का सातवां चरण 1 नवंबर, 1956 को पूरा हुआ। इस चरण में, अजमेर-मेरवाड़ा, आबू रोड, और सुनेल टप्पा को राजस्थान में मिलाया गया, जबकि सिरोंज उप-जिला मध्य प्रदेश को दे दिया गया। पुनर्गठित राजस्थान की राजधानी जयपुर थी ।मोहनलाल सुखाड़िया इस संघ के मुख्यमंत्री थे। राजप्रमुख का पद बदलकर राज्यपाल का पद कर दिया गया। श्री गुरुमुख निहाल सिंह राजस्थान के प्रथम राज्यपाल बने। राजस्थान का वर्तमान स्वरूप इसी चरण में स्थापित हुआ।

रियासतों के शासकों को तोपों की सलामी दी गई और ठिकानों को तोपों की सलामी सम्मान नहीं दिया गया।

राजस्थान में स्वतंत्रता से पहले नीमराणा, लावा और कुशलगढ़ तीन ठिकाने थे.

राजस्थान एकीकरण के समय सबसे अंत में अजमेर – मेवाड़ क्षेत्र शामिल हुआ था.

राजस्थान एकीकरण को स्वीकारने वाली सबसे पहली रियासत बीकानेर थी

बांसवाड़ा के शासक चन्द्रवीर सिंह ने राजस्थान संघ के निर्माण के समय में विलय पत्र हस्ताक्षर करने हुए कहा था कि मैं अपने डेथ वारंट पर हस्ताक्षर कर रहा हूं .

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राजस्थान में रामसर साइट Ramsar sites in rajasthan

राजस्थान में अभी 4 रामसर स्थल हैं: भरतपुर का केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान, सांभर झील, खीचन गांव (फलोदी) और मेनार गांव (उदयपुर)। राजस्थान में मेनार और खींचन को मिलाकर राजस्थान में अब 4 रामसर साइट हो गई है।

पारिस्थितिक रूप से नाजुक आर्द्रभूमि स्थलों की रक्षा के लिए 1971 में ईरानी शहर रामसर में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था, ताकि दुनिया भर में आर्द्रभूमि के संरक्षण और संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनाई जा सके। हर साल 2 फ़रवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस मनाया जाता है. 

सांभर झील – 1990 में सांभर झील को रामसर साइट घोषित किया गया था।सांभर झील को छह नदियों से पानी मिलता है: मंथा, रूपनगढ़, खारी, खंडेला, मेड़था और सामोद । सांभर झील हजारों प्रवासी फ्लेमिंगो के लिए एक आश्रय स्थल है! सांभर झील, राजस्थान की सबसे बड़ी खारी झील है. यह भारत की सबसे बड़ी अंतर्देशीय खारे पानी की झील भी है. यह झील जयपुर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है. 

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान – अक्टूबर 1981 में केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान को रामसर साइट घोषित किया गया था। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के भरतपुर में स्थित है.इसे साल 1971 में संरक्षित पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया था. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान साल 1985 में इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था. • यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय साइबेरियाई सारस की बड़ी आबादी के लिए एकमात्र शीतकालीन आश्रय स्थल है

मेनार गांव (उदयपुर) – उदयपुर के मेनार गांव को ‘बर्ड विलेज’ के नाम से जाना जाता है।मेनार वेटलैंड एक मीठे पानी का मानसून वेटलैंड परिसर है। इसमें तीन तालाब हैं – ब्रह्म तालाब, ढांड तालाब और खेरोदा तालाब। वल्लभनगर विधानसभा क्षेत्र में आने वाले मेनार गांव को बर्ड विलेज के नाम से जाना जाता है। यहां 200 से अधिक प्रजातियों के पक्षी आते है। मेनार में संकटग्रस्त सारस क्रेन, ब्लैक नेक्ड स्टॉर्क, वूली नेक्ड स्टॉर्क, फेरूजीनस पोचार्ड, डालमेशियन पेलिकन और ब्लैक टेल्ड गॉडविट आदि की प्रजातियां भी देखी गईं।

जून 2025 में मेनार को रामसर साइट घोषित किया गया था।

उदयपुर का मेनार गांव ‘बारूद की होली’ के लिए प्रसिद्ध है।

खीचन गांव (फलोदी) – सर्दियों में खीचन गांव, प्रवासी पक्षी (कुरजां पक्षी) डेमोइसेल क्रेन्स (Anthropoides virgo) के बड़े शीतकालीन झुंडों की मेजबानी के लिए जाना जाता है जून 2025 में खींचन को रामसर साइट घोषित किया गया था। खीचन वेटलैंड साइट थार रेगिस्तान के उत्तरी भाग में स्थित एक रेगिस्तानी वेटलैंड, रात्री नदी और विजयसागर तालाब के कारण बना है।

उदयपुर शहर – राजस्थान के उदयपुर और मध्य प्रदेश के इंदौर को यूनेस्को के रामसर सम्मेलन द्वारा वेटलैंड सिटी की सूची में शामिल किया गया है।उदयपुर शहर को जनवरी 2025 रामसर आर्द्रभूमि स्थलों की सूची में जोड़ा गया था। राजस्थान का उदयपुर शहर भारत में झीलों के शहर के रूप में प्रसिद्ध है। यह पाँच प्रमुख आर्द्रभूमि-रंग सागर, पिछोला, दूध तलाई, फतेह सागर और स्वरूप सागर द्वारा घिरा हुआ है।

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राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित मेले

राजस्थान में कई प्रमुख पर्यटन महोत्सव पर्यटन विभाग द्वारा मनाए जाते हैं, जैसे कि आभानेरी उत्सव, मारवाड़ उत्सव, पुष्कर मेला, चंद्रभागा मेला, पुष्कर मेला, मरू महोत्सव (जैसलमेर), हाथी महोत्सव (जयपुर), ऊंट महोत्सव (बीकानेर) और ग्रीष्मकालीन महोत्सव (माउंट आबू) शामिल हैं.

हाथी महोत्सव – हाथी महोत्सव जयपुर में अयोजित किया जाता है इस महोत्सव में सजे-धजे हाथियों, ऊंटों, और घोड़ों का जुलूस निकाला जाता है.

धुलण्डी उत्सव – सम्पूर्ण भारत में होलिका दहन के बाद अगले पूरे दिन धुलण्डी उत्सव (रंगों का त्योहार) मनाया जाता है। यह वसंत की शुरुआत का प्रतीक है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

राजस्थान फैस्टिवल (राजस्थान उत्सव) -‘‘महाराजाओं की भूमि’’ राजस्थान – विविध रंगों से परिपूर्ण और उज्जवल और चटकीला है। राजस्थान अपना स्थापना दिवस बड़े ही दैदीप्यमान और उत्साहित रूप से मनाता है। राजस्थान का स्थापना दिवस हर साल 30 मार्च को मनाया जाता है यह उत्सव राजस्थान सरकार और पर्यटन विभाग के आयोजन से मनाया जाता है. इस उत्सव में राजस्थान की विरासत और कहानियों को याद किया जाता है.

 गणगौर उत्सव – गणगौर उत्सव राजस्थान के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक गणगौर उत्सव है। अलग-अलग तौर-तरीकों से पूरे राजस्थान में इसे मनाया जाता है। “गण” भगवान शिव का एक पर्याय है और “गौरी” या “गौर” देवी पार्वती का, जो स्वर्ग में भगवान शिव की पत्नी /संगिनी हैं। शिव-पार्वती के साथ होने का उत्सव मनाना सुखी वैवाहिक जीवन का प्रतीक है। गणगौर की शुरुआत चैत्र महीने के पहले दिन से होती है और 18 दिनों तक मनाया जाता है

मेवाड़ उत्सव – मेवाड़ महोत्सव राजस्थान के उदयपुर में मनाया जाने वाला वार्षिक उत्सव है जो हिंदू महीने चैत्र के दौरान होता है राजस्थान के निवासियों उत्सव बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है और गणगौर के साथ मनाया जाता है

ग्रीष्म उत्सव – माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू दो दिवसीय रंगारग ग्रीष्म उत्सव समारोह से ठंडक पहुँचाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन से आरम्भ होकर यह ग्रीष्म उत्सव पूरे दो दिन राजस्थानी संस्कृति को आत्मसात करता है। वैशाख महीने में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाता है

तीज उत्सव – हरियाली तीज श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है कजरी तीज भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है, जो आमतौर पर अगस्त/सितंबर में आती है. बूंदी में कजली तीज का विशेष रूप से मनाया जाता है, जिसे बड़ी तीज भी कहा जाता है. राजस्थान में तीज त्यौहार, विशेषकर जयपुर और बूंदी में, एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव है तीज का त्यौहार, वास्तव में मानसून के कारण उत्पन्न हरियाली, सामाजिक गतिविधियों, अनुष्ठानों और रिवाजों के साथ पक्षियों के आगमन का उल्लास मनाने का त्यौहार है

आभानेरी उत्सव – आभानेरी में स्थित चांद बावड़ी एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है आभानेरी उत्सव राजस्थान के दौसा जिले के आभानेरी गाँव में आयोजित एक दो दिवसीय उत्सव है

दशहरा – राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध दशहरा मेला कोटा में लगता है यह राजस्थान का सबसे बड़ा और पुराना दशहरा मेला है. अक्टूबर नवम्बर माह में प्रतिवर्ष नौ दिन नवरात्रों के उपरांत दशहरा के अवसर पर, कोटा दशहरा मेला ग्राउंड में भारत का प्रसिद्व 15 दिवसीय दशहरा मेले का शुभारम्भ होता है।

मारवाड़ उत्सव – मारवाड़ महोत्सव जोधपुर, राजस्थान में मनाया जाता है, पहले मांड महोत्सव के नाम से जाना जाता था. इस महोत्सव का मुख्य आकर्षण राजस्थान के शासकों की रोमांटिक जीवन शैली पर केंद्रित लोक संगीत और नृत्य है.

पुष्कर मेला – पुष्कर मेला जिसे पुष्कर ऊँट मेला भी कहा जाता है राजस्थान के पुष्कर शहर में आयोजित होने वाला वार्षिक बहु-दिवसीय पशुधन और सांस्कृतिक पर्व है। मेला कार्तिक के हिंदू कैलेंडर माह से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होता है।

मोमासर उत्सव – मोमासर उत्सव, राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में मोमासर गाँव में मनाया जाता है,यह उत्सव मोमासर के स्थानीय निवासियों और जाजम फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है. मोमासर, बीकानेर के शेखावाटी क्षेत्र का एक आकर्षक गाँव है ‘मोमसर उत्सव’ की नींव वर्ष 2011 में विनोद जोशी ने रखी थी।

चंद्रभागा मेला – चंद्रभागा मेला हर साल राजस्थान के झालरापाटन में, कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) में आयोजित होता है, जो चंद्रभागा नदी के सम्मान में लगता है कार्तिक के महीने  में झालावाड़ के झालारपाटन में यह मेला आयोजित किया जाता है।

बूंदी उत्सव – बूंदी उत्सव ,राजस्थान के बूंदी में मनाया जाता है. बूंदी महोत्सव कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के महीने में मनाया जाता है

मत्स्य महोत्सव – राजस्थान के अलवर शहर में हर साल अलवर महोत्सव का आयोजन किया जाता है.मत्स्य महोत्सव अलवर, राजस्थान में शहर की स्थापना के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य अलवर क्षेत्र में सांस्कृतिक, विरासत और वन्यजीव पर्यटन को बढ़ावा देना है.

कोलायत मेला – कपिल मुनि का मेला कोलायत में कार्तिक पूर्णिमा पर आयोजित होता है। कोलायत का वार्षिक मेला राजस्थान के बीकानेर में आयोजित किया जाता है। इसे कपिल मुनि मेला भी कहा जाता है। कपिल मुनि मेला राजस्थान के बीकानेर जिले में आयोजित किया जाता है। कोलायत झील के तट पर मेले का आयोजन किया जाता है।

कुम्भलगढ़ उत्सव – कुंभलगढ़ महोत्सव राजसमंद जिले में होता है, जो कि ऊबड़-खाबड़ अरावली पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। यह किला, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल भी है

रणकपुर उत्सव – रणकपुर महोत्सव राजस्थान के पाली जिले में आयोजित एक वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव है, जो मारवाड़-गोडवाड़ क्षेत्र की लोक संस्कृति को प्रदर्शित करता है।

शीतकालीन उत्सव – माउंट आबू राजस्थान में, माउंट आबू में वार्षिक शीतकालीन उत्सव मनाया जाता है। माउंट आबू में दिसंबर में आयोजित वार्षिक शीतकालीन समारोह राजस्थान की गौरवमयी संस्कृति और परंपराओं का परिचायक है।

ऊंट उत्सव – बीकानेर में ऊंट महोत्सव अयोजित किया जाता है राजस्थान के बीकानेर शहर में हर साल ऊंट महोत्सव का आयोजन किया जाता है.जनवरी माह में राजस्थान पर्यटन द्वारा आयोजित, उत्सव में ऊंट दौड़, ऊंट दुग्ध, फर काटने के आलेखन /डिजाइन, सर्वश्रेष्ठ नस्ल प्रतियोगिता, ऊंट कलाबाजी और ऊंट सौंदर्य प्रतियोगिताएं शामिल हैं।

उत्सव पतंग उत्सव – पतंग उत्सव, भारत में मकर संक्रांति ( 14 जनवरी) के मौके पर मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्योहार है.पतंग महोत्सव राजस्थान के लिए एक उमंग भरा उत्सव है। इस अद्भुत त्यौहार पर पूरे राज्य में पतंगें उड़ाई जाती हैं।

नागौर मेला – नागौर मेला भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है हर वर्ष जनवरी और फरवरी के महीने के बीच आयोजित, नागौर के मवेशी मेले के रूप में लोकप्रिय है इस मेले में करीब 10,000 बैल, ऊंट और घोड़ों का व्यापार होता है। पशुओं को सुंदर ढंग से सजाया जाता है राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला परबतसर (नागौर) में वीर तेजाजी महाराज की स्मृति में लगता है, जिसे तेजाजी पशु मेला भी कहा जाता है. 

बाणेश्वर मेला – यह मेला माघ शुक्ल पूर्णिमा के दिन डूंगरपुर के बाणेश्वर मंदिर में लगता है. इसे आदिवासियों का कुंभ मेला भी कहा जाता है. यह मेला भगवान शिव को समर्पित है. यह मेला सोम, माही, और जाखम नदियों के संगम पर लगता है. 

मरू महोत्सव ( डैज़र्ट फेस्टिवल ) – मरु महोत्सव राजस्थान के जैसलमेर मैं अयोजित किया जाता है जो की एक एक सांस्कृतिक उत्सव है यह एक चार दिवसीय वार्षिक कार्यक्रम है जो एक रंगीन भव्य जुलूस के साथ शुरू होता है जिसके बाद मिस पोकरण और मिस्टर पोकरण प्रतियोगिताएं होती हैं।कालबेलिया, कच्ची घोड़ी, गैर जैसे क्षेत्रीय लोकनृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं।

जयपुर लिट्रेचर फैस्टिवल (साहित्यिक उत्सव) – इस फ़ेस्टिवल में साहित्य, कला, और संस्कृति पर चर्चा की जाती है. साहित्य की सीमाओं को विस्तार देने के लिए, जयपुर के डिग्गी पैलेस में, प्रसिद्ध जयपुर लिट्रेचर फैस्टिवल मनाया जाता है, जिसमें साहित्यिक परिदृश्य के सर्वोत्तम तथा उत्कृष्ट लेखकों, कवियों तथा कलाकारों को एक छत के नीचे इकट्ठा किया जाता है

उदयपुर वर्ल्ड म्यूजिक फैस्टिवल (विश्व स्तरीय संगीत समारोह) -प्रति वर्ष झीलों का शहर उदयपुर एक अलग ही धुन गुनगुनाता है। उदयपुर शहर ’उदयपुर वर्ल्ड म्यूजिक फैस्टिवल’ के अगले संस्करण की मेज़बानी करने जा रहा है। दुनियां भर के जाने माने विद्धान, कलाकारों को एक जगह इकट्ठा करने का काम ‘‘सहर” नामक संस्था करती है जिनमें बीस से अधिक देशों के लोग जिनमें ईरान, स्पेन, ब्राजील, सेनेगल, इटली और भारत सहित कई अन्य देशों के लोग भी शामिल होते हैं